गुरुवार, दिसंबर 15, 2016

ममता बनर्जी पर टिप्पणी भाजपा के मूल चरित्र की सूचक

ममता बनर्जी पर टिप्पणी भाजपा के मूल चरित्र की सूचक
वीरेन्द्र जैन

नोटबन्दी पर पश्चिम बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी द्वारा मुखर विरोध करने के लिए दिल्ली में केजरीवाल के साथ रैली करने पर भाजपा नेता बुरी तरह से डरे हुए हैं। लोकसभा चुनावों में काँग्रेस की चहुँ ओर पराजय और अलोकप्रियता के बाद भाजपा खुद को निर्विकल्प मान रही थी, किंतु दिल्ली विधानसभा और बिहार विधानसभा में मिली पराजय के बाद वह आहत महसूस करने लगी थी। दिल्ली में तो उसकी पराजय एक उस पार्टी के युवा नेता के हाथों हुयी थी, जिसके साथ न तो जाति थी न सम्प्रदाय, न पूंजीपति थे और न ही संसाधन थे, न परम्परागत खाँटी नेता थे न ही वंश परम्परा। यह जीत भ्रष्टाचार से आहत जनता ने उन बिखरे बिखरे संगठन वाले युवाओं को सौंपी थी, जिनमें उसे नई उम्मीदें दिखाई देने लगी थीं। चूंकि उनका कोई इतिहास नहीं था इसलिए उनकी राजनीतिक आलोचना भी कठिन थी। भाजपा को जितना खतरा बिहार में नये गठबन्धन के सत्ता में आने से नहीं लगा जितना कि केजरीवाल के आने से लगा था। उल्लेखनीय है कि जब अन्ना को आगे रख कर केजरीवाल ने ‘इंडिया अगेंस्ट करप्पशन’ चलाया था तब उसकी लोकप्रियता को हड़पने के लिए संघ परिवार ने सबसे ज्यादा परोक्ष समर्थन किया था। दिल्ली में अन्ना के अनशन के दौरान भोजन की सारी व्यवस्था संघ ने ही सम्हाली थी। जब ममता बनर्जी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री थीं और वामपंथियों से टकराती थीं तब वे भाजपा की मित्र थीं।
चूंकि दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है इसलिए वहाँ की राज्य सरकार के पास पुलिस से लेकर नगर निगम आदि कई महत्वपूर्ण विभाग उसके नियंत्रण में नहीं हैं। इसका लाभ लेते हुए केन्द्र सरकार ने राज्य सरकार के खिलाफ युद्ध जैसा छेड़ दिया था और पारिवारिक झगड़ों से लेकर छोटे मोटे अनेक मामलों में विधायकों को तोड़ना शुरू कर उन्हें जेल भेजना शुरू कर दिया। दूसरी ओर लेफ्टीनेंट गवर्नर ने दिल्ली की सरकार के खिलाफ सौतेला व्यवहार शुरू कर दिया। इसी दौरान नोटबन्दी के सवाल पर केजरीवाल को बंगाल की तेज तर्रार मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का साथ मिला तो केन्द्र सरकार आगबबूला हो गयीं। एक जागरूक पूर्ण राज्य की मुख्यमंत्री का दुश्मन नम्बर एक से मिल जाना भाजपा के तानाशाह नरेन्द्र मोदी को बहुत अखरा और उनके तेवर को समझ कर भाजपा के सभी नेता ममता बनर्जी के खिलाफ हो गये।
बंगाल में सेना की तैनाती पर मुखर असंतोष व्यक्त करने वाली ममता भाजपा को बहुत खतरनाक लगने लगीं क्योंकि वे कभी वामपंथियों के खिलाफ बनाये गये महाजोट में इनकी रणनीति में शामिल रही थीं। इन्हीं परिस्तिथियों में 2 दिसम्बर 2016 को हावड़ा के उलुबेरिया में हुई एक रैली में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा कि “हमारी सीएम दिल्ली गई हैं। वे वहां काफी नाच गाना कर रही हैं! हमें बताइए हमारी तो सरकार वहां पर है। अगर हम चाहते तो उनके बाल पकड़ कर उन्हें बाहर निकाल देते।“ क्या भाजपा का यही लोकतांत्रिक तरीका है! क्या किसी को सरकार की जनविरोधी नीति से असहमत होने का अधिकार नहीं है! क्या सरकार होने का यही मतलब होता है कि राजनीतिक विरोध करने वाले को जब चाहो तब बाल पकड़ कर अपने राज्य से बाहर निकाल दो, चाहे वह किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री ही क्यों न हो! अभी मध्य प्रदेश में केरल के मुख्यमंत्री को पुलिस ने मलयाली समाज द्वारा उनके अभिनन्दन के कार्यक्रम को यह कह कर रोक दिया कि आरएसएस के विरोध के कारण वे उन्हें सुरक्षा दे सकने में समर्थ नहीं हैं। असहमतों को अपने सहयोगी संगठनों से देशविरोधी, देशद्रोही व गद्दार कहलवा देना तो आम बात हो गई है। अल्पसंख्यक वर्ग के व्यक्तियों को ये लोग सीधे पाकिस्तान चले जाने की सलाह देते हैं, यहाँ तक कि राहुल गाँधी तक को नानी के घर अर्थात इटली जाने की घोषणा करने लगते हैं। गाँधी और नेहरू जैसे महान व्यक्तियों के इतिहास को भी कलंकित कराया जा रहा है।
जो लोग हर अवसर पर ‘यत्र नारी पूज्यंते, रमंते तत्र देवता’ का उद्घोष करते रहते हैं, वे ही नारियों के खिलाफ ऐसी भाषा का प्रयोग करने में संकोच नहीं करते। वैसे तो विमुद्रीकरण का विरोध सभी विपक्षी दलों ने किया था किंतु केजरीवाल और ममता बनर्जी का आपस में मिलना और मुखर विरोध करना उन्हें बहुत डरा गया है।   
भाजपा जिस संघ परिवार की सामंती संस्कृति से जन्मी है उसमें महिलाओं का स्वतंत्र नेतृत्व विकसित नहीं हो सकता। विजया राजे सिन्धिया, जो जनसंघ की पहली बड़ी महिला नेता थीं वे पहले  काँग्रेस से साँसद थीं और द्वारिका प्रसाद मिश्र के साथ व्यक्तिगत रंजिश के कारण जनसंघ में गयीं थीं।  सुषमा स्वराज को समाजवादी खेमे से आयात किया गया था। हेमा मालिनी, स्मृति ईरानी, किरन खेर, वसुन्धरा राजे या साध्वी भेषधारिणी उमा भारती आदि को उनकी सेलिब्रिटीज हैसियत के कारण चुनाव जीतने के लिए दिखावटी रूप में सम्मलित कर लिया जाता है। संघ की शाखाओं में महिलाओं को प्रवेश नहीं मिलता। कुल मिला कर कहा जा सकता है कि ममता बनर्जी हों या सोनिया गाँधी, महिला नेतृत्व के प्रति इनका व्यवहार दोयम दर्जे का ही है। मीडिया को भ्रष्ट करके चरित्र हत्या कराना इनका प्रमुख हथियार है। असत्य, अर्धसत्य, तथा दुहरे अर्थ वाले बयान सबसे अधिक इसी संगठन की ओर से आते हैं। गणेशजी को दूध पिलाने से लेकर अयोध्या में बाबरी मस्जिद विवाद जैसे गैर राजनीतिक मुद्दों से ये ही लोग जुड़े रहे हैं।
राजनीति में झूठ का प्रयोग उजागर हो जाने के बाद यह साफ हो जाता है कि ये स्वयं भी अपने पक्ष को कमजोर समझते हैं। राजनीति में स्वच्छता को खराब करने में जो लोग स्वच्छ भारत का नारा लगाते हैं, उसका प्रभाव नहीं होता क्योंकि स्वच्छता आचरण से सम्बन्धित होती है।
वीरेन्द्र जैन
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