मंगलवार, फ़रवरी 11, 2025

दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम

 

दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम

वीरेन्द्र जैन

दिल्ली विधानसभा के चुनाव सम्पन्न होने के बाद उसके परिणाम आ चुके हैं। इन चुनावों में सीधे सीधे दो दलों, आम आदमी पार्टी [आप] और भारतीय जनता पार्टी [भाजपा] के बीच मुकाबला था, भले ही इस रासायनिक क्रिया में उत्प्रेरक के रूप में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस व ए आई एम आइ एम [अखिल भारतीय मुस्लिम एकता संघ ] भी थीं। यदि ये उत्प्रेरक नहीं होते तो सीटों के परिणाम में भी दोनों मुख्य प्रतिद्वन्दी बिल्कुल बराबर पर होते या विपरीत होते। अभी भी उनके मतों के बीच कुल दो प्रतिशत का अंतर है। वैसे पिछले विधानसभा चुनावों से भाजपा के वोट सात प्रतिशत बढे हैं तो आम आदमी पार्टी के आठ प्रतिशत घटे हैं। लोकसभा चुनावों में भाजपा को 50% वोट मिले थे और संयुक्त रूप से लड़ने वाली काँग्रेस [18%] व आप [22%] अर्थात कुल 40% वोट मिले थे। यह बताता है कि दिल्ली में चुनाव अनुसार मत बदलने वाले मतदाता बड़ी संख्या में हैं। जिन मतदाताओं ने तीन बार राज्य में आम आदमी की सरकार बनवायी, उन्हीं ने उसके ठीक बाद भाजपा प्रत्याशियों को लोकसभा में भेजा।

 

चूंकि हमारी प्रणाली में विजेता जनप्रतिनिधियों की संख्या का महत्व सचेत मतदाताओं की संख्या से अधिक होता है, इसलिए चुनावी जीत कुछ अर्थ रखती है। विपक्ष में रहने के दौरान लोहिया पंथियों के कथन हुआ करते थे कि ज़िन्दा कौमें पाँच साल तक इंतजार नहीं करतीं। वे निरंतर सड़क के आन्दोलन किया करते थे। अब वैसा नहीं होता। अन्ना आन्दोलन के बाद जनता का स्वतःस्फूर्त कोई आन्दोलन नहीं हुआ, भले ही वेतन आदि में वृद्धि के लिए संगठित मजदूर कर्मचारियों के प्रदर्शन भले ही हुये हों, या कुछ वर्ष पूर्व एम एस पी के लिए सम्पन्न किसानों का आन्दोलन हुआ था। पिछले दिनों विशाल बहुमत से सरकार बनाने वाले केजरीवाल और उनकी पार्टी के प्रमुख लोगों को बिना किसी ठोस सबूत के जेल में भी डाल दिया गया फिर भी इस कार्यवाही के खिलाफ कोई विरोध प्रदर्शन तक नहीं हुआ।  कारण यह रहा कि वे सब प्रभुता के मद से घिर चुके थे, और ना तो उनकी पार्टी का संगठन ही बनाया गया था और ना ही कोई ठोस कार्यक्रम ही बनाया गया था जिसकी रक्षा के लिए कार्यकर्ता आदोलन करने लगते।

विडम्बना यह रही कि उक्त विधानसभा चुनाव में दोनों प्रमुख और दोनों उत्प्रेरक दलों में से किसी ने भी लोकतांत्रिक आदर्शों के अनुरूप चुनाव नहीं लड़ा। पूरा चुनाव सत्तारूढ आम आदमी और उसके पूर्व मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की आलोचना पर केन्द्रित रहा। अरविन्द केजरीवाल ने तत्कालीन काँग्रेस सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ चले आन्दोलन से लोकप्रियता अर्जित की थी और उसे राजनीतिक दल में बदलकर अपनी पार्टी बना ली थी। इस पार्टी ने आरोपों से घिरी काँग्रेस पार्टी द्वारा खाली किये गये स्थान को भर कर अपना अस्तित्व बनाया था। उसका इकलौता कार्यक्रम और नीति थी, भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देना। उसने यह कर के दिखाने की कोशिश भी की। दूसरी ओर देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी भाजपा ने अपने अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा छोड़ा हुआ था और वे काँग्रेस द्वारा खाली किये गये स्थान को भरने के लिए उतावले थे, इस कारण दोनों में प्रतियोगिता थी। देश के मतदाताओं में एक बड़ा वर्ग अभी भी गैर राजनीतिक आधार पर वोट देता है इसलिए भाजपा के पास एक सुनिश्चित हिन्दू वोट बैंक है और मुस्लिम मतदाता एकजुट होकर भाजपा को हराने वाले दल को समर्थन देते हैं। दिल्ली के चुनाव में आम आदमी के साथ काँग्रेस और एआईएमआईएम के बीच बंट गया फिर भी अधिकतम हिस्सा आम आदमी पार्टी को ही मिला, पर वह सीटें जीतने वाला बहुमत नहीं अर्जित कर सकी और पिछड़ गयी। जीत दर्ज करने वाली भाजपा केवल अपनी केन्द्र सरकार को ही दुहराती रही। डबल इंजन की सरकार को प्रचार का आधार बनाना यह भी बताता है कि केन्द्र सरकार अपने ही दल की सरकार को वांछित मदद करती है। कुल मिला कर दल के आधार पर चुनाव परिणाम का निष्कर्ष निम्नानुसार है –

भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस – इसके स्थानीय नेताओं ने उनकी सरकार पर लगाये गये आरोपों का बदला लेने के लिए वोट काट कर आम आदमी पार्टी से बदला ले लिया, भले ही वे एक भी सीट नहीं जीत सके हों और जिस बड़े उद्देश्य अर्थात साम्प्रदायिक भारतीय जनता पार्टी को हराने के लिए बनाया गये इंडिया गठबन्धन को चोट पहुंचायी हो। काँग्रेस के बड़े नेताओं की असहमति से यह हुआ है तो काँग्रेस की एकता को भी नुकसान पहुंचा है।

भारतीय जनता पार्टी- विधानसभा चुनाव जीत गयी है किंतु उसको लोकसभा में अर्जित वोटों में घटत मिली है। पराजित आम आदमी पार्टी से कुल दो प्रतिशत मत से ही आगे है, दूसरे मुख्यमंत्री चयन के सवाल पर उसे बहुत सारे समझौते करना होंगे। प्रतियोगिता में उसने जो अतिरंजित वादे किये हैं उन्हें निभाने में मुश्किलें आयेंगीं।

आम आदमी पार्टी-  पार्टी चुनाव हार गयी है किंतु यह पार्टी एक व्यक्ति को केन्द्रित कर सिद्धांत और संगठन विहीन पार्टी थी। इसके प्रमुख नेता की छवि को भाजपा ने खराब किया, उसे और उसके सहयोगियों को महीनों जेल में डाल कर रखा। जिस ईमानदारी के आधार पर इन्होंने अपना अस्तित्व बनाया था उसे ही दागदार किया गया। इसके पास जन समर्थन तो है किंतु संसाधनों की कमी है। इनके विधानसभा अध्यक्ष ने पार्टी छोड़ कर भाजपा ज्वाइन कर ली और यही काम टिकिटों से वंचित होने पर आठ और अन्य विधायकों ने भी किया। पार्टी के संस्थापकों में से अनेक पहले ही जा चुके थे जिनमें से एक कवि तो घनघोर आलोचक हैं। इनकी प्रशासनिक ईमानदारी के इतिहास के कारण इनकी जगह भरने वाली पार्टी लम्बे समय तक सतर्क होकर काम करेगी।

ए आइ एम ए आइ एम- मुस्लिम साम्प्रदायिक पार्टी है, हर चुनाव में ध्रुवीकरण करके हिन्दू साम्प्रदायिक पार्टियों को लाभ पहुंचा कर खुद भी लाभांवित होती है। इस चुनाव में भी बिना कोई सीट जीते लाभ में रही। अन्य राज्यों की तरह दिल्ली में भी उपस्थिति बना ली।

किसी शायर का शे’र है –

अय परिन्दो हिज्र करने से भी क्या हासिल हुआ / चोंच में थे चार दाने, चार दाने ही रहे

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