गुरुवार, मार्च 29, 2012

राष्ट्रीय मान्य दल का मुकुट और ज्वलंत मुद्दे पर मौन


राष्ट्रीय मान्य दल का मुकुट और ज्वलंत मुद्दे पर मौन
वीरेन्द्र जैन
      सरकार ने बलवंत सिंह राजोआना की सजा स्थगित कर दी है।
      इस सजा के स्थगन के लिए पंजाब की  भाजपा- अकालीदल गठबन्धन सरकार के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने राष्ट्रपति प्रतिभादेवीसिंह पाटिल से अपील की थी।
      ऐसी अपील करने के लिए उन्हें शिरोमणि गुरुद्वारा समिति ने आदेश दिया था।
      पंजाब सरकार भारत देश का ही एक राज्य है, और भारत देश अपने संविधान के अनुसार एक धर्म निरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य है। पंजाब में एक चुनी हुयी गठबन्धन सरकार है जिसमें भाजपा नामक एक राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त दल है और अकाली दल नामक एक राज्य स्तरीय मान्यता प्राप्त दल है। राष्ट्रीय स्तर पर एनडीए या राजग नामक गठबन्धन है जिसमें ये दोनों दल सम्मलित हैं। पंजाब राज्य में राज्य स्तरीय अकाली दल के विधायक संख्या में अधिक हैं इसलिए सरकार बनाने में उसका नेतृत्व रहता है किंतु राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा बड़ा राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त दल है और नेतृत्व उसका रहता आया है। भाजपा एक हिन्दूवादी दल है और अकालीदल सिखों की पार्टी है। आज से पच्चीस साल पहले सिखों के एक आतंकवादी गुट ने अलग खालिस्तान बनाने के लक्ष्य को लेकर अनेक आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया था। ध्रुवीकरण के लिए उन्होंने पंजाब के गैर सिखों पर भी अन्धाधुँध हमले किये थे, राष्ट्रीय नेताओं और फौज के अधिकारियों की हत्याएं की थीं फौज की एक टुकड़ी से विद्रोह भी करवा दिया था। पंजाब के राज्यपाल और मुख्यमंत्री भी मारे गये थे। धर्मस्थलों को अड्डा बना लेने के कारण केंन्द्रीय सरकार को आपरेशन ब्ल्यू स्टार करना पड़ा था जिसके प्रतिशोध में देश की लोकप्रिय प्रधानमंत्री की हत्या हुयी थी व जिसके प्रतिशोध के नाम पर देश भर में हजारों बेकसूर सिखों की निर्मम हत्याएं हुयी थीं। अटूट सम्पत्ति और राष्ट्रीय हितों की बरबादी के साथ साथ दोनों तरफ से लगभग पचास हजार लोगों के मारे जाने का अनुमान लगाया गया है। इस दौरान हिन्दूवादी भाजपा को भी कुछ नुकसान उठाना पड़ा था तथा अकाली दल ने दोहरी भूमिका निभा कर अपने को सुरक्षित रखा था।
       हाल ही में हुए चुनावों में जीत कर आने के बाद भाजपा-अकालीदल गठबन्धन ने उस संविधान की शपथ खाने के बाद सरकार चलाना शुरू की है जिसमें लिखा है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य है। सरकार का कोई भी फैसला पूरे मंत्रिमण्डल का फैसला होता है, इसलिए यह तय है कि पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंतसिंह की हत्या करने वाले आतंकी बलवंत सिंह को फाँसी की सजा से बचाने के लिए अपील करने वालों में भारतीय जनता पार्टी भी सम्मलित है। उल्लेखनीय यह भी है कि यह फैसला सिख धर्म की सर्वोच्च संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा समिति के आदेश पर लिया ग्या है अर्थात यह धर्मनिरपेक्ष राज्य की रक्षा करने की शपथ का भी उल्लंघन है। रोचक यह है कि भाजपा की तीन प्रमुख माँगों में सभी नागरिकों के लिए एक समान आचार संहिता की माँग भी है जो मुख्य रूप से मुसलमानों को शरीयत के कानून के अनुसार चलने की विशेष छूट के विरोध में है। क्या शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धन समिति के आदेशों के अनुसार चलने वाली सरकार में शामिल होकर और उसके आदेशों पर सहमति व्यक्त करने के बाद उसे समान नागरिक आचार संहिता का सवाल उठाने का हक है?
      कुछ ही महीनों पहले सरकार के खिलाफ भाजपा का प्रमुख मुद्दा आतंकवाद हुआ करता था और इस बहाने से वह सरकार को कटघरे में खड़ा किया करती थी। पर बाद में यह रहस्य खुला कि जिन घटनाओं को अलगाववादी व मुस्लिम आतंकियों के नाम मढ दिया जाता था वे दर असल हिन्दू आतंकियों का कारनामा था। उसके बाद से आतंकवाद, भाजपा का प्रमुख मुद्दा नहीं रहा। बाद में अफजल और कसाब की फाँसी को टालने के नाम पर भाजपा सरकार को कटघरे में खड़ा करती रही और इसे तुष्टीकरण का सस्ता हथकण्डा बतलाती रही। पर अब यही पार्टी न केवल एक ऐसे आतंकी की फाँसी को माफ करने के लिए की गयी अपील में सम्मलित है जिसने अपना अपराध स्वीकार किया है अपितु उसे इसके लिए कोई खेद नहीं है। देशभक्ति का त्रिपुण्ड पोते फिरने वाली भाजपा यह काम पंजाब की सरकार में थोड़ी सी जगह बचाने के लिए कर रही है। एक ओर कश्मीर के अलगाववादियों के खिलाफ कठोर हिंसा का तर्क देने वाली यह पार्टी खालिस्तान आन्दोलन के आतंकियों के लिए फाँसी न दिये जाने की अपील में सम्मलित है। दूसरी पार्टियों के भ्रष्टाचार का विरोध और अपनी सरकारों को न केवल कुतर्कों से बचाने की कोशिश करना अपितु संरक्षण देना भी उसकी प्रकृति में शामिल है।
      जरूरी है कि देशहित के मसलों पर टुच्ची राजनीति न करके सारे दल एक जुट हों और सरकार को कठोर कदम उठाने के प्रोत्साहित करें। जो लोग दूसरों के बच्चों को देश के नाम पर जान देने को भड़काते रहते हैं वे ही अपनी छोटीमोटी सीट के लिए बेपेन्दी के लोटे की तरह लुड़कते रहते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि राष्ट्रीय मान्यता के लिए यह जरूरी शर्त हो कि वह ज्वलंत राष्ट्रीय मुद्दे पर अपने दल की प्रतिक्रिया तुरंत दे । जो ऐसा नहीं करें, उनकी मान्यता को समाप्त किये जाने की जरूरत है।
वीरेन्द्र जैन
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