बुधवार, जून 05, 2019

कार्टूनिस्ट बालेन्दु परसाई के बहाने


कार्टूनिस्ट बालेन्दु परसाई के बहाने
वीरेन्द्र जैन

इस बिगड़ी हुयी दुनिया, समाज, राजनीति और राजनेताओं के दुर्गुणों को रेखांकित करने के लिए जब उन्हें और अधिक बिगड़ा हुआ दिखा कर उनके दुर्गुणों को इंगित किया जाता है तो व्यंग्य पैदा होता है।
मुझे आलोचक डा. रामकृपाल पांडेय के सौजन्य से एक बार हिन्दी के सबसे प्रमुख आलोचकों में से एक डा. राम विलास शर्मा से मिलने का मौका मिला था तब मैंने उनसे पूछा था कि हास्य और व्यंग्य में क्या अंतर है। उन्होंने कहा था कि जब आदमी दांत खोलकर हँसता है तो हास्य होता है, किंतु जब वह दांत भींच कर हँसता है तो व्यंग्य होता है। उनकी यह बात मुझे सदैव याद रही। मैंने भी अपनी एक पुस्तक की भूमिका में लिखा था कि-
फुसफुसाने से सोया हुआ दोस्त नहीं जागता
और जोर से बोलने पर दुश्मन के सावधान हो जाने का खतरा है
इसलिए गुदगुदा कर जगा रहा हूं 
ज्यादातर व्यंग्य दुश्मनों के नहीं अपनों की भूलों को इंगित करने की कला है, इसलिए उसमें चाकू नहीं शल्य चिकित्सक के नश्तर चलाये जाते हैं जो तात्कालिक तकलीफ तो देते हैं किंतु दूरगामी फायदा भी पहुँचाते हैं।
एक फ़्रांस का फिल्म डाइरेक्टर किसी पत्रकार को साक्षात्कार दे रहा था। उसने किसी अन्य डाइरेक्टर के बारे में टिप्पणी करते हुए कहा कि वह मार्क्सवादी है। इस पर पत्रकार ने पलट कर कहा कि वह तो अपने आप को मार्क्सवादी नहीं कहता। “उसको क्या मालूम कि वह मार्क्सवादी है” उस डाइरेक्टर ने संजीदगी से कहा।
हमारे मित्र कार्टूनिस्ट बालेन्दु परसाई भी दुनिया के सबसे बड़े कार्टूनिस्ट आर के लक्ष्मण के एकलव्य हैं। वे गंडा ताबीज बँधवा कर उनके शिष्य नहीं बने अपितु प्रति दिन नियम से उस दिन की सबसे प्रभावित कर देने वाली घटना पर कार्टून बना कर सैकड़ों वेबपत्रिकाओं को भेज देते हैं, जो उनको जारी करती हैं। इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने यह सुविधा उपलब्ध करायी है कि वह ताज़ा घटना पर की गई प्रतिक्रिया को बासी नहीं होने देती। कार्टून के लिए यह ताज़गी और भी ज्यादा जरूरी होती है क्योंकि उसे कम से कम स्थान में अपनी बात कहना होती है व उसके पास अलग से सन्दर्भ देने की जगह नहीं होती।
किसी चित्रकार को अपने विषय चुनने का अधिकार होता है किंतु कार्टूनिस्ट को यह सुविधा कम होती है। उसे किसी ताजा घटना पर अपनी प्रतिक्रिया देना होती है और कई बार तो बहुत हाथ साध कर कलम चलाने का समय नहीं होता है। उसके पात्र गलत जगह गतिमान हो जाते हैं, रंग फैल जाते हैं। ऐसा होने पर भी बालेन्दु के कार्टून अपनी बात कह जाते हैं सन्देश पहुँचा देते हैं। उन्हें यह मालूम है कि कौन कहाँ गलत है और कूची से नश्तर किस जगह पर चलाना है। गलत जगह पर चलाया गया डाक्टर का नश्तर नुकसान भी कर सकता है। उनकी इस समझ को प्रणाम।
अंत में एक और घटना याद आ रही है। लक्ष्मण के कार्टून लगातार टाइम्स आफ इंडिया के मुखपृष्ठ पर छपने वाली दुनिया की श्रंखला में गिनी जाती है। जब इस श्रंखला को पचास साल हुये तो एक पत्रकार ने उनसे साक्षात्कार लिया। अन्य बातों के अलावा जब उन्होंने विभिन्न राजनेताओं के बारे में पूछा जिन पर लक्ष्मण ने कार्टून बनाये थे तो उस बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि ज्योति बसु मेरे काम के लिए बहुत मनहूस रहे। उन्होंने मुझे कभी कार्टून बनाने का मौका ही नहीं दिया।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग, रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 09425674629      

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