रविवार, मार्च 01, 2020

दिल्ली दंगॉ की पड़ताल और ताहिर हुसैन


दिल्ली दंगॉ की पड़ताल और ताहिर हुसैन
वीरेन्द्र जैन
दिल्ली में हाल ही में हुये दंगों से पहले मैंने ताहिर हुसैन का नाम नहीं सुना था। पूरे देश ने भी दिल्ली के इस पार्षद का नाम दंगों की खबरों के बाद ही जाना। मुझे दिल्ली की उस बस्ती के भूगोल की कल्पना भी नहीं है, जहाँ करावल नगर विधान सभा और उसका नेहरू विहार स्थित है, इसलिए मुझे गोदी मीडिय़ा के अखबारों और टीवी के समाचारों में अचानक उसे इकलौता खलनायक और हत्यारा बना देने की सूचनाओं से उसके बारे में जानने की जिज्ञासा पैदा हुयी। दुखद है कि पिछले दिनों से मीडिया का एक वर्ग खबरें व सूचना देने की जगह सन्देह पैदा करने का काम कर रहा है।
सूचनाओं में बताया गया कि बीस साल पहले ताहिर हुसैन अमरोहा के एक गाँव से मजदूरी की तलाश में अकेला दिल्ली आया था और इस दौरान उसने न केवल अपने माँ बाप को दिल्ली बुलवा लिया अपितु उसके अनेक शुभचिंतक रिश्तेदार भी आसपास रहने लगे। वह इन लोगों का सहयोग करता था और शायद इन्हीं के दम पर वह उस क्षेत्र से पार्षद चुना गया होगा।
पार्षद अपने वार्ड का नेता होता है और इस समय तो ताहिर हुसैन उस आम आदमी का सदस्य था जिसकी पिछले छह साल सरकार रही थी और जो अब फिर से भारी बहुमत से चुन कर आ गयी है। तय है कि उसका कद बड़ा था। उसके सद्भावी होने का प्रमाण यह है कि पिछली बार कपिल मिश्रा ने इसी क्षेत्र से आम आदमी पार्टी के टिकिट पर चुनाव लड़ा था और उसके घर को उनका चुनाव कार्यालय बनाया गया था। वे जीत गये थे किंतु बीच में अति महात्वाकांक्षी मिश्रा ने आम आदमी पार्टी छोड़ दी और भाजपा की कठपुतली के रूप में अरविन्द केजरीवाल और उनके मंत्रिमण्डल पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने लगे जबकि ईमानदारी ही केजरीवाल की इकलौती पूंजी थी। ताजा विधानसभा चुनावों में कपिल मिश्रा भाजपा के टिकिट पर लड़े थे और हार गये थे। विधानसभा में भले ही आम आदमी पार्टी की सरकार बन गयी हो किंतु उत्तरपूर्वी दिल्ली के जिन इलाकों में दंगे फैले वहाँ से ही भाजपा के आठ में से छह विधायक भाजपा के जीते हैं। ये क्षेत्र हैं, जाफराबाद, करावल नगर, मौजपुर बाबरपुर, करदमपुरी, भागीरथ विहार, शिवपुरी, और भजनपुर। तय है कि ताहिर हुसैन उनके आँख की किरकिरी होगा।
केन्द्र की मोदीशाह सरकार ने दिल्ली को जीतने के लिए जिस कठोर भाषा और प्रतीकों का स्तेमाल किया वह लोकतांत्रिक चुनावों की भाषा से बहुत गिरी हुयी भाषा थी, जिसमें भाजपा को वोट न देने वालों को गद्दार, पाकिस्तानी, और न जाने क्या क्या कहा गया था व ईवीएम मशीन का बटन इस तल्खी के साथ दबाने का आवाहन किया गया था कि करंट शाहीन बाग में अनशन करती हुयी महिलाओं तक पहुंचे। ज़ामिया यूनीवर्सिटी में घुस कर छात्रों के साथ जो दमन किया गया था उसी के प्रतिरोध में अहिंसक और शांतिपूर्ण आन्दोलन शाहीन बाग में चल रहा था व दमन का मौका न देने के लिए आन्दोलन में महिलाओं को उतारा गया था। हाड़ कंपा देने वाली सर्दी में हर उम्र की महिलाएं दो महीने से रात दिन धरना दे रही थीं। इसका प्रभाव पूरे देश में पड़ रहा था जिससे लगभग तीन सौ ऐसे धरने चल रहे थे जिनमें से कुछ में तो दो दो लाख की संख्या में लोगों ने भागीदारी की थी।
जाफराबाद के रास्ते में दिये जाने वाले ऐसे ही एक धरने को दमन से उखाड़ने के लिए पहुंचे कपिल मिश्रा और भाजपा के दूसरे बाहुबलियों की धमकियों से टकराव का प्रारम्भ होना बताते हैं। दंगों में दोनों ही ओर के लोगों की जानें गयी हैं, घर व दुकानें जली हैं तथा रास्तों पर खड़ी गाड़ियों में आग लगायी गयी है। मृतकों और घायलों में 85 से अधिक लोग बन्दूक पिस्तौल की गोली से घायल हुये हैं। केवल ताहिर हुसैन के घर की छत पर पैट्रोल बम, उसे फेंकने की गुलेल और एसिड की बोतलें, मिर्ची पाउडर आदि मिली बतायी जाती हैं। अन्य मामलों में गाड़ियां जलाना, गोली चलाना या लाठी और तलवार चाकू से किये गये हमले शामिल हैं। पैट्रोल तो हर गाड़ी में होता है।
जिस आईबी के सुदर्शन युवा कर्मचारी अंकित शर्मा की मृत्यु हुयी उसके शरीर पर चाकुओं के दर्जनों वार पाये गये हैं जो निजी दुश्मनी के संकेत देते हैं। उसके भाई के दो बयानों में अलग अलग वर्ग पर आरोप लगाये गये हैं। किंतु ताहिर हुसैन को घेरने के लिए उस पर सीधे सीधे इस हत्या का आरोप मढ दिया गया है। ऐसे आरोप साम्प्रदायिक अवधारणा बनाने में मदद करते हैं।
भले ही दोनों पक्षों की भागीदारी के प्रमाण मिल रहे हों किंतु परिस्तिथियां बताती हैं कि एक पक्ष तो रास्ता घेर कर धरने का प्रयास कर रहा था इसलिए हमले की शुरुआत दूसरे पक्ष की ओर से ही की गयी होगी। कपिल मिश्रा की सीधी धमकी और कुछ वीडियो फुटेज इस बात का प्रमाण भी दे रहे हैं। जब साम्प्रदायिक हमलों की आशंका हो जाती है तो हर आशंकित अपने घर में सुरक्षा के लिए कुछ हमलावर सामग्री रखने को विवश हो जाता है। ताहिर हुसैन की छत पर ऐसी सामग्री मिली है, भले ही वे कह रहे हों कि यह सुरक्षा की सामग्री उन के घर में घुस आये लोग लेकर आये थे। उनके घर में जो गुलेल मिली है वह भी जुगाड़ से बनायी गयी थी। यह आपद सोच में ही सम्भव है। उसकी छत पर मिली सामग्री रक्षात्मक ही कही जा सकती है क्योंकि दूसरे के घर में जाकर हमला करने वाली कोई वस्तु नहीं बतायी गयी है।
पार्षद होने के कारण ताहिर हुसैन अपने समुदाय के लोगों में लोकप्रिय होगा और वे लोग उसके घर में शरण लेने आये हुए हो सकते हैं। हमलावरों ने तो बाहर निकल कर घर और दुकानों को पहचान कर हमला किया होगा। उसके पास पुलिस को फोन करने और वीडियो काल करने का रिकार्ड भी है। तय है कि जिसके पास आपत्तिजनक सामग्री हो वह पुलिस को बुलाने का खतरा मोल नहीं लेता।
 हाईकोर्ट द्वारा कुछ भाजपा के नेताओं की हेट स्पीच पर कार्यवाही का जो फैसला हुआ था, जिसके बाद रातों रात उन न्यायमूर्ति का स्थानांतरण कर दिया गया,  उसका मुकाबला करने के लिए बाद में भाजपा ने सोनिया गाँधी से लेकर केजरीवाल तक के भाषणों में हेट स्पीच के अंश खोज निकाले, लगता है उसी तरह कपिल मिश्रा का वीडियो आने के बाद उन्होंने आम आदमी पार्टी के ताहिर हुसैन को खोज निकाला है। बीस साल पहले मजदूरी के लिए आया एक व्यक्ति गाँव का घर बेच कर दिल्ली में बसता है और अपनी समाज सेवा से पार्षद बन जाता है। वह राजनीति के लिए भी आम आदमी पार्टी का चुनाव करता है जो अपेक्षाकृत रूप से ईमानदार व धर्मनिरपेक्ष मानी जाती है तो उसका मूल्यांकन करते समय इसे ध्यान में रखा जाना चाहिए।
दिल्ली पुलिस की भूमिका के बारे में तो बहुत कुछ कहा जा चुका है और कुछ ऐसे वीडियो भी वायरल हो रहे हैं जिनमें पुलिस उपद्रवियों को संरक्षण दे रही है, उल्लेखनीय है कि गुजरात में भी ऐसा ही हुआ था जब दो दिन तक नेतृत्व ने मौन होकर दमन होने दिया था।
वीरेन्द्र जैन
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