स्विस बैंकों में जमा ब्लैकमनी पर चुनावी उथलपुथल
वीरेन्द्र जैन
गत दिनों जब देशा के सारे अखबार चुनावों को मुद्दाविहीन घोषित कर रहे थे तब अचानक ही भाजपा के प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी लालकृष्ण आडवाणी स्विस बैंकों में जमा भारतीयों की ब्लैकमनी के सवाल पर ऐसे उछल पड़े जैसे कभी सापेक्षिकता का सिद्धांत हाथ लग जाने पर आर्कमिडीज 'यूरेका यूरेका' चिल्लाता हुआ दौड़ पड़ा होगा।
1991 में जब तत्कालीन वित्तमंत्री मनमोहनसिंह ने नई आर्थिकनीति घोषित की थी तब सदन में भाजपा का कहना था कि इन्होंने हमारी आर्थिक नीति को 'हाईजैक' कर लिया है किंतु इन चुनावों के दौरान स्विस बैंकों में जमा धन के खिलाफ चुनावी मुहिम छेड़ने और संसाधनों की विपुलता की दम पर उसे अपना मुद्दा बनाते समय उन्हें यह ध्यान में नहीं आया कि उनसे पहले मार्क्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी और उनके गठबंधन सहयोगी जेडी (यू) ने पहले ही अपने घोषणा पत्रों में इसके खिलाफ कार्यवाही का कार्यक्रम घोषित किया हुआ है। फिर भी देर आयद दुरूस्त आयद की तरह कोई भी पार्टी यह नहीं कह सकती कि यह धन वापिस देशा में नहीं लाया जाना चाहिये। इसमें बाधा केवल वे नेता ही बनना चाहेंगे जिनका स्वयं का और उनको पोषित करने वाले समर्थकों का धन स्विस बैंकों में जमा है।
हाल ही में जारी अर्जुनसेन गुप्ता की रिपोर्ट के अनुसार देश में लगभग सत्तर करोड़ लोग ऐसे हैें जो बीस रूपये रोज पर गुजर करने को मजबूर हैं। तय है कि इनमें से कोई या ऐसे लोगों के हितो की सच्ची पक्षधर पार्टी के किसी नेता या समर्थक का स्विस बैंकों में कोई खाता नहीं हो सकता। ऐसा खाता उन्हीं लोगों का होगा जिनके पास या तो बेईमानी कमीशनखोरी रिशवतखोरी से प्राप्त धन है जिसे वे अपनी आय में नहीं दिखा सकते या जिनके पास इतनी अधिक आय है कि उस पर टैक्स देना उन्हें कठिन लगता है। ऐसे लोगों की संख्या इस देश में इतनी अधिक नहीं हो सकती कि उनकी पहचान न की जा सके। जिन लोगों को यह पता है कि स्विस बैंकों में कितनी राशि जमा है उन्हें यह भी अन्दाज होगा कि ऐसे कौन कौन से संभावित लोग हैं जिनकी राशि स्विस बैंकों में हो सकती है।
जो पार्टियां चुनाव के इस दौर में स्विस बैंकों में जमा धन को वापिस लाने की मुहिम छेड़ रही हैं उनके द्वारा उम्मीदवारों के चयन व उन उम्मीदवारों द्वारा घोषित सम्पत्ति के ब्योरे देखना रोचक हो सकता है। इन पार्टियों द्वारा घोषित उम्मीदवारों में से अनेक उम्मीदवारों का सक्रिय राजनीति में भागीदारी व जनसेवा का कोई इतिहास नहीं मिलता पर फिर भी उन्हें पुराने कार्यकर्ताओं की तुलना में वरीयता देकर पार्टी के टिकिट दिये गये हैं। भाजपा का कार्यकर्ता आमतौर पर ऐसे बाहरी लोगों को पुराने कार्यकर्ता पर वरीयता देने के खिलाफ आक्रोश में है जिसका प्रमाण गत दिनों श्री आडवाणी जी पर चप्पल फेंक कर एक कार्यकर्ता दे भी चुका है। पूर्व में सदन तक पहुँचे ऐसे चुने गये लोगों की सदन में उपस्थिति बहुत कम पायी गयी है और जब कभी उपस्थित भी होते हैं तो सदन की कार्यवाही में सक्रिय भागीदारी नहीं करते।
सवाल उठता है कि जब ना तो उन्हें सदन में जाने में और ना ही उसकी कार्यवाही सहित अन्य राजनीतिक कामों में कोई रूचि है तो फिर ऐसे लोग क्यों संसद में जाना चाहते हैं? इसका उत्तर भी साफ है कि ये लोग सांसदों को मिले विशेष अधिकारों को, अपने काले कारनामों के खिलाफ हो सकने वाली संभावित कानूनी कार्यवाही से बचत के लिये पाना चाहते हैं। इसलिए आवशयक यह हो गया है कि चुने हुये प्रत्येक उम्मीदवार के बारे में शपथ ग्रहण से पूर्व आर्थिक अपराध अनुसंधान विभाग से रिपोर्ट मंगायी जाये व किसी फास्ट ट्रैक कोर्ट से जाँच के बाद ही उसे शपथ ग्रहण का अवसर दिया जाये। जो व्यक्ति कानून बनाने के लिए जिम्मेवार है उसे कानून भंजक नहीं होना चाहिये।
स्विस बैंको में जमाराशि को वापिस लाने के लिए भाजपा सबसे तेज प्रचार अभियान चला रही है और आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे देश में परेशाान नागरिकों का ध्यान भी आकर्षित कर रही है। पर यह अभियान चलाने से पहले भाजपा को यह बताना होगा कि ऐसा विचार उसे केवल 2009 के चुनावों के दौरान ही क्यों कौंधा जबकि स्विस बैंकों में जमा काले धन का मामला नया नहीं है। भाजपा एक बार नहीं अपितु तीन बार केन्द्र की सरकार में हिस्सेदार बन चुकी है तथा गत लोकसभा के कार्यकाल में तो पूरे समय उन्हीं के नेतृत्व में सरकार चल चुकी है जिसे वे शाइनिंग इन्डिया की तरह विज्ञापित कर चुके हेैं। तब इन्हें स्विस बैंकों में जमा राशि को वापिस लाने का ध्यान क्यों नहीं आया। चुनाव के दौरान इस अभियान को संचालित करते समय क्या उन्होंने सुनिशचित कर लिया है कि
• उनके प्रत्याशियों और समर्थकों में कोई ऐसा नहीं है जिसका पैसा स्विस बैंकों में जमा हो।
• क्या भाजपा जिसने सबसे अधिक फिल्म स्टार बटोरे हैं टीवी स्टार जुटाये हेैं तथा क्रिकेट खिलाड़ियों, को टिकिट दिये हेैं उनकी छानबीन कर ली है?
• भाजपा के ही सबसे अधिक लोग सांसद निधि बेचने के मामले में पकड़े गये हेैं तथा ऐसा ही धन स्विस बैंक में जाने लायक होता है। सवाल पूछने के मामले में भी सबसे अधिक सांसद रिशवत लेते हुये कैमरे में कैद किये गये थे क्या राम मंदिर बनाने का दावा करने वाली इस पार्टी ने ऐसे सांसदों की धनसम्पत्ति की जाँच करा ली है।
• कबूतरबाजी के आरोप में जिन सांसदों का शुभनाम आया है क्या उनकी जाँच हो चुकी है?
• परमाणु करार के समय धन का लेनदेन करने में सफल और असफल रहने वाले दोनों ही तरह के सांसद भाजपा से ही सर्वाधिक थे।
• भाजपा के जिन राष्ट्रीय अध्यक्ष को नोटों की गिड्डियाँ दराज में डालते और डालरों में मांगते कैद किया गया था तथा बाद में उनका टिकिट काट कर उनकी पत्नी को टिकिट दिया गया था, उनके बारे में तथा अन्य चंदा खोरों के बारे में पता चला लिया गया है?
• क्या सैन्टूर होटल डील, वाल्को आदि के साथ जिन सरकारी कम्पनियों को विनिवेशीीकरण के नाम पर औने पौने बेच दिया गया था उसके सौदों की जाँच पूरी हो चुकी है।
• क्या इस सवाल पर पूरी भाजपा एकमत है!
माननीय आडवाणीजी को चुनाव क्षेत्रों से आ रही खराब खबरों से घबराकर बदहवासी में बयान नहीं देना चाहिये क्योंकि कई बार अपने ही पैर अपने ही गले में फॅंस जाते हैं। कहीं ऐसा न हो कि भोपाल अधिवेशन की तरह कहीं से अटलबिहारी वाजपेयी का कोई पत्र फिर से सामने आ जाये जिसमें लिखा हो कि मैं शीघ्र स्वास्थ लाभ करके नेतृत्व के लिए आ रहा हूँ। पर यदि आप सचमुच गंभीर हैं तो क्या देश को इस बात के लिये आशवस्त कर सकते हैं कि सरकार न बनने की दशा में भी स्विस बैंक में जमा धन की वापिसी के लिए वैसा ही आंदोलन छेड़ेंगे जैसा कि कभी राम मंदिर, रामसेतु आदि के लिए छेड़ चुके हैं!
वीरेन्द्र जैन
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आपने ठीक लिखा .भाजपा ने भी मुद्दा आधे मन से उठाया . कांग्रस तो इस काले धन की संरक्चक और भागीदार तो है ही ..
जवाब देंहटाएंदरअसल तो जन रथ यात्रा यही बताने के लिए हो .लेकिन कौन करेगा . सभी जन प्रतिनिधि इसके दुश्मन ही बन जायेंगे .
भ्रष्टाचार संस्थागत हो गया है .सब छिनालों की तरह दूसरे का ही कुकर्म बता रहे हैं , अपना नहीं .सब भारतमाता को लूट रहे हैं . बस सांपनाथ और नागनाथ का फर्क है..