मंगलवार, मई 09, 2017

राष्ट्रीय राजनीति में वाक्पटुता

राष्ट्रीय राजनीति में वाक्पटुता
वीरेन्द्र जैन

चुनावी राजनीति में जनता से संवाद करना होता है जिसके लिए सार्वजनिक सभायें, टीवी पर बहसों आदि का बड़ा महत्व होता है और इस सब के लिए नेतृत्व में संवाद कुशल व्यक्तियों का होना जरूरी होता है। इस समय नरेन्द्र मोदी भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष हैं। इसके साथ यह भी तय है कि अगर वे अपनी भाषण कला में इतने प्रवीण नहीं होते तो वे लोकप्रियता के इस शिखर को नहीं छू पाते। मंचों पर सफल एक कवि मित्र का कथन था कि मंच पर कथ्य से भी अधिक महत्वपूर्ण होती है उसकी प्रस्तुति, क्योंकि मंच सीधे संवाद का माध्यम है। इसमें देह भाषा, और मंच पर माइक से बोलने वाले वक्ता, कवि  या कलाकार का आत्मविश्वास बहुत काम करता है। उल्लेखनीय है कि 2014 के आम चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी ही भाजपा के प्रमुख प्रचारक थे और उन्होंने नकली लाल किले जैसे मंचों तक से सैकड़ों आमसभाओं को सम्बोधित करते हुए अपने भाषणों में अनेक भौगोलिक और ऎतिहासिक तथ्यात्मक भूलें की थीं, किंतु उनकी ओजपूर्ण धाराप्रवाह भाषण की कला के आगे वे सब भूलें दब कर रह गयी थीं। वे अन्य नेताओं की तुलना में आज भी सर्वाधिक लोकप्रिय नेता हैं, जबकि उनकी चुनावी घोषणाओं में से कोई भी धरातल पर नहीं उतरी।
मोदी सरकार के कार्यकाल में जिसे हम उपलब्धि की तरह देख पाते हैं, वे सारे काम पिछली सरकार के कार्यकाल में प्रारम्भ हुयी योजनाओं के परिणाम थे किंतु उस सरकार के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भाषण कला में प्रवीण नहीं थे, इसलिए न तो उस सरकार की उपलब्धियां ही प्रचारित हो सकीं और न ही वे अपनी सरकार पर लगे आरोपों का ही बचाव कर सके। कहते हैं कि पूजा के साथ साथ शंख झालर की ध्वनि भी जरूरी होती है ताकि लोगों को पूजा होने का पता भी चल सके। अडवाणी जी की तुलना में अटल बिहारी वाजपेयी के लोकप्रिय होने का एक प्रमुख कारण अटलजी की लोकप्रिय मनोरंजक भाषण शैली ही थी जबकि अडवाणी जी उनके ही साथ साथ विकसित हुये थे और अपेक्षाकृत अधिक चतुर और मौलिक थे।
समाजवादी पहलवान मुलायम सिंह अपने क्षेत्र के मान्य नेता थे किंतु वे तब तक बड़े राष्ट्रीय नेता नहीं बन सके जब तक कि उन्हें अमर सिंह का साथ नहीं मिल गया। मुलायम सिंह न तो अच्छा भाषण दे सकते हैं और न ही साक्षात्कार देते समय हाजिर जबाबी में कुशल हैं। अमर सिंह ने उनकी यह कमी पूरी कर दी थी क्योंकि अमर सिंह में यह गुण भरपूर मात्रा में उपलब्ध है। आज भी अमर सिंह के बिना मुलायम खुद को अधूरा सा महसूस करते हैं। लालू प्रसाद का आत्मविश्वास और उन्हें अच्छा बयानवाज नेता बनाये हुये है जो उन्हें चर्चा में बनाये रखता है। अंग्रेजी और अभिजात्य हिन्दी बोल पाने में हिचक होने के कारण अनेक नेता अपनी बात को उचित समय और स्थान पर नहीं रख पाते, जबकि लालू प्रसाद ने कभी भाषा की चिंता नहीं की अपितु कथ्य पर जोर दिया है। उन्होंने जिस देशीपन को गर्व के साथ अपनाया उसी अन्दाज में साहस की कमी के कारण बहुत सारे नेता अपनी बात कहने में संकोच कर जाते हैं, और अनसुने रह जाते हैं। लोहिया जी की हिन्दी का मतलब ही उस भाषा से था जिसमें आप अपनी बात निःसंकोच कह सकते हैं। लालूप्रसाद तो मुहावरा और प्रतीक भी देशी ही प्रयोग करते हैं। इस मामले में राजनारायण को उनका गुरू कहा जा सकता है।
लम्बे समय तक सत्ता में रही काँग्रेस में ऐसा स्वभाव विकसित हुआ कि उनके विपक्ष में आने के बाद  लोकप्रिय भाषण कला, हाजिर जबाबी, और बयानवाजी के लिए वकीलों को जिम्मेवारी सौंपनी पड़ी। बहुत समय बाद रणजीत सिंह सुरजेवाला जैसे प्रवक्ता उन्हें उपलब्ध हुये हैं, क्योंकि दिग्विजय सिंह आदि तो केवल बयान देकर या ट्वीट करके ही प्रकट होते हैं जिसमें यह पता नहीं चलता कि कितना काम उनका अपना है और कितना स्टाफ का है। शशि थरूर आदि तो सेमिनारों में पेपर पढने वाले नेताओं जैसे हैं।
भाजपा ने इलौक्ट्रोनिक माध्यम को सबसे पहले पकड़ा, और अभी भी सबसे आगे है। टीवी बहसों के माध्यम से अपनी बात जनता तक पहुँचाने के भविष्य को देखते हुए प्रवक्ताओं का एक बड़ा समूह तैयार किया है, जो अपने काम में तो कुशल हैं किंतु उनका काम कठिन बहुत है। भाजपा में असत्य, अर्धसत्य, और वकालत की बड़ी भूमिका है क्योंकि उन्हें मिथक, अपने गढे इतिहास, और कूटनीतिक योजनाओं में से सतर्क उत्तर तैयार करने होते हैं, इसलिए उन्हें प्रश्नों को टालने, तुलनात्मक बनाने, उनकी दिशा बदलने आदि में कुशल होना होता है। प्रधानमंत्री के कथन की दिशा को सरसंघ चालक बदल देते हैं, उत्तर भारत के जिन जीवन मूल्यों पर वे राजनीति करते हैं वह दक्षिण और उत्तरपूर्व में बदल जाती है। यही हाल भाषा का भी है। इसके बाद भी सम्बित पात्रा, जैसे वाक्पटु विषय भटकाउ प्रवक्ताओं की मदद के लिए संघ विचारक के नाम पर एक और सहयोगी उपलब्ध रहते हैं।
वामपंथी दलों में भी अब राष्ट्रीय स्तर के अच्छे वक्ताओं की कमी महसूस की जाने लगी है क्योंकि उनके ज्यादातर बड़े नेता गैर हिन्दीभाषी क्षेत्र के हैं और उनके विषय अंतर्राष्ट्रीय जैसे होते हैं, जिनकी हिन्दी शब्दावली भी विदेशी जैसी होती है। बहुत सारी भाषाओं के जानकार एक सीताराम येचुरी को छोड़ कर कोई बड़ा नेता नजर नहीं आता जो राष्ट्रीय स्तर पर सम्बोधन सक्षम हो।
आम आदमी पार्टी सार्वजनिक जीवन में स्वच्छता के सवाल पर मिले जन समर्थन से भ्रमित होकर बड़ा बैर मोल ले बैठी है, बदले में भाजपा ने उन्हें समूल नष्ट करने के लिए सारे मोर्चे खोल दिये हैं, और लगातार हमलावर है। इस पार्टी में भी कुमार विश्वास को छोड़ कर कोई भी धारा प्रवाह वक्ता नहीं है, भले ही आशुतोष व राघव जैसे कुछ प्रवक्ता अपने पक्ष को टीवी बहसों में कुशलतापूर्वक प्रस्तुत करते हैं।
       जैसे जैसे राजनीतिक चेतना सम्पन्न लोगों की संख्या बढेगी वैसे वैसे अधिक सम्वाद कुशल वक्ताओं, प्रवक्ताओं की जरूरत पड़ेगी। यही गुण नेतृत्व के लिए द्वार खोलेगा।  
वीरेन्द्र जैन
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