हेमा मालिनियां
और अन्ना रामदेव
वीरेन्द्र जैन
हेमा
मालिनी अपनी युवा अवस्था में भारतीय सौन्दर्यबोध की मानक अभिनेत्री रही हैं, और
देश के व्यापक फिल्म दर्शक जगत में विख्यात रही हैं। फिल्मी दुनिया में जब दूसरी
नयी और अपेक्षाकृत युवा अभिनेत्रियां उन्हें पीछे छोड़ने लगीं तब उन्होंने विज्ञापन
फिल्में करना शुरू कर दीं। यह वही समय था जब किसी भी तरह वोट हथिया कर सत्ता पर
अधिकार करने के लिए भाजपा उतावली थी सो उसने साधारण जन को बरगलाने के सारे हथकण्डे
अपनाये। साम्प्रदायिकता, जातिवाद, क्षेत्रवाद, के साथ उसने लोकप्रियतावाद का सहारा
लिया जिसमें किसी भी क्षेत्र के लोकप्रिय व्यक्ति को किसी सौदे समझौते के अंतर्गत
पार्टी के प्रचार के लिए तैयार किया जाता है और उसकी लोकप्रियता के आधार पर जुटायी
गयी भीड़ को अपने समर्थन की भीड़ प्रचारित करके अनिश्चय से घिरे मतदाता को प्रभावित
कर लिया जाता है। भाजपा ने सुश्री हेमा मालिनी को भी पार्टी प्रचार के लिए
अनुबन्धित कर लिया और उनकी लोकप्रियता के सहारे जुटायी भीड़ से सम्पर्क करने का
अवसर पाया। हेमा मालिनी तो एक प्रतीक हैं, पर भाजपा ने बहुचर्चित रामायण सीरियल
में सीता की भूमिका करने वाली दीपिका चिखलिया, हनुमान की भूमिका करने वाले दारा
सिंह, रावण की भूमिका करने वाले अरविन्द त्रिवेदी, विनोद खन्ना, शत्रुघ्न सिन्हा,
स्मृति ईरानी, नवजोत सिंह सिद्धू, चेतन चौहान, रवि शास्त्री, आदि लोकप्रिय लोगों
से यथा सम्भव समझौते किये और चुनावों में उतरने हेतु जनता से जुड़ने का माध्यम
बनाया। श्रीमती इन्द्रा गान्धी के बाद की कांग्रेस ने भी सुनील दत्त, राजेश खन्ना,
अमिताभ बच्चन, गोबिन्दा, आदि का सहारा लिया था। समाजवादी पार्टी ने राज बब्बर के
बाद जयप्रदा, संजय दत्त, आदि का सहारा लिया। इनमें सुनील दत्त और राज बब्बर ऐसे
कलाकार रहे हैं जिनकी राजनीतिक रुचि और पृष्ठभूमि रही है पर शेष कलाकारों का
दुरुपयोग केवल उनकी लोकप्रियता को अपने वोट बैंक में बदलने के लिए चुना गया था।
इसी
परम्परा में टीम अन्ना हजारे, और रामदेव के आन्दोलन भी परोक्ष ढंग से भाजपा की मदद
करने के लिए आयोजित करवाये गये लगते हैं। राजतंत्र में राजा महाराजा जब शेर के
शिकार के लिए निकलते थे तो आस पास के सारे गाँव वालों को हाँका करने के किए पकड़
बुलाते थे जो जंगल के चारों ओर से शोर मचाते थे व राजा किसी नदी या सरोवर के
किनारे सुरक्षित मचान लगाकर बैठ जाता था और घिरा शिकार के पानी पीने आने पर राजा
उस पर गोली चला देता था, जिसके बाद वह उस शिकार पर पैर रख कर फोटो खिंचवाता था।
भ्रष्टाचार विरोध के नाम पर टीम अन्ना और रामदेव ने मिल बैठ कर किसी फैसले पर
पहुँचने की जगह जिस जिद और राजनीतिक प्रचार का सहारा लिया उससे ऐसा लगता है उनका
लक्ष्य भ्रष्टाचार नहीं अपितु वर्तमान सरकार की छवि खराब करना भर रहा है। जब
केन्द्र में दो प्रमुख गठबन्धन एक ही तरह का काम कर रहे हों तो व्यवस्थागत दोषों
के लिए उनमें से एक को केन्द्रित करके आन्दोलन करना तथा दूसरे को अछूता छोड़ देना
यही दर्शाता है। उल्लेखनीय यह भी है कि संघ परिवार के संगठनों ने यह पोल भी खोल दी
थी कि अन्ना आन्दोलन के दिनों जो व्यवस्थाएं की गयी थीं उनमें संघ परिवार का पूरा
सहयोग रहा था। टीम अन्ना ने अपने पहले दौर में प्रचार माध्यमों का भरपूर स्तेमाल
करके लोकपाल बिल लाने के लिए जो माहौल तैयार किया उसके प्रभाव में ही सरकार त्वरित
लोकपाल बिल लायी और उसे लोकसभा में रखा किंतु उसके लाने के बाद टीम अन्ना ने उसका
विरोध करना शुरू कर दिया और जनलोकपाल बिल के नाम से एक ऐसा अव्याहारिक ड्राफ्ट पेश
किया जिसके लिए सदन का कोई भी दल तैयार नहीं था। इसी लोकतंत्र और संसद को सर्वोच्च
मानने की घोषणा करने वाली टीम अन्ना ने सारे संसद सदस्यों की असंसदीय भाषा में
आलोचना करने की नीति अपनायी ताकि वे निष्पक्ष नजर आयें। आन्दोलन के दूसरे दौर में
उन्होंने पहले दौर में रणनीति के अंतर्गत अलग थलग कर दिये रामदेव को गले लगा लिया
और अपने आन्दोलन को जनलोकपाल की जगह केन्द्र सरकार के चौदह मंत्रियों के कामकाज पर
केन्द्रित कर दिया। मीडिया के माध्यम से पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित करने के बाद
उन्होंने अपनी अनशन लीला यह कहते हुए समेट ली कि इस समस्या का राजनीतिक हल ही
निकाला जायेगा जिसके लिए वे एक राजनीतिक विकल्प देंगे। उनकी इस अस्पष्ट घोषणा से
यही निष्कर्ष निकला कि वे एक राजनीतिक दल का गठन करेंगे, वहीं दूसरी और अन्ना
हजारे ने अपनी छवि को बनाये रखने के लिए किसी राजनीतिक दल में सम्मलित न होने और
स्वयं चुनाव न लड़ने की घोषणा की। इस घोषणा के बाद टीम के सदस्य विभाजित नजर आये और
श्री श्री रविशंकर व जस्टिस संतोष हेगड़े ने राजनीतिक दल बनाने का विरोध कर दिया
तथा कुमार विश्वास भी इस विचार से सहमत नहीं थे। सम्भावना यह बन रही है कि टीम
अन्ना कोई राजनीतिक दल बनाये बिना कुछ उम्मीदवारों को समर्थन दे। स्पष्ट है कि जिस
यूपीए सरकार के खिलाफ उन्होंने सारा वातावरण तैयार किया है उसके किसी उम्मीदवार का
वे समर्थन नहीं करेंगे। दूसरी ओर बामपंथियों सहित तीसरे पक्ष में माने जाने वाले
दलों ने उनके आन्दोलन में आस्था व्यक्त नहीं की थी इसलिए वे उनका साथ भी नहीं
देंगे जिससे केवल एनडीए ही ऐसा गठबन्धन बचता है जिसे टीम अन्ना द्वारा बनाये गये
वातावरण का लाभ मिल सकता है या वे उसके कुछ उम्मीदवारों का सीधे सीधे समर्थन कर
सकते हैं। यह इस बात से भी प्रकट है कि इस दौरान भाजपा शासित राज्यों में भ्रष्टाचार
के बड़े बड़े खुलासे हुए किंतु आयकर के छापों में मिले अकूत धन के बाद भी टीम अन्ना
ने उनकी आलोचना करना और उनके भ्रष्टाचार पर उंगली उठाना जरूरी नहीं समझा।
जो
काम टीम अन्ना ने किया वही काम बाबा रामदेव पहले से ही करते आ रहे थे और अपने योग
प्रदर्शनों और दवा उद्योग से अर्जित विवादास्पद आय में से भाजपा को चन्दा देते रहे
हैं। उन्होंने विदेशों से काला धन मँगाये जाने की सही माँग का स्तेमाल यूपीए सरकार
की आलोचना को केन्द्रित रख कर की। अपने व्यापार में काला-सफेद करने के लिए कई कर
विभागों के घेरे में आये रामदेव ने अपने आन्दोलन के दौरान ही अपने उत्पादों की
आक्रामक मार्केटिंग शुरू कर दी और आयुर्वेदिक उत्पादों के नाम पर अपने संस्थान में
टूथ ब्रुश समेत किराने का सामन भी बनाने और बेचने लगे। इसी आन्दोलन के दौरान अर्जित
लोकप्रियता का लाभ उठाने के लिए उन्होंने अपने उत्पादों को कुछ केन्द्रों तक सीमित
न रख कर सभी मेडिकल स्टोरों तक फैला दिया। इन उत्पादों की कीमतें भी उन्होंने
दूसरी कम्पनियों से प्रतियोगी रखीं। मीडिया का ध्यान आकर्षित करने के बाद रामदेव
ने भी राजनीतिक दल बनाने और सभी चुनाव क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार उतारने की
घोषणा कर दी। अपनी माँगों के लिए चार सौ उन वर्तमान सांसदों, जिनकी वे असंसदीय
निन्दा कर चुके हैं, के समर्थन का हास्यास्पद दावा करने वाले रामदेव के किसी भी
उम्मीदवार की सफलता सन्दिग्ध है किंतु वे अपनी असंसदीय भाषा में यूपीए सरकार के
खिलाफ जो प्रचार करेंगे और अपने आयुर्वेदिक उद्योग से अर्जित काले सफेद धन को
झोंकेंगे उसका लाभ भी अंततः एनडीए को ही मिल सकता है, जिसका अपना रिकार्ड
भ्रष्टाचार के मामले में किसी भी तरह बेहतर नहीं है। रोचक यह है कि टीम अन्ना और
रामदेव के ये दोनों ही प्रस्तावित दल आगामी गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधान सभाओं
के चुनावों में उतरने नहीं जा रहे हैं जहाँ अभी भाजपा सत्ता में है और भ्रष्टाचार
का विरोध उनके विरोध में जायेगा।
भ्रष्टाचार
के खिलाफ अडवाणी की रथयात्रा की असफलता के बाद भाजपा द्वारा जो ये हथकण्डे अपनाये
जा रहे हैं उससे यह तो प्रकट होता है कि वह अपनी छवि के बारे में आत्मग्लानि और
आत्मविश्वास की कमी की शिकार है, इसीलिए सत्ता में आने के लिए उसे तरह तरह की नई
नई लीलाएं करनी पड़ रही हैं। कांग्रेस के एक महासचिव तो बहुत पहले से ही कहते आ रहे
हैं कि इन दोनों ही आन्दोलनों के पीछे आरएसएस है जो अब सिद्ध होता दिख रहा है।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा सिनेमा के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मोबाइल 9425674629