गुरुवार, अक्तूबर 11, 2012

केजरीवाल के लिए चुनव क्षेत्र और उम्मीदवार तैयार करते अन्ना हजारे


केजरीवाल के लिए चुनाव क्षेत्र और उम्मीदवार तय करते अन्ना हजारे
वीरेन्द्र जैन
      अब यह लगभग पुष्ट हो चुका है कि इंडिया अगेंस्ट करप्शन आन्दोलन के पीछे मुख्य सूत्रधार अरविन्द केजरीवाल थे जिन्होंने एक साफ सुथरे चेहरे या कहें कि मुखौटे के रूप में अन्ना हजारे को आगे किया था। परिस्तिथियां ऐसी थीं कि उन्हें पूरे देश में कोई भी चर्चित आदर्श राष्ट्रीय चेहरा नजर नहीं आया इसलिए उन्हें एक क्षेत्रीय चेहरे को राष्ट्रीय चेहरा बनाना पड़ा। इस आन्दोलन का चेहरा बनने से पहले महाराष्ट्र में अपने अनशनों से ध्यान आकर्षित करने के बाद भी अन्ना हजारे की अखिल भरतीय छवि निर्मित नहीं हुयी थी और न ही उनकी सोच इतनी व्यापक थी कि राष्ट्रीय नेतृत्व करने की पात्रता पाने के लिए वे समस्याओं और उनके निराकरण के बारे में समग्रता से सोच कर कोई हल देने का प्रयास करते। उनकी क्षमता केवल इतनी थी कि वे अपनी सीमित मांगों के लिए अपेक्षाकृत लम्बे समय तक अनशन पर बैठ सकते थे, जबकि जनता को अपेक्षा रहती है किसी भी आन्दोलन का राष्ट्रीय नेतृत्व सम्बन्धित समस्या को सभी कोणों से समझ कर आन्दोलन को गति दे। यही कारण रहा कि एक बार भड़कने के बाद इस आन्दोलन का लगातार क्षरण होता रहा। स्वामी अग्निवेष, संतोष हेगेड़े, सन्दीप पाण्डे, कुमार विश्वास,  अरुन्धति राय, मेधा पाटकर, से लेकर किरण बेदी ही नहीं खुद अन्ना हजारे को भी अपना मार्ग अलग घोषित करना पड़ा।
      आन्दोलन की बिडम्बना यह रही कि इसने एक ओर तो इसी संसदीय लोकतंत्र में पूर्ण विश्वास घोषित किया और वहीं दूसरी ओर इसी व्यवस्था से निर्वाचित संसद को चोर उचक्कों और अपराधिओं का अड्डा बताते रहे। यद्यपि कुल संसद सदस्यों का कुछ प्रतिशत इन आरोपों से घिरा हुआ है तो भी उन्हें इसी व्यवस्था के अंतर्गत मतदाताओं ने चुन कर भेजा है और इस संविधान में भरोसा करने वाले लोगों को उन्हें स्वीकारना ही पड़ता है व उसी में से राह खोजना पड़ती है। जब पूरा देश इसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास के कारण गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को लगातार सहन करती आ रहा है, मधु कौड़ा को निर्दलीय विधायक होने के बाद भी झारखण्ड के मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार किया था, और राबड़ी देवी के नेतृत्व में बिहार जैसे महत्वपूर्ण राज्य की सरकार को सहन किया तब एक ओर इसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास घोषित करते हुए व दूसरी ओर  कुल संसद की निन्दा करना परोक्ष में उस जनता को गाली देना है जिसने उनको चुन कर संसद में भेजा है। इस बिडम्बना को सामने आने में बहुत देर नहीं लगी और अन्ना व अरविन्द को अपने अपने रास्ते अलग अलग करने पड़े। अरविन्द केजरीवाल ने राजनीतिक दल के गठन की घोषणा और चुनावों में भागीदारी पर सहमति के साथ लोकतंत्र की इसी प्रणाली को स्वीकार करने की घोषणा कर दी थी वहीं दूसरी ओर अन्ना हजारे ने राजनीतिक दल के गठन से असहमति व्यक्त करते हुए केवल आन्दोलन का सहारा लेने की घोषणा करके अपनी असहमति को सार्वजनिक कर दिया था। इस विभाजन ने मुख और मुखौटे का भेद प्रकट कर दिया था। इससे यह भी साफ हो गया कि अन्ना का मुखौटा लगाते समय या तो केजरीवाल के पास कोई दूरदृष्टि नहीं थी या उन्होंने सच को छुपा, अन्ना को आगे कर अपना लक्ष्य प्राप्त करने का खेल खेला। कहा जा रहा है कि अब अन्ना टीम के आन्दोलन का संचालन किरण बेदी के हाथों में होगा किंतु इसी समय अन्ना ने यह भी घोषित कर दिया है कि वे अब इस आन्दोलन के लिए अनशन का सहारा नहीं लेंगे। सवाल उठता है कि एक तेज तर्रार पुलिस अधिकारी रही देश के पहली महिला आईपीएस के रूप में विख्यात और इसी कारण बहुचर्चित किरण बेदी अनशन की जगह आन्दोलन का क्या तरीका अपनायेंगीं?
      बिडम्बना यह भी है कि अन्ना हजारे उन बाबा रामदेव से गलबहियां कर रहे हैं जो खुद अपने दल को चुनाव में उतारना चाहते रहे हैं और जिनके द्वारा बहुत ही अल्प समय में अकूत धन सम्पत्ति जोड़ी गयी है जिस कारण से विभिन्न तरह के कर वसूलने वाली एजेंसियां उन पर वे ही आरोप लगा रही हैं जिनके खिलाफ अन्ना आन्दोलन चलाने का रास्ता अपनाये हुए हैं। यही बाबा रामदेव पिछले दिनों सार्वजनिक मंच से नरेन्द्र मोदी की भूरि भूरि प्रशंसा कर चुके हैं। ध्यान देने योग्य यह भी है कि अपनी जन्मतिथि के कारण विवादों में रहे पूर्व सेनाध्यक्ष वी के सिंह बाबा रामदेव के साथ अपना भविष्य जोड़ने में लगे हुए हैं।
      अरविन्द केजरीवाल से मतभेद सामने आने के बाद अन्ना ने अपना मार्ग अलग करते हुए कहा था कि वे न तो अपना फोटो ही इस्तेमाल करने देंगे और न ही किसी उम्मीदवार के लिए प्रचार करेंगे, पर अब उन्होंने कह दिया है कि अगर अरविन्द केजरीवाल कपिल सिब्बल के खिलाफ चुनाव लड़ते हैं तो वे उनका प्रचार करेंगे। इसका अर्थ है कि अब अन्ना न केवल उम्मीदवार तय कर रहे हैं अपितु चुनाव क्षेत्र भी निर्धारित कर रहे हैं। यदि ऐसा है तो ये अन्ना को बधाई मिलनी चाहिए कि वे थोड़ी सी न नुकर करने के बाद राजनीति में उतर आये हैं और इसी संसदीय लोकतंत्र में समस्याओं के हल तलाशना चाहते हैं। लगता है कि उनके जो रस्ते केजरीवाल से अलग हो गये थे वे जुड़ने लगे हैं।
वीरेन्द्र जैन
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