शुक्रवार, मई 25, 2012

सम्वेदनात्मक ज्ञान की भेदक क्षमता और मीडिया के सदुपयोग का उदाहरण


सत्यमेव जयते
सम्वेदनात्मक ज्ञान की भेदक क्षमता और मीडिया के सदुपयोग का उदाहरण
वीरेन्द्र जैन
      जयप्रकाश आन्दोलन और इमरजैंसी के दौरान अपनी गज़लों के माध्यम से पूरे समाज को झकझोर देने वाले शायर दुष्यंत कुमार का एक शे’र है-

                   वे मुतमईन हैं पत्थर पिघल नहीं सकता
                   मैं बेकरार हूं आवाज़ में असर के लिए
आमिर खान द्वारा तैयार कार्यक्रम ‘सत्यमेव जयते’ ने एक बार फिर दूरदर्शन को, बुनियाद, हमलोग, महाभारत, भारत एक खोज, तमस, आदि सीरियलों के उस दौर में पहुँचा दिया है जहाँ सम्वेदना के साथ ज्ञान का समन्वय करके देश के बड़े मध्यम वर्ग तक समाज को सार्थक दिशा में बदलने का सन्देश दिया जाता रहा है। आज इस माध्यम में रंग हैं और निखार है और इसकी पहुँच दूर दूर तक है। अगर आप कोई समझदारी भरी बात दिल को छू लेने वाली भाषा और अन्दाज़ में करते हैं तो ऐसा नहीं है कि समाज में परिवर्तन के वे बीज न बोये जा सकें जो अभी दिमागों में कुण्ठित हो कर दम तोड़ देते हैं। वैसे भी वे अपने सन्देशों के साकार परिणाम चाहते हैं, इसलिए उनका कथन भी है कि-
               सिर्फ हंगामा खड़ा करना मिरा मकसद नहीं
               मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
 अमिर खान के इस कार्यक्रम के अब तक प्रसारित अंकों को जो लोकप्रियता मिली है, वह इस बात की संकेतक है कि आमिर के एपीसोडों से सम्बन्धित भावनाएं देशवासियों के मानस पटल पर निरंतर दस्तक देती रही हैं पर उन्हें आन्दोलन में बदल उनके अग्रदूत बनकर झंडा उठाने का साहस कोई नहीं जुटा पा रहा था। आमिर ने वह दुस्साहस किया और देश का समर्थन हासिल किया है। कोई बात उसी समय लोकप्रिय होती है जब वह पूर्व से ही लोगों के मन में छायी होती है पर उसका श्रेय उस बात को शब्द देने वाले उस व्यक्ति को मिलता है, जो असफलता की सम्भावना से भयभीत हुये बिना आगे आता है। मिर्ज़ा गालिब ने कहा है-

               देखिए तकरीर की लज्जत कि जो उसने कहा
               मैंने यह जाना कि गोया यह भी मेरे दिल में है  
      आमिरखान एक प्रयोगधर्मी संस्कृतिकर्मी हैं। पिछले दिनों उन्होंने ‘रंग दे बसंती’, ‘फना’, ‘तारे जमीं पर’, ‘पीपली लाइव’, ‘थ्री ईडियट्स’ आदि फिल्में बनाकर यह साबित किया था कि उनमें न केवल नये विषय चुनने की तमीज है अपितु देश और समाज के हित में उन आफबीट विषय पर फिल्में बना कर व्यावसायिक खतरा मोल लेने की हिम्मत भी है। किसी बात के कहने का महत्व इस बात पर भी निर्भर करता है कि उसे कौन कह रहा है, क्योंकि उस के व्यक्तित्व के आधार पर ही उसे कहने का अधिकार प्राप्त होता है। इस मामले में साधु द्वारा बच्चे को गुड़ न खाने की सलाह देने के पहले पन्द्रह दिन का समय लेने की लोककथा बहुत प्रचलित है जिसमें साधु ने पहले सलाह देने की पात्रता प्राप्त की थी तब बच्चे को सलाह दी थी। उल्लेखनीय है कि उपरोक्त फिल्में बनाकर आमिर खान ने ‘सत्यमेव जयते’ बनाने की पात्रता पायी है और वे सन्देश देने में सफल भी रहे हैं।
      उन की लोकप्रियता आज के दो दूसरे सुपर स्टार अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान से होड़ लेती है। किंतु इन शिखर के कलाकारों ने कुछ बहुत अच्छी और आदर्श फिल्में करने के बाबजूद जिस तरह के व्यावसायिक समझौते किये उससे वे किसी आदर्श को सामने रखने के हक़दार नहीं रह गये। उन्होंने केवल कहानी पर अभिनय किया है किंतु आमिर ने सच्ची घटनाओं से समस्याओं को उठाया है और समाधान के स्तर तक ले जाने की प्रेरणा दे रहे हैं। अमिताभ बच्चन की सफलता में उनके परिवार की श्रीमती इन्दिरा गान्धी के परिवार से मित्रता की भी बड़ी भूमिका रही है और बाद के समय में अमिताभ बच्चन और राजीव गान्धी की मित्रता जग जाहिर रही है। राजीव गान्धी ने जब सोनिया गान्धी से शादी की थी तब सोनिया परिवार का निवास श्री हरिवंश राय बच्चन का बंगला ही बनाया गया था जो उस समय राज्यसभा के मानद सदस्य थे। सोनिया गान्धी के हाथों में मेंहदी रचाने का काम श्रीमती तेज़ी बच्चन ने किया था। राजीव गान्धी को चुनावी सफलता दिलाने के लिए अमिताभ ने इलाहाबाद से लोकसभा का चुनाव लड़ा था और हेमवती नन्दन बहुगुणा जैसे कद्दावर नेता को अपनी फिल्मी लोकप्रियता से हरा कर चुनावों को गैर राजनीतिक और मुद्दाविहीन बनाने की शुरुआत की थी। बाद में बोफोर्स तोप सौदों की खरीद पर लगे आरोपों में उनके और उनके भाई अजिताभ का नाम भी इसलिए उछाला गया था ताकि राजीव को कमजोर किया जा सके। अमिताभ बच्चन एक प्रतिष्ठित साहित्यिक परिवार से आते हैं और फिल्मों से की गयी कमाई को उन्होंने कई तरह के उद्योग धन्धों में लगाया जिनमें उन्हें नुकसान भी हुआ, पर उन्होंने कभी धन का स्तेमाल आमिर की तरह के सामाजिक सोद्देश्यतापूर्ण संस्कृतिकर्म में नहीं किया। व्यवसाय में नुकसान होने पर वे अमर सिंह की सलाह पर चलने लगे और समाज को भटकाने वाली विज्ञापन फिल्में करने लगे। उन्होंने एक ओर समाजवादी पार्टी के लिए उस समय काम किया जब उसकी सरकार अव्यवस्था के कारण बहुत बदनाम हो रही थी जिससे उनकी लोकप्रियता पर फर्क पड़ा। इनकम टैक्स विभाग इलाहाबाद से नोटिस मिलने पर जब समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने विभाग पर हमला कर दिया और कार्यालय में तोड़फोड़ कर दी तो उन्होंने अफसोस जताने की जरूरत नहीं समझी। आज भी वे एक ओर तो अस्पताल में जाकर बीमार अमर सिंह के गले लग कर रोने का अभिनय करते हैं जो सार्वजनिक रूप से मुलायम के मरने की दुआ करते हैं, वहीं दूसरी ओर अपनी पत्नी श्रीमती जया बच्चन को समाजवादी पार्टी की ओर से राज्यसभा में दुबारा भेजते हैं। समाजवादी पार्टी से अपनी पत्नी को सांसद बनवाने के बाबजूद वे उस भाजपा शासित गुजरात के ब्रान्ड एम्बेसडर बनना स्वीकार कर लेते हैं जिसकी करतूतों का विरोध करने के कारण ही समाजवादी पार्टी अपनी जीत सुनिश्चित कर पाती है। लगभग ऐसा ही हाल आईपीएल में अपनी टीम उतारने वाले शाहरुख खान का भी है जो सुर्खियों में बने रहने के लिए तरह तरह के तमाशे करते रहते हैं। यही कारण है कि इस समय फिल्मों के तीन सुपर स्टारों में से आमिर का कद समाज में सबसे ऊंचा बना हुआ है।
      आमिर के काम और उसके कद को उनके विरोधियों के चरित्र से भी नापा जा सकता है। स्मरणीय है कि जिन कार्लमार्क्स के बारे में डा. राधा कृष्णन ने कहा है कि
मार्क्स इस युग के ईसा मसीह हैं उनकी अंतिम यात्रा में कुल 29 लोग थे। दफनाते समय जब उनके घनिष्ठ मित्र और सहयोगी एंजिल ने कहा कि हम इस दौर के सबसे महान व्यक्ति को दफना रहे हैं तो एंजिल के एक मित्र ने बाद में पूछा कि जिस व्यक्ति के अंतिम संस्कार में कुल 29 लोग थे उसे सबसे महान व्यक्ति कैसे कहा जा सकता है। एंजिल ने उत्तर दिया कि यह भी देखो कि उसके विरोध में दुनिया के कितने लोग हैं! बाद में उनकी बात सच साबित हुयी। इसी तरह आमिर खान के इस काम को जहाँ एक ओर आम भारतीय मध्यम वर्ग का व्यापक समर्थन मिल रहा है वहीं एक खास वर्ग उनका विरोध भी कर रहा है। यह वह वर्ग है जिस पर न केवल आपराधिक आरोप हैं अपितु जो कानून के रन्ध्रों में से निकल कर अपने आप को सजाओं से बचाये हुये हैं। आमिर खान का मुखर विरोध करने वालों में बाबा रामदेव प्रमुख रूप से सामने आये हैं और उन्होंने कहा है कि आमिर यह काम केवल पैसे बनाने के लिए कर रहे है। रोचक यह है कि यह बात वह व्यक्ति कह रहा है जिसने कुल पन्द्रह साल में ग्यारह सौ करोड़ से अधिक की सम्पत्ति बनायी है और जिसको हाल ही में करोड़ों रुपये टक्स न चुकाने के लिए नोटिस मिले हैं। दूसरी ओर अपने दुहरे चरित्र के लिए जाने जाने वाले संघ परिवार के वे संगठन हैं जो छद्म रूप से काम करते हैं, उनके छद्म खातों वाले फेसबुकिये आमिर की पूर्व पत्नी से हुए तलाक के मामले को उठाने, और कार्यक्रम में धन का हिसाब किताब लगाने में लग गये हैं। सच तो यह है कि सत्यमेव जयते नाम से ही वे लोग घबराते हैं जिनकी सारी राजनीति ही झूठ और धोखे पर टिकी होती है। वे भयभीत हैं कि कहीं सच को सामने लाने वाला यह कार्यक्रम, बाबरी मस्जिद ध्वंस, गुजरात में मुसलमानों का नरसंहार, नेताओं के चारित्रिक पतन, राज्य सरकारों के भ्रष्टाचार, साधु साध्वियों के भेष में रह कर किये गये आतंकी कारनामों, और उनके आरोप दूसरी जमात के लोगों पर मड़ने के सच को न सामने लाने लगे।
      स्मरणीय है कि समाज में परिवर्तन चाहने वाली यह वही जनता है जो भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने पर अन्ना हजारे और बाबा रामदेव तक के पीछे जाने को उतावली बैठी रही है। अब जब उसे स्वयं कुछ सार्थक करने के अवसर मिल रहे हैं तो वह दूसरों पर निर्भर होने की जगह खुद ही कुछ सार्थक करके देखने के सन्देश से प्रभावित होगी। यदि यह अभियान सफल रहा तो बहुत समय बाद  सांस्कृतिक अभियान से समाज परिवर्तन का बड़ा प्रयोग होगा। समाज के प्रति चिंतित सभी शक्तियों को इस अभियान, कार्यक्रम और उसकी सफलता की कहानियों पर नजर रखनी चाहिए और संतुष्ट होने पर इसे सहयोग देना चाहिए।   
वीरेन्द्र जैन
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