बुधवार, मई 04, 2011

एक नहीं लाखों अन्नाओं की जरूरत पड़ेगी


एक नहीं लाखों अन्नाओं की जरूरत पड़ेगी

वीरेन्द्र जैन

अन्ना हजारे के सन्देशप्रद अनशन के कारण पूरे देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ जो माहौल बना था वह जनलोकपाल विधेयक बनाने के लिए सिविल सोसाइटी के सदस्यों सम्मलित करने की माँग मान लेने के बाद ऐसा ठंडा पड़ गया है, जैसे लक्ष्य हासिल कर लिया गया हो। असंतोष का यह भाव पीड़ित जनता में पहले से मौजूद था जिसे अन्ना के अनशन ने एक सूत्र में पिरोने का काम किया। अवतारवाद में भरोसा रखने वाले देश के मध्यमवर्ग को इसमें उजाले की एक किरण दिखाई दी। लोग भ्रष्टाचार का माहौल बदलना चाहते थे किंतु उन्हें कोई नेता नजर नहीं आ रहा था। वे जिस पर भी उम्मीदें टिकाते थे उसके अंतरंग की गन्दगी बाहर झलकने लगती थी। ऐसे में उन्होंने सादा जीवन बिताने वाले और अपने गाँव में विकास का मानक स्थापित करने के साथ साथ प्रदेश के कुछ भ्रष्ट मंत्रियों को हटाने के लिए प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके व्यक्ति को सामने देखा तो अपना पूरा समर्थन उढेल दिया। यह सब कुछ एक भावुकता में किया गया और बिना यह देखे किया गया कि जर्जरित हो चुकी व्यवस्था में कैसे और किस तरह की मरम्मत की जरूरत होती है।
जिन्हें इसी तरह की कई कमियों वाली लोकतांत्रिक प्रणाली द्वारा परिवर्तन लाने का भरोसा है तो उन्हें जानना चाहिए कि इसके लिए इसी संसद और इन्हीं राजननितिक दलों का सहयोग लेना पड़ेगा। आज की संसद का बहुमत वैसा कोई भी परिवर्तन अपने हित में नहीं समझता है जैसा कि अन्ना की शुभेक्षाएं चाहती हैं, तीन सौ करोड़पतियों और डेढ सौ से अधिक गम्भीर अपराधों के अभियुक्तों से बनी संसद के सदस्य अपने पैरों पर कुल्हाड़ी नहीं मारेंगे। इसलिए भ्रष्टाचार से मुक्ति का कोई भी प्रयास संसद के स्वरूप में परिवर्तन की माँग करेगा या व्यवस्था परिवर्तन चाहेगा। परिणाम यह होगा कि यथास्थिति से लाभांवित होने वालों और परिवर्तन कामियों के बीच टकराव अवश्यम्भावी है।
गहराई में जाकर देखा जाये तो लोकतांत्रिक सरकार के खिलाफ किया गया कोई भी आमरण अनशन भले ही ह्रदय परिवर्तन का प्रयास बतलाया जाता हो किंतु असल में यह उदासीन लोगों की भावुकता को जगा कर उन्हें मांगों के पक्ष में सक्रिय करने की एक कोशिश होती है जो परोक्ष में वैकल्पिक हिंसा की चेतावनी होती है।
अन्ना हजारे के अनशन से जो चेतना जगी थी वह कार्यक्रम के अभाव में धीरे धीरे लुप्त होती जा रही है क्योंकि यदि यही हाल रहा तो बहुत सम्भव है कि लोग अपनी पुरानी उदासीन दशा को पहुँच जायें। इसलिए जो लोग इस अनशन के प्रभाव से जागे हैं उन्हें इसकी गति बनाये रखने के लिए किसी कार्यक्रम को हाथ में लेना होगा। कानून बनने तक नमूने के तौर पर तहसील और जिला स्तर पर कुछ इस तरह के कार्यक्रम हाथ में लिये जा सकते हैं-
• स्थानीय स्तर पर अन्ना के आन्दोलन का सक्रिय समर्थन करने वालों की सूची तैयार करना और उसमें सन्दिग्धों को अलग से रेखांकित करके रखना।
• अपने क्षेत्र में सादगी और ईमानदारी के प्रतीक के रूप में पहचाने जाने वाले अन्ना जैसे आदर्श और जनसेवा में रुचि रखने वाले व्यक्तियों की पहचान करना व उनके द्वारा किये गये विकास के कामों को सूचीबद्ध करना, स्थानीय समितियां बनाना, जो एक से अधिक हो सकती हैं।
• अपनी ईमानदारी के लिए विख्यात व्यक्तियों, विशेष रूप से सेवा निवृत्त बड़े अधिकारियों की सूची तैयार करना।
• प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन काल में किसी नेता, अफसर या बाबू को दी गयी या देनी पड़ी रिश्वत की सूची तैयार करे और अगर याद हो तो उसका नाम और उसके द्वारा अपनाये गये दबावों का भी उल्लेख तैयार कर रखे।
• स्थानीय स्तर पर आन्दोलन में सक्रिय रहे लोगों द्वारा किस किस विभाग में किस किस सीट पर किस तरह से रिश्वत ली जाती है [मोडस ओपरेंडी] इसका एक खाका तैयार किया जाना चाहिए।
• जिन व्यापारियों, ठेकेदारों, नेताओं, अफसरों, विधायकों, मंत्रियों, न्यायाधीशों, या किसी भी लाभ के पद पर रहे लोगों की सम्पत्ति में यदि कम समय में अकल्पनीय वृद्धि हुयी है तो स्थानीय स्तर पर उन व्यक्तियों और उनकी ज्ञात सम्पत्ति की सूची तैयार करना। इनमें कुख्यात विभागों के अफसरों पर विशेष ध्यान केन्द्रित करना।
• पिछले कुछ वर्षों में विदेश यात्रा करने वाले सन्दिग्धों की सूची तैयार करना, विशेष रूप से जो व्यक्ति स्वित्जरलेंड की यात्रा पर गये हों।
• कभी किसी मंत्री, नेता, या अफसर के दलाल रहे किंतु अब असंतुष्ट लोगों की सूची तैयार करना।
• जहाँ वांछित हो सूचना के अधिकार के अंतर्गत जानकारी एकत्रित करना।
• इत्यादि...............
जो लोग भी भ्रष्टाचार के खिलाफ सचमुच गम्भीर और सक्रिय रहे हैं उनके चुप बैठने का समय अभी नहीं आया है, उन्हें बनने वाले कानून और उसका पालन कराने वाले सरकारी तंत्र के भरोसे नहीं बैठ जाना चाहिए। इस व्यवस्था का मौजूदा तंत्र कभी नहीं चाहेगा कि जनलोकपाल विधेयक आये, और अगर आ भी जाये तो सफलता पूर्वक लागू भी हो जाये। अगर आ भी गया तो या तो सारे भ्रष्ट एक हो जायेंगे या फिर पहले ये, या पहले वे, के नाम पर मामले को उलझाएंगे। किसी भी नयी पहल का पहले विरोध किया जाता है, विरोध सफल न होने पर उसका विकृतिकरण किया जाता है, और वह भी सफल न होने पर उसका विलीनीकरण करने की कोशिशें होती हैं। सबसे भ्रष्ट सबसे आगे आकर मोर्चा सम्हालने की कोशिश करेंगे या साम्प्रदायिक शक्तियाँ धर्मस्थलों के नये विवाद खड़े करने और नयी विवादास्पद धार्मिक यात्राओं को लेकर उसे देश की प्रमुख समस्या की तरह उभारने की कोशिश करेंगे। इसी आन्दोलनों में से कई रामदेव अपनी दुकानें अलग खोल कर बैठ सकते हैं। अगर व्यवस्था परिवर्तन करने में सक्षम एक अपेक्षाकृत अधिक निरंतर सक्रिय, मजबूत और संगठित शक्ति नहीं होगी तो कोई भी कानून समस्याओं को हल नहीं कर सकेगा। इसका हाल भी वही हो जायेगा जो अभी तक के सुधारवादी कानूनों का हुआ है। इस जनअसंतोष को एक सार्थक दिशा देने के लिए एक अन्ना की नहीं लाखों अन्नाओं की जरूरत होगी। मोमबत्ती जलाने वाले हाथों को हाथ पर हाथ धर कर नहीं बैठ जाना चाहिए और ना ही उनसे मदद की उम्मीद रखनी चाहिए जिनके खिलाफ यह कल्पित कानून बनने की सम्भावनाएं बनीं हैं।


वीरेन्द्र जैन
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मो. 9425674629

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