tag:blogger.com,1999:blog-3138696183834633168.post7049173179258463407..comments2023-07-06T18:51:06.940+05:30Comments on नेपथ्यलीला NEPATHYALEELA: रोमन में हिन्दी और प्याले में तूफ़ानवीरेन्द्र जैनhttp://www.blogger.com/profile/03394460991280336978noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-3138696183834633168.post-8062792352185366722010-03-29T11:21:58.673+05:302010-03-29T11:21:58.673+05:30कांग्रेस की यही तो खूबी है कि हर अच्छी बात के विरो...कांग्रेस की यही तो खूबी है कि हर अच्छी बात के विरोध को खुला समर्थन मिलता है. देवनागरी का विकास अपने आप में सभ्यता के विकास के इतिहास को दर्शाता है. पहले लिपि बाद में भाषा खत्म कर दीजिये. यही हिन्दुओं के समूल नाश करने की बुनियाद है.भारतीय नागरिक - Indian Citizenhttps://www.blogger.com/profile/07029593617561774841noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3138696183834633168.post-18162906104868874842010-03-29T09:37:10.427+05:302010-03-29T09:37:10.427+05:30असगर वज़ाहत होंगे वरिष्ठ हिन्दी लेखक; किन्तु तकनीकी...असगर वज़ाहत होंगे वरिष्ठ हिन्दी लेखक; किन्तु तकनीकी, तकनीकी की शक्ति, भाषा तकनीकी की वर्तमान दशा और दिशा तथा 'फ्यूचरोलोजी' में लगभग 'अंगूठा छाप' ही हैं। उनके लेख में एक छिपे एजेण्डे की बदबू आ रही है। यह बात उनके हाल ही में उर्दू के लिये मर्शिया पढ़ने और देवनागरी की मृत्यु की दुआ जैसे विरोधाभासी आचरण से भी स्पष्ट हो जाती है। <br /><br />असगर, एक स्वतन्त्र भाषा-समुदाय को फिर से गुलामी की ओर ले जाने का सलाह दे रहे हैं। उनके पास वर्तमान में अपनी बात के समर्थन में कहने के लिये एक भी ठोस तर्क नहीं है। इसका प्रमाण है कि अपने ब्लॉग पर वे एक भी टिप्पणी का जवाब नही दे पाये हैं।अनुनाद सिंहhttps://www.blogger.com/profile/05634421007709892634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3138696183834633168.post-8115003252094209092010-03-28T22:32:48.082+05:302010-03-28T22:32:48.082+05:30यह प्याली में तूफ़ान ही है. क्योंकि इन्हें नहीं पत...यह प्याली में तूफ़ान ही है. क्योंकि इन्हें नहीं पता कि तकनीक ने कहाँ तक प्रगति कर ली है. अब आप चाहे रोमन में लिखें या बंगाली पंजाबी उर्दू में, मुझे पढ़ना होगा तो मैं देवनागरी में कन्वर्ट कर पढ़ लूंगा यदि आप नागरी के लिए निरक्षर हैं तो आप रोमन में बदल कर पढ़िए, कौन रोक रहा है. <br />वैसे, भारत में हिन्दी अख़बारों की बढ़ती प्रसार संख्या तो असगर वजाहत से बिलकुल जुदा बात कहती है, है ना?रवि रतलामीhttps://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3138696183834633168.post-40552980756704027272010-03-28T22:19:05.293+05:302010-03-28T22:19:05.293+05:30बिल्कुल सहमत नहीं। अगर कोई ये समझता है कि अगर रोमन...बिल्कुल सहमत नहीं। अगर कोई ये समझता है कि अगर रोमन का सहारा नहीं लेगा तो हिन्दी का विकास नहीं होगा उन्हें श्री प्रभू जोशी का लेख <a href="http://www.abhivyakti-hindi.org/snibandh/drishtikone/2007/hindi.htm" rel="nofollow">हिन्दी के हत्या के विरूद्ध</a> जरूर पढ़ना चाहिये। प्रभू जोशी लिखते हैं कि किस तरह कई भाषायें बर्बाद हो गई।<br />मार्कटूली का लेख <a href="http://www.abhivyakti-hindi.org/snibandh/hindi_diwas/bharathindi.htm" rel="nofollow"> भारत में अंग्रेज़ी बनाम हिंदी</a> भी पढ़ने योग्य है।<br /> यह कैसा दुर्भाग्य है कि हिन्दी के वरिष्ठ लेखक भी अब रोमन हिन्दी की वकालात करने लगे हैं। इतने वरिष्ठ लेखकों के इस तरह के बयानों से बहुत दुख: होता है।सागर नाहरhttps://www.blogger.com/profile/16373337058059710391noreply@blogger.com