मंगलवार, दिसंबर 02, 2014

रामपाल प्रकरण का दूसरा आयाम



रामपाल प्रकरण का दूसरा आयाम
वीरेन्द्र जैन

       पता नहीं कि इसे सौभाग्य कहा जाये या दुर्भाग्य कि जब देश में मीडिया की संख्या बहुत बढ गयी है तब उसकी गुणवत्ता उतनी ही घटती जा रही है। जिसे जनता की आवाज़ बनना था वह मुख्यधारा का मीडिया सरकारों का भौंपू बन कर रह गया है, जिसमें वही सब कुछ वैसे ही आता है जैसा कि शासन तंत्र प्रकट करना चाहता है।
       पिछले दिनों पूरे देश ने प्रिंट और विजुअल मीडिया पर कथित संत रामपाल की कहानी देखी और यह प्रभाव ग्रहण किया कि नित्यानन्द, आसारामों की तरह ही एक और बाबा की पोल खुल गयी है। लोगों को बताया गया कि जिस आश्रम में घटना घटित हुयी उसके बारह एकड़ क्षेत्रफल को सोलह फीट ऊंची बाउंड्री वाल से घेरा गया था, जिसमें ढेर सारे हथियार, दो तीन ट्राली लाठियां, पैट्रोल बम व प्रशिक्षित कमांडो थे। वहाँ दस से पन्द्रह हजार लोगों को जिनमें औरतें और बच्चे भी शामिल थे, सुरक्षा ढाल बनाने के लिए जबरन रोका गया था। आश्रम में भोजन पानी और ईँधन का समुचित भंडार था, जहाँ सबको निःशुल्क भोजन मिलता था। बाबा का निवास, रहन सहन की सभी तरह के आरामदायक कीमती सामानों और साजसज्जा से युक्त था। इस वातानुकूलित भवन में विशाल स्वीमिंग पूल भी निर्मित है। वहाँ बुलेट प्रूफ कीमती कारें तथा तेल का टैंकर भी था। आश्रम में सभी तरह की जाँच सुविधाओं से युक्त एक चिकित्सालय भी था जहाँ से एक प्रिगनेंसी जाँच किट भी मिली है। मीडिया ने यह भी बताया कि आधुनिकतम कोडों से खुलने वाली कई कीमती तिजोरियां भी मिलीं और एक बंकर या सुरंगनुमा संरचना भी मिली है। यह भी बताया गया कि वहाँ के सैकड़ों ब्लेक कैट कमांडो को नक्सलवादियों ने प्रशिक्षित किया है। आश्रम का संत रामपाल हत्या के एक प्रकरण में लगातार कोर्ट के बुलावे की उपेक्षा कर रहा है और अदालत ने उसे किसी भी हालत में पकड़ लाने के लिए आदेश दिये थे। उसकी गिरफ्तारी अदालत के कठोर आदेश के परिपालन में तीस हजार सुरक्षा बलों को लगाना पड़ा जिसमें 26 करोड़ रुपयों से अधिक खर्च हुये। लगभग एक सप्ताह चली तनातनी के बीच छह लोगों की मृत्यु हो गयी जिनमें पाँच महिलाएं व एक बच्चा शामिल है। इतना सब जान कर कोई भी नफरत और गुस्से से भर उठेगा।  
       इसके समानांतर इस पूरी घटना का एक दूसरा आयाम भी सामने आया है जो भले ही आश्रमों की अकूत आमदनी के श्रोत का जबाब तो नहीं देता पर ऐसा जरूर लगता है कि सच इकतरफा नहीं है अपितु कहीं बीच में है। रामपाल ने हरियाना सरकार में जूनियर इंजीनियर की नौकरी छोड़ कर संत बनना चुना था जिसका मतलब है कि वे संतई का धन्धा करने वाले अन्य कई लोगों की तरह निरक्षर और अपढ नहीं हैं, तथा रोजगार के विकल्प के रूप में संतई को नहीं चुना था। सूत्र बताते हैं कि उनकी नौकरी के रिकार्ड में भी ऐसी कोई खराबी नहीं थी जिससे बचने के लिए उन्होंने यह मार्ग अपनाया हो। आम तौर पर धर्म का धन्धा करने वाले परम्परागत धर्म व देवी-देवताओं की बहती धारा में अपनी नाव डालकर ही अपना स्थान बनाते हैं और नई जमीन तोड़ने का खतरा मोल नहीं लेते पर रामपाल ने कबीर पंथ को अपनाया जिसके मानने वाले लोग न के बराबर हैं और न्यूज चैनलों की बहस से पता चला कि इस पंथ के जो पुराने मठ हैं वे उन्हें मान्यता नहीं देते । आम तौर पर धर्म का धन्धा करने वाले किसी भी धर्म के विचारों के साथ सीधे टकराव से बचते हैं, पर रामपाल ने आर्य समाज और दयानन्द सरस्वती के खिलाफ पुस्तक लिखी जिस कारण आर्यसमाजियों की बड़ी जनसंख्या, और खाप पंचायतों वाले हरियाणा में उनका विरोध हुआ जो बाद में हिंसक भी हो गया। उनके ऐसे ही उदार आचरण ने उनका व्यक्तिगत विरोध आमंत्रित किया और इसी कारण करोन्था आश्रम वाली दान की जमीन पर विवाद हुआ था जिसमें किसी व्यक्ति की मृत्यु हो गयी थी व हत्या के आरोप में रामपाल को अभियुक्त बनाया गया था व गिरफ्तार भी किया गया था।
       घटनाक्रम के अनुसार 2006 में रामपाल को करोंथा आश्रम में हजारों की भीड़ ने घेर लिया था व उनके चार हजार अनुयायी भी घिरे हुये थे। गिरफ्तार करने के लिए विशेष रूप से भेजे गये वरिष्ठ पुलिस अधिकारी विकास नारायण राय उस अवसर की गम्भीरता बताते हुये लिखते हैं कि हिंसक भीड़ ने न केवल पत्थरबाज़ी की थी अपितु वे लोग आश्रम में घुसने की कोशिश भी कर रहे थे। इसी डर में अन्दर से गोली चलायी गयी थी जिसमें एक आदमी की मौत हो गयी थी। इस कारण और ज्याद गुस्साई भीड़ द्वारा डिवीजन के कमिश्नर और पुलिस अधीक्षक भी घेर लिये गये थे। भीड़ की उग्रता देखते हुए पुलिस पार्टियां भेज पाना भी सम्भव नहीं हो पा रहा था। अगर उस दिन रामपाल को नहीं निकाला जाता तो एक बड़े जानलेवा हमले का आह्वान था। श्री राय जो रोहतक में पदस्थ रह चुके थे व वहाँ के प्रमुख लोगों का विश्वास उन्हें प्राप्त था, ने बहुत हिकमत अमली से स्थितियों को सम्हाला और जान पर खेल कर उसे सुरक्षित गिरफ्तार किया। उस दिन रास्ते में शराब से धुत लाठियों और धारदार जैलियों वाले सैकड़ों उग्र लोगों ने सड़क तोड़ कर व रास्ते में रुकावट पैदा करने की कोशिश की थी व पथराव किया था। बरवाला आश्रम के ताजा घटनाक्रम में भी बाहर हिंसक भीड़ फैली हुयी थी और दस हजार भक्तों को देर रात में अगर पुलिस ने सुरक्षित नहीं भिजवाया होता तो व्यापक हिंसा की आशंका थी। रामपाल की गिरफ्तारी के दिन उसके समर्थकों के कई वाहनों में आग लगाये जाने की घटना से इसके संकेत मिलते हैं।
       श्री राय लिखते हैं कि हरियाना में नशे का चलन बहुत अधिक है जिसका दुष्परिणाम स्त्रियों को ही भुगतना पड़ता है और दीक्षा में नशे के विरोध को आवश्यक शर्त होने के कारण महिलाओं का इन आश्रमों के प्रति स्वाभाविक श्रद्धा बढती है। सत्संग में आने के बहाने वे अपने शराबी और सामंती पतियों के जुल्मों से मुक्त रहती हैं, और कुछ दिन सुकून के बिताने का सुख ले पाती हैं। इसी के उलट खाप पंचायतों वाले ऐसे आश्रम को दुश्मन मान कर चलते हैं। उल्लेखनीय है कि खाप पंचायतों ने नशे के खिलाफ कभी वैसा फैसला नहीं सुनाया जैसा कि वे विवाह आदि के मामले में सुनाते रहने के लिए बदनाम हैं।  
       इस पृष्ठभूमि में स्पष्ट है कि रामपाल कितना असुरक्षाबोध से ग्रस्त होगा जो मुफ्त भोजन और धार्मिक कार्य के बहाने लोगों को जोड़ कर वह अपनी सुरक्षा दीवाल बना रहा था। उसके आश्रमों में मिले हथियारों में ज्यादातर एयर गन मिली हैं जो सामने वाले को डराने का काम करके उसे सुरक्षा देती थीं। दूसरी बन्दूकों में ज्यादातर लाइसेंसी बन्दूकें ही पायी गयी हैं। कई हजार लाठियां होना भी सुरक्षा की ओर ज्यादा संकेत करता है। उसके पास भरपूर संख्या में वाहन और डीजल इंजन आदि थे जिस कारण उसने डीजल पैट्रोल का टैंकर भी ले रखा था ताकि इमरजैंसी में उसे परनिर्भरता से नहीं गुजरना पड़े। पन्द्रह हजार लोगों का खाना बनने वाले स्थल पर भरपूर गैस सिलेंडर होना भी स्वाभाविक हैं जिसको दूसरे रूप में कभी भी विस्फोटकों की तरह भी स्तेमाल किया जा सकता है। दो चार बोतलों में डीजल या पैट्रोल के अलावा पैट्रोल बम जैसी कोई चीज नहीं पायी गयी। आश्रम में कई हजार टायलेट और बाथरूम हैं तथा एसिड की बोतलें उनको साफ करने के प्रयोग में लाये जाने का तर्क दिया गया। उल्लेखनीय है कि अपनी सुरक्षा के अलावा रामपाल और उसके भक्तों पर उपरोक्त वस्तुओं के दुरुपयोग का कभी कोई आरोप नहीं लगा।
       सुप्रीम कोर्ट से करोंथा आश्रम का फैसला रामपाल के पक्ष में बहुत पहले आ चुका है पर वह आठ वर्ष पूर्व हिंसक तरीके से छीन लिये गये अपने आश्रम को वापिस नहीं पा सका है। उसके समर्थक पूछते हैं कि क्या यह न्यायपालिका का अपमान नहीं है!  रामपाल खुले में आने से डरता है और इसी कारण वह अदालत में भी उपस्थित नहीं होन चाहता। 2006 में उसके ऊपर लगे हत्या के आरोप की सीबीआई से जाँच कराने की माँग छह वर्षों से हाईकोर्ट के सामने लम्बित है। वे अदालत के आदेश की अवहेलना के पीछे इस भावना की ओर इशारा करते हैं। रामपाल अपने लड़के बेटी और दामाद के साथ वहाँ रहता था। वहाँ हजारों गरीब बेसहारा बीमार लोग आते थे जिनके लिए अस्पताल भी था इसलिए प्रिगनेंसी किट का मिलना दूसरे कई संतों के अनैतिक कामों जैसा प्रमाण नहीं हो सकता।
       आश्रम के पास इतनी अधिक मात्रा में अज्ञात श्रोतों से धन का आना और सम्पत्तियों का निर्माण कई सन्देहों को भी जन्म देता है। कुल मिला कर कहा जा सकता है कि इस प्रकरण में सच्चाई कहीं दृश्य के दो आयामों के बीच लटकी हुयी है और यह हरियाना की दो जीवनशैलियों के द्वन्द का मामला अधिक है। हमें किसी फैसले पर पहुँचने से पहले सच्चाई का पता लगाना होगा और रामपाल जैसे दूसरे प्रकरणों को पहले से रोकना होगा। दुखद यह है कि हमारे राजनेता एक ओर तो किसी पर कालिख पोतते हैं पर दूसरी ओर वैसे ही मामले में निजी लाभ लेने में संकोच नहीं करते। रामपाल जैसे ही बाबा रामरहीम से भाजपा ने खुला समर्थन लिया था और सरकार बनने के बाद विधानसभा अध्यक्ष समेत सैतीस विधायक उसके चरणों में माथा टेकने गये थे। इससे पहले कि कोई नई घटना घटे, इस तरह के सभी मामलों में शीघ्र से शीघ्र एक जैसी कार्यवाही करने की जरूरत है।
वीरेन्द्र जैन                                                                           
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