मंगलवार, मार्च 19, 2019

हताशा में उठाया गया जुमला है, हम सब चौकीदार


हताशा में उठाया गया जुमला है, हम सब चौकीदार
वीरेन्द्र जैन

भारतीय जनता पार्टी जिसे अब मोदी जनता पार्टी कहा जाता है और सही कहा जाता है, ने अपने सभी भक्त सदस्यों से ‘मैं भी चौकीदार’ कहलवाने का अभियान चलाया है। यह अभियान राहुल गाँघी द्वारा जोर शोर से ‘चौकीदार ही चोर है’ की लगातार हुंकार के बाद चलाया गया है। महत्वपूर्ण यह भी है कि यह पूरा घटनाक्रम 2019 के लोकसभा चुनावों के ठीक पहले घट रहा है जब नरेन्द्र मोदी की पूरी प्रतिष्ठा ही नहीं अपितु उनका भविष्य भी दाँव पर लगा है। यदि मोदी यह चुनाव हार जाते हैं तो भाजपा की हालत आज की काँग्रेस जैसी हो सकती है।
उल्लेखनीय है कि श्री नरेन्द्र मोदी ने डा. मनमोहन सिंह के दस साल तक प्रधानमंत्री रहने के बाद कुर्सी सम्हाली थी। मनमोहन सिंह कभी अतिरिक्त नहीं बोलते थे इसलिए उनके बोलने में न तो गलतबयानी होती थी और न ही वे चटकारे वाले जुमले ही बोलते थे क्योंकि वे लोकप्रिय वक्ता नहीं थे। वे सुशिक्षित, गम्भीर, और विद्वान व्यक्ति थे, जबकि श्री मोदी ने आरएसएस के एक स्वयं सेवक की तरह हिन्दुओं की पक्षधरता की पाठशाला से सबक सीखे हैं, वे अटलजी की तरह चटकारेदार भाषण देने वाले ओजस्वी वक्ता हैं। उनके भाषण में रोचक जुमले और गैरहिन्दू समुदाय के लोगों के साथ टकराव पैदा कर ध्रुवीकरण कराने वाले प्रसंग भरे रहते आये हैं। उनकी जानकारियां एक बन्द समाज की पुरानी और परम्परागत जानकारियां हैं। अपने विरोधियों के लिए वे जर्सी गाय व बछड़े जैसी उपमाएं दे सकते हैं और मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए पाँच पत्नियां पच्चीस बच्चे जैसा वाक्य भी बोल सकते हैं। वे अम्बानी के अस्पताल का उद्घाटन करते हुए गणेश जी के सिर को प्राचीन कालीन प्लास्टिक सर्जरी व का उदाहरण बतला सकते हैं। बिना तैयारी के [एक्स्टम्पोर] बोलने की आदत में वे यह भी भूल जाते हैं कि अब वे प्रधानमंत्री के पद से बोल रहे हैं और उनकी भूलें भारत सरकार की भूलें मानी जायेंगीं, उनकी कही हर बात वैसी की वैसी दर्ज होगी और उससे मुकरने की कोई गुंजाइश नहीं होगी। प्रधानमंत्री पद पर आसीन होते ही उन्होंने स्वयं को प्रधानसेवक कहे जाने या देश का चौकीदार या फकीर जैसे ओढी हुयी विनम्रता के जुमले उछाले। ये जुमले जिन पिछले प्रधानमंत्रियों पर फिट बैठते थे उसके विपरीत मोदी जी, उनके सहयोगियों, उनको नियंत्रित करने वाले संगठनों के आचरण अनुकूल नहीं थे, इसलिए इन जुमलों का खूब मजाक बना, इन पर खूब चुटकले बने।
राफेल विमान सौदे पर सबसे पहली टिप्पणी उन्हीं की पार्टी के राज्यसभा सांसद श्री सुब्रम्यम स्वामी की ओर से आयी थी। जब मोदीजी पहली बार फ्रांस के दौरे पर गये थे तो उनके फ्रांस की जमीन पर पैर रखते ही श्री स्वामी का बयान आ गया था कि राफेल का सौदा भारत के हित में नहीं होगा। किसी तरह उनके मुँह को बन्द तो करवा दिया, पर रास्ता खुल चुका था। सौदे के बाद से उसमें से जो सांप बिच्छू निकलने लगे तो फिर उनने रुकने का नाम ही नहीं लिया। बोफोर्स मामले में राजीव गाँधी पर जितने और जैसे व्यक्तिगत हमले किये गये थे वैसे ही हमले, उसी भाषा में राफेल सौदे के बाद हुये। यह डिजीटल समय है और सूचनाओं के आदान प्रदान की तेजी पहले से कई गुनी है।
राफेल के सम्बन्ध में लगाये गये आरोप स्पष्ट थे और उसकी सफाई में लगातार कई झोल थे। सदन में हो या सुप्रीम कोर्ट में हो, हर जगह ऐसे प्रमाण दिये गये जिन्हें बार बार बदला गया जिससे और अधिक सन्देह पैदा हुआ। विपक्ष के राहुल गाँधी ने मोदी जी के जुमले को ही आधार बना कर देश भर में उनकी चौकीदारी का मजाक बनाते हुए ‘चौकीदार चोर है’, को गुंजा दिया।
 यही कारण रहा कि मोदीजी ने अन्ना आन्दोलन के ‘मैं भी अन्ना हूं’ की तरह मैं भी चौकीदार हूं का अभियान छेड़ दिया। कहा जाता है कि अपनी निन्दा को दूसरों के साथ बांट लेने से अपमान बोध कम हो जाता है। भारतीय जनता पार्टी से मोदी जनता पार्टी में बदलने तक मोदी सत्तारूढ हो चुके थे और पार्टी में अपने विरोधियों को परास्त कर चुके थे। छोटे कार्यकर्ता केन्द्र की सत्ता पाकर गदगद थे और वे अटल अडवाणी की जगह मोदी मोदी की जयजयकार करने लगे थे। मोदी ने पार्टी के अध्यक्ष का पद भी अपने ही पास रखा और नाम के लिए अपने दो जिस्म एक जान अमित शाह के नाम से संगठन पर अधिकार कर लिया। न कहीं अटल जी का नाम और फोटो लगने दिया और न ही अडवाणी जी का। बाकी वरिष्ठ नेताओं को तो वैसे भी कोई नहीं पूछता था। सुब्रम्यम स्वामी जैसे नेता तक कहने लगे कि कुल ढाई आदमी की सरकार है जिसमें मोदी शाह के अलावा आधे जैटली सम्मलित हैं। जब राजनीति व्यक्ति केन्द्रित हो जाती है तो विरोधियों द्वारा व्यक्ति की छवि पर ही हमले की नीति बनायी जाती है। जिस ईमानदारी की छवि को एकमात्र गुण के रूप में पूजा गया हो तो उसी ईमानदारी में निकाले गये दोषों का समुचित उत्तर न मिलने पर छवि खण्डित होती है। दूसरी ओर साढे चार साल तक सुस्त रहने के बाद स्वयं की छवि पर आँच आते ही मोदी ने अपने विरोधियों के खिलाफ दर्ज आर्थिक अपराधों की फाइलें खुलवाना और छापे डलवाने की कार्यवाहियां कीं। इससे इसे बदले की कार्यवाही माने जाने से उसका प्रभाव कम हुआ।
अपने नाम के आगे चौकीदार लिखवाने वाले सवर्ण भाजपाई अब पूछ रहे हैं कि क्या उन्हें भी अब सफाई कर्मचारियों के पैर धोने पड़ेंगे। इसी समय पुलवामा हमले के जबाब में बालाकोट में किये गये हमलों में मृतकों के बारे में सरकार की चुप्पी और पाकिस्तान समेत विदेशी न्यूज एजेंसियों के प्रतिदावों से भक्तों की निगाह में मोदी की छवि धुंधली हुयी है। मोदी के प्रति भक्ति उनकी सत्ता दिला सकने की क्षमता तक सीमित है। हर पराजय भक्तिभाव को कमजोर करती है। यही कारण है कि मैं भी चौकीदार अभियान कमजोर नजर आ रहा है।
 वीरेन्द्र जैन
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