मंगलवार, जून 09, 2009

एक बहुत ख़राब दिन

दुर्घटना दर दुर्घटना -एक क्षोभ भरा दिन
वीरेन्द्र जैन
मैं जब सुबह घूमने जाता हूँ तब साथ में मोबाइल नहीं ले जाता ताकि कम से कम एक घंटा तो सुकून से गुजर सके। 8 जून की सुबह जब घूम कर लौटा तो ताला खोलते ही मोबाइल की घंटी सुनाई दी। इतने सुबह मोबाइल पर घंटी आना वैसा ही लगता है जैसे कभी लोगों को तार आने पर लगता होगा। दौड़ कर मोबाइल उठाया और बिना यह देखे कि किस नम्बर से घंटी आ रही है, सुनने के लिए बटन दबा दिया। दूसरी तरफ देश के विख्यात कवि पूर्वसांसद उदयप्रताप सिंह थे। उन्होंने पूछा कहां थे बहुत देर से घंटी कर रहा हूँ, अच्छा सुनो सुबह सुबह तुम्हारे भोपाल में एक कार एक्सीडेंट हो गया है जिसमें कवि ओमप्रकाश आदित्य, नीरजपुरी, और लाढसिंह गुर्जर नहीं रहे व ओम व्यास और जॉनी बैरागी गम्भीर रूप से घायल हैं। ये लोग विदिशा कवि सम्मेलन से लौट रहे थे। इसलिए तुरंत ही वहाँ के पीपुल्स हास्पिटल पहुँचो।
मैं सन्न रह गया मैंने पूछा आप कहाँ पर हैं? वे बोले मैं तो दिल्ली में हूँ, वहाँ से अभी अभी अशोक ने खबर दी है। इतना कह कर उन्होंने फोन बन्द कर दिया, संभवत: दूसरों को जरूरी सूचना देने के लिये। पता नहीं चला कि और कौन कौन था एक्सीडेंट किससे हुआ। मैंने अस्पताल जाने से पहले कविमित्र माणिकवर्मा जी की खोज खबर लेनी जरूरी समझी जो थोड़ी ही दूर पर रहते हैं। फोन उनके यहाँ काम करने वाले लड़के ने अटेैंड किया और नाम पूछने के बाद बताया कि वे बाथरूम में हैं। मैंने पूछा कि कल विदिशा तो नहीं गये थे तो उसने कहा नहीं। थोड़ी राहत की सांस लेकर मैंने कहा कि बाहर आ जायें तो बात करा देना। मैं तेजी से तैयार हुआ एक मिनिट के लिए अखबार के मुखपृष्ठ पर नजर डाली पर घटना एकदम सुबह की थी और अखबार छपने के बाद की थी इसलिए कहीं कोई खबर होने का सवाल ही नहीं उठता था। बाहर आकर देखा कि स्कूटर अचलनीय स्थिति में है इसलिए तुरंत ही सोचा कि क्यों न कवि मित्र राम मेश्राम से चलने का आग्रह किया जाये और उनकी कार से ही चलें। फोन किया तो वे तुरंत ही तैयार हो गये। किसी तरह उनके घर पहुँचा तो उनकी कार ने भी स्टार्ट हाने में थोड़े नखरे दिखाये पर अंतत: वह चल निकली। वहाँ बाहर प्रदीपचौबे अशोक चक्रधर पूर्व विधायक सुनीलम राजुरकर राज समेत कमिशनर भोपाल, संस्कृति मंत्री , संस्कृति सचिव, आईजी पूलिस आदि उपस्थित थे। पता चला कि मृत देहें तो पोस्टमार्टम और फिर उनके गृह नगर भेजे जाने के लिए सरकारी हमीदिया अस्पताल भेजी जा चुकी हैं और वहाँ पर घायलों को बचाने के भरसक प्रयत्न हो रहे हैं। घायलों में ओम व्यास की हालत काफी गम्भीर है तथा जानी बैरागी, भारत भवन के फोटोग्राफर विजय रोहतगी तथा गाड़ी का ड्राइवर खेमचंद खतरे से बाहर है। मंत्री और वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्तिथि के कारण अस्पताल प्रबंधन भी सक्रिय होकर रूचि ले रहा था व अस्पताल के मैनेजिंग डायरेक्टर स्वयं वहाँ पर थे। लगभग सारे ही उपस्थित लोग लगातार फोन पर बात कर रहे थे इसका असर यह हुआ था कि हम जैसे अनेक लोग वहाँ पर पहुँच सके थे। लगभग एक घंटे वहाँ रूकने के बाद हम लोग हमीदिया अस्पताल की ओर आये जहाँ मध्यप्रदेश के संस्कृति विभाग के डायरेक्टर श्रीराम तिवारी और अस्टिेंट डायरेक्टर सुरेश तिवारी समेत लगभग पूरा संस्कृति विभाग उपस्तिथ था। पोस्टमार्टम पूरा हो चुका था और ताबूतों में शव रखे जाने थे, पर ताबूत उठाने वाला कोई नहीं था, एक पुलिस कानिस्टबल झुंझला कर कह रहा था कि ताबूत भी पुलिस ही उठाये। मेंने उसे सहायता देते हुये समझाया कि ये दुर्घटना है और ये सब सरकारी अधिकारी हैं, ये अपने हाथ से ताबूत तो क्या पानी का गिलास भी नहीं उठाते इसलिए मदद तो करनी ही पड़ेगी। उसी समय सूचना मिली कि हबीब तनवीर साहब भी नहीं रहे तो हम लोग ताबूतों को वाहनों में रखवा कर सीधे श्यामला हिल्स के अंसल अपार्टमेंट्स की ओर तेजी से चल दिये। वहाँ हबीब साहब की मृत देह आ चुकी थी और कमला प्रसाद, लज्जाशांकर हरदेनिया मनोज कुलकर्णी, जया मेहता, समेत दसबीस रंगकर्मी उपस्थित थे। जानकर आशचर्य और दुख हुआ कि हबीबजी के साथ काम करने वाले रंगकर्मियों में से भी कुछ अब तक मजहबी बने हुये थे और कोई कह रहा था कि पैर काबे की ओर नहीं करते या गुशल कराना चाहिये। लगता था कि अगले दिन उनके अंतिम संस्कार होने तक वे लोग हबीब जी की देह के साथ वे सब मजहबी खिलवाड़ कर लेना चाहते थे जो उन्होंने जिन्दगी भर नहीं किये थे।
एक कामरेड की देह को साम्प्रदायिक मुस्लिम, मुसलमान बना कर साम्प्रदायिक हिंदुओं के इस तर्क को बल दे रहे थे कि हबीब तनवीर ने पाेंगा पंडित नाटक एक मुसलमान की तरह किया था और हिन्दू देवी देवतााओं का अपमान किया था।
आठ जून सचमुच मेरे लिए गहरे क्षोभ का दिन रहा।

1 टिप्पणी:

  1. बहुत दुखद्। विस्तार से बतलाने के लिए धन्यवाद।
    घुघूती बासूती

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