शनिवार, जनवरी 05, 2013

उर्मिला शिरीष का नया कथा संग्रह "कुर्की और अन्य कहानियां"


समीक्षा
बहु आयामी सामाजिक कहानियां
[उर्मिला शिरीष की कृति -कुर्की और अन्य कहानियां – सामायिक प्रकाशन नई दिल्ली]  
                गत दो दशकों में सबसे अधिक चर्चित और निरंतर रचना कर्म में रत कथा लेखिकाओं में से एक प्रमुख लेखिका उर्मिला शिरीष की ग्यारह कहानियों का संग्रह कुर्की और अन्य कहानियां नाम से प्रकाशित हुआ है। उनकी सभी कहानियां सामाजिक सरोकारों से जुड़ी हैं और इस तरह प्रेमचन्द की परम्परा से जुड़ती हैं। इन कहानियों में समाज का जो फलक देखने को मिलता है वह उनके व्यापक अनुभव संसार के प्रति चमत्कृत करता है। पिछले दिनों जब नारी विमर्श ज्यादा चर्चा में था तब कहा जाता था कि नारी के अपने जातीय अनुभव और सम्वेदानाएं होती हैं जिसमें पुरुष वर्ग प्रवेश नहीं कर सकता दूसरी ओर यह भी कहा जाता था कि नारी की अपनी सीमाएं भी होती हैं और वे बाहरी दुनिया के उन हिस्सों में प्रवेश नहीं कर सकतीं जहाँ केवल पुरुष ही प्रविष्ट हो सकता है। उर्मिलाजी की कहानियां इस धारणा का प्रतिकार करती प्रतीत होती हैं।
       संग्रह की पहली कहानी एमएलसी [अर्थात मेडिको लीगल केस] में एक ऐसी आदिवासी महिला की कहानी है जिसका परिवार उससे धन्धा करवाता है और जब वह अपनी मर्जी से किसी के साथ दैहिक सम्बन्ध बनाती है तो उसके परिवार के लोग उसके साथ मारपीट करते हैं, उसका पति उस क्षेत्र के अन्य लोगों की तरह नशे की पुड़िया की लत का शिकार है। अपने जेठ की इस मारपीट के खिलाफ प्रतिकार करने के लिए वह जेठ के खिलाफ बलात्कार की झूठी रिपोर्ट कराना चाहती है और डाक्टर को भी बतौर रिश्वत देह की पूंजी ही प्रस्तुत करना चाहती है।
उसका कहना है कि जब वह परिवार के सुख के लिए धन्धा कर सकती है तो अपने सुख के लिए स्वतंत्र क्यों नहीं है!  कानिस्टबिल डाक्टर को असलियत समझाता है- सर, पिछले कई सालों से मैं भी देख सुन रहा हूं यहाँ के आदमियों को जब भी पैसे की जरूरत होती है, वे सौ दो सौ की पुड़िया के लिए अपनी औरतों से धन्धा करवाने से भी बाज नहीं आते हैं, ये लोग भी अच्छे-खासे काश्तकार हुआ करते थे, खेती बाड़ी थी, जानवर थे, आसपास घना जंगल थ, लेकिन देखते देखते जानवर गुम हो गये, जंगल कट गये, सब चौपट हो गया। दुख की बात तो ये है, इस सब की कीमत यहां की औरतों और बच्चों को चुकाना पड़ रही है।
       जब भी कहानी एक ऐसा विजुअल अर्थात दृष्य चित्र प्रस्तुत करने में सफल हो जाती है जो पाठक के भोगे हुए यथार्थ से मेल खाती हो तो कहानी सफल हो जाती है। पुलिस डाक्टर और अपनी समस्याओं के कारण अपने अपने तरीके से संघर्ष कर रहे समाज का इस कहानी में बहुत सटीक चित्रण है। यदि पात्रों की भाषा में स्थानीयता की झलक कुछ अधिक मिलती तो कहानी और भी अधिक प्रभावकारी बन सकती थी।
        सामाजिक समस्याओं से घिरे समाज को जब कोई हल नहीं सूझता तो वह तरह तरह से मूर्ख बनाने वाले बाबाओं के चक्कर में आ जाता है। ‘अभिशाप’ एक ऐसी ही महिला की कहानी है जो सारे तर्क-वितर्कों को परे सरका कर बाबाओं के प्रचार से प्रभावित होकर उसे एक बार सन्देह का लाभ देना चाहती है पर बाबा की पोल खुल जाती है तो वह हतप्रभ है। ‘लूप लाइन’ कहानी में स्वास्थ विभाग में पल रहे भ्रष्टाचार का कच्चा चिट्ठा है, तो ‘चेहरे’ कहानी में आधुनिक शिक्षा के व्यापारिक प्रचार की मरीचिका से ग्रस्त एक विधवा द्वारा अपने प्रति दर्शायी गयी सहानिभूति को भुनाने की कथा है। ‘कुछ इस तरह’ कहानी में जहाँ बड़ी उम्र में अकेले हो गये लोगों के पुनर्विवाह पर लोकलाज और अंतर्द्वन्द की विवेचना है, वहीं नई पीढी की समझदारी के संकेत भी देती है। ‘हरजाना’ कहानी स्टेज आदि पर तमाशा दिखाने वाले किशोरों के शोषण की कथा है। ‘निगाहें’ कहानी में ठेकेदारों द्वारा निर्माण  मजदूरों के शोषण की कथा है तो ‘सरगम’ में निम्न वर्ग के एक परिवार द्वारा टीवी शो के पुरस्कार के लालच में अपनी मासूम बच्ची से उसकी क्षमताओं से अधिक परफोर्मेंस का दबाव बनाने की करुण सच्चाई है।
       संग्रह की एक और महत्वपूर्ण कहानी ‘असमाप्त’ है। यह कहानी मानवीय रिश्तों, व्यावसायिक रिश्तों के साथ धार्मिक रिश्तों की बिडम्बनाओं का गुम्फन है। कहानी बताती है कि कैसे एक धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति सामाजिक विद्रूपताओं में घिर कर कट्टर साम्प्रदायिकता के पक्ष में खिसकने लगता है।           
       कहानी संग्रह के नाम वाली कहानी ‘कुर्की’  मौसम और कर्ज़ की मार से किसानों के मजदूरों में बदलने व अभावों में आपसी रिश्तों में खटास आने की कथा है जिसके प्रभाव में देश के लाखों किसान आत्महत्या कर चुके हैं। इस कहानी की विषय वस्तु महत्वपूर्ण है और ट्रीटमेंट में दृष्यात्मकता बढने पर यह रिपोर्ट जैसी लगने से बच सकती थी। संग्रह की कहानियाँ पाठक को बाँधे रखने की क्षमता में समर्थ हैं और समाज की नब्ज पर सही जगह उंगली रखती नज़र आती हैं।
वीरेन्द्र जैन
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