बुधवार, जुलाई 11, 2012

आपका कथन सच नहीं है अडवाणीजी


आपका कथन सच नहीं है अडवाणीजी 

वीरेन्द्र जैन
       

 आदरणीय अडवाणीजी देश के सवसे चतुर नेताओं में से एक हैं और बहुत ही सही समय पर कूटनीतिक कदम उठाते हैं. वे कई बार ऐसे मुद्दे छेड़्ते हैं जिस पर आयी तीव्र प्रतिक्रिया का वार उनके प्रतिद्वन्दी को झेलना पड़्ता है. पिछले दिनों अडवाणीजी ने भाजपा में प्रधानमंत्री पद के अपने प्रतिद्वन्दी नरेन्द्र मोदी के पक्ष में बयान देते हुए गोलमाल तरीके से कहा कि जितना गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को बदनाम किया गया उतना इतिहास में किसी को नहीं किया गया. वैसे तो यह बयान उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की किताब की चर्चा करते हुए कहा है कि श्री कलाम का यह कथन गलत है कि मोदी 2002 में गुजरात में हुई हत्याओं के बाद उनकी यात्रा के पक्ष नें नहीं थे, क्योंकि वे उनको लेने एयरपोर्ट पर गये और जहाँ जहाँ वे गये उनका साथ दिया और सहयोग भी किया.  अडवाणीजी खुद जानते हैं कि यह तर्क कितना लचर है क्योंकि राष्ट्रपति की यात्रा के समय सम्बन्धित प्रदेश के मुख्यमन्त्री का एयरपोर्ट पर जाना और उनके सरकारी कार्यक्रमों में साथ रहना प्रोटोकाल के अंतर्गत अनिवार्य है. उस तरह साथ रहने से मोदी के किये काम धुल नहीं जाते.
       गुजरात के गान्धीनगर से संसद में पहुँचने वाले अडवाणीजी का यह कहना कि सोची समझी साजिश और राजनीति के तहत मोदी पर हमला किया जा रहा है, एक चतुराई भरा बयान है जिसे चालाकी भरा बयान भी कहा जा सकता है. सब जानते हैं कि गुजरात के गोधरा में साबरमती एक्सप्रैस की बोगी संख्या 6 में लगी आग और उसमें दो कारसेवकों समेत 59 व्यक्तियों के जल जाने के बाद पूरे गुजरात में सरकारी संरक्षण में मुसलमानों का नरसंहार हुआ था, उस समय प्रधान मंत्री तो छोड़ दीजिए, नरेन्द्र मोदी पूरी तौर पर गुजरात के मुख्यमंत्री कद के नेता भी नहीं बने थे. जब अक्टूबर 2001 में सीधे मुख्यमंत्री पद पर श्री मोदी अवतरित हुये तब विधानसभा चुनावों के लिए कुल एक वर्ष का समय शेष था और उस समय गुजरात में भाजपा की लोकप्रियता का ग्राफ बहुत नीचे जा चुका था. यही कारण था कि केशुभाई पटेल को मुख्यमंत्री पद से हटा कर संघ के कुशल प्रचारक व समाज में ध्रुवीकरण पैदा करने में कुशल श्री नरेन्द्र मोदी को किसी भी तरह चुनाव जीतने के लिए आजमाया गया था. उस समय भाजपा की लोकप्रियता का हाल यह था कि विधायकों के रिक्त पद भरने के लिए चार विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव हुये थे जिनमें से तीन में कांग्रेस उम्मीदवार जीते थे और चौथे में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी जीते थे. यह जानना रोचक होगा कि मुख्यमन्त्री रहते हुए भी मोदी की जीत उस विधायक की जीत से आधे से भी कम मतों से हुयी थी जिससे मोदी के लिए सीट खाली करवाई गयी थी. कहने का अर्थ यह है कि मोदी को जानबूझ कर बदनाम करने का कोई कारण नहीं था, क्योंकि उनके प्रधानमंत्री तो क्या अगला मुख्यमंत्री बनने के बारे में भी कोई सोच भी नहीं सकता था, सच तो यह है कि श्री अडवाणीजी की रथयात्रा के दौरान भी जो हिंसा की घटनाएं हुयीं वे किसी भी तरह से कम भयावह नहीं थीं तथा बाबरी मस्ज़िद को तोड़ने के बाद मुम्बई में जो बम विस्फोट और दंगे हुए वे भी उतने ही भयंकर थे और उनका क्षेत्र अनेक राज्यों तक फैला हुआ था, ऐसा लगता है कि श्री अडवाणी. अपने प्रधानमंत्री पद प्रतियोगी के गुजरात में घटित नरसंहार को बड़ा बता कर अपने कारनामों को घटाने का खेल खेल रहे हैं, जबकि धर्मनिरपेक्ष शक्तियों ने हमेशा ही साम्प्रदायिकता का विरोध किया है चाहे वह 1992 की हो या 1984 की।
       स्मरणीय है कि मुख्यमंत्री बनने और गुजरात में मुसलमानों का नरसंहार घटित होने देने के बाद भी मोदी का व्यवहार किसी की बात पर ध्यान न देने वाले बजरंग दल के बाहुबली की तरह रहा है. उल्लेखनीय है कि संघ परिवार में संघ प्रचारक, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंगदल, भारतीय मजदूर संघ आदि 62 से अधिक संगठनों के लिए जो चयन किया जाता है उसमें बौद्धिक स्तर की विशेष भूमिका होती है. उक्त सभी संगठनों में काम लर चुके श्री मोदी ने घटनाओं के बाद मृतकों के परिवारों हेतु जो मुआवजा घोषित किया उसमें साबरमती एक्सप्रैस की बोगी नम्बर 6 में मारे गये लोगों लिए दो लाख और शेष गुजरात में मरने वालों में जिनकी लाशें मिल गयीं उनको एक एक लाख का मुआवजा घोषित किया जबकि दोनों ही मामलों में गर्वीले गुजरात के निर्दोष लोग ही मारे गये थे, अंतर केवल इतना था कि वे लोग जिस परिवार में जन्म लेने को विवश हुए थे उसी के धर्म को अपने नाम के साथ जोड़्ने लगे थे. उसी दौरान जब भारत ने ट्वेन्टी-ट्वेन्टी में विश्व कप जीता तथा राज्य सरकारों ने खिलाड़ियों को करोड़ों रूपयों के धन से पुरस्कृत कर अपनी राष्ट्रीय भावना को व्यक्त किया तब मोदी जी ने अपने भरे पूरे क्रिकेट प्रेमी राज्य के खिलाड़ियों को कुल एक एक लाख रूपये देने की घोषणा की क्योंकि उनके राज्य से खेलने वाले खिलाड़ियों के नाम इरफान पठान और यूसुफ पठान थे।
       नरेन्द्र मोदी ने हत्यारों के पक्ष नें खड़े होते हुए कहा था कि प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया होती है जबकि यह स्पष्ट था कि शेष गुजरात में मारे गये और दूसरे दूसरे रूप में प्रताड़ित लोगों का गोधरा में घटित घटना से कोई सम्बन्ध नहीं था. जब इस तरह निर्मित ध्रुवीकरण का लाभ उठाने के लिए मोदी तुरंत चुनाव कराने के पक्षधर थे और चुनाव आयोग कानून और व्यवस्था के अनुसार चुनाव की तिथि को आगे बढाना चाहता था तब श्री मोदी तत्कालीन चुनाव आयुक्त लिंग्दोह के खिलाफ अनर्गल और अश्लील बयान देने पर उतर आये अपितु यह भी कहा कि यह सब कुछ वे सोनिया गान्धी के इशारे पर कर रहे हैं जिनसे शायद वे चर्च में मिलते होंगे. इतना ही नहीं  अडवाणी ने इसी दौरान उन्हें पिछले पचास साल का सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री बतलाया और अपने कारनामों पर उन जैसे नेता से शह पा अपनी चुनावी यात्राओं में श्रीमती सोनिया गान्धी और राहुल गान्धी को जर्सी गाय और बछड़ा कह कर सम्वोधित किया. उन्होंने मुसलमानों पर पाँच पत्नियाँ रखने और पच्चीस बच्चे पैदा करने का आरोप भी लगाया. सच तो यह है कि जब इस मामले पर राजधर्म पालने की सलाह देने वाले अटलजी त्यागपत्र देने वाले थे तब जसवंत सिंह ने उन्हें हाथ पकड़ कर रोका था. क्या अडवाणीजी अटलजी को भी मोदी की बदनामी करने वालों में सम्मलित करना चाहेंगे. इन घटनाओं के बाद ही एनडीए का पतन शुरू हो गया था और रामविलास पासवान, ममता बनर्जी, चन्द्रबाबू नायडू, फारूख अब्दुल्ला समेत उनके तमाम सहयोगी दलों के लोगों ने खुली आलोचना की थी व जनतादल(यू) बीजू जनता दल आदि भी खुल कर साथ नहीं दे पा रहे थे। आइ ए एस अधिकारी शर्म के मारे अपने पद से स्तीफा देने लगे थे व सारी दुनिया में थू थू हो रही थी। यह बदनामी नहीं सबकी सच्ची भावना थी.
       अडवाणीजी जिसे ऐतिहासिक बदनामी कह कर उस बदनामी को उकेरना चाहते हैं वह एक कटु सच्चाई है, जिसे अमेरिका और इंगलेंड जैसे देशों ने वीसा देने से इंकार करके संकेत दिया था. वे यह भूल रहे हैं कि मोदी ने सारे बड़े नेताओं के कहने के बाद भी अपने मंत्रि मण्डल के सदस्य रहे हरेन पंड्या को टिकिट नहीं दिया था, और बाद में उनकी हत्या हो गयी थी. उनके शोक में घर गये अडवाणीजी के सामने ही हरेन पंड्या के पिता ने चीख चीख कर मोदी को हत्या के लिए जिम्मेवार ठहराया था, क्या यह बदनामी के लिए था. मोदी के मंत्रिमण्डल को सुशोभित करने वाली महिला मंत्री को जेल जाना पड़ा और केबिनेट मंत्री को प्रदेश से बाहर होना पड़ा क्या ये भी अदालत ने उनकी बदनामी के लिए किया था? मोदी के सबसे विश्वस्त पुलिस अधिकारी को इशरत हत्याकांड में जेल भेजा जाना क्या किसी षड़यंत्र का हिस्सा है जबकि एक आईपीएस अधिकारी अपनी नौकरी और जान का खतरा मोल लेकर भी कह रहा है कि उसे 2002 में हत्यारों और लुटेरों के प्रति नरमी बरतने के निर्देश बैठक में दिये गये थे.
       महिला आयोग, अल्पसंख्यक आयोग, मानव अधिकार आयोग आदि आदि सैकड़ों संगठनों, जाँच समितियों समाचार पत्रों, सूचना माध्यमों, राजनीतिक दलों की रिपोर्टों की बात तो छोड़ ही दीजिए उनके अपने संजय जोशी और तोगड़िया भी क्या मोदी को बदनाम करना चाहते हैं या दरी के नीचे बहुत सारी गन्दगी दबी है. एक बार यह मान भी लिया जाये कि मोदी  और उनके लोग कोई जिम्मेवार नहीं थे तो एक प्रदेश के मुख्यमंत्री होने के नाते क्या अपने प्रदेश के निर्दोष लोगों के मारे जाने, घर उजाड़े जाने, धन सम्पत्ति और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को लूट कर बरबाद कर देने के बारे में आपको चिंता क्यों नहीं हुयी? इसके विपरीत कमजोर अभियोजन के कारण आरोपियों के छूट जाने पर खुशियाँ क्यों मनायी गयीं? 
       नीतीश कुमार और शिव सेना का बयान एक बार को हथकण्डा भी हो सकता है पर, क्या केशुभाई पटेल, काशीराम राणा, सुरेश मेह्ता, गोरधन झड़पिया आदि सभी गलत हैं जो कह रहे हैं कि मोदी के शासन काल में एक लाख करोड़ से अधिक के 17 घोटाले हुए हैं.               
वीरेन्द्र जैन
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