क्या ये नेता जनता को बिल्कुल मूर्ख मानते हैं?
वीरेन्द्र जैन
गत दिनों से देश में घटित कुछ घटनाओं से राजनेताओं की समझ पर एक ओर तो तरस आ रहा है और दूसरी ओर गुस्सा भी आ रहा है कि ये लोग जो स्वयं तो इतने अदूरदर्शी हैं कि इन्हें वह सच भी दिखाई नहीं देता जो एक सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी देख लेता है, वहीं ये जनता को इतनी मूर्ख मानते हैं कि जब ये जो कुछ भी कहेंगे उसे जनता मान लेगी।
मुलायम सिंह् यादव के संघर्ष का सम्मान करने वाले और उनके साथ सहानिभूति रखने वाले सारे लोगों ने उन्हें समझाया था कि कल्याण सिंह का साथ न केवल उन्हें घनघोर अवसरवादी और सिद्धांतहीन प्रचारित करेगा अपितु बाबरी मस्ज़िद ध्वंस के लिये ज़िम्मेवार होने के कारण उन्हें मुस्लिम वोटों से हाथ धोना पड़ सकता है जो उनकी चुनावी सम्भावनाओं को प्रभावित करेगा। किंतु उनकी दिशा इतनी अमरान्ध (अमर सिन्ह के प्रेम में अन्धे) हो चुकी है कि उन्हें किसी भी और की बात समझ में नहीं आती। स्मरणीय है कि मुलायम सिंह समाजवादी आन्दोलन की उपज थे व राम मनोहर लोहिया के चेले समझे जाते रहे थे। बाद में मण्डल आन्दोलन के बाद वे पूरे उत्तर प्रदेश में पिछड़े लोगों के नेता के रूप में उभरे। उत्तर प्रदेश में 1989 में अपने राजनीतिक उद्देश्य के लिये संघ परिवार के लोगों द्वारा अयोध्या में फैलायी जा रही साम्प्रदायिक हिंसा को कठोरता पूर्वक दबाने और साम्प्रदायिकता के विरोध में कानून व्यवस्था की पक्षधरता करने के कारण उन्होंने मुसलमानों के समर्थन को कांग्रेस से खिसका कर अपने पक्ष में कर लिया। बाद में जब नरसिम्हा राव के कार्यकाल में बाबरी मस्ज़िद तोड़ दी गयी तो उत्तर प्रदेश में मुसलमान वोट थोक में उनके पक्ष में हो गये व कांग्रेस अपने इस स्थायी वोट बैंक से वंचित हो गयी। मंडल के बाद मुलायम के यादव वोट पक्के होते ही मुसलमान के वोट जुड़ने के कारण उनका उत्तर प्रदेश पर एक छत्र राज हो गया। कांग्रेस से मुस्लिम वोट खिसकने के कारण उसका परोक्ष लाभ भाजपा को भी मिला। देश के सबसे बड़े प्रदेश पर मुलायम का अधिकार हो जाने पर उन्हें अमर सिंह जैसे नेता ने घेरे में ले लिया और उनकी कमियों की भरपाई करते हुये उनके जनसमर्थन का विदोहन कुछ बड़े उद्योगघरानों के हित में कराने लगे।
अमर सिंह के इशारे पर लोधी वोटों के लालच में कल्याण सिंह को समाजवादी पार्टी के निकट लाने का जो इकतरफा फैसला उन्होंने लिया उससे उनका चुनाव जीतने का आधार ही खिसक गया। 2009 के चुनाव में उन्होंने अपने बेटे को दो जगह से चुनाव लड़वाया जो दोनों जगह से जीत गया। बाद में दूसरी सीट से स्तीफा दिला कर वहां से किसी सक्रिय पार्टी सदस्य को टिकिट देने के बजाय अपनी बहू को ही टिकिट दे दिया जिसकी अब तक राजनीति में कोई भूमिका नहीं रही थी। वे समझ रहे थे कि फिरोज़ाबाद की वह सीट उनकी झोली में है और वहां की जनता इतनी मूर्ख है कि वह मुलायम सिन्ह परिवार के पांचवें सदस्य को भी चुन कर भेज देगी। पर एक ज़मीनी नेता को यह भी नहीं दिखाई दिया कि ऊंट किस करवट बैठ रहा है और लोग जाति के आधार पर एक सीमा तक ही सोचते हैं। इस बुरी हार के बाद मुलायम ने जो किया वह और भी अधिक शर्मनाक था। उन्होंने बयान दिया कि कल्याण सिंह् कभी भी समाजवादी पार्टी में नहीं थे और न होंगे। सारे लोग जानते हैं कि उन्होंने लोकसभा चुनाव में एक मंच से भाषण दिया और मुलायम ने उन्हें लाल टोपी पहनाई। वे विनम्रता पूर्वक उनसे नाता तोड़ सकते थे और अपनी भूल के लिये जनता से क्षमा मांग सकते थे पर उन्होंने ऐसा न करके एक ज्वलंत सच को झुठलाने की कोशिश की। अमर प्रेम में मुलायम सिंह अन्धे हो सकते हैं पर जनता को तो दिखता है। दूसरी ओर कल्याण सिंह् ने गुहार लगा दी कि मुलायम धोखेवाज़ हैं (जो उन्हें समाजवादी पार्टी से निकाले जाने के बाद् ही समझ में आया) इसके बाद उन्होंने भी कह दिया कि वे स्वयं सेवक थे और स्वयं सेवक रहेंगे। विनय कटियार ने पार्टी से बिना पूछे ही उनका तुमुल स्वर से स्वागत भी कर दिया जबकि दो बार पार्टी से बाहर जाने के बाद उन्होंने भाजपा को जिन शब्दों में याद किया वे बहुत ही आपत्तिजनक थे। उन्होंने अटल बिहारी को पियक्कड़ कहा था और कहा था कि भाजपा ने राम लला को पोलिंग एजेंट बना दिया है। विधान सभा चुनावों के दौरान उन्होंने कमान अपने हाथ में लेने की ज़िद की थी पर हार के बाद आयोजित किसी भी समीक्षा बैठ्क में वे गये ही नहीं। कहने वाले कहते हैं कि चुनाव फंड के लिये आये हुये धन के बड़े गोपनीय हिस्से का हिसाब उन्होंने किसी को नहीं दिया। इस दौरान पार्टी के भीतर और बाहर उनकी जिन शब्दों में निन्दा की गयी थी उसके बाद उनका पार्टी में वापिस जाना और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं का पलक पांवड़े बिछाना जनता में ऐसी राजनीति के प्रति जुगुप्सा पैदा करता है। उमाभारती से मुख्य मंत्री पद छीने जाने और भाजपा नेतृत्व द्वारा वादा करके भी फिर नहीं देने के बाद उन्होंने अटल बिहारी को छोड़ कर बाकी के नेताओं को जिन शब्दों में याद किया था उनकी प्रतिक्रिया में उस समय के संघ प्रमुख सुदर्शन ने उनके जातीय संस्कारों पर दोष मढ दिया था। उन्होंने जनता से वादा किया था कि वे भाजपा को समूल नष्ट करके ही मानेंगीं। बड़ामल्हरा चुनावों के दौरान उन्होंने मुख्य मंत्री पर उनकी हत्या के आरोप लगाये थे। वेंक्य्या नायडू, सुषमा स्वराज और अरुण जैटली के खिलाफ तो उन्होंने क्या क्या नहीं बोला था। वही उमा भारती पिछले दिनों से भाजपा में घुसने के बहाने तलाशती हुयी भीगी बिल्ली बनी बैठीं थीं पर जब अडवाणी चौकड़ी के प्रमुख नेताओं ने उनकी दाल नहीं गलने दी तो अब कहने लगी हैं कि वे भाजपा में तो कभी नहीं जायेंगीं पर राजग का भाग ज़रूर बन जाना चाहेंगीं। यह पिछले रास्ते से प्रवेश का प्रयास है। वे जनता को इतना मूर्ख समझ बैठीं हैं कि जैसे उसे तो कुछ भी याद नहीं रहता।
जब मधु कौड़ा के यहां छापा पड़ा और चार हज़ार करोड़ तक की अघोषित सम्पत्ति के संकेत समेत घर से दो क्विंटल सोना बरामद हुआ उस पर भी वे पहले तो अस्पताल में भरती हो गये और फिर बयान दिया कि यह उन्हें फंसाने का षड़्यंत्र है। नेता लोग फंस जाने पर जिस तरह से बीमार हो जाते हैं उससे डर लगता कि अगर कभी कोई नेता सचमुच बीमार हो जाये तब भी लोग उसे झूठ न समझें।
मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार के अनेक मंत्रियों के यहां करोड़ों की दौलत मिलने के बाद भी लोकसभा चुनावों तक तो उनसे दूरी बना कर रखी गयी पर चुनाव हो जाते ही उन्हें फिर से मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया।
ये तो चन्द ताज़ा उदाहरण हैं, किंतु जनता के सामने खुले झूठ और नंगी ढीठता पूर्वक अनैतिक हरकतें होते रहने से उसका विश्वास नेताओं के साथ साथ व्यवस्था से भी उठता जा रहा है। किसी नेता के साथ दुर्घटना होने पर जनता में सहानिभूति की जगह एक हिंसक खुशी देखी जाने लगी है। माओवादियों की हिंसा से भी लोग इसलिये नाराज़ हैं कि वे निरीह नागरिकों और विवश सरकारी कर्मचारियों और सिपाहियों को हिंसा का शिकार बनाते हैं। आम तौर पर लोग यह कहते हुये उनकी निन्दा करते हैं कि ये बेचारे गरीब लोगों को मार रहे हैं और नेताओं से कुछ नहीं कहते। आशंका बलवती हो रही है कि कल के दिन अगर वे कुछ नेताओं पर हमले का प्रयास करने लगें तो जनता का एक बड़ा तबका उनसे सहानिभूति न रखने लगे। इसलिये ज़रूरी है कि हमारे नेताओं के आचरण ऐसे हों जिससे उन्हें जनता का समर्थन मिले और वे उसे सच्चा नेतृत्व दे सकें। किसी भी राजनीतिक दल या गठबन्धन को भ्रष्टाचारी और अनैतिक व्यक्ति को दूर करने में देर नहीं करना चाहिये अन्यथा उस दल व गठबन्धन को तो नुकसान होगा ही, देश और लोकतंत्र को भी बड़ा नुकसान होगा।
वीरेन्द्र जैन
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मूरख नेता नहीं हम जनता हैं। अब कैसे यह बताने की जरूरत नहीं।
जवाब देंहटाएंसमझना क्या है, जनता तो मूर्ख है ही। और भी इस तरह की जो उपाधियां हैं, उन्हें दी जा सकती हैं।
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