गुरुवार, नवंबर 27, 2014

किसके अच्छे दिन आये



किसके अच्छे दिन आये
वीरेन्द्र जैन

      ऐसा नहीं कहा जा सकता कि देश में सरकार बदलने के बाद अच्छे दिन नहीं आये। बस फर्क इतना है कि सबके नहीं आये और जिनसे वादा किया गया था उनके नहीं आये। आइए देखें कि अच्छे दिन किन किन के आये।
      मोदीजी के बाद सबसे अच्छे दिन तो अमित शाह के आये। अब किसी के लिए इससे अच्छे दिन क्या हो सकते हैं कि उन्हें जेल की कोठरी से देश की पूर्ण बहुमत और बहुमत के पूर्ण समर्पण वाली पार्टी, जिसमें संगठन को सर्वोच्च बताया जाता है, का अध्यक्ष मनोनीत किया गया है। इस मनोनयन में मोदी ने अपने उस कथन से ही पल्ला झाड़ लिया जिसमें उन्होंने कहा था कि दागी नेता पहले खुद को दोषमुक्त करें, बाद में पद की उम्मीद करें। उल्लेखनीय है कि अच्छे दिनों के पहले नितिन गडकरी को इन्हीं कारणों से अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ा था। उल्लेखनीय यह भी है कि श्री अमित शाह किसी वित्तीय अनियमितता के दोषी नहीं थे अपितु उनको तुलसीराम प्रजापति, और शोहराबुद्दीन शेख के फर्ज़ी मुठभेड़ में मारे जाने के मामले में नामजद किया गया था और गिरफ्तार किया गया था। कोर्ट ने उन्हें प्रदेश बदर किया था। उनके खिलाफ चलने वाले मुकदमों का फैसला अभी नहीं हुआ है। इस बीच इन मामलों की सुनवाई कर रहे सीबीआई के विशेष न्यायाधीश जेटी उत्पत का तबादला कर दिया गया। इसी मामले में न्यायमित्र की भूमिका निभाने वाले गोपाल सुब्रम्यम को सर्वोच्च न्यायालय का न्यायधीश नियुक्त करने सम्बन्धी सिफारिश को बिना कारण बताये रद्द कर दिया गया। अमित शाह खुद को दोषमुक्त करने की अर्जी लगा चुके हैं। मोदी मंत्रिमण्डल में मंत्री रहे अमितशाह आज तरह तरह की शुचिता की बात करने वाले वरिष्ठ नेताओं के ऊपर अध्यक्ष के रूप में सुशोभित हैं।  
      भ्रष्ट और चापलूस नौकरशाही संकेतों की भाषा खूब समझती है। जब 2002 में मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे तब उनके प्रिय उद्योगपति अडाणी का टर्नओवर 76 करोड़ डालर का था जो अब दस अरब डालर को पार कर गया है। उल्लेखनीय है मोदीजी ने चुनाव प्रचार में अडाणी की सेवाओं का भरपूर उपयोग किया और उन्हीं के हवाईजहाज में ही बैठ कर दिल्ली में प्रधानमंत्री की शपथ लेने आये थे। कार्पोरेट जगत वैसे तो सभी सरकारों से सुविधाएं पाने के लिए पीछे पीछे फिरता है किंतु जिस आत्मविश्वास से अम्बानी उनकी पीठ पर हाथ रख सकते हैं और गलबहियों के साथ अडाणी प्रधानमंत्री मोदी की विदेश यात्राओं में सहयात्री होकर होटल में उनके साथ ही ठहर सकते है वह इस गठजोड़ का बहुत भोंड़ा प्रदर्शन है, जिसे क्रोनी कैपिटलिज़्म कहा गया है। हाल ही में अडाणी ग्रुप को स्टेट बैंक आफ इंडिया से उस प्रपोजल पर छह हजार करोड़ का लोन स्वीकृत होने जा रहा है जिसे चार बैंक पहले ही निरस्त कर चुके हैं। बताया गया है कि आस्ट्रेलिया में माइनिंग का यह प्रोजेक्ट पर्यावरण सम्बन्धी कारणों से कभी भी असफल हो सकता है। उल्लेखनीय है कि सरकारी क्षेत्र के बैंक इस समय एनपीए अर्थात न वसूल हो पाने वाले ऋणों से सर्वाधिक चिंतित हैं, और ऐसे समय में दूसरे प्राईवेट बैंकों द्वारा अस्वीकृत प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री के मित्र को ऋण स्वीकृत करना प्रश्न चिन्ह खड़े करता है।  फरवरी, 2010 में अडानी ग्रुप के प्रंबंध निदेशक और गौतम अडानी के भाई राजेश अडानी को कथित तौर पर कस्टम ड्यूटी चोरी के मामले में गिरफ़्तार भी किया गया था। उन्हें विश्वास होगा कि उनके और अच्छे दिन आ सकते हैं और वे उद्योगपतियों से मित्रता रखने वाली सरकार द्वारा आरोप मुक्त हो जायेंगे।

      जिस दिन दलाईलामा विश्व हिन्दू सम्मेलन के मंच पर दीप प्रज्वलित कर रहे थे उसी दिन प्रवर्तन निदेशालय तिब्बती धार्मिक नेता ओग्एन त्रिन्ले दोरजी के खिलाफ विदेशी विनमय मुद्रा कानून के उल्लंघन के मामले में लगाये गये चार साल पुराने आरोपों को खत्म कर क्लीन चिट दे रहा था। उल्लेखनीय है कि करमापा और उनके सहयोगियों पर गैर कानूनी विदेशी मुद्रा और घरेलू मुद्रा रखने के आरोप लगे थे। हिमाचल प्रदेश पुलिस ने जनवरी 2011 में करमापा के सहयोगियों के पास से 5.97 करोड़ से अधिक की विदेशी मुद्रा पकड़ी थी और बाद में उनके मठ से भी नकदी जब्त की गयी थी। वे सभी सन्दिग्ध हवाला लेनदेन के अंतर्गत जाँच के घेरे में थे। राज्य पुलिस ने 2012 में ही इनके नाम को चार्जशीट से बाहर कर दिया था। अब चार साल बाद उनके अच्छे दिन आ गये।  
    2002 के गुजरात नरसंहार की सजायाफ्ता माया कोडनानी जिन्हें 29 लोगों की हत्याकांड का दोषी पाया गया था, और सब कुछ जानते हुए भी मोदी ने मंत्री बनाये रखा था, उन के प्रधानमंत्री पद की  शपथ ग्रहण के महीने भर के अन्दर हाईकोर्ट से सजा पर रोक का आदेश पा गयीं। उल्लेखनीय है माया कोडनानी एक डाक्टर हैं और उन्हें बहुत दिनों बाद कोर्ट ने स्वास्थ कारणों के आधार पर स्थायी जमानत दे दी है। उल्लेखनीय यह भी है कि उससे पूर्व गुजरात हाईकोर्ट की एकल पीठ ने माया कोडनानी के मामले में बिना कोई कारण बताये सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। न्यायमूर्ति अनंत एस दवे के सामने जब कोडनानी की जमानत याचिका सुनवाई के लिए आयी तो उन्होंने कहा कि ‘मेरे समक्ष नहीं’। स्मरणीय है कि विशेष एसआईटी अदालत ने माया कोडनानी व बजरंग दल के नेता बाबू बजरंगी व 29 अन्य को 97 लोगों के बर्बर हत्या के मामले में दोषी ठहराया था। अच्छे दिन गुजरात के मंत्री बाबूलाल बुखारिया के भी आ गये जिन्हें आरोपों से मुक्ति मिल चुकी है।
      सबसे अच्छे दिन तो दीना नाथ बतरा के भी आ गये जिन्हें भाजपा की नई हरियाना सरकार ने शैक्षिक मार्गदर्शक के रूप में चुना है। उल्लेखनीय है श्री बतरा की पुस्तकों में पौराणिक कथाओं में वर्णित चमत्कारों को ऎतिहासिक मानकर उन्हें उस समय की महान सामाजिक प्रगति का सूचक बताया जाता है।  उनकी किताबें उन कथाओं के आधार पर आज की समाज व्यवस्था संचालित किये जाने की पक्षधरता करती नजर आती हैं जिनसे प्रेरणा लेकर पिछले दिनों श्री नरेन्द्र मोदी अम्बानी के अस्पताल का उद्घाटन करते हुये अपने उद्गार व्यक्त कर चुके हैं। उनकी ऐसी मान्यताओं पर देश और दुनिया का शिक्षित बुद्धिजीवी वर्ग पर्याप्त हँस चुका है और उनकी पुस्तकों को गुजरात के स्कूलों में लगाये जाने पर शर्म और चिंता दोनों ही महसूस कर चुका है। अच्छे दिन ऎतिहासिक घटनाओं को साम्प्रदायिक कथाओं में गढने वाले कथित इतिहासकारों के भी आ चुके हैं।
      भले ही कुछ देर से आये हों पर अच्छे दिन खुद को बाबा बताने वाले रामकिशन यादव अर्थात रामदेव के भी आ गये हैं जिन्होंने योगासन प्रदर्शित करते करते एक दशक में ही अपनी दौलत ग्यारह सौ करोड़ से भी अधिक बना ली थी और आयुर्वेदिक दवा व किराना का बड़ा व्यापार खड़ा कर लिया था। उनके संस्थानों पर कई वाणिज्यिक अनियमितताओं के प्रकरण चल रहे हैं इसलिए उन्होंने अपनी पसन्द की सरकार बनवाने के लिए पहले तो अपनी खुद की पार्टी बनायी पर अति उत्साह में कुछ गलतियां कर देने के बाद छह महीने तक धुँआधार भाजपा का प्रचार किया। उनके अच्छे दिन आने में उनकी उम्मीद से कुछ देर लगी पर पिछले दिनों उन पर अच्छे दिन एकदम से टूट गिरे। छह महीने बाद उन्हें मोदी से मुलाकात का अवसर मिल गया। मोदी सरकार के तीन मंत्री गिरिराज सिंह, श्रीपद नायक और विजय सांपला ने उनके आश्रम में जाकर न केवल मत्था टेका अपितु कहा कि उन्हें मंत्री पद उन्हीं की कृपा से मिला है। श्रीपद नायक ने तो यह भी कह दिया कि उनका आयुष मंत्रालय रामदेव व बालकृष्ण की सलाह से ही चलेगा। संघ की अगली राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक रामदेव के पतंजलि आश्रम में होना है, जिसमें मोहन भागवत भी आयेंगे। बाबुल सुप्रियो और महंत चाँदनाथ आदि तो पहले ही मानते रहे हैं कि उन्हें बाबा के कहने से ही टिकिट मिला है। इनके भी अच्छे दिन आ गये हैं।
      जनता को अच्छे दिनों के लिए शायद बहुत ज्यादा इंतज़ार करना पड़ेगा। बुन्देलखण्ड की एक कहावत के अनुसार- घर घर के जे लो बरात भारी है। अर्थात घराती कह रहे हैं कि बड़ी बरात आने वाली है इसलिए घर के लोग पहले खा लो कहीं खाना खतम नहीं हो जाये।
वीरेन्द्र जैन                                                                           
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