सोमवार, नवंबर 16, 2009

कौन बनेगा भजपा अध्यक्ष ?

कौन बनेगा भाजपा अध्यक्ष?
वीरेन्द्र जैन
पिछले दिनों आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत लगातार एक सुर में दो बातें बोल रहे हैं, पहली तो यह कि हम भाजपा के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं करते और चूंकि भाजपा में संघ के स्वयं सेवक सक्रिय हैं इसलिए संघ मांगे जाने पर सुझाव देता है। और दूसरी तरफ वे लगातार, बिना यह बताये हुये कि सलाह किसने मांगी है, यह कहते रहते हैं कि पार्टी अध्यक्ष युवा होना चाहिये, वह अरूण जेटली, सुषमा स्वराज, अनंत कुमार और वैंक्यया नायडू जैसी दिल्ली में रहने वाली चौकड़ी में से नहीं होगा। इस तरह उन्होंने आडवाणी और उनके हनुमानों के साथ साथ मुरली मनोहर जोशी, विजय कुमार मल्होत्रा समेत अनेक वरिष्ठ नेताओं की आशाओं पर भी तुषारापात कर दिया। भले ही भाजपा प्रवक्ता प्रकाश जावेडकर कहते रहें कि पार्टी संविधान के अनुसार कोई भी सदस्य अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ सकता है। पर सब जानते हैं कि पार्टी सदस्यों के बिना चाहे जो संस्था आडवाणी जैसे कद्दावर नेता को उनके पाकिस्तान में दिये गये एक बयान के आधार पर बाहर का रास्ता दिखा सकती है तब पार्टी में कैसा और कहाँ का लोकतंत्र! अगर लोकतंत्र होता तो उमा भारती चिल्लाती हुयी बाहर नहीं जातीं कि मुख्यमंत्री बनाने से पहले विधायक दल की राय तो ले लो, और 57 विधायक साथ में नत्थी किये वसुंधरा राजे राष्ट्रीय अध्यक्ष से गुहार लगाने के बाद भी विधायक दल के नेता पद से स्तीफा देने के लिए विवश नहीं होतीं। उपरोक्त संभावितों के संघ प्रमुख द्वारा तय पात्रता से बाहर हो जाने के बाद पिछले दिनों नरेन्द्र मोदी का नाम उछला जिससे सभी हतप्रभ हो गये थे किंतु बाद में नितिन गडकरी का नाम आने से गोपी नाथ मुंडे सकते में आ गये थे जो आजकल प्रमोद महाजन की विरासत को सम्हालते हुये बताये जाते हैं और महत्वपूर्ण हैं। बाद में गडकरी ने कह दिया कि वे अध्यक्ष पद का 'चुनाव लड़ने' के इच्छुक नहीं हैं।
भाजपा का जो चरित्र निर्मित हो गया है उसके अनुसार विधायक मंत्री मुख्यमंत्री पद के लिए तो मारकाट मची रहती है किंतु संगठनों के पद के लिए वे ही लोग उत्सुक रहते हैं जिन्हें संसद या विधानसभाओं में कोई स्थान नहीं मिल पाता। जब से बंगारू लक्ष्मण स्टिंग आपरेशन में नोटों की गिड्डियां दराज में डालते व डालरों में मांगते देश भर में देख लिये गये हैं तब से अध्यक्ष पद और भी अनाकर्षक हो गया है। स्मरणीय है कि आडवाणी के स्थानापन्न अध्यक्ष वैंकैया नायडू के प्रति उमा भारती समेत कई सक्रिय नेता चपरासियों की तरह व्यवहार करते थे। संघ के निर्देश पर आडवाणी को बिना बात किये हुये अध्यक्ष पद से निकाल बाहर करने से भी पद की गरिमा गिर गयी है व लगातार पराजित होती पार्टी में सम्मान की तुलना में अपमान के अवसर अधिक पैदा हो गये हैं। अध्यक्ष राजनाथ सिंह यदि महाराष्ट्र में किसी को संगठन की जिम्मेवारी सोंपते हैं तो मुंडे की धमकी के बाद आडवाणाी उनके निर्णय को पलट देते हैं। अनुशासन का यह हाल है कि पार्टी आफिस में रखी तिजोरी से ढाई करोड़ रूपये गायब हो जाते हैं और पार्टी रिपोर्ट भी नहीं लिखा पाती। यही कारण है कि भाजपा के नेता संगठन की जगह विधायक सांसद मंत्री या कारपोरेशन्स के पदाधिकारी जैसे मलाईदार पद पाना अधिक पसंद करते हैं और न बनाये जाने पर मार काट पर उतर आते हैं।
अभी हाल ही में भाजपा शासित मध्यप्रदेश में मंत्रिमंडल का विस्तार किया गया था पर इस विस्तार के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री के प्रति भाजपा के सदस्यों ने जो विचार व्यक्त किये उससे न केवल मुख्यमंत्री की अपितु पूरी भाजपा का चरित्र सामने आ गया। पिछले कार्यकाल के दौरान कुछ मंत्रियों ने भ्रष्टाचार से जो करोड़ों रूपये कमाये थे उन्हें अपने निकट के रिश्तेदारों और नौकरों चाकरों के नाम पर रख छोड़ा था। आयकर विभाग ने इस भ्रष्टाचारी पैसे के ट्रस्टियों के घरों और लॉकरों पर छापा मार कर अटूट दौलत और प्रापर्टी के कागजात बरामद किये थे। एक मंत्री के ड्राइवर के नाम से लिये गये लाकर में ही सवा करोड़ बरामद हुये थे। उसके तुरंत बाद हुये विधानसभा चुनावों में उक्त मंत्रियों को इस आधार पर टिकिट दिया गया था कि वे अपनी अवैध कमाई की दौलत को ही चुनावों में झोंकेंगे और पार्टी से कोई सहायता नहीं मागेंगे। ऐसा हुआ भी और इस अवैध दौलत के सहारे वे चुनाव जीत भी गये। विधानसभा चुनावों के कुछ समय बाद ही लोकसभा के चुनाव थे इसलिए इन बदनाम मंत्रियों को लोक दिखावे के लिये मंत्रिमंडल से दूर रखा गया ताकि मतदाता को धोखे में रखा जा सके। दूसरी ओर अपने भ्रष्टाचार की कमाई से पार्टी और पार्टी नेताओं की मदद करने वाले इन नेताओं को आश्वस्त करने के लिए मंत्रिमंडल में स्थान खाली रखे गये। धोखा केवल जनता ने ही नहीं खाया अपितु सत्तारूढ पार्टी के विधायक भी धोखे में रहे और खाली स्थानों पर अपनी उम्मीदवारी जताने लगे। कुछ को तो उच्च नेताओं ने आश्वासन भी दे दिया था। किंतु लोकसभा चुनाव निबटाने के बाद जब मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ तब उन्हीं दागी मंत्रियों को फिर से कैबिनेट में स्थान दे दिया गया, जिससे मंत्री बनने का सपना देखने वालों के सिर पर गाज गिर गयी। मंत्री पद के आहत उम्मीदवारों ने अपने समर्थकों से न केवल प्रर्दशन कराये अपितु मुख्यमंत्री का पुतला भी फूँँका। एक जिस पूर्व मंत्री के पुत्र पर हत्या का आरोप है और जिसे मंत्री नहीं बनाया गया उसने तो राष्ट्रीय अध्यक्ष से अपनी व्यथा सुनायी और मंत्रिमंडल में सम्मिलित किये गये मंत्रियों के कच्चे चिट्ठे का वह भाग भी खोला जो राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए अज्ञात था। इन मंत्रियों के चक्कर में किसी महिला विधायक को मंत्री नहीं बनाया गया जबकि छह विधायक प्रतीक्षा में थीं। कहते हें कि एक महिला विधायक तो फूट फूट कर घन्टों रोयीं।
संघ प्रमुख ने पुणे में भाजपा के लोगों से जड़ों की ओर लौटने का आवाहन किया। यह कह कर उन्होंने बहुत गलत समय पर सही बात की है। जड़ों की ओर लौटने का मतलब भाजपा को उदार खुले द्वार की पार्टी से जनसंघ के दौर की कट्टर हिन्दूवादी पार्टी बनाना है। पर तब से अब तक गंगा में बहुत सारा पानी बह चुका है। आज की भाजपा को संघ की जरूरत सलाह के लिए नहीं है अपितु चुनावों और चुनाव की दृष्टि से किये जाने वाले आन्दोलनों के लिये है। आज की भाजपा एक सत्ताकांक्षी नहीं अपितु सत्ता लोलुप पार्टी है जिसके नेताओं का लक्ष्य सत्ता से अपना व अपने परिवार का वैभव बनाना व अटूट दौलत कमाना है। नब्बे प्रतिशत से अधिक भाजपा के जनप्रतिनिधि भ्रष्टाचार से दौलत बना चुके हैं तथा पार्टी व उसके सहयोगी संगठन अपने शासन वाले राज्यों में सरकारी मदद से अरबों रूप्यों की जमीनें जायजादें अपने संगठनों के नाम पर करवा चुके हैं। संघ से भाजपा में आये सदस्य भी समान गति से भ्रष्टाचार में लिप्त हैं और संघ में वापिस लौटने की जगह राज्यसभा में पहुंचने के लिए प्रयास रत रहते हैं। मध्यप्रदेश जैसे राज्य तो बाहर के लोगों के लिए स्वर्ग हैं और यहाँ के कार्यकर्ताओं को राज्यसभा-लोक सभा में भेजने की जगह यहाँ खुलने वाले उद्योगों में मजदूरी सुनिश्चित करने की गुहार यहाँ के मुख्यमंत्री लगा रहे हैं। आज की भाजपा के लोग वापिस जनसंघ होने और स्वयंसेवकों के लिए अनुशंसित आचरण करने नहीं जा रहे हैं। यदि ऐसा करने के लिए कहा गया तो इनमें से अधिकांश पार्टी छोड़ कर कोई दूसरी सुविधाजनक पार्टी तलाश लेंगे क्योंकि सत्ता के लिए सिद्धांतहीन दलबदल करने कराने के ये अभ्यस्त हो चुके हैं। अब ये एक पार्टी नहीं अपितु सत्ता के लाभ बटोरने वाले गिरोह की तरह काम कर रहे हैं। इनके आन्दोलन और रैलियां इनके घोषित उद्देशयों के लिए नहीं होतीं अपितु चुनावों में अपनी संभावनाएं बनाने के लिए होती हैं। रैलियों में स्वत:स्फूर्त लोग नहीं अपितु किराये के लोग लाये जाते हैं। यह किराया कभी नगद और कभी सरकारी योजनाओं में उनका जायज हक दिलाने के अहसान की तरह चुकाया जाता है।
भाजपा के लिए अब एक तरफ कुँआ तो दूसरी तरफ खाई है। यदि वे किसी ईमानदार और संघ के सिद्धांतों का पालन करने वाले व्यक्ति को कमान सोंपते हैं तो पार्टी की चुनावी संभावनाएं इस हद तक सिकुड़ जायेंगीं कि अगले दस साल तक तो वे सत्ता में आने के बारे में सोच भी नहीं सकते। और यदि वे किसी उम्रदराज खांटी नेता के हाथ में ही कमान दिये रखना चाहते हैं तो संघ का आधार खत्म होता चला जायेगा। ऐसे में यह सवाल मुँह बाये खड़ा है कि (देखें)-
कौन बनेगा भाजपा अध्यक्ष?

वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629

7 टिप्‍पणियां:

  1. कौन भाजपा अध्यक्ष होगा इसके लिये सबसे अधिक पेट में दर्द तो कम्युनिष्टों के होने लगा है, अरे भई आपको इतनी उतावली क्यों?

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  2. आपका लेख बहुत ही सार्थक है, और अपेक्षाओ पर खरी न उतरती बीजेपी के लिये सबक भी, जब जागे तभी सवेरा, पर समय से जागना भी जरूरी है।

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  3. कम्युनिष्टों को तो मतदाताओं ने बंगाल की खाड़ी से भी बाहर फैंक दिया है, अब बेचारे और क्या करें? भाजपा भाजपा जप कर अपने बुढापे के दिन गुजार रहे हैं

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  4. "...यदि वे किसी ईमानदार और संघ के सिद्धांतों का पालन करने वाले व्यक्ति को कमान सोंपते हैं तो पार्टी की चुनावी संभावनाएं इस हद तक सिकुड़ जायेंगीं कि अगले दस साल तक तो वे सत्ता में आने के बारे में सोच भी नहीं सकते..."
    इसी वाक्य में आपने भाजपा सहित बाकी सभी पार्टियों की हालत बयाँ कर दी है। भाजपा को रेड्डी टाइप के खटकरम करना ही पड़ेगा, क्योंकि सामने वाली पार्टियाँ तो अपना केंचुल उतारने से रहीं, "शठे शाठ्यम समाचरेत" की नीति अपनाना पहले भाजपा की मजबूरी थी लेकिन अब गन्दी आदत में तब्दील हो चुकी है… राजनीति के हमाम में सब नंगे हैं इसलिये भाजपा को दोष देने की बजाय "चोर की माँ" यानी कांग्रेस को हम अधिक गरियाते हैं, जिसने इस "संस्कृति" को जन्म दिया, फ़लने-फ़ूलने का मौका दिया, खाद-पानी दिया और अब वही लोग भाजपा को साफ़-स्वच्छ रहने का उपदेश देते हैं। कम से कम भाजपा में मोदी, येदियुरप्पा जैसे कुछेक लोग तो बचे हैं बाकी पार्टियों में तो एक नहीं मिलेगा…। मध्यप्रदेश में जो भी हो रहा है, महाराष्ट्र की घृणास्पद नौटंकी से तो कम ही है… तात्पर्य यह कि जैसे ही कोई भाजपा-संघ पर उंगली उठाता है, हमें उसकी ओर उठी हुई बाकी की चार उंगलियाँ देखना पड़ती हैं, क्योंकि भाजपा के साथ जितना ज्यादा अछूत जैसा व्यवहार किया जायेगा, उसके समर्थक और कट्टर होते जायेंगे।
    बहरहाल, मुद्दे की बात करें तो आम भाजपा कार्यकर्ता के मन में तो यही है कि नरेन्द्र मोदी भाजपा के अध्यक्ष बनें… इसका सबसे बड़ा फ़ायदा यह होगा कि भाजपा-मोदी को गरियाने में तेजी आयेगी और वोटों का ध्रुवीकरण तेज होगा, जिससे अन्ततः भाजपा को ही फ़ायदा होगा… नितिन गडकरी की इमेज कितनी ही साफ़-सुथरी हो, वे इस पद के लायक नहीं हैं (आप खुद ही कह चुके हैं कि साफ़-सुथरी इमेज वाला व्यक्ति नहीं चलेगा, और यही भारतीय राजनैतिक संस्कृति है)।

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  5. दो अज्ञात कुलशील लोगों के घूंघट में से किये गये प्रलाप के बाद सुरेशजी की टिप्पणी उनके पक्ष को साफ साफ रखती है, इस पक्ष में दोष यह है कि भाजपा और कांग्रेस, जो एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, के अलावा उन्हें दूसरा पक्ष ही दिखाई नहीं देता। अगर वे चश्मा उतार कर देखें तो पता चलेगा कि इसी राजनीति में ऐसे भी राजनीतिक दल हैं जो ना तो हवाला, न सवाल पूछने, न सांसद निधि स्वीकृत करने न कबूतर बाज़ी , न दल बदल और न ही किसी तरह के भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। इसलिये यह कहना कि सभी एक जैसे हैं, परोक्ष रूप से भ्रष्टाछारियों को समर्थन करने जैसा है। शोभायमान येदुरप्पा अपने बंगले को डेढ करोड़ में सुधरवाते हैं और 65 लाख बेड रूम में लगाते हैं जिसके जाने के दुख में आंसू बहाने की नौटंकी करते हैं। और मोदी को केवल भ्रष्ट न होने के कारण हत्याओं का अधिकार नहीं मिल जाता पर वे भी हैं तो उन्हीं के साथ जो आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे हैं

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  6. यार सुरेश जी, लगता है आपके पास भी फालतू टाइम बहुत है जो बेफालतू की बातो पर अपना इतना वक्त जाया करते हो ! मुझे तो यही ताजुब्ब होता है कि जिन लोगो को बीजेपी से कोई सरोकार नहीं और बस यही देखते रहते है कि उनके फलां -फलां ने कहा-कहाँ अपने घर का कूड़ा फेंका, उन्हें क्यों बीजेपी के अध्यक्ष की इतनी चिंता सताने लगी ?

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  7. गोदियाल जी
    ऐसा कैसे कह सकते हैं कि जिस राजनीतिक दल से देश को सबसे अधिक खतरा है और जो देश में सैकड़ों साम्प्रादायिक दंगे कराने व अरबों की सम्पत्ति को नष्ट कराने तथा देश की सुरक्षा के लिये निरंतर खतरा पैदा करने में लगी हो तथा जिसके नेता सबसे अधिक भ्रष्ट हों उससे किसी लेखक पत्रकार को कोई सरोकार नहीं होगा। जो कल तक स्टार प्रचारक और साध्वी थीं आज आपके लिये कूड़ा कैसे हो गयीं?

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