सोमवार, सितंबर 04, 2023

संस्मरण ; दुष्यंत की गज़लों की पैरोडी

 

संस्मरण ; दुष्यंत की गज़लों की पैरोडी

वीरेन्द्र जैन

पैरोडी, ऐसी विधा है जो किसी ऐसी रचना के रूप [ फार्म ] को आधार बना कर लिखी जाती है जो बहुत लोकप्रिय हो चुकी हो, और लोगों के दिलो दिमाग पर चढ चुकी हो। आम तौर पर पैरोडी मूल रचना की याद दिला कर पाठक / श्रोता को नास्टलिजिक कर गुदगुदा देती है। पैरोडी हास्य या व्यंग्य भाव पैदा करने के लिए ही लिखी जाती रही है। कई बार किसी लोकप्रिय विचार को क्षेत्रीय भाषा में लिख देने पर भी वह पैरोडी का मजा देने लगता है।

पिछली सदी के सत्तर के दशक में जब मैंने पत्र पत्रिकाओं में लिखना शुरू किया था, उन्हीं दिनों दुष्यंत कुमार की गज़लें देश पर छा रहे थीं। हर कोई अपने भाषणों या लेखों में उनके शे’रों का उल्लेख कर रहा था और नये सैकड़ों रचनाकार उनके शिल्प में लिखने का प्रयास कर रहे थे जिसे हिन्दी गज़ल का नया नाम मिल गया था। मैं टाइम्स ग्रुप की फिल्मी पत्रिका माधुरी के ‘चित पट चक्रम’ नामक स्तम्भ में फिल्मी पैरोडियों के मध्यम से अपनी सामायिक राजनीतिक प्रतिक्रियाएं व्यक्त करता था। इसी क्रम में मैंने उस समय के सर्वाधिक लोकप्रिय गज़लकार दुष्यंत कुमार की गज़लों की पैरोडियां लिखीं। इन पैरोडियों के सहारे मैं अपने विचार व्यक्त करता था। मैंने कभी भी मूल रचनाकार के विचारों या भावनाओं का उपहास नहीं किया।

जब 1977 में श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने इमरजैंसी समाप्त करके आम चुनावों की घोषणा कर दी तो अनेक विपक्षीदलों ने जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में एकजुट होकर जनता पार्टी का गठन किया और लोकदल के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ा। इमरजैंसी के कठोर अनुशासन से ऊबी हुयी जनता घुटन से मुक्त होने के लिए आँख मूंद कर विपक्षी गठबन्धन के साथ खड़ी हो गयी। पूरे देश में काँग्रेस की हार और जनता पार्ती की जीत का वातावरण बन गया था। इसे ही महसूस करके मैंने दुष्यंत कुमार की गज़ल ‘ बाढ की सम्भावनाएं सामने हैं, और नदियों के किनार घर बने हैं” की पैरोडी लिख डाली और लोकप्रिय साप्ताहिक ब्लिट्ज़ को भेज दी। इसके कुछ शे’र इस तरह थे-

हार की सम्भावनाएं सामने हैं,

और निर्वाचन की खातिर हम खड़े हैं

हमें चमचों ने बहुत ऊंचा उछाला,

लग रहा था आज हम सबसे बड़े हैं

सत्य का सूरज यहीं गुम हो गया है,

 जिस जगह बिखरे हुये ये आंकड़े हैं

सिर मुढाने की सलाहें दी गयी थीं,

सिर मुढाते ही मगर ओले पड़े हैं

       उन दिनों ब्लिट्ज़ की चिनगारी भी ठंडी पड़ चुकी थी इसलिए चुनाव के दौरान भेजी यह रचना उन्होंने उस अंक में छापी जिस दिन चुनाव परिणाम आने लगे थे।

       कवि सम्मेलनों के मनोरंजन सम्मेलनों में बदल जाने का भी यही समय था। उन्हीं दिनों मैं भी कवि सम्मेलनों की तरफ आकर्षित हो रहा था किंतु उन मंचों पर पकड़ नहीं बना सका। अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए मैंने दुश्यंत कुमार की गज़ल ‘मेरे गीत तुम्हारे पास सहारा पाने आयेंगे ‘ का सहारा लिया और पैरोडी लिखी जो कवियों के प्रमुख मंच रंग चकल्लस की पत्रिका ‘रंग’ में छपी।

मिला निमंत्रण सम्मेलन का, गीत सुनाने आयेंगे

गीतों से ज्यादा अपना पेमेंट पकाने आयेंगे

बड़े बड़े कवि ले आयेंगे, प्यारी प्यारी शिष्याएं

निज बीबी से दूर रंग रेलियां मनाने आयेंगे

नामॉं से बेढंगे, रंग बिरंगे हास्यरसी कविवर

चोरी किये हुए फूहड़ चुटकले सुनाने आयेंगे

       इमरजैंसी पर लिखी उनकी प्रसिद्ध गज़ल ‘ये जुबां हमसे सीं नहीं जाती’ की पैरोडी लिखनी पड़ी जब नौकरी में नौकरशाही ने परेशान कर डाला था। इसे ‘माधुरी ‘ ने प्रकाशित किया था।

नौकरी हमसे की नहीं जाती

क्योंकि चमचागिरी नहीं आती

अफसरों के विशाल बंगलों पर

नाक हमसे घिसी नहीं जाती

उनके कुत्ते भी बोलते इंग्लिश

हमको घिस्सी पिट्टी नहीं आती

तानाशाही चली गयी होगी

देश से अफसरी नहीं जाती

 

फिल्म विषयक पैरोडियों के लिए भी दुष्यंत कुमार की चर्चित गज़ल ‘ एक गुड़िया की कई कठपुतलियों में जान है “ की माधुरी में लिखी पैरोडी देखिए –

स्वार्थ ही जिस जगह की सबसे बड़ी पहचान है

उस जगह का नाम ही दुनिया में फिल्मिस्तान है

रास्ते पीछे से खुलते हैं यहाँ पर हर जगह

सामने ‘ नो एंट्री’ है और इक दरवान है

दो तरह के लोग ही मिलते हैं फिल्मी क्षेत्र में

थोड़े जीनत की तरह के थोड़े संजय खान हैं

कल वो जंगल में मिला था साथ सांभा को लिये

मैंने पूछा नाम तो बोला कि अमज़द खान है

       सिलसिला चला तो मैंन फिर नीरज जी, रंगजी, रमानाथ अवस्थी, रामावतार त्यागी आदि के अनेक चर्चित गीतों की पैरोडियां लिखीं जो सभी तत्कालीन राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं में तब तक प्रकाशित हुयीं जब तक कि मुझे ही यह लेखन निरर्थक नहीं लगने लगा। कभी कभी कुछ घटनाओं से बचपना भी याद आ जाता है और निजी तौर पर सुख दे जाता है।

वीरेन्द्र जैन

2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड

अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023

    

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