शुक्रवार, अगस्त 09, 2013

छद्म की राजनीति करने वाले संघ परिवारी ही क्यों होते हैं

छद्म की राजनीति करने वाले संघ परिवारी ही क्यों होते हैं
वीरेन्द्र जैन

       जब से नरेन्द्र मोदी को भाजपा चुनाव प्रचार का चेयरमैन बनाया गया है और भाजपा की ओर से उन्हें प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी बनाये जाने की अफवाहों से पक्ष विपक्ष में तीखी प्रतिक्रियाएं हुयी हैं, तब से सोशल मीडिया पर नरेन्द्र मोदी समर्थक पोस्टों की बाढ ला दी गयी है, जिनके द्वारा नरेन्द्र मोदी को शक्तिमान की तरह चित्रित किया जा रहा है, व उनके विरोधियों के लिए निम्नतम स्तर पर गालियां दी जा रही हैं। अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर झूठ बोलने और अफवाहें फैलाने की स्वच्छन्दता चाहने वाले इन इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के सभी एकाउंट असली नहीं हैं, क्योंकि सोशल मीडिया पर कई छद्म नामों से एक से अधिक एकाउंट खोलने पर कोई पाबन्दी नहीं है। उल्लेखनीय है कि गुजरात के गत विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने ट्विटर पर नकली फालोअर बनवा कर भ्रम का वातावरण बनाया था पर लन्दन की एक कम्पनी ने ट्विटर के आंकड़ों का पर्दाफाश करते हुए यह गड़बड़ी पकड़ी थी और बताया था कि दस लाख फालोअर्स का दावा करने वाली उक्त साइट के आधे से अधिक फालोअर्स नकली हैं। यही हाल टाइम पत्रिका के मुखपृष्ठ पर मोदी के आने और कवर स्टोरी छपने का था।
       यह इस बात का संकेत है कि किसी माल को विक्रय योग्य बनाने में उपयोग लायी जाने वाली विधि की तरह मोदी की लोकप्रियता की छवि गढी जा रही है। अमिताभ बच्चन कभी नेहरू परिवार के निकटतम लोगों में हुआ करते थे जिन्होंने कांग्रेस की ओर से हेमवती नन्दन बहुगुणा जैसे बड़े नेता के खिलाफ चुनाव लड़ अपनी फिल्मी लोकप्रियता की दम पर उन्हें हराया था वे ही बाद में मुलायम सिंह के कार्यकाल में उत्तर प्रदेश के ब्रांड एम्बेसडर बने थे तथा जिनकी अभिनेत्री पत्नी अभी भी समाजवादी पार्टी की सांसद हैं, को गुजरात सरकार के पर्यटन विभाग ने अपना ब्रांड एम्बेसडर नियुक्त किया हुआ है जो परोक्ष में गुजरात के अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बदनाम मुख्यमंत्री की छवि को अमिताभ की लोकप्रियता के साथ मिला कर बदलने का ही खेल है, जिसमें अमिताभ की पिछली रजनीतिक सम्बद्धताओं को भी भुला दिया गया है। जिनका चरित्र जितना गँदला रहता है उन्हें छवि सुधारने की उतनी ही कोशिश करनी पड़ती है। जिसका कद जितना छोटा होता है उसे उतनी ही ऊंची ऎड़ी के जूते पहिनने पड़ते हैं। मोदी का यही प्रयोग चल रहा है।
       अतीत में रूस से मँगायी जादुई स्याही से लेकर एवीएम मशीन की गड़बड़ियों के आरोपों तक अपनी चुनावी हार के भाजपा सैकड़ों कपोल कल्पित कारण गिनाती रही है जबकि उसी चुनाव प्रक्रिया के अंतर्गत समय समय पर वे विधान सभा और लोक सभा में विजयी भी होते रहे हैं। जीत जाने पर उन्हें चुनाव प्रक्रिया में कोई दोष नज़र नहीं आता और वे उसे लोकतंत्र की जीत बतलाते हैं। जब उनके लोग सीबीआई और आयकर की जाँचों में फँसते हैं तब उन्हें ये संस्थाएं दोषपूर्ण व पक्षपाती नज़र आने लगती हैं। सीएजी की सम्भवनाओं को दर्शाने वाली अतिरंजित रिपोर्ट भी विपक्षियों के खिलाफ होने पर उन्हें विश्वसनीय लगती है किंतु उनकी अपनी सरकारों के खिलाफ होने पर गलत लगती है। यथार्थ से दूर सारे उजाले और अँधेरे उनकी सुविधानुसार किसी रंगमंचीय नाटक के प्रकाश व्यवस्था की तरह होते हैं।
       ये निर्मतियां भाजपा के हित में संघ परिवार के सारे संगठन करते हैं। कमंडल की राजनीति को कमजोर करने के लिए जब वी पी सिंह मंडल कमीशन की सिफारिशों को कार्यांवित किये जाने की योजना लेकर आये थे तब आत्मदाह की देशव्यापी खबरें फैलायी गयी थीं जिनमें से अधिकांश झूठी और अतिरंजित थीं जिन्हें प्रायोजित समाचार माध्यमों से फैलाया गया था। बाद में जब एक पत्रकार मणिमाला ने टाइम्स आफ इंडिया के लिए उन घटनाओं की फालोअप स्टोरी की थी तब सामने आया था कि उस दौरान देश में हुयी किसी भी युवा की आत्महत्या या अस्वाभाविक मृत्यु को आरक्षण के खिलाफ किये जाने वाले बलिदान में बदलवा दिया गया था। एक लड़की ने अपने प्रेमी की किसी दूसरी जगह सगाई होने पर जहर खा लिया था, तो एक लड़की के साथ चार लड़कों ने बलात्कार करके उसकी हत्या कर दी थी जिसे मंडल कमीशन के खिलाफ युवा आक्रोश बता दिया गया था। दिल्ली में तो एक दसवीं कक्षा के लड़के पर जबरदस्ती मिट्टी का तेल छिड़क कर जलाने की कोशिश हुयी थी, जो संयोग से बच गया था, और सच्चाई बयान कर गया था। दीपा मेहता जब हिन्दू विधवाओं की दारुण दशा को लेकर बनारस में ‘वाटर’ नामक फिल्म बना रही थीं तब विहिप के लोगों ने निर्माण के दौरान ही तीव्र विरोध किया था। इसी दौरान खबर आयी थी कि इस फिल्म के विरोध में एक व्यक्ति ने गंगा में कूद कर जान दे दी। इसका परिणाम यह हुआ था कि दीपा मेहता ने शूटिंग रद्द कर दी थी और फिल्म समेट ली थी। बाद में मृत बताया गया वही व्यक्ति अन्य शहर में देखा गया व उसने बताया कि इस तरह के स्टंट करना उसका पेशा है। बाद में दीपा मेहता ने उक्त फिल्म की शूटिंग श्रीलंका में करके फिल्म बनायी थी भले ही शबाना आज़मी उसके लिए समय नहीं दे सकी थीं। अंतर्राष्ट्रीय चित्रकार एमएफ हुसैन के चित्रों से देश में कुछ खास स्थानों के हिन्दुओं की भावनाएं आहत हुयी थीं और वहाँ वहाँ उन्होंने बजरंगदली व्याख्या करके इतने मुकदमे लदवा दिये थे कि दुनिया के श्रेष्ठ चित्रकारों में गिने जाने वाले इस कलाकार को देश छोड़कर जाना पड़ा और वहीं अपने प्राण त्यागे। हिन्दुस्तान के अंतिम बादशाह बहादुर शाह ज़फर की तरह उन्हें दो गज ज़मीन भी नसीब नहीं हुयी।
       हिंसक घटनाएं करने व अपना आतंक कायम करने का काम नक्सलवादी भी करते हैं किंतु वे इसे अपनी राजनीति बतलाते हैं और अपने द्वारा किये गये कामों की जिम्मेवारी लेते हुए खतरा उठाने को तैयार रहते हैं, किंतु दूसरे सम्प्रदाय के लोगों के नाम से बम विस्फोट करके साम्प्रदायिक दंगों का माहौल बनाने का काम करने के आरोप में ये कथित हिन्दुत्ववादी राजनीति के लोग ही पकड़े गये हैं, जो साधु साध्वियों के नकली भेष में रहते रहे हैं और अपने ही संगठन के लोगों की हत्या के लिए भी जिम्मेवार माने गये हैं। भाजपा के विभिन्न नेताओं के साथ इनकी निरंतर मुलाकातों के सचित्र प्रमाण भी उपलब्ध हैं।
       क्या कारण है कि सोशल मीडिया पर सबसे गन्दी भाषा में अपने विरोधियों पर टिप्पणी करने वाले मोदी समर्थक ही हैं। दिन भर में एक ही विषय पर ज्यादा से ज्यादा गाली गलौज़ भरी टिप्पणियां करके भी नेट पर अपना कम से कम परिचय देने और अपनी पहचान छुपाने वाले संघ समर्थक ही हैं, जो अपने को हिन्दुत्व समर्थक और राष्ट्रवादी बतलाते हैं पर यह छुपाते हैं कि वे राष्ट्र में कहाँ रहते हैं, या क्या काम करते हैं। नेट पर अगर छद्म एकाउंट्स की पहचान की जायेगी तो सबसे ज्यादा एकाउंट्स इन्हीं लोगों के निकलेंगे जो स्वयं को मोदी समर्थक बतला रहे हैं। इनका नकलीपन बतलाता है कि इन्हें भी अपने असली स्वरूप की सामाजिक स्वीकरोक्ति पर सन्देह है।          
 वीरेन्द्र जैन
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