मंगलवार, फ़रवरी 21, 2017

पुस्तक समीक्षा भारतीय संस्कृति और बुंदेलखण्ड

पुस्तक समीक्षा
भारतीय संस्कृति और बुंदेलखण्ड
वीरेन्द्र जैन

कुछ लोग होते हैं जो अपने ज्ञान रूपी कुन्दन के गहने बनवा लेते हैं, और उनका दिखावा करते हैं, किंतु इसके विपरीत कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो उस कुन्दन की भस्म बना कर समाज के स्वास्थ को सुधारने के लिए वितरित कर देते हैं। बुन्देलखण्ड के एक छोर दतिया में बसने वाले श्री राधारमण वैद्य ऐसे ही अध्येता, विद्वान, शिक्षक रहे हैं जिन्होंने अपने ज्ञान को एक पूरी पीढी के लिए अर्पित कर दिया व अपने लिए कभी कुछ नहीं चाहा। उन्होंने प्रगतिशीलता को किसी आयतित विचार के रूप में नहीं देखा अपितु उसे अपनी संस्कृति में ही पहचाना और अपने आस पास के लोगों को उसकी पहचान करायी। उनकी शिक्षा ने साहित्य और कला जगत में एक पूरी पीढी को प्रेरणा दी है जिनमें डा. सीता किशोर खरे, डा. कामिनी, श्री राज नारायण बोहरे, स्व. कामता प्रसाद सड़ैया समेत सैकड़ों लोग हिन्दी व बुन्देलखण्डी में राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना चुके हैं।
श्रेय लेने में सदैव पीछे रहने वाले वैद्यजी ने सम्पादकों आदि के आग्रह पर समय समय पर जो लेख लिखे हैं उनका एक संकलन गत दिनों शुभदा प्रकाशन दिल्ली द्वारा प्रकाशित किया गया है। इस पुस्तक में, मानस की पृष्ठभूमि, हनुमान बाहुक पर एक दृष्टि, केशव का युग और शाक्त मत, समय और समाज सापेक्ष रीतिकाल, स्कन्दगुप्त विक्रमादित्य में एतिहासिकता के ब्याज से,  बाणकालीन पाराशरी भिक्षु, जैसे प्राचीन साहित्य पर विद्वतापूर्ण लेख संकलित हैं, और दूसरी ओर हजारी प्रसाद द्विवेदी के आलोकपर्व, सुधाकर शुक्ल और देवेदूतम, उर्दू साहित्य की परम्परा पर एक दृष्टि, हिन्दी की गोद में तामिलपुत्री बरगुण्डी, आज का कथा साहित्य : कहानी और आलोचना के नोट्स, जैसे लेख भी सम्मलित हैं।
इसी पुस्तक में भारतीय संस्कृति और भक्ति, समसामायिकता का चित्रण, बुन्देलखण्ड की प्राचीन मूर्ति व वास्तुकला, एतिहासिक एवं भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में सनकादि सम्प्रदाय, ग्राम अभियान और पुरातत्व, व दतिया के अध्यात्म, साहित्य और दर्शनीयता के वातायन, इतिहास का भूला –विसरा पृष्ठ भर्रोली शीर्षक से लिखे गये खोजपूर्ण लेख भी सम्मलित हैं।
डा. कृष्ण बिहारी लाल पाण्डेय ने पुस्तक के फ्लेप पर बहुत सही लिखा है कि श्री वैद्यजी के पूरे लेखन के सभी रूपों में संवेदना का एक ही प्रभाव मिलता है और विचार को एक सजग संचेतना मिलती है। उनका सही विचार और सार्थक दृष्टि गद्य को निरर्थक वाचालता के दोष से बचा लेती है। उनके पास विचार की विशाल सम्पदा के साथ अनुभवों का विशाल अंतरिक्ष है। वे केवल कथ्य और विवेचन में ही नहीं अपितु भाषा में भी बेहद रचनात्मक हैं। पुस्तक की भूमिका में प्रसिद्ध कथा लेखक राज नारायण बोहरे लिखते हैं कि यह पुस्तक भारतीय संस्कृति और बुन्देलखण्ड अंचल के गहन अध्य्यन पर किये गये सुदीर्घ गम्भीर अनुशीलन का परिणाम है।
मेरा सौभाग्य रहा कि मैं भी उनका छात्र रहा हूं।  
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग, रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 09425674629


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