विजय मिली विश्राम न समझो
वीरेन्द्र जैन
लोकसभा के इन चुनाव परिणामों को राजनीतिक दलों और सत्ता के निहित स्वार्थों से जुड़े लोग भले ही किसी तरह देखें, पत्रकार और बुद्धिज़ीवी अपनी छवि की दृष्टि से कालिदास काल के पंडितों की तरह कुछ का कुछ भी अर्थ निकालते रहें पर सच तो यह है कि इन्हेें गहराई और सही परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है। स्मरणीय है कि बड़े से बड़े चुनावी विशलेषक भी चुनाव परिणामों के आने से पूर्व कोई अनुमान नहीं लगा सके थे व जनता का मूड नहीं भांप सके थे। इस बिडम्बना का मुख्य कारण यह है कि समाज की लोकतांत्रिक राजनीतिक चेतना इतनी वैविध्यपूर्ण बनी हुयी है कि उसे किसी एक फैक्टर से नापा नहीं जा सकता।
कभी कभी अनायास घटी घटनाएं भी सुखद परिणाम दे जाती हैं। हाल में हुये लोकसभा चुनावों के जो परिणाम आये हैं वे राजनीतिक स्थिरता की दृष्टि से भले ही संतोषप्रद हों पर उनके बारे में यह निष्कर्ष निकालना कि जनता ने सोच समझ कर फैसला लिया है, विचारणीय है। वोट गुप्त होता है तथा वोटर के पास किसी व्यक्ति या दल को वोट देने के अपने अपने कारण होते हैं इसलिए सभी तरह के वोटरों के बारे में यह दावा नहीं किया जा सकता कि देश भर में बहुमत लोगों ने एक सोची समझी विचार प्रक्रिया की तरह वोट दिया है। आइये चुनाव परिणामों पर निगाह डाल परख कर देखें।
इन चुनावों में श्रीमती इंदिरागांधी परिवार के चार सदस्य संसद में पहुँचे हैं वे श्रीमती सोनिया गांधी, श्रीमती मनेका गांधी, राहुल गांधी और वरूण गांधी हैं। जो लोग वंश परंपरा को दोष देते हुये विरोध करते हैं वे क्या इन विपरीत दिशाओं में जाने वाले लोगों के बीच कोई सामंजस्य तलाश सकते हैं
इन चुनावों में सिंधियावंश के तीन सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया, यशोधरा राजे सिंधिया, वसुंधराराजे सिंधिया के पुत्र दुष्यंत संसद में पहुँचे हैं। इनमें से एक काँग्रेस में हैं और दो भाजपा में पर तीनों की ही विजय का कारण उनका वंश है। श्री ज्योतिरादित्य तो उस क्षेत्र से जीते हें जिस क्षेत्र में आठ में से सात विघायक भाजपा के थे।
समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता को माथे पर चंदन की तरह पोतने वाले मुलायमसिंह यादव की पार्टी के उम्मीदवारों में से उनके ही परिवार से चार सीटें जीती गयी हैं,ं जिनमेेंं मुलायमसिंह यादव, उनके पुत्र अखिलेश यादव, और भतीजे धर्मेंन्द्र एक साथ संसद में पहुँचे हें जबकि अखिलेश दो जगह से चुने गये हैं। उनके भाई पहले ही राज्यसभा में हैं।
इन चुनावों में चौधरी चरण सिंह के पुत्र अजीतसिंह और उनके पुत्र जयंत चौधरी अपनी वंश परंपरा की विरोधी पार्टी भाजपा के साथ्र समझौता करके संसद में पहुँचे हैं।
इन चुनावों में पचास से अधिक सदस्य किसी राजनीतिक खानदान से आये हुये लोग हैं।
इन चुनावों में रेल का अभूतपूर्व आर्थिक उत्थान करने वाले व नई नई सुविधाएं देकर भी किराया न बढाने वाले लालू प्रसाद को दो चुनाव क्षेत्रों से चुनाव लड़ना पड़ा था जिसमें से एक में वे बमुशकिल जीत सके हैं।
जिन शरद पवार के मंत्रालय ने किसानों के लिए सबसे बड़ी ऋण माफी योजना की घोषणा की थी उन शरद पवार की पार्टी की सीटें घट गयी हैं और जिन वित्तमंत्री चिदंबरम ने इसके लिए इतनी बड़ी राशि की अनुमति दी थी वे हारते हारते रह गये तथा पुर्नमतगणना से जीत सके हैं।
जिस ग्रामीण रोजगार योजना को काँग्रेस और यूपीए अपनी सबसे प्रमुख उपलब्धि की तरह बखान करती रही थी उसके मुख्य सूत्रधार वामपंथी आम चुनाव में बुरी तरह पराजित हो गये हैं। सम्बंधित विभाग के मंत्री रघुवंश प्रसाद चुनाव नहीं जीत सके।
जिन वामपंथियों के हस्तक्षेप के कारण बैंक और बीमा के क्षेत्र में एफ डी आइ (सीधे विदेशी निवेश) नहीं होने दिया गया था जिससे विशव व्यापी भयंकर मंदी की चपेट में आने से देश की अर्थ व्यवस्था बची रह गयी उनकी संख्या एक तिहाई रह गयी है।
भाजपा शासन वाले उत्तराखण्ड में सभी सीटें शासक पार्टी हार गयी है और उन पाँच की पाँच सीटों पर काँग्रेस जीत गयी है।
वरिष्ठतम नेता और प्रखर वक्ता भूतपूर्व केन्द्रीय मंत्री व सांसद जार्ज फर्नांडीज चुनाव हार गये हैं। बिना प्रैस किये हुये कपड़े पहिनने वाले समाजवादी रहे नेता ने अपनी सम्पत्ति 15 करोड़ घोषित की थी।
जिस मध्यप्रदेश की जनता ने अभी चार महीने पहले जिस पार्टी को भरपूर समर्थन देकर राज्य में सरकार बनवायी थी तथा विकास के नाम पर उसे वोट दिया था उसी पार्टी को बुरी तरह नुकसान उठाना पड़ा है जबकि उसके मुख्यमंत्री ने इन चुनावों में पहले से अधिक मेहनत करके दिन रात एक कर दिया था।
जिस सोशल इंजीनियरिंग के नाम पर उत्तरप्रदेश में मायावती ने राज्य में सरकार बनायी थी और उसी घमंड में प्रधानमंत्री का सपना देखते हुये बिना किसी से समझौता किये पूरे देश में अपने स्वतंत्र टिकिट बेचे थे वे अपने प्रदेश में ही पिछड़ गयीं व पिछले विधानसभा चुनाव में प्राप्त मतप्रतिशत से उनके मत कम हो गये।
299 करोड़ की सम्पत्ति घोषित करने वाले एल राजगोपाल आंध्र प्रदेश में विजयवाड़ा से काँग्रेस के टिकिट पर चुनाव जीत गये हैं किंतु बहुजन समाजपार्टी के टिकिट पर दक्षिणी दिल्ली से 150 करोड़ की सम्पत्ति रखने वाले करन सिंह कंवर चुनाव हार गये हैं
122 करोड़ की सम्पत्ति घोषित करने वाले अबू असीम आजमी उत्त्र प्रदेश से चुनाव हार गये हैं।पर 173 करोड़ की सम्पत्ति घोषित करने वाले नागेशवर राव आंध्र्रप्रदेश में खम्मम से तेलगूदेशाम के टिकिट पर चुनाव जीत गये हेैं उन्होंने रेणुका चौधरी जैसी हँसमुख वाकपटु महिला नेत्री को हराया
कर्नाटक से 105 करोड़ की सम्पत्ति घोषित करने वाले सुरेन्द्र बाबू चुनाव हार गये हेैं।
जो वामपंथी अपनी ईमानदारी, जिम्मेवारी, विचारधारा, बौद्धिकता, अनुशासन तथा बैठकों में सबसे अधिक उपस्थिति व बहस में भागीदारी के लिए विख्यात रहे हैं वे संख्या में एक चौथाई रह गये हैं। वहीं संसद में सवाल पूछने के लिए रिशवत लेने वाले, सांसद निधि बेचने वाले, दलबदल करने वाले, संसद में एक करोड़ रूपये की रिशवत के रूप्ये सदन के पटल पर पटकने वाले, कबूतरबाजी द्वारा अपराधियों को अवैध रूप से विदेश भेजने वालाें के दल के कई लोग चुनाव जीत गये हैं।
एक स्टिंग आपरेशन में जाम के साथ पैसे लेते हुये और 'पैसा खुदा तो नहीं पर खुदा से कम भी नहीं' कहने वाले जू देव छत्तीसगढ से चुनाव जीत गये हैं।
यूपीए के पचास से अधिक सदस्य तामिलनाडु और आंध्र प्रदेश में दो अत्यंत लोकप्रिय अभिनेताओं द्वारा राजनीति में उतर कर पार्टी बना कर चुनाव में उतरने व शिवसेना की टूट से बनी मनसे द्वारा समुचित वोट काट लेने से जीते हैं।
1984 में सिखों के नरसंहार और 2002 में गुजरात में मुसलमानों के नरसंहार के लिए जिम्मेवार पार्टी के लोग चुनाव जीत गये हैं तथा साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए निरन्तर प्रयास के लिए जाने जाने वाले पिछड़ गये हैं।
गत लोकसभा में आपराधिक आरोपों वाले 128 लोग चुन कर आये थे पर इस बार उनकी संख्या 150 तक पहुंच गयी है।
गत चुनावों में 543 के सदन में करोड़पतियों की संख्या 154 थी जो अब बढ कर 300 तक पहुँच गयी है पर फिर भी इनकी पार्टियां इनके आर्थिक सहयोग से नहीं चलतीं अपितु वे बड़े बड़े औद्योगिक घरानों से चंदा वसूल कर संचालित होती हैं। ये करोड़पति अपने वेतन को भी पार्टी को नहीं देते अपितु अपने घर ले जाते हैं और आजीवन पेंशन भी लेते हैं।ये पार्टी से लेते ही लेते हैं देते कुछ नहीं।
अगर सीटों की संख्या की जगह मतों की संख्या से मूल्यांकन करें तो भाजपा के वोट 2004 में 22.16 प्रतिशत से घट कर 18.80 प्रतिशत हो गये हैं और उसे 33.6 प्रतिशत का नुकसान हुआ है जबकि काँग्रेस के मत 26.53 प्रतिशत से बढ कर 28.55 प्रतिशत हो गये हैं और उन्हें 2.02 प्रतिशत का फायदा हुआ है। सीपीएम के मतों में कुल 0.33 प्रतिशात की कमी आयी है और वे 5.66 प्रतिशत से 5.33 प्रतिशत रह गये हैं पर सीपीआई के मत 1.41 प्रतिशत से बढ कर 1.43 प्रतिशत हो गये हैं। बीएसपी के वोट बढ कर 5.33 से 6.17 तक पहुँच गये हैं और राष्ट्रवादी काँग्रेस के वोट बढ कर 1.80 से बढ कर 2.04 प्रतिशत हो गये हैं। सबसे अधिक घाटा भाजपा को ही हुआ है।
ये बहुत थोड़े से उदाहरण हैं तथा निर्वाचन आयोग की समझदारी पूर्ण योजना के कारण चुनाव शांतिपूर्वक और अनुशासन के दायरे में हुये हैं। काँग्रेस चुनाव जीत गयी है पर अभी करने को बहुत कुछ बाकी है और यह प्रारंभ बिन्दु हो सकता है। चाहे तो इस अवसर का लाभ उठाते हुये अपने संगठन को पुर्नजीवित कर सकती है व युवा पीढी को राजनीति में सक्रिय कर सकती है जिससे साम्प्रदायिक ताकतों से उन्हीं की भाषा में सम्वाद किया जा सके। उनके सहयोग से भ्रष्टाचार के खिलाफ की गयी निरंतर कार्यवाहियाँ लोगों में एक नया विशवास पैदा कर सकती हैं।
जरूरत है सत्ता का मोह छोड़ कर पूरे देश में संगठन के आधार पर काम करने की।
(मेरे पिता ने स्वतंत्रता संग्राम के दौर में चन्द्रशेखर आजाद के साथ काम किया था तथा वे उस दौर का एक गीत अक्सर गुनगुनाते थे-
ओ विप्लव के थके साथियो
विजय मिली विश्राम न समझो
यह शीर्षक उसी स्मृति से लिया गया है)
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629
ओ विप्लव के थके साथियो
जवाब देंहटाएंविजय मिली विश्राम न समझो
-बहुत भायी यह दो पंक्तियां. आभार.
लोगों की अपेक्षा पर खरी उतरने के लिए नई सरकार को शुभकामनाएं ही दे दें ।
जवाब देंहटाएंमें केवल इतना कह सकता हूँ संगीताजी कि जनता की लाटरी खुल गयी है किन्तु में इसे सोची समझी राजनीतिक चेतना के साथ उठाया गया कदम नहीं मान पा रहा हूँ पा रहा हूँ
जवाब देंहटाएंBihar se Raghuvansh Prasad singh (Minister) Election jite hain... Aalekh ke liye Dhanyavad...
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