सोमवार, अक्तूबर 10, 2011

श्रद्धांजलि जगजीत सिंह

श्रद्धांजलि:जगजीतसिंह
वे हमारे लिए गाते थे, इसलिए अपने लगते थे

वीरेन्द्र जैन  
                
जगजीत सिंह हमारे लिए वैसे ही अपने थे जैसे कि दुष्यंत कुमार थे। अगर क्लासिक म्यूजिक एक खास क्लास के लिए होता है तो हम कह सकते हैं कि जगजीत सिंह जैसे लोगों का गायन हम निम्न मध्यम वर्गीय लोगों की सम्वेदना को स्पर्श करता था इसलिए अपने जैसा लगता था। उन्होंने गाने के लिए भी जिन गजलों का चुनाव किया था वे न तो कठिन उर्दू की थीं और न ही हास्यास्पद संस्कृतनिष्ठ हिन्दी के शब्दों से भरी हुयी थीं अपितु उस भाषा की थीं जिसे हिन्दुस्तानी कहा जाता है, और जो मुँह चड़ी हुयी बोल चाल की भाषा में लिखी जाती हैं। उनके द्वारा गायी हुयी गजलों और नज्मों के रचनाकार मिर्जा गालिब, गुलजार, निदा फाजली, कृष्ण बिहारी नूर, आदि होते थे। सुप्रसिद्ध गीतकार नीरज के गीत की पंक्तियां हैं-
अपनी वाणी प्रेम की वाणी
घर समझे न गली समझे
या इसे नन्द लला समझे
या इसे बृज की लली समझे
हिन्दी नहीं यह उर्दू नहीं यह
यह है पिया की कसम
इसकी स्याही आँखों का पानी
दर्द की इसकी कलम
लागे किसी को मिसरी सी मीठी
कोई नमक की डली समझे
      इसी तरह की भाषा और सहज सम्वेदना की गजलें गाने वाले जगजीत सिंह को देश के संगीत प्रेमियों की ओर से जो प्यार मिला था उसकी दूसरी कोई मिसाल नहीं मिलती। प्रवासी भारतीयों के बीच भी वे बेहद लोकप्रिय थे और अपने वतन की ओर से उन्होंने जो चिट्ठी इन प्रवासियों को भेजी थी उसे सुनकर कई लोग विदेश से अच्छी अच्छी नौकरियां छोड़ कर वापिस लौट आये थे।
      बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जायेगी, उनकी प्रिय नज्म थी और जब उन्हें पहली बार स्वतंत्र रूप से गाने का अवसर मिला तो उन्होंने इसी नज्म से शुरुआत की थी। एक बार कनाडा मैं एक महिला ने उनसे पूछा कि क्या वे कभी चेयरिटी के लिए गाते हैं, और उनके मुँह से हाँ सुनने के बाद उन्होंने कहा कि वे एक गुरुद्वारे के लिए चेयरिटी का कार्यक्रम करती हैं। यह सुनने के बाद जगजीत सिंह ने कहा कि वे गुरुद्वारों के लिए आयोजित चेयरिटी के लिए नहीं गाते।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें