सोमवार, जून 10, 2013

मोदी कोचर्चा में बनाये रखने की तरकीब

मोदी को चर्चा में बनाये रखने की तरकीब

वीरेन्द्र जैन
       बदनाम भी होंगे तो क्या नाम न होगा?
                लोकप्रियतावाद के शिकार लोकतंत्र में भाजपा इसी सिद्धांत से काम करती है इसलिए हर तरह की लोकप्रियता को भुनाने के लिए विख्यात और कुख्यात दोनों तरह के चर्चित लोगों के सहारे वोटों के फल झड़ाने का जतन करती है। शत्रुघ्न सिन्हा, विनोद खन्ना, दीपिका चिखलिया, दारा सिंह, हेमा मालिनी, धर्मेन्द्र, ही नहीं अपितु अरविन्द त्रिवेदी, और नवज्योत सिंह सिद्धु, आदि से लेकर साधु-साध्वियों के भेष में रहने वाले बहुरूपिये, क्रिकेट खिलाड़ी, मंच के कवि, पूर्व राजे-महाराजे, आदि सैकडों विख्यात और कुख्यात लोगों की पूंछ पकड़ कर चुनाव की बैतरणी पार करती रही है। नरेन्द्र मोदी उनके नये संसाधन बनते जा रहे हैं। प्रचार कुशल भाजपा किसी भी असत्य या अर्धसत्य को गोयेबल्स की नीति के अनुसार इतनी बार दुहराती है कि सामान्य जन को वह सत्य सा महसूस होने लगता है। झूठ का यह महायज्ञ वे चुनावों के आसपास ही प्रारम्भ करते हैं और इसी बीच सम्पन्न चुनावों में वे अपनी नैया पार लगा लेते रहे हैं।
       पिछले दिनों कर्नाटक में भाजपा ने येदुरप्पा को भरपूर बदनाम होने का अवसर देकर भी पद पर बनाये रखा था और फिर जब उनके सारे पाप अकेले येदुरप्पा में केन्द्रित होकर रह गये थे तब उन्हें इतनी सावधानी से पार्टी से निकाल दिया तकि राज्य सरकार बनी रहे और लगे कि भाजपा तो शुद्धतम है जिसमें से मवाद  को बाहर निकाल दिया गया है। उल्लेखनीय है कि येदुरप्पा उन लोगों में से एक थे जिन्होंने अपना पूरा बचपन ही नहीं अपितु यौवन भी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्वयं सेवक की तरह से निकाला था व जेल यात्राएं की थी।  वे 1970 में ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शिकारीपुर इकाई के सचिव नियुक्त हुये। 1972 में वे जनसंघ [भाजपा] की तालुक इकाई के अध्यक्ष चुन लिये गये। 1975 में  वे शिकारीपुर की नगरपालिका के पार्षद और  1977 में चेयरमेन चुने गये थे। एक बार निरीक्षण के दौरान उन पर घातक हमला किया गया था। 1975 से 1977 के दौरान लगी इमरजैंसी  में वे  45 दिन तक बेल्लारी और शिमोगा की जेलों में रहे। 1980 में शिकारीपुर तालुका के भाजपा अध्यक्ष के रूप में चुने जाने की बाद 1985 में वे शिमोगा के जिला अध्यक्ष बना दिये गये। अगले तीन साल के अन्दर ही वे भाजपा की कर्नाटक राज्य भाजपा के अध्यक्ष चुन लिये गये। 1983 में पहली बार शिकारीपुर से विधायक चुने जाने के बाद वे छह बार इसी क्षेत्र से चुने गये। वे तब भी जीते जब 1985 में उनकी पार्टी के कुल दो सदस्य विजयी हो सके थे। बीच में कुल एक बार चुनाव हार जाने के कारण उन्हें विधान परिषद में जाना पड़ा। 1999 में वे विपक्ष के नेता रहे। स्मरणीय है कि इस पूरे दौर में उन पर भ्रष्टाचार का कोई दाग नहीं लग सका था। 
        जब रेड्डी बन्धु संघ की समर्पित कार्यकर्ता शोभा कलिंजिद्रे को हटाने या सरकार गिराने की धमकी दे रहे थे तब सरकार बचाने के लिए शोभा को मंत्रिमण्डल से हटाने के निर्देश किसने दिये थे? स्मरणीय है कि तब येदुरप्पा इस सैद्धांतिक मामले पर सरकार को कुर्बान करने के लिए तैयार थे। दूसरी बार जब विधायकों के एक गुट ने विद्रोह कर दिया था और कुछ विधायकों ने त्यागपत्र दे दिया था तब उसका प्रबन्धन किसने किया था। केन्द्रीय नेताओं ने किसके बूते यह कहा था कि येदि को कोई ताकत हटा नहीं सकती और वे पूरे कार्यकाल तक मुख्यमंत्री बने रहेंगे। उस समय तक जब पूरा देश जान चुका था कि यह कहानी उस समय से शुरू होती है जब श्रीमती  गान्धी ने बेल्लारी से चुनाव लड़ा था और उनके विरोध के लिए सुषमा स्वराज को उतारा गया था तब रेड्डी बन्धुओं से भाजपा का समझौता हुआ था तथा भाजपा की जड़ें इसी खनन माफिया से ही पल्लवित पुष्पित हुयी हैं व उनके द्वारा ही जुटाये गये समर्थन से ही दक्षिण में भाजपा को अपने डैने फैलाने का मौका मिला था। क्या यह अनायास था कि रेड्डी बन्धुओं द्वारा बेल्लारी में आयोजित होने वाली वरलक्ष्मी पूजा में 1999 के बाद सुषमा स्वराज तब तक लगातार आती रही हैं जब तक कि रेड्डी बन्धुओं पर उठने वाले छींटे उन तक पहुँचने लगे थे। जब भाजपा के वरिष्ठतम नेताओं में से एक शांता कुमार ने जो कर्नाटक के प्रभारी थे येदुरप्पा के कारनामों से पार्टी को सवधान किया था तब भी किसी के कान पर जूं भी नहीं रेंगी थी और नुकसान शांता कुमार का ही हुआ था।
       भाजपा इतने चतुर सुजानों की पार्टी है कि वह मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने की मूर्खता कभी नहीं करेगी, क्योंकि वह जानती है कि पिछली एनडीए की सरकार मोदी के कारनामों के कारण ही टूटी थी। आज जो मोदी के लाउडस्पीकर बन रहे हैं उनमें कोई भी ऐसा नया व्यक्ति नहीं है जो पूर्व से ही भाजपा के साम्प्रदायिक स्वरूप का अन्ध समर्थक न रहा हो। एक साथ एक सी पुकार लगाने पर स्वर में ध्वनि विस्तारक का प्रभाव पैदा होता है, मोदी को प्रतीत होता समर्थन भी लगभग ऐसा ही है। अनुभवी अडवाणी समेत भाजपा के वरिष्ठ नेता पहले ही घोषित कर चुके थे कि यूपीए सरकार पर लगे आरोपों से पैदा की गयी अलोकप्रियता के बाद भी जनता भाजपा को विकल्प के रूप में नही देख रही है। उसके तिकड़मबाजी के इतिहास को देखते हुए ऐसा लगता है कि उन्होंने गुजरात और शेष भारत के कट्टरतावादियों को एकजुट करने के लिए मोदी का नाम उछाल दिया है त्तकि छीझते समर्थन से निराश अडवाणी जैसे नेताओं को प्रोत्साहित किया जा सके। इसी कारण से मोदी के विरोध और समर्थन की नौटंकियां खेली जा रही हैं और मोदी को लगातार सुर्खियों में रखा जा रहा है। आखिर क्या कारण रहा कि मोदी को प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी घोषित करने की जगह प्रचार अभियान समिति का चेयेरमैन भर बना कर छोड़ दिया गया। आखिर वो कौन सा मंत्र फूंका गया कि मोदी का लगातार विरोध करने वाले नेताओं ने रातों रात अपना विरोध वापिस ले लिया? आखिर अमित शाह जैसे गम्भीर आरोपों से घिरे व्यक्ति को उत्तरप्रदेश का प्रभारी बनाने के सवाल पर भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह मिमयाने क्यों लगते हैं?
       उल्लेखनीय है कि हाल ही के उप चुनावों में मुज़फ्फरपुर में जेडी[यू] द्वारा राजद की सीट न हथिया पाने को मोदी की जीत के रूप में प्रचारित किया गया और बिके हुए अखबारों ने अपने प्रथम पृष्ठ पर यह झूठ लिख कि मोदी समर्थकों द्वारा जेडी[यू] को समर्थन न देने से यह हार हुयी है, जबकि सच्चाई यह है कि जेडी[यू] को पहले भी भाजपा के साथ और पूरे समर्थन से चुनाव लड़ने के बाद भी पराजय मिली थी तथा गत चुनव में मिले 208813 मतों के विरुद्ध इस बार दो लाख चवालीस हजार मत मिले हैं। स्मरणीय है कि इस बार जेडी[यू] का पिछला उम्मीदवार ही दल बदल कर आरजेडी का उम्मीदवार था जो अपने साथ अपने व्यक्तिगत वोट भी लेता गया था। जब मैंने कुछ परिचित रिपोर्टरों से उनके निष्कर्ष का आधार पूछा तो वे हँस कर टाल गये। इसमें कोई सन्देह नहीं कि यह पेड न्यूज का ही हिस्सा था। संयोग से जब काँग्रेस के एक वरिष्ठ महासचिव ने उसी दिन सवाल पूछा कि मोदी बताएं कि गुजरात सबसे अधिक कर्ज़ वाला राज्य क्यों है और गर्वीले गुजरात का प्रत्येक नागरिक सबसे अधिक कर्ज़ में क्यों है तो किसी ने इसे प्रथम पृष्ठ पर जगह देने की ज़रूरत नहीं समझी।
       भाजपा नेताओं की बीमारियों के तो इतने रोचक और मनोरंजक किस्से हैं कि उन पर भाजपा नेतृत्व समेत शायद ही कोई विश्वास करता होगा। उल्लेखनीय है कि बात बात में बीमारी का बहाना बनाने वाली उमाभारती ने खजुराहो चुनाव क्षेत्र छोड़ कर भोपाल को चुनाव क्षेत्र बनाने के पीछे जो तर्क दिया था वह यह था कि वहाँ उस क्षेत्र में उनका स्वास्थ ठीक नहीं रहता, पर जब भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष वैकैय्या नायडू ने अपनी पत्नी की बीमारी के नाम पर अध्यक्ष पद से स्तीफा दिया तो उमाजी ने ही भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को पत्र लिख कर कहा था कि वैंकय्याजी ने अपनी पत्नी की रजोनिवृत्ति को राष्ट्रीय बीमारी बना दिया। उम्मीद है कि आदरणीय अडवाणीजी अपनी बीमीरी से, वह चाहे जो भी हो, शीघ्र मुक्त होकर स्वास्थ लाभ करेंगे। स्वस्थ लोकतंत्र में भरोसा रखने वाले सभी लोगों की शुभकामनाएं उनके साथ हैं। जहाँ तक आरोपों का सवाल है तो न तो मोदी उससे मुक्त हैं और न ही अडवाणीजी, शायद बहुत खोजने पर कोई मिल जाये!   
वीरेन्द्र जैन
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