शुक्रवार, जुलाई 25, 2014

अपराध के आँकड़े, राजनीति का हिसाब और अनियंत्रित वाणी



अपराध के आँकड़े, राजनीति का हिसाब  और अनियंत्रित वाणी  
वीरेन्द्र जैन

       सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या किसी भी तरह की दूसरी घटनाओं में मरने वालों से अधिक है और इसके लिए केवल ट्रैफिक विभाग में चल रही अवैध वसूली ही नहीं अपितु राज्यों में सत्तारूढ दल भी बराबर से ज़िम्मेवार होते हैं क्योंकि व्यावसायिक वाहनों की नियमित वसूली का तय हिस्सा अधिकांश सत्तारूढ दलों के पदेश कार्यालय तक पहुँचता है जिससे कार्यालय संचालित होता है। यह वसूली सुचारु ट्रैफिक के लिए बनाये गये नियमों और करों के भुगतान में उल्लंघन के प्रति आँखें मूँद लेने से ही सम्भव होती है। गम्भीर दुर्घटनाओं के दृश्य बहुत ही दिल दहलाने वाले होते हैं, पर आज तक उसके लिए किसी भी राजनेता या ट्रैफिक अधिकारी को सजा नहीं मिली है। सभी जानते हैं कि ट्रैफिक अधिकारी की नियुक्ति और पदस्थापना में कितना जबरदस्त लेन देन चलता है जिसकी पूर्ति, नियमों के उल्लंघन द्वारा वाहनों के अवैध संचालन की अनदेखी करने पर ही सम्भव हो पाती है। अधिकतर दुर्घटनाएं ऐसे ही वाहनों से होती हैं जो ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन कर चल रहे होते हैं। जिन हत्याओं को अखबार वालों ने आनर किलिंग का नाम दे दिया है उससे जुड़ी हत्याएं या आत्महत्याएं भी निरंतर बढ रही हैं पर उस सामाजिक अपराध को व्यक्तिगत अपराध मान कर कुछ भी नहीं किया जा रहा। दण्ड के भय में कमी अनेक अपराधों को प्रोत्साहित करती है। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश काटजू साहब ने अपने एक फैसले में उत्तर प्रदेश में न्यायिक स्थिति पर बहुत कटु टिप्पणी की थी। खाप पंचायतों और प्रेमी प्रेमिका के परिवार के लोगों ने अपने ही आत्मीयों की जिस निर्ममता से हत्याएं की गयी हैं उनके खिलाफ कई सारे दल बोलने से बचते रहे हैं।   
       समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश राज्य की वर्तमान सरकार के सुप्रीमो पिता मुलायम सिंह यादव का यह बयान कि आबादी के अनुपात में उत्तरप्रदेश में बलात्कार बहुत कम हैं एक गलत समय पर फूहड़ तरीके से व्यक्त की गयी आंकड़ागत सच्चाई है। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो एक पूर्व अध्यापक राजनेता के साथ यह विवाद भाषा और गणित का सवाल जैसा है जिसमें एक ओर आबादी और यौन अपराध के आंकड़ों का अनुपात निकाला जा रहा है तो दूसरी ओर बयान में उस भाषा की कमी प्रकट होती है जो किसी संवेदनशील स्थिति की मांग होती है। बुन्देली भाषा में एक लोकोक्ति है कि - सच्चाई होते हुए भी माँ को अपने बाप की औरत नहीं कहा जाता। असल में उत्तरप्रदेश का पिछड़ापन, महानगरीय और औद्योगिक संस्कृति विकसित न होने के कारण सामंती सोच का बना रहना, वोटों की राजनीति के कारण जातिवाद और साम्प्रदायिकता का लगातार पल्लवित पुष्पित होते रहना, अपराध और राजनीति का एकाकार हो जाना ही समस्या की मुख्य जड़ में है। पश्चिमी उत्तरप्रदेश में प्रचलित एक कथन के अनुसार किसी के खेत से ईख उखाड़ लेना और एक जाति विशेष की दलित लड़की को यौन शोषण के लिए पकड़ लेना कोई उल्लेखनीय अपराध नहीं होता। हमने यौन शोषण के खिलाफ भले ही कागजी कानून बना कर अपने कर्तव्य की इतिश्री मान ली हो पर मानसिकता बदलने के लिए कोई सामाजिक आन्दोलन खड़ा नहीं किया। कभी बहुजन समाज पार्टी के जनक काँशीराम से एक सामाजिक आन्दोलन की उम्मीद की गयी थी पर उनकी राजनीति जल्दी ही फुस्स हो कर दलित वोटों के व्यापार में बदल कर रह गयी। रोचक यह है कि मुलायम सिंह की मुख्य प्रतिद्वन्दी सुश्री मायावती भी कभी बेलाग बोलती थीं पर बाद में वे केवल लिखवा कर लायी गयी परचियों से ही पड़ने लगी थीं। मुलायम सिंह के लिए भी ऐसा ही भाषण लेखक ही नहीं अपितु उनका तो प्रवक्ता भी होना चाहिए।   
       जिन घृणित और निन्दनीय अपराधों का उत्तरप्रदेश में सभी ओर से विरोध हो रहा है वह विरोध सर्वथा उचित होते हुए भी याद रखना होगा कि वे अपराध न तो नये हैं और न ही उनमें एकदम से बाढ आ आ गयी है। इस सदी के पहले दशक मे देश में औसतन 21024 बलात्कारों की शिकायत दर्ज़ हुयी है जबकि सब जानते हैं कि सामंती समाजों में ऐसे अपराधों की शिकायत बहुत ही कम दर्ज़ होती हैं । आनुपातिक रूप से ऐसे ही भयानक अपराध मध्यप्रदेश, राजस्थान, बिहार, छत्तीसगढ, झारखण्ड, उड़ीसा व आन्ध्र प्रदेश में भी वर्षॉं से घटित होते रहे हैं और अभी भी हो रहे हैं, किंतु इनके तीखे विरोध के कुछ कारण हैं जिनमें पहला है कि पुलिस में एक जाति विशेष के लोगों को प्रमुख स्थानों पर तैनात किया जाना और उन लोगों द्वारा अपनी जाति के अपराधियों के खिलाफ कार्यवाही में लापरवाही बरतना। दूसरा सबसे बड़ा कारण वहाँ के सत्तारूढ दल समाजवादी पार्टी का गत लोकसभा चुनाव में पिछड़ना है जिस कारण वहाँ सफल हुयी भाजपा अपनी अभूतपूर्व लोकप्रियता घटने से पहले ही वहाँ चुनाव करा कर अपनी सरकार बना लेना चाहती है। कुछ आंकड़ों का अध्ययन ध्यान देने योग्य है।
दल/वर्ष
2007 विधानसभा
मत प्रतिशत
2009 लोकसभा
मत प्रतिशत
2012 विधानसभा
मत प्रतिशत
2014 लोकसभा
मत प्रतिशत
समाजवादी पार्टी
13267000
25
12885000
23
22090000
29
17989000
22
बीएसपी
15872000
30
15191000
27
19647000
26
15914000
19
भाजपा
08851000
17
09696000
17
11371000
15
34318000
42
कांग्रेस
04489000
09
10113000
18
08832000
12
06061000
08
आरएलडी
01929000
04
01811000
03
01763000
02
00689000
01
     
ये आंकड़े बताते हैं कि भाजपा के पक्ष में लोकसभा चुनाव 2014 के दौरान 2009 की तुलना में ढाई करोड़ वोटों का बढना उसे इस बात के लिए प्रेरित कर रहा है कि वो किसी भी तरह प्रदेश की वर्तमान सरकार को गिराकर अपनी सरकार बना ले क्योंकि विधानसभावार आंकड़े भी उसके पक्ष में हैं।
       इसमें कोई सन्देह नहीं कि यौन शोषण, बलात्कार और नृशंस हत्याओं की घटनाएं निन्दनीय हैं और उस पर भी सरकार की छवि की चिंता में पुलिस द्वारा उन घटनाओं पर लीपापोती की कोशिश, सत्तारूढ दल के नेताओं के असम्वेदनशील बयान जले पर नमक के समान हैं। उनकी जितनी भी भर्त्सना की जाये वह कम है। पर इसके साथ साथ यह भी ध्यान रखने की बात है कि इसके बहाने साम्प्रदायिक नफरत फैला कर वैसे ही अपराध करने वाले राज्य की सत्ता न हथिया लें। अमरनाथ यात्रा के दौरान घोड़ेवालों और लंगरवालों के झगड़े के बाद देश भर के मुसलमानों को तोगड़िया की वह धमकी भी ध्यान देने योग्य है जिसमें वे कहते हैं कि अगर गुजरात भूल गये हो तो मुज़फ्फरनगर तो याद होगा। दुर्भाग्य यह है कि लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ का बड़ा हिस्सा अपनी सामाजिक जिम्मेवारियों को भूल कर लालचवश साम्प्रदायिक प्रचार का शिकार बन रहा है। कहीं ऐसा न हो कि गड़रिये से नाराज भेड़ें कसाई की शरण में पहुँच जायें।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा सिनेमा के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मोबाइल 9425674629
   

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