मंगलवार, मई 17, 2016

सिंहस्थ के विचार महाकुम्भ में मोदी

सिंहस्थ के विचार महाकुम्भ में मोदी
वीरेन्द्र जैन

किसी अवसर पर परम्परागत रूप से जुटने वाले जनसमुदाय को अगर सामाजिक परिवर्तन का साधन बनाया जा सके तो उससे लोगों को जुटाने की आधी समस्या तो वैसे ही हल हो जाती है। इसलिए सिंहस्थ में विचार महाकुम्भ के विचार को एक अच्छा कदम माना जा सकता था बशर्ते इसका वैसा ही स्तेमाल हुआ होता। जब उज्जैन में आयोजित होने वाले कुम्भ मेले में विचार कुम्भ की योजना के संकेत मिले थे तो उसके प्रति प्रशंसा के भाव उभरे थे। किंतु इसे एक राजनीतिक प्रचार का अवसर बना देने से इसका पावन उद्देश्य खो गया व जनता से टैक्स के रूप में वसूले गये धन के अपव्यय का एक और साधन बना दिया गया जैसा कि दिशाहीन सांस्कृतिक आयोजनों के नाम के नाम पर चीन्ह चीन्ह के रेवड़ियां बांटने का काम दशकों से चल रहा है।
उल्लेखनीय है कि तीन दिवसीय विचार महाकुम्भ के पहले दिन सबसे अधिक सर्कुलेशन का दावा करने वाले सूचना [समाचार] पत्र ने लिखा “तीस करोड़ व्यय वाले वातानुकूलित पंडाल में सरकारी अधिकारी - कर्मचारियों की फौज के साथ संघ के बहुसंख्यक कार्यकर्ताओं की उपस्थिति से प्रारंभ में ही यह अनुभूति होती है कि आप संघ के कार्यक्रम में हैं”। पहले सत्र में मोहन भागवत की अध्यक्षता में तो कुर्सियां भरी भी थीं किंतु बाद के सत्र में जब राम माधव वाले सत्र में किसी ने रुचि नहीं ली तो कुर्सियां खाली रहीं। छत्तीसगढ की एक भाजपा महिला नेत्री ने कहा कि इस कार्यक्रम के लिए वह दो बसें भर कर लायी है। देश और प्रदेश के स्वतंत्र विचारकों को आमंत्रण भेजने की बजाय भाजपा और संघ के कार्यकर्ताओं को ही बुलाया गया था। केवल वन्दना शिवा का नाम अपवाद था।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भाषण उनके पिछली चुनावी सभाओं में दिये गये भाषणों से पक चुके लोगों को ताज़ा हवा की तरह लगा होगा। उन्होंने भारतीय समाज की जागरूकता और परिवर्तनशीलता को कुम्भ से जोड़ते हुए कहा कि “पहले कुम्भ के दौरान संत और समाजवेत्ता समाज की चिंता करते थे और भविष्य के लिए नई विधाओं का अन्वेषण करते थे। अगले बारह साल के लिए समाज की दिशा और कार्य योजना तय होती थी। पर धीरे धीरे इस परम्परा के प्राण खो गये”। अगर वे चाहते तो अपने वक्तव्य में नेहरू की पंचवर्षीय योजना को भी ला सकते थे जिसके सहारे ही आज़ादी के बाद इस देश ने विकास के मूल आधार स्थापित किये थे। खेद की बात तो यह है कि उन्होंने खुद ही योजना आयोग को समाप्त कर दिया है और उसकी जगह नीति आयोग बना दिया है। 
कभी तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने परमाणु परीक्षण के बाद शास्त्री जी के नारे ‘जय जवान, जय किसान’ में ‘जय विज्ञान’ जोड़ा था किंतु बाद में वह केवल जुमला बन कर रह गया था। मोदी जी ने मुम्बई में मुकेश अम्बानी के एक अस्पताल का उद्घाटन करते हुए गणेश मूर्तियों की कथा के माध्यम से शल्य चिकित्सा के पुराने ज्ञान का जो उल्लेख किया था उससे उनकी वैज्ञानिक समझ पर प्रश्न चिन्ह लगे थे। उससे जुड़ी आलोचनाओं के बाद उन्होंने वैसे तर्क बाद में नहीं दिये भले ही इतिहास के ज्ञान सम्बन्धी कुछ भूलें अवश्य चर्चा में आयीं। इस विचार कुम्भ में उन्होंने कहा कि भारतीय मूल्यों और ज्ञान को वैज्ञानिक आधार पर दुनिया के सामने रखना होगा। विचार को कर्म से जोड़ने के सफल उदाहरण के रूप में उन्होंने शास्त्री जी द्वारा प्रति सोमवार को उपवास का आवाहन और हाल ही में गैस सब्सिडी छोड़ने को बताया। उन्होंने कहा कि हमारे सामने चुनौती है कि समय की कसौटी पर खरे उतरें। श्री मोदी ने सिहस्थ मेले को विमान से देखा। न तो उन्होंने नदी में स्नान किया और न ही महाकाल मन्दिर में दर्शानार्थ गये।  
इस विचार महाकुम्भ में  विचार को कर्म से जोड़ने के कुछ प्रयास हो सकते थे जो नहीं हुये। जैसे एक बार आनन्द्पुर साहब में प्रत्येक आगुंतक को प्रसाद के रूप में एक एक पौधा दिया गया था और इस पौधे को रोपने के लिए कहा गया था। प्रसाद के पौधे को सबने अपना कर्तव्य समझ कर रोपा और इस प्रयास से लाखों पौधे रोपे गये। अच्छा होता यदि ऐसा ही कोई प्रयास इस कुम्भ में भी किया गया होता। जिस तरह से स्वतंत्रता संग्राम के समय तिलक ने गणेश पंडालों के माध्यम से स्वतंत्रता के प्रति जागरूकता बढायी थी वैसा ही कोई प्रयास इस दौरान हो सकता था। अगर लाखों लोग नियत तिथि पर बिना आमन्त्रण के कुम्भ में पहुँच सकते हैं तो उनकी इस ऊर्जा का देश के हित में सार्थक स्तेमाल भी हो सकता है, बशर्ते इसे एक संगठन या दल के हित में कार्यक्रम बनाने की जगह राष्ट्रीय हित के कार्यक्रम में बदला जाये। इस बार के कुम्भ में बहुत बड़ी राशि व्यय की गयी है जबकि देश और प्रदेश अनेक प्राकृतिक संकटों से जूझ रहा है। इसलिए जरूरी है कि ऐसा लगे कि उक्त राशि किसी समुदाय विशेष की भावनाओं के तुष्टिकरण के लिए नहीं अपितु ‘सब जन हिताय’ व्यय हुयी है। दूसरी ओर विभिन्न धार्मिक संस्थानों में अटूट धन राशि एकत्रित होती जा रही है जिसका अगर योजनाबद्ध ढंग से उचित स्तेमाल नहीं होगा तो वह हिंसक टकराव का कारण बन सकती है। इस अवसर पर यदि इसकी कोई योजना बन सकती तो अच्छा था। उम्मीद की जाना चाहिए कि अगले कुम्भ सरकारी धन की जगह आस्थावानों और धार्मिक संस्थानों में जमा दौलत से संचालित होंगे। 
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग, रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 09425674629

  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें