बुधवार, दिसंबर 05, 2012

गुजरात में चुनाव जीतने का नकली आत्मविश्वास्


गुजरात में चुनाव जीतने का नकली आत्मविश्वास 
वीरेन्द्र जैन
       गोएबल्स के अनुसार अगर एक झूठ को जोर शोर से सौ बार बोला जाये तो लोगों को उसके सत्य होने का भरोसा होने लगता है। यह सिद्ध हो चुका है कि झूठ को प्रचारित करने और अफवाहें फैलाने के मामले में संघ परिवारियों का कोई सानी नहीं है और इसी हथियार के भरोसे वे गुजरात विधानसभा के चुनावों में मोदी की सुनिश्चित जीत का प्रचार लगातार कर रहे हैं। हमारे यहाँ के मतदाताओं को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। पहले प्रकार के मतदाता तो वे हैं जो किसी राजनीतिक दल में सक्रिय हैं, और किसी भी हालत में उसी दल को वोट करते हैं, भले ही दल ने किसी भी तरह के गम्भीर अपराधों के आरोपी को प्रत्याशी बनाया हो। दूसरी तरह के मतदाता वे हैं जो राजनीतिक रूप से जागरूक हैं और दल के सिद्धांत, घोषणापत्र, अथवा प्रत्याशी के गुणदोष, पिछले कार्यकलाप, के अनुसार अपना मत तय करते हैं। तीसरे तरह के अदूरदर्शी मतदाताओं में जातिवादी, क्षेत्रवादी तथा बिकाऊ मतदाता आते हैं जो व्यक्तिगत या तात्कालिक लाभ को देखते हुए उम्मीदवार की घोषणा के बाद उसकी जाति देख कर या मतदान वाले दिन पैसे, शराब साड़ी कम्बल आदि के अनुसार वोट देते हैं। तीनों तरह के मतदाताओं के मत का मूल्य एक समान होता है, यही कारण है सत्ता या विपक्ष के कामकाज का एक सा असर पड़ने के बाद भी देश के अलग अलग हिस्सों में अलग अलग परिणाम आते हैं।
       गुजरात के आगामी विधानसभा चुनावों में व्यापक तौर पर मोदी की जीत का वितान बाँधा जा रहा है। स्मरणीय है कि हिन्दू साम्प्रदायिकता से प्रभावित एक छोटे से वर्ग को छोड़ कर, मोदी इस समय देश के सबसे बड़े खलनायकों में गिने जाते हैं, और ऐसा मानने में उनके दल का भी एक बड़ा हिस्सा सम्मलित है। भाजपा के बहुत सारे लोग यह मानते हैं कि एनडीए के क्षरण और केन्द्र में उनकी सरकार के पतन के पीछे गुजरात में 2002 में हुए नरसंहार की बड़ी भूमिका थी। यहाँ तक कि बाहर के देश भी उन्हें अपने यहाँ नहीं देखना चाहते रहे और उन्हें बीजा देने से इंकार कर चुके हैं। तीन वर्ष पूर्व हुए 2009 के लोकसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि कांग्रेस और बीजेपी के मतों में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है। 26 लोकसभा सीटों में कांग्रेस ने 12 सीटों पर जीत दर्ज की थी व 14 सीटें बीजेपी को मिलीं थीं। मत प्रतिशत के लिहाज़ से देखें तो कुल मतदान 47.89 फीसदी हुआ था जिसमें से 46.5 फीसदी वोट बीजेपी को और 43.5 फीसदी वोट कांग्रेस को मिले थे।  वोटों की गिनती के हिसाब से बीजेपी को कुल 81 लाख 28 हज़ार 858 वोट मिले थे जबकि कांग्रेस को 75 लाख 79 हज़ार 957 वोट मिले। निर्दलीयों के खाते में 5 फीसदी वोट गए यानी 10 लाख वोट उन्हें भी हासिल हुए। आंकड़ों से साफ है कि बीजेपी से बहुत ज्यादा पीछे कांग्रेस नहीं है। उल्लेखनीय है के गत दिनों पश्चिम बंगाल में पराजित होने वाले बाममोर्चे को पिछले चुनावों में मिले वोटों से नौ लाख वोट अधिक मिले थे व उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी को पिछले चुनावों से 37 लाख वोट अधिक मिले थे किंतु मतदान प्रतिशत अभूतपूर्व ढंग से बढ जाने के कारण ये सत्तारूढ दल पिछड़ गये थे। इस बार गुजरात में भी मतदान प्रतिशत का बढना तय है इसलिए मतदान के पुराने अनुपातों से अनुमान लगाना कठिन होगा।
       यहाँ यह उल्लेख करना जरूरी लगता है कि गुजरात के इन विधानसभा चुनावों में भाजपा का कोई नाम ही नहीं ले रहा अपितु पूरा चुनाव मोदी बनाम कांग्रेस के तौर पर लड़ा जा रहा है। यह केवल मोदी के दुष्कर्मों द्वारा अर्जित पहचान का ही परिणाम है कि उन्होंने स्वयं को पार्टी से ऊपर प्रचारित करवा लिया है। स्वयं को प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी प्रचारित कराने से न केवल सबसे शिखर के नेता पूर्व प्रधान मंत्री पद प्रत्याशी लालकृष्ण अडवाणी ही असंतुष्ट रहे हैं, अपितु आरएसएस के बहुत महत्वपूर्ण नेता व पूर्व प्रवक्ता एम.जी. वैद्य ने तो यह तक कह दिया है कि भाजपा के अध्यक्ष गडकरी के खिलाफ लगाये गये भ्रष्टाचार के आरोपों की मुहिम में नरेन्द्र मोदी का हाथ है। इससे भी तय है कि भाजपा के वर्तमान अध्यक्ष नितिन गडकरी समेत संघ और भाजपा के अनेक नेता भले ही भाजपा की जीत चाह रहे हों किंतु मोदी की जीत नहीं ही चाह रहे होंगे। भाजपा से छिटके प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री केशूभाई पटेल जिन्हें पटेल जाति के मतों सहित संघ के एक वर्ग का समर्थन भी प्राप्त है, ने मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ रही कांग्रेस की उम्मीदवार के समर्थन में अपने उमीदवार का नाम वापिस ले लिया है।  स्मरणीय है कि गत दिनों हुआ भाजपा का जो राष्ट्रीय अधिवेशन मुम्बई में हुआ था उसे नरेन्द्र मोदी गुजरात में कराने पर अड़े हुए थे किंतु संघ और गडकरी ने उनके प्रस्ताव को ठुकराते हुए अधिवेशन स्थल मुम्बई में ही रखा था। स्मरणीय यह भी है कि इस अधिवेशन के दौरान मोदी ने तब तक इसमें भाग लेना मंजूर नहीं किया था जब तक कभी उनके साथ गुजरात में प्रचारक रहे संजय जोशी को बिना किसी घोषित आरोप के पार्टी से निकल जाने को नहीं कह दिया गया। यह आदेश संघ के अनुशासन से चलने वाले नेताओं ने कितने बेमन से किया इसका संकेत तो इसी बात से मिल जाता है कि अगले दिन आमसभा के लिए श्री अडवाणी और सुषमा स्वराज आदि वहाँ नहीं रुके थे। भाजपा की पत्रिका कमल सन्देश में पत्रिका सम्पादक प्रभात झा ने अपने सम्पादकीय में मोदी की निन्दा की थी, ऐसी ही आलोचना भाजपा के मुखपत्र आर्गनाइजर ने भी की थी। गुजरात में कभी संजय जोशी बतौर संघ प्रचारक नरेन्द्र मोदी से अधिक लोकप्रिय और वरिष्ठ रहे थे तथा उनके चाहने वाले वहाँ अभी भी समुचित संख्या में हैं जिसका प्रमाण उन्हें स्तीफा देने को मजबूर किये जाने के बाद उनके समर्थन में लगाये गये लाखों पोस्टरों से मिल जाता है। स्मरणीय यह भी है कि जिस हिन्दू साम्प्रदायिकता के सहारे स्वयं को गुजरात का शासक बनाये हुए हैं उसके सबसे बड़े खिलाड़ियों में से एक हिन्दुत्व के स्वयंभू ठेकेदार डा, प्रवीण तोगड़िया पिछले कई सालों से उनके सबसे बड़े विरोधी हैं। नरेन्द्र मोदी के खिलाफ निलम्बित आईपीएस संजीव भट्ट की पत्नी कांग्रेस के टिकिट पर चुनाव लड़ रही हैं। उल्लेखनीय है कि  उनके पति ने जाँच समितियों को 2002 के दंगों के लिए जिम्मेवार लोगों के बारे में सच सच बता दिया था जिस कारण उन पर झूठे आरोप लगा कर उन्हें निलम्बित कर दिया गया है और उनके परिवार ने केन्द्र सरकार से सुरक्षा की गुहार लगायी है। एक ईमानदार और समर्पित पुलिस अधिकारी के साथ हुए इस तरह के व्यवहार से प्रदेश के ईमानदार और सक्रिय पुलिस अधिकारियों में रोष होना स्वाभाविक है जो प्रशासनिक अधिकारियों के साथ मिल कर मोदी को सत्तारूढ होने के अतिरिक्त लाभ नहीं लेने देंगे।
       उत्तरांचल में सरकार के जाने, यूपी में मुँह की खाने और पंजाब में ग्राफ के गिरने, कर्नाटक में येदुरप्पा के इशारे पर सरकार के लटकने की स्थिति आ जाने के बाद पार्टी के रूप में भाजपा आगे बढती हुयी नजर नहीं आती जिसकी स्वीकरोक्ति पिछले दिनों ही श्री अडवाणी ने यह कह कर की थी कि लोग भाजपा को कांग्रेस के विकल्प के रूप में नहीं देख रहे। पिछले दिनों भ्रष्टाचार के बड़े बड़े खुलासों में कोई भी ऐसा नहीं था जिसके छींटों से भाजपा के नेता मुक्त हों। भाजपा शासित अन्य राज्यों में तो प्रतिदिन कोई न कोई खुलासा हो ही रहा है जिससे दल के रूप में भाजपा को अपेक्षाकृत बेहतर छवि का लाभ भी नहीं मिल रहा। गुजरात में लोकायुक्त की नियुक्ति के मामले में मोदी ने लगातार आठ साल तक जो टालामटोली की उससे उनकी सरकार के अन्दर चल रही गतिविधियों के संकेत मिलते हैं। मोदी की सरकार में ही गृहमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद पर रहे गोरधन भाई जदाफिया ने मोदी के कार्यकाल में एक लाख करोड़ के 17 घोटालों का आरोप लगाया है और जिसके लिए वे देश के राष्ट्रपति से भी गत वर्ष सितम्बर में मिल चुके हैं।
       यह आत्मविश्वास की कमी का ही परिणाम है कि वे ट्विटर पर नकली फालोअर बनवा कर भ्रम पैदा करा रहे हैं, गत अक्टूबर में लन्दन की एक कम्पनी ने ट्विटर के आंकड़ों का पर्दाफाश करते हुए यह गड़बड़ी पकड़ी थी और बताया था कि दस लाख फालोअर्स का दावा करने वाली साइट के आधे से अधिक फालोअर्स नकली हैं। यही हाल टाइम पत्रिका के मुखपृष्ठ पर आने और कवर स्टोरी छपने का है। उल्लेखनीय है कि मोदी कारवान के पत्रकार से मिलने से इंकार कर देते हैं पर टाइम के पत्रकार से मिलने के लिए सहर्ष राजी हो जाते हैं! यहां पर उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि एक समय टाइम ने बिहार कैडर के आइएएस गौतम गोस्वामी को 2004 में पर्सन ऑफ द इयरपुरस्कार से नवाजा था। बिहार में आई बाढ़ के दौरान उनके काम की काफी सराहना हुई थी, लेकिन बाद में बाढ़ पीडि़तों के फंड में बड़े पैमाने पर हुए घोटाले में उनका नाम उजागर हुआ था। प्रैस के साथ मोदी के सम्बन्धों का हाल यह है कि उन्होंने टाइम्स आफ इंडिया के अहमदाबाद संस्करन के सम्पादक भरत देसाई, और टाइम्स चैनल के राहुल सिंह के विरुद्ध देशद्रोह का मामला बनवाया था। दंगा पीड़ितों की मदद करने वाली कम्युनल काम्बेट की सम्पादक तीस्ता शीतलवाड़ के विरुद्ध अनेक मुकदमे चलवाये। दूसरी ओर साम्प्रदायिक आधार पर खबरें लिखने वाले ‘सन्देश’ और ‘गुजरात समाचार’ की प्रशंसा की। 
       गुजरात चुनाव में काँटे की टक्कर है क्योंकि एनडीए के घटक दल ही नहीं स्वयं भाजपा का एक गुट, संघ व विश्वहिन्दू परिषद भी मोदी के खिलाफ है इसलिए चुनाव परिणाम हमेशा की तरह अनिश्चितता भरे हैं व मोदी की सुनिश्चित जीत बतायी जाने वाली सभी खबरें झूठी और बनावटी हैं।

वीरेन्द्र जैन
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