गुरुवार, नवंबर 26, 2009

ओबामा के टोटकों में नहीं फंसे मनमोहन्


ओबामा के टोटकों में नहीं फँसे मनमोहन
वीरेन्द्र जैन
राजनीति में भावुकता का सहयोग लेने का सिलसिला बहुत पुराना है। अगर हम सिकन्दर और पुरू के बीच में हुये युद्ध के बाद पुरु को राज्य वापिस मिलने की घटना को याद करें या हुमायुं को राखी भेजने की घटना की ओर दृष्टि दौड़ायें तो पाते हैं कि जो काम तलवार से सम्भव नहीं हुये वे भावुकता से हो गये हैं। हमारे देश की लोकतांत्रिक राजनीति में भी देखें तो मोहन दास करम चन्द गान्धी, महात्मा ही नहीं अपितु पूरे देश के बापू की तरह स्वीकृत होकर और जवाहर लाल नेहरू बच्चों के चाचा बन कर राजनीति को संचालित करते रहे। तिलक गणेशोत्सवों की धार्मिक परम्परा को समूह उत्सवों में बदल कर उसे स्वंत्रता संग्राम के लिये प्रयोग कर सके तो आज़ादी के बाद संघ परिवार की राजनीतिक शाखा ने कभी जनसंघ या फिर भाजपा के नाम पर लोगों की धार्मिक भावनाओं को साम्प्रदायिकता में बदल कर सत्ता पाने के औज़ारों में बदला।
वैश्वीकरण के ज़माने में भावनाओं को भुनाने का व्यापार देशों की सीमायें तोड़ चुका है और वह अंतर्राष्ट्रीय हो गया है। ईसाई मिशनरियां तो काफी दिनों से पूरी दुनिया में अपना सेवा कार्य करके धर्म प्रचार करती रही थीं पर पिछली शताब्दी से तेल उत्पादक देशों के सहयोग से मुस्लिम ब्रदरहुड ने देश की सीमाओं से बाहर निकल कर मुसलमानों को एकजुट किया है।विश्व हिन्दू परिषद आदि संस्थाओं ने भी 36 देशों में अपनी शाखायें खोल रखी हैं और धर्म के नाम वहाँ बसे हिन्दुओं से समुचित आर्थिक सहयोग प्राप्त कर रहे हैं।
भावनाओं के आधार पर स्वाभाविक सम्बन्ध विकसित करना बुरी बात नहीं है किंतु जब किसी इतर लक्ष्य के लिये किसी दूसरी भावना को आधार बनाया जाता हो तो यह एक किस्म का धोखा होता है जो सही नहीं है। हमारी भावनाओं से खिलवाड़ करने में ताज़ा नाम सन्युक्त राज्य अमेरिका के प्रेसीडेंट ओबामा का आता है जिन्होंने भारत की ताज़ा स्तिथि का आकलन करने के बाद उसके व उसकी जनता को बरगलाने के सारे हथकण्डे अपनाये हैं। जब उन्होंने चुनाव लड़ा था तभी उन्होंने अपनी जेब में चाबी के गुच्छे की तरह हनुमानजी की एक छोटी सी मूर्ति रखे होने का प्रचार कराया था ताकि वहां रह रहे भारतियों के वोट मिल सकें। विश्व हिन्दू परिषद को मदद करने वाली सोनल शाह को उन्होंने अपने सलाहकारों की टीम में सम्मलित करके हिन्दूवादी भारतियों को परोक्ष सन्देश दिया। पिछले दिनों अपने व्हाइट हाउस में उन्होंने दीवाली और गुरुपर्व मनाया।
हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ताज़ा अमेरिका यात्रा के दौरान उन्होंने फिर नये शगूफे छोड़े। ओबामा की पत्नी मिशेल ओबामा ने लीक किया कि ओबामा अपने पास हमेशा महात्मा गान्धी की मूर्ति रखते हैं और गान्धी जी के आदर्शों पर चल कर परिवर्तन के अग्रदूत बने हैं। मनमोहन सिंह को दिये भोज में उन्होंने भले ही हिन्दुस्तान के उद्योगपति रतन टाटा, मुकेश अम्बानी, इन्द्रानूयी आदि को बुलाया था पर मनमोहन सिंह के लिये विशेश तौर पर शाकाहारी भोजन तैयार करवाया गया था। अपने भाषण में भी उन्होंने जवाहर लाल नेहरू के 60 साल पहले दिये भाषण का ज़िक्र करते हुये कहा कि समान भविष्य के लिये दोनों देश अपने साझा अतीत से मजबूती हासिल कर सकते हैं।
किंतु दूध का जला छाँछ भी फूंक फूंक कर पीता है इसलिये हमारे प्रधानमंत्री ने अफग़ानिस्तान में स्वयं अपनी टांग फँसाने से बचते हुये कहा कि अमेरिका को अभी वहाँ बने रहना चाहिये।

कूटनीति जब समझ में आ जाये तो स्तेमाल करने वालों को हास्यास्पद बना देती है।ओबामा को अपनी नौटंकी का शायद ही कोई लाभ मिले!
वीरेन्द्र जैन
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