शनिवार, दिसंबर 28, 2019

प्रेमचन्द से राजेन्द्र यादव तक के देखे सपनों का पूरा होना


प्रेमचन्द से राजेन्द्र यादव तक के देखे सपनों का पूरा होना
वीरेन्द्र जैन


आज अगर राजेन्द्र यादव होते तो बहुत खुश होते।
जनवरी 1993 में हंस के सम्पादकीय में उन्होंने एक अलग रुख लिया था। 6 दिसम्बर 1992 को बाबरी मस्जिद तोड़ने पर, जब सभी बुद्धिजीवी , पत्रकार , सम्पादक राजनेता, सामाजिक कार्यकर्ता एक स्वर से कट्टर हिन्दुत्व की निन्दा कर रहे थे तब उन्होंने उस मुस्लिम नेतृत्व की आलोचना की थी  जिसने कुछ वर्ष पहले ही शाहबानो मामले पर दिल्ली के बोट क्लब पर पाँच लाख की रैली निकाल कर एक स्पष्ट विभाजन रेखा खींच दी थी।
उन्होंने लिखा था कि तुम लोगों ने बाबरी मस्ज़िद तुड़वा ली। बहुत दावे कर रहे थे कि ईंट से ईंट बजा देंगे, पर यह भूल गये थे कि तुम अल्पसंख्यक हो और जब संख्या बल के आधार पर टकराने की कोशिश करोगे तो बहुसंख्यक ही जीतेंगे। ऐसा करके तुम बहुसंख्यकों को एकजुट होने व हमलावर होने को उकसाने का काम करोगे। किसी भी देश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की गारंटी उनकी अलग से एकता नहीं अपितु एक धर्म निरपेक्ष व्यवस्था ही देती है।
पिछले दिनों सिटीजनशिप अमेन्डमेंट बिल और फिर एक्ट में धार्मिक आधार पर जानबूझ कर भेदभाव किया गया था ताकि मुसलमानों का विरोध धार्मिक विभाजन पैदा करे और कम पढे लिखे या अन्धभक्तों हिन्दुओं को लगे कि यह विरोध अनावश्यक व बेमानी है। खुद को चाणक्य समझने वाले लोगों ने पिछले अनुभवों के आलोक में, अपनी समझ से बहुत चतुराई भरी चाल चली थी, ताकि बेरोजगारी, मन्दी आदि से प्रताड़ित जनता साम्प्रदायिकता के तनाव में इन्हें भूल जाये व विधानसभा चुनावों में उन्हें फिर जिता दे। बहुत हद तक वे सफल भी हुये किंतु हमारी चुनाव प्रणाली, जो कभी एक दल को लाभ दे जाती है, वही कभी नुकसान भी कर जाती है।
बिल के षड़यंत्र को समझ कर न केवल मुस्लिमों ने अपितु देश भर के धर्मनिरपेक्ष लोगों ने एकजुट होकर षड़यंत्र को उजागर किया व आन्दोलन में एकजुटता दिखायी। महाराष्ट्र राज्य की पराजय के बाद झारखण्ड में हुयी पराजय के साथ बिल के सामूहिक विरोध ने इसे साम्प्रदायिक बनने से रोका और धर्मनिरपेक्ष आधार पर दलों में एकजुटता स्थापित हुयी। यह पराजय न केवल आरएसएस के इशारों पर नाचने वाली भाजपा की पराजय थी अपितु यह ओवैसी के फैलते प्रभाव की पराजय भी थी। उल्लेखनीय यह है कि यह एकता बिना किसी परम्परागत नेतृत्व के बनी है और जनता की समझ की एकता है। इसमें लिंग भेद के बिना जो शिक्षित युवा एकत्रित हुये उन्होंने सारे बहकावों और दुष्प्रचार के साथ साथ सारे लालचों को भी ठुकरा दिया। कुछ गैरसरकारी संगठन और वामपंथी कला समूह तो इस दिशा में लगातार सामर्थ्यभर प्रयास करते रहे हैं जिसने बीज का काम किया। यह सब उन्होंने अपना कर्तव्य मान कर किया।
राजेन्द्र यादव का भी यही सपना था। उन्होंने हंस के माध्यम से लगभग तीन दशक तक इस मशाल को जलाये रखा और बेहद सुलझे तरीके से परिस्तिथियों का विश्लेषण सामने लाते रहे। सम्पादकीय आलेखों के माध्यम से यह काम पहले प्रेमचन्द, कमलेश्वर, और उत्तरार्ध में प्रभाष जोशी ने भी किया। आज उन सब के सपने सफलता की ओर बढ रहे हैं।  
फैज़ के शब्दों में कहें तो –
जो दरिया झूम के उट्ठे हैं, तिनकों से न टाले जायेंगे
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [.प्र.] 462023
मो. 9425674629
 
  

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