प्रो. मटुकनाथ और उनकी मित्र ज़ूली पर प्राण घातक हमला और एक पुस्तक लेखक बाबा को मार मार कर अधमरा किया
वीरेंद्र जैन
दिनांक 27 नवम्बर को भोपाल के रवीन्द्र भवन के अप्सरा रेस्ट्राँ में एक पुस्तक के विमोचन का कार्यक्रम का समाचार पढने पर मालूम हुआ कि पुस्तक एक बाबा ने लिखी है और उसका विमोचन बिहार के चर्चित प्रो. मटुक नाथ और उनकी मित्र ज़ूली के हाथों होने वाला है तो ज़िज्ञासा वश में भी पहुंच गया क्योंकि पिछले ही दिनों उनको कालेज से निकाले जाने पर मैंने एक फीचर एजेंसी के माध्यम से उनके पक्ष में एक लेख लिखा था इसलिये उनकी प्रतिक्रिया जानने की जिज्ञासा थी। उसी रेस्ट्राँ में नर्मदा बचाओ आन्दोलन की भी प्रेस कांफ्रेंस चल रही थी इसलिये प्रदेश भर का प्रिंट और विजुअल मीडिया वहाँ उपस्थित था। पुस्तक समाज शास्त्र से सम्बन्धित थी और उसका नाम था विवाह एक नैतिक बलात्कार। किंतु संघ और भाजपा के एक ज़ेबी संघटन संस्कृति बचाओ संघ ने प्रो. मटुक नाथ को बीच ही में रोक लिया और उनके साथ बेहद अपमानजनक व्यव्हार किया जिससे उन्हें प्राण बचा कर रवीन्द्र भवन के एक कक्ष में छुप जाना पढा। इसी बीच पुलिस अधिकारियों ने बाबा को फोन करके कार्यक्रम स्थगित करने का निर्देश दिया जिसे उन्होंने मेरी उपस्थिति में फोन पर यह कह्ते हुये मानने से मना कर दिया कि यह उनके मौलिक अधिकारों का हनन है और घोषित कार्यक्रम में आमंत्रित अतिथि का भी अपमान है। उसके बाद उक्त संगठन के लोगों ने पूरे देश के मीडिया के सामने और पुलिस की उपस्तिथि में उक्त लेखक को मार मार कर अधमरा कर दिया। खून से लथपथ बाबा को अज्ञात स्थान पर भाग जाना पड़ा। प्रदेश के प्रसिद्ध प्रकाशक को भी भागना पड़ा तथा प्रो. मटुकनाथ और उनकी मित्र ज़ूली को रवीन्द्र भवन के कक्ष में कैद रहना पड़ा। जिस समय में यह लिख रहा हूं उस समय तक वे वहाँ से बाहर नहीं निकल सके थे।
स्मरणीय है कि प्रदेश में इसी तरह पिछले दिनों प्रो. सभरवाल की भी हत्या पूरे मीडिया के सामने कर दी गयी थी और फिर भी प्रदेश सरकार ने आरोपियों को बचा लिय जिसका ज़िक्र न्यायाधीश ने अपने फैसले में भी किया। इस फैसले के बाद प्रदेश के एक मंत्री ने ज़लूस निकाला मिठाइयाँ बाँटीं और कहा कि उन्हें इतनी खुशी तो अपने मंत्री बनने से भी नहीं हुयी थी।
आखिर फासिज्म और किसे कहते हैं?
बेहद कायराना कृत्य
जवाब देंहटाएंवाकई कायराना हरकत है
जवाब देंहटाएंहैरान हूं ये पढ के ..और कहते हैं कि देश विकास कर रहा है ..समाज अभी भी पाश्विक ही बना हुआ है ...या कहूं कि जंगली पन तो बढता ही जा रहा है
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
यह शिवराज का मध्यप्रदेश और उस की राजधानी भोपाल है या राज और बाल की मुम्बई?
जवाब देंहटाएंachha kiya.....aur maarnaa tha...chugad ko
जवाब देंहटाएंये तो होना ही था, समाज में सभी को अपनी बात कहने का अधिकार है परन्तु समाज के प्रतिउनकी जिम्मेदारिया भी है , किसने क्या लिखा ठीक लिखा या नही लिखा लेकिन क्या उसे अपनी जिम्मेदारी का एहसास नही है वो एक ऐसी प्रथा के बारे में पुस्त्स्क लिख रहे है जिसे हिंदू समाज में सात जन्मो का बंधन माना गया, ऐसे लोगो को किसने दिया अधिकार की ऐसे सब्द कह सके, ये पूरी तरह सजा पाने के हकदार है।
जवाब देंहटाएंजैन साब मुझे आपने लेख से ये समझ नही आया की आप किसे कोष रहे है सामजिक व्यवस्था को की सरकार को या फ़िर पुस्तक के लेखक को।
मेरे इस लेख का मतलब ये भी नही की मई विश्व हिंदू परिषद् की कार्यवाही का समर्थन कर रहा हूँ , हिंसा किसी भी प्रकार से जायज नही है।
रही बात मटुकनाथ और जूली की उनको विवाह जैसी पवित्र प्रथा की अहेमियत का पता ही क्या ? जब उन्होंने विवाह किया हो तभी वो जान सकते है
क्या जमाना है! कौवा, हंस को 'काला' कहने को आतुर है और लोग इसका विरोध कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंआपने बड़ी 'इमानदारी' से लिखा है। ये वही बटुकनाथ हैं जिन्होने गुरू-शिष्य के पवित्र सम्बन्ध का मुँह काला किया है। इसका उल्लेख कितनी अच्छी तरह 'मित्र' के रूप में कर दिया है। वाह मित्रता की कितनी नयी परिभाषा है!
पर क्या यह 'वर्ग संघर्ष' है या नहीं, यह आपने नहीं लिखा। पुरानी शब्दावली आप लोग क्यों भूलते जा रहे हैं?
माँ-बेटा, पिता-पुत्री,भाई-बहन, से ऊँचा और पवित्र रिश्ता गुरु-शिष्य का माना गया है इसी लिए शास्त्र कहते हैं-मातृमान-पितृमान-आचार्यवान पुरुषो वेदा:। कोई भी अभिभावक अपने पुत्र-पुत्री को बेखौफ़ होकर गुरु के पास छोड़ देता है ज्ञानार्जन के लिए, मटुक-जुली ने इस पवित्र रिश्ते को कलंकित कि्या है। इस लिए जन आक्रोश का शिकार होना भी लाजमी है। जैसा करेगा वैसा भरेगा..............
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बेहद कायराना कृत्य,
विचार का विरोध विचार से ही होना चाहिये,
सौमित्र जी एक तरफ कह रहे हैं "ये पूरी तरह सजा पाने के हकदार है।" दूसरी ओर लिखते हैं "मेरे इस लेख का मतलब ये भी नही की मई विश्व हिंदू परिषद् की कार्यवाही का समर्थन कर रहा हूँ , हिंसा किसी भी प्रकार से जायज नही है।" किस पाले में हैं आप ?
मुझे अज्ञात कुल शील घूंघट में रहने वालों से तो कुछ नहीं कहना है किंतु अनुनाद सिंह जैसे लोगों से निवेदन है कि अब इस देश में एक सविधान के अंतर्गत समाज को संचालित किये जाने की व्यवस्था की गयी है और चीजों को लिज़लिज़ी भावुकता की जगह उनके यथार्थ में देखने की ज़रूरत है। गुरु शिष्य के पवित्र और पति पत्नी के अपवित्र सम्बन्धों जैसे आधार पर भारतीय संस्कृति के नाम पर गैर कानूनी हरकतें की जायेंगी तो देश में लोकतंत्र नहीं चल सकता। जिस भरत के नाम पर आप अपने आप को भारत कहते हैं उस भरत का जन्म शकुंतला की कोख से कैसे हुआ इसकी कथा भी आपको पता होगी। भारतीय संस्कृति के और विस्तार में जाना तो यहाँ सम्भव नहीं है किंतु अनुरोध है कि हरि मोहन झा लिखित पुस्तक खट्टर काका पढ लीजिये जिसमें सब कुछ भारतीय प्राचीन ग्रंथों में से ही दिया गया है। भारतीय संस्कृति में ही स्वयंवर और गन्धर्व विवाह सहित नियोग प्रथा भी प्रचलित थी।
जवाब देंहटाएंmorality differs from place to place and age to age इसलिये इस युग में आज के समय की नैतिकिता और कनून के हिसाब से समाज चलेगा। वैसे लोकतंत्र में आप अपने लिये अपनी जीवन पद्धति चुनने को स्वतंत्र हैं किंतु जब आप दूसरे की जीवन पद्धति में अनावश्यक हस्तक्षेप करते हैं तो वह गैर कानूनी और आज की नैतिकता की दृष्टि से अनैतिक है। एक पोंगा प्ंथी और भ्रष्ट सरकार के राज्य में जो ये पालतू सांस्कृतिक ठेकेदार पुलिस के संरक्षण में जो कुछ कर लेते हैं वह गैर भाजपा सरकार में क्यों नहीं कर पाते? क्या उन्हें पता है कि भोपाल समेत पूरे देश में जिनमें भोपाल के उनके संगठन के पदाधिकारी भी सम्मलित हैं, लिव इन रिलेशन को अपनाये हुये हैं?
पोंगा पंथ और गलत विश्वासों सहित नागरिक स्वतंत्रता के पक्ष में किया जाने वाला काम भी वर्ग चेतना के लिये भाव भूमि तैयार करता है
प्रवीण भाई, कथित बाबा और कथित लवगुरु दोनों ने कहा है कि "आधुनिक विवाह संस्था एक प्रकार की वैधानिक वेश्यावृत्ति है…" इस कथन पर आप क्या कहना चाहेंगे?
जवाब देंहटाएंसाथ ही उस बाबा और मटुकनाथ से पूछना चाहता हूं कि क्या उनकी बहन की शादी भी वेश्यावृत्ति की श्रेणी में आती है? पुस्तक का शीर्षक है "विवाह : वैधानिक बलात्कार", क्या उनकी बहन के साथ भी बलात्कार हो रहा है? यदि हाँ, तो वे इसे रोकने के लिये क्या कर रहे हैं (पुस्तक लिखने के अलावा)।
सुरेशजी आप घटना से उपजी मूल समस्या से इधर उधर होकर अपराधियों की पक्षधरता कर रहे हैं। पहला सवाल यह है कि एक लोकतांत्रिक देश में विचार स्वातंत्र होगा या नहीं (जबकि इसी संघ परिवार के लोग इमर्जेंसी में माफी मांग कर बाहर आने वाले विचार स्वात्ंत्र के नाम पर पेंसन खा रहे हैं।) दूसरा यह कि आप विचार जैसी आब्जेकटिव चीज को सब्जेक्टिव बना रहे हैं अर्थात लेखक की माँ बहिन पर उतर आये हैं जबकि यह अपने आप में ही स्पष्ट है कि कोई विचार यदि कार्य रूप लेता है तो उसमें सभी आते हैं। मैं अपने लड+अके के रोज़गार के लिये आरक्षण सम्बन्धी अपने विचार थोड़े ही बदल दूंगा।
जवाब देंहटाएंबाबा अजय दास ने जो लिखा होगा वह सैकड़ों बार सैकड़ों तरह से आ चुका जिसे अमृता प्रीतम के उपन्यासों, रजनीश के भाषणों, और हंस के स्त्री विशेषांकों में तो मैंने स्वयं देखा है। बहुत सम्भव है कि बाबा द्वारा उत्तेजक शीर्षक देने का यह प्रयास प्रकाशक की सलाह पर तस्लीमा नसरीन, सलमान रश्दी,की तरह पुस्तक को लोकप्रिय कराने के लिये हो और विरोधी दिखने वाले पक्ष एक दूसरे के पूरक हों क्योंकि पुस्तक धड़ाधड़ बिक रही होगी।
मैंने किताब नहीं पढी है इसलिये अधिकृत रूप से तो कुछ नहीं कह सकता किंतु कभी मेरे मन में भी यह विचार आया था कि जिस दम्पत्ति के बीच में प्रेम नहीं है उस दाम्पत्य जीवन में पत्नी का स्थान एक आदमी की वेश्या से अधिक और क्या है, जो अपने जीवन यापन और बच्चों के पालन पोषण के लिये पति के साथ सोती है। में चाहता हूं कि इस विषय पर खुल के विमर्श हो भले ही इसी दूसरे ब्लाग पर हो क्योंकि मुझे ज्यादा लोकप्रियता की दरकार नहीं है
जैन साहब,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी बात कही है आपने -
"morality differs from place to place and age to age"
यदि ये सही है तो क्या यही बात आपके 'लोकतंत्र' के लिये लागू नहीं है? 'लोकतन्त्र' की क्या कोई सर्वमान्य परिभाषा है? जिन लोगों ने पिटाई की क्या वे 'लोक' नहीं हैं?
किसी ने ठीक ही कहा है कि 'आज की पत्रकारिता लोकतन्त्र का चौथा धब्बा है।' आप भी उस धब्बे के सबसे काले भाग हैं। अपनी जरूरत के हिसाब से लोकतन्त्र का रोना रो लेते हैं।
शायद आपको अर्जुन की कथा नहीं पता जिसने अज्ञातवास में जिस राजकुमारी को नृत्य की शिक्षा दी उसका हाथ थामने से मना कर दिया। (प्रस्ताव कन्या के पिता ने दिया था)।
"वैसे लोकतंत्र में आप अपने लिये अपनी जीवन पद्धति चुनने को स्वतंत्र हैं किंतु जब आप दूसरे की जीवन पद्धति में अनावश्यक हस्तक्षेप करते हैं तो वह गैर कानूनी और आज की नैतिकता की दृष्टि से अनैतिक है।"
जवाब देंहटाएंBaba ji aur Professor ji yahi to kar rahe hain.
संविधान कोई कुरान नहीं है जिसमे कोई बदलाव नहीं हो सकता. लोकतंत्र क्या है?? कुछ मुट्ठी भर लोग बृहद समाज की आस्थाओं पर चोट करते रहेंगे और समाज केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर उसे बर्दाश्त करता रहेगा. अगर कोई हमें गाली देता है तो क्या वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर क्षम्य है? अगर विवाह नाम की संस्था आपको स्वीकार नहीं तो आप विवाह न करें परन्तु इसके लिए दूसरों को कोसे और गाली देने पर उतर आयें तो मरम्मत किया जाना सही है.
जवाब देंहटाएंसंविधान ने भी स्वतंत्रता की सीमा तय की है और इस सीमा को लांघ कर दूसरे के अधिकार क्षेत्र में प्रवेश करने वाले को अंजाम के लिए भी तैयार रहना चाहिए. अगर यह फासीवाद है तो यही सही.......... कुछ लोग ऐसी ही भाषा समझते हैं.
नोट: छद्मनामों के लिए अपना पेटेंट डायलाग दुहराने से पहले उसका जवाब सुरेशजी की अद्यतन पोस्ट (खदान वाली) की टिप्पणी में पढ़ लें.
प्रिय भाई निशाचर बगैरह
जवाब देंहटाएंअब आप सही लाइन पर आ गये हैं। आप लोगों के अनुसार
*फासिस्म सही है
* लोकतंत्र गलत है क्योंकि मुट्ठी भर लोग वृहद समाज की आस्थाओं पर चोट करते हैं। भले ही आपको वोट नहीं मिलते हों फिरभी वृहद समाज के स्वयंभू प्रतिनिधि आप हैं।
* अगर कोई विचार गाली है तो क्या कोई गाली देने आपके घर गया था या आप वहाँ बिना बुलाये आये थे ? पर आपके , बाल ठाकरे, राज ठाकरे के लिये तो कोई कानून और सरकार है ही नहीं इसलिये किसी भी अपराध की सज़ा आप स्वयं देंगे। या अगर कोई आप से अधिक ताकतवर हुआ तो वह जिसको देना चाहेगा उसे देगा अर्थात ताकत और लाठी ही सच्चाई का फैसला करेगी। आडवाणी को हवाला काण्ड से मुक्त कराने के लिये बेकार ही अदालत का सहारा लिया !अयोध्या का मुकदमा भी बेकार ही अदालत में चल रहा है।
* घूंघट न उठाओ पर यही बता दो कि अपना चेहरा इतना बदसूरत क्यों लगता है कि उसे छुपाये रखना पड़ता है या आप और आप जैसों के नाम से खेल खेलने वाला कोई और है और आप तो निराकार हो।
* मेरे लिये बाबा मटुकनाथ ज़ूली आदि केवल स्वतंत्रता संविधान और अभिव्यक्ति की आज़ादी के सवाल हैं जिन्हें आपने न मानने की घोषणा कर दी है और छुपे हुये हो।
* और अंत में----
मान लो अगर बाबा मटुकनाथ और ज़ूली आदि ने भी आपकी तरह घूंघट में रह कर किताब का प्रकाशन और विमोचन कर दिया होता तो आप क्या करते? च..च..च..
अभिव्यक्ति स्वतंत्रता पर हमला खतरनाक है, निंदनीय है।
जवाब देंहटाएं@वीरेन्द्र जैन
जवाब देंहटाएं.........प्रिय भाई निशाचर बगैरह
मैं अकेला ही हूँ, इस ब्लागजगत पर भी और और अपने भौतिक रूप में भी, तो वगैरह को किनारे रखें और सीधे मुझसे बात करें.
आप लोगों के अनुसार
.........लोकतंत्र गलत है क्योंकि मुट्ठी भर लोग वृहद समाज की आस्थाओं पर चोट करते हैं।
लोकतंत्र को गलत किसने कहा है लेकिन क्या आपको लगता है कि भारत में जो होता है वह लोकतान्त्रिक व्यवस्था के अनुरूप है. अगर हाँ तो फिर आप नक्सलवाद का समर्थन क्यों करते हैं? (कहीं आपके अनुसार वह एक अहिंसक सत्याग्रह तो नहीं है.).....और अगर नहीं तो फिर कुछ कहने की आवश्यकता रह जाती है क्या??
......भले ही आपको वोट नहीं मिलते हों फिरभी वृहद समाज के स्वयंभू प्रतिनिधि आप हैं।
जनाब हम प्रतिनिधि न सही उसका हिस्सा जरूर हैं. मैं एक स्वतंत्र व्यक्तित्व हूँ और अपनी निजी विचारधारा और दृष्टिकोण है. यदि वह किसी से मेल खाती है तो समर्थन करता हूँ यदि विपरीत पड़ती है तो विरोध करता हूँ. मेरी प्रतिबद्धता देश के प्रति है किसी दल या संगठन के प्रति नहीं. किसी गलत बात को भी सही सिर्फ इसलिए नहीं कहता कि वह लाल, हरे या भगवा रंग का है. मैंने आज तक कोई चुनाव नहीं लड़ा इसलिए मुझे वोट मिलने या न मिलने का कोई सवाल नहीं उठता. वैसे आपको कितने वोट मिले हैं..........
@वीरेन्द्र जैन
जवाब देंहटाएं........अगर कोई विचार गाली है तो क्या कोई गाली देने आपके घर गया था या आप वहाँ बिना बुलाये आये थे ?
किताब के विमोचन का प्रचार करने के लिए किताब के शीर्षक की बड़ी बड़ी होर्डिंग पूरे भोपाल में लगी हुई थीं. क्या यह एक निजी आयोजन था??
.......पर आपके , बाल ठाकरे, राज ठाकरे के लिये तो कोई कानून और सरकार है ही नहीं इसलिये किसी भी अपराध की सज़ा आप स्वयं देंगे।
बाल ठाकरे और राज ठाकरे मेरे रिश्तेदार नहीं हैं. वे जो कुछ भी कर रहे हैं उसके लिए उन्हें सड़क पर ही दस जूते पड़े तो वह कम ही होगा. लेकिन आपको क्यों सांप सूंघ गया है. आपकी धर्मनिरपेक्ष चैम्पियन कांग्रेसी सरकार है वहां. उसने क्या चूड़ियाँ पहन ली हैं?????
@वीरेन्द्र जैन
जवाब देंहटाएं.....घूंघट न उठाओ पर यही बता दो कि अपना चेहरा इतना बदसूरत क्यों लगता है कि उसे छुपाये रखना पड़ता है या आप और आप जैसों के नाम से खेल खेलने वाला कोई और है और आप तो निराकार हो।
चेहरा देख कर दामाद बनाओगे क्या? ब्लागजगत पर विचारों का महत्व है परिचय का नहीं यह पहले ही बता चुका हूँ. तर्कों का उत्तर दो नहीं तो चुप रहो. खेल तुम्हारे जैसे "कामरेड" खेलते हैं जो जबानी नैतिकता की ऊंची उड़ाने भरते हैं लेकिन वैचारिक दोगलेपन हदों को पार करते जरा भी नहीं शरमाते.
.......मेरे लिये बाबा मटुकनाथ ज़ूली आदि केवल स्वतंत्रता संविधान और अभिव्यक्ति की आज़ादी के सवाल हैं.
वामपंथियों के इसी दोगलेपन से मुझे नफरत है. तसलीमा नसरीन, सलमान रश्दी, सलाम आजाद जैसे लेखकों पर हमले और फतवे के समय "स्वतंत्रता संविधान और अभिव्यक्ति की आज़ादी के सवाल" याद नहीं आते. उस वक्त शायद आप नेपथ्यलीला में व्यस्त रहते होंगे.
.........मान लो अगर बाबा मटुकनाथ और ज़ूली आदि ने भी आपकी तरह घूंघट में रह कर किताब का प्रकाशन और विमोचन कर दिया होता तो आप क्या करते?
छपास की कब्ज से पीड़ित और विदेशी "पुरस्कारों" के लिए लार टपकाते तथाकथित "बुद्धिजीवी" चाहकर भी ऐसा नहीं कर सकते. "बदनाम हुए तो क्या नाम न होगा..." के आग्रही कैमरों की रौशनी के बगैर जीवित रह सकते हैं क्या?? आप भी बगल में खड़े होने का मोह संवरण न कर सके......च च च
देखिए, वीरेंद्र जी, भली भाषा और विचार से आप इनसे मुकाबला नहीं कर सकते। यह हिंदू-मुस्लिम-सिख-क्रिश्चियन का मामला ही नहीं है। यह दरअसल ब्राहमणवाद को बनाए और बचाए रखने का खेल है। इन्हें न कुछ हिंदुओं से लेना है न मुसलमानों से। जो भी षड्यंत्र ब्राहमणवाद के लिए मुफ़ीद होगा, ये करने से चूकेंगे नहीं। आपको प्रमाण चाहिए तो इन्हीं लोगों द्वारा आपके ब्लाग, मटुकजूली ब्लाग या स्त्रीवादी ब्लागों पर की गयी टिप्पणियों में फर्क देखिए। इनेका खेल देखिए कि मुसलमान समझते हैं कि इनसे बढ़िया हमारा कोई दोस्त नहीं। हिंदू तो इनकी बनायी चालों, कर्मकांडों, ग्रंथों में फंसकर इस कदर बरबाद हो चुका है कि सहस्त्र बरस में भी छूट जाए तो गनीमत समझिए। अपनी स्त्रियों को ये किस तरह ‘मैनेज‘ करते हैं, यह भी अब लोग जानने लगे हैं। कितनी ब्राहमण महिलाओं की आत्मकथाएं आपने पढ़ी हैं जिनमे अपने पुरुषों के अत्याचारों का वर्णन है ? बुश और ओबामा तक को इन्होंने ऐसा भरमाया है कि वे भी पगला गए हैं। संशय है कि मुल्क में इनकी एक समानांतर सरकार आज़ादी से पहले से चली आ रही है। कई कवि, लेखक और समाजसेवी जिन लोगों को सरकारी जासूस समझकर परेशान रहते थे ,वे दरअसल इनकी समानांतर सरकार के लोग होते थे और होते हैं। चूंकि सभी बड़े सरकारी पदों पर इन्हीं के लोग बैठे हैं इसलिए वास्तविक सरकारों को झांसे में डालकर भ्रमित करते हुए ये अपनी समानांतर व्यवस्था चलाए रखने में कामयाब रहते हैं, ऐसा माना जा रहा है।
जवाब देंहटाएंस्त्री को ये किस तरह मां, बहिन या देवी मानते है, इसी पोस्ट की टिप्पणियों की भाषा से आप समझ सकते हैं। गुरु-शिष्या संबंध की बात की जाए तो ऐसे अनगिनत संबंधों के बारे में यही लोग जानते होंगे। हम आप तो जानते ही हैं। इनका आशय समझिए आप। इनका मतलब है कि छुपकर कुछ भी करिए आप, हम कुछ नहीं कहेंगे। हम भी तो करते ही हैं। पर सामने मत कहिए। जैसा कि हम करते हैं। गुरु-शिष्य परंपरा तो वह है जिसमें शिक्षा भी न दी जाए और अंगूठा भी काट लिया जाए। अब आप इनसे पूछिए कि इनके घर की स्त्रियां जब स्कूल-कालेज से लौटकर आती हैं तो ये कौन से थर्मामीटर से पता लगाते हैं कि वे आज गुरु के साथ कुछ करके आयी हैं या नहीं ? स्त्रियां माफ करें पर ये और कोई भाषा समझने वाले नहीं है। इंद्र और सूर्य से वरदान में पुत्र प्राप्त करने वाली कुंती माता को भी इन्होंने पीट-पीटकर ही मार देना था अगर इनके सामने हुईं होतीं। इनसे पूछिए कि परंपरा और धर्म के इतने ही धनी हैं तो अब क्यों नहीं अपनी मांओं-बहिनों को सती करते या वृंदावन के विधवा-आश्रम में भेजते ? क्या धर्म की खातिर इनकी ब्राहमण-बालियां जलने और आश्रमों में जाने को तैयार हैं ?
जवाब देंहटाएंये समाज को प्रमाण समेत बताएं कि इनके घरों में होने वाले कितने बच्चे इनके अपने हैं और कितने ‘नियोग’ से हुए हैं ? ये बताएं कि स्त्री अगर मां, बहिन और देवी होती है तो हिंदू समाज की सारी वेश्याओं और काल-गल्र्स को ये क्यों नहीं अपने घरों में आसरा देते ? क्यों नहीं अपने बेटों की शादियां उनसे करते ? इनसे पूछिए कि अगर किताब लिखने का मतलब लोकतंत्र का विरोध है और प्रत्युत्तर में पिटाई ही इलाज है तो तुलसीदास और मनुमहाराज को पीटने के के लिए ये स्वर्गधाम का टिकट क्यों नहीं कटाते जिन्होंने स्त्रियों और शूद्रों को भर-भर कर गालियां दीं और उनका जीना हराम कर दिया। (जिसने शुरुआत की उसे पहले पीटो।) क्या आगे से ये भी मनु और तुलसी जैसे नये विचारकों को पीटने का नया लोकतंत्र स्थापित करने को तैयार हैं ?
जवाब देंहटाएंइन मुट्ठी भर ब्राहमणों और इनके भड़ुओं ने सारी दुनिया का जीना हराम कर दिया है ? एक वक्त आएगा जब कोई इनके घर का पानी भी नहीं पिएगा।