सोमवार, अप्रैल 15, 2013

मध्य प्रदेश में उमा प्रवेश


मध्य प्रदेश में उमा प्रवेश
वीरेन्द्र जैन
                पार्टी के अन्दर और बाहर नितिन गडकरी की चतुर्दिक निन्दा हो जाने के बाद भाजपा के मार्गदर्शक की भूमिका निभाने वाले आर एस एस को राजनाथ सिंह के कन्धों पर दूसरी बार अध्यक्षता का भार डालना पड़ा है। यह जिम्मेवारी मिलने के बाद राष्ट्रीय कार्यकारिणी घोषित करने में उन्हें लम्बा समय लगा, जो पार्टी के संगठन में चल रही खींचतान के संकेत देती है। भाजपा की नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी में तेरह उपाध्यक्ष घोषित किये गये जिनमें सदानंद गौडा, मुख्तार अब्बास नकवी,  सीपी ठाकुर, जुएल ओरांव, एसएस अहलूवालिया, बलबीर पुंज, सतपाल मलिक,  प्रभात झा,  उमा भारती, बिजॉय चक्रवर्ती, लक्ष्मीकांता चावला, किरण माहेश्वरी, स्मृति ईरानी हैं। इन तेरह नामों के बीच अखबारों में सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरने वाला नाम उमा भारती का ही था जिनका चयन नितांत अनेपक्षित था। स्मरणीय है कि उन्होंने पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेताओं को सार्वजनिक रूप से न केवल धिक्कारा ही था अपितु अपनी अलग पार्टी बना कर कई चुनावों में प्रत्याशी घोषित किये व मध्यप्रदेश में विधानसभा और लोकसभा के चुनाव लड़े जिनमें भाजपा को ही मुख्य रूप से निशाने पर रखा था। माना जाता है कि गुजरात और उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनावों में उन्होंने प्रत्याशी घोषित करने के बाद स्थानीय नेताओं से सौदा कर लिया था तथा कभी अपने गुरु के आदेश के नाम पर तो कभी हिन्दू वोटों की एकजुटता के नाम पर अपने प्रत्याशी वापिस ले लिये थे। उनका वोट बैंक भी भाजपा के वोट बैंक से निकला था तथा 2008 के मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में उन्होंने बारह लाख वोट भी जुटा लिए थे भले ही वे कुल पाँच विधायक ही जिता पायी थीं। बड़ा मल्हरा उपचुनाव में जो उमा भारती का ही अपना चुनाव क्षेत्र था, भाजपा ने अपनी प्रतिष्ठा का प्रतीक बना कर लड़ा था क्योंकि उन्हें दल के आगे व्यक्ति के महत्व को खत्म करना था और यह भी सिद्ध करना था कि उमा भारती पार्टी के बिना शून्यवत हैं और वे अपने क्षेत्र से भी अपना प्रत्याशी जिता नहीं सकतीं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने साम दाम दण्ड भेद सभी हथकण्डों से वह चुनाव भाजपा की झोली में डाल लिया था। चुनव के दौरान भाजपा के बाहुबलियों ने उनके ऊपर हमला किया था और उन्हें भाग कर एक मन्दिर के अन्दर छुप जाना पड़ा था जहाँ अन्दर से साँकल बन्द करके ही वे सुरक्षित रह पायी थीं। इस घटना पर उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर अपनी हत्या करवाने का आरोप भी लगाया था। सत्ता से दूर होने पर उनके अधिकांश समर्थक क्रमशः उनसे छिटक गये थे और वे लोग ही साथ रह गये थे जिनका भाजपा में प्रवेश पाना दुर्लभ था। निरंतर अकेली पड़ती उमा भारती कब तक केवल पैसे के सहारे राजनीति करतीं सो उन्होंने भाजपा में पुनर्प्रवेश के प्रयास किये और भाजपा नेताओं से व्यक्तिगत दुश्मनी रखने के कारण उनसे जुड़े समर्थकों को अधर में छोड़ दिया। 2009 के लोकसभा चुनाव में मैं तो उन्होंने अडवाणीजी को प्रधानमंत्री बनवाने में सहयोग करने के नाम पर भाजपा से केवल एक सीट माँगी थी जो भी उन्हें नहीं मिली थी। भाजपा में पुनर्प्रवेश के लिए उन्हें वर्षों प्रतीक्षा करना पड़ी थी व उनके प्रवेश के खिलाफ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने उनके प्रवेश की दशा में स्तीफा देने की धमकी दी थी। जब जब उनकी माँग ठुकरा दी जाती तो साध्वीभेषी राजनेता प्रैस के सामने यह ‘सच’ कहतीं कि स्वास्थ के कारणों से वे अभी राजनीति में सक्रिय नहीं हो पा रही हैं। उनका प्रवेश कई बार टला और अंततः बाबरी मस्ज़िद ध्वंस मामले में सहअभियुक्त होने के परिप्रेक्ष्य में संघ द्वारा वीटो कर देने से उन्हें पार्टी में प्रवेश तो मिल गया पर मध्य प्रदेश में उनके प्रवेश पर पाबन्दी लगा दी गयी। उल्लेखनीय है कि भाजपा में प्रवेश मिलने के बाद उन्हें स्वास्थ सम्बन्धी कोई समस्या नहीं रही पर यह समस्या उनके भाई को हो गयी जिन्हें देखने के लिए उन्हें बार बार मध्यप्रदेश में आना पड़ता था। मध्यप्रदेश में अछूत घोषित करके भाजपा ने उन्हें गंगा शुद्धिकरण पर लगा दिया पर वे बार बार नर्मदा स्नान करके ही निर्मलता और शांति पाती रहीं, तथा धार्मिक कार्यों की ओट में आती जाती रहीं। इधर उनके आने से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री और तत्कालीन पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और अधिक कलुषित व अशांत होते रहे।
       उत्तरप्रदेश के 2012 के विधानसभा चुनावों के लिए उन्हें कई दूसरे लोगों के साथ चुनाव प्रभारी घोषित किया गया किंतु इस झुनझुने की असलियत समझ कर उन्होंने उसमें रुचि नहीं ली। बाद में उन्हें उत्तरप्रदेश में विधानसभा सदस्य का प्रत्याशी बनाने हेतु प्रदेश में सरकार बनने की स्थिति में मुख्यमंत्री प्रत्याशी बनाये जाने का लालच भी दिया गया। उन्हें उत्तर प्रदेश में जितवाने हेतु मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने पूरे मन से कोशिश की व समस्त संसाधन जुटा कर जिता भी दिया ताकि वे मध्यप्रदेश से विदा हो जायें। एक प्रदेश की मुख्यमंत्री और केन्द्र में मंत्री रही उमा भारती को यह पद फाँस नहीं पाया और वे केवल शपथ ग्रहण करने के लिए ही लखनऊ गयीं। वहाँ भी उन्हें सचमुच ही इतना बाहरी समझा गया कि जब पिछले दिनों कल्याण सिंह ने भाजपा के आगे अपनी पार्टी का आत्मसमर्पण कराया तब उन्हें आमंत्रित तक नहीं किया गया।
       सब जानते हैं कि उमा भारती की जान जिस तोते में बसती है उसका नाम मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी है। इसी कारण उन्हें न गंगा की गोद में आराम मिलता है, न उत्तरप्रदेश बाँध पाता है और न ही गुजरात आकर्षित कर पाता है। स्मरणीय है कि जब उन्हें भाजपा में पुनर्प्रवेश मिला था तब मध्यप्रदेश में उनके सम्मान में कोई भी स्वागत समारोह नहीं हुआ था अपितु पार्टी में एक भयावह सन्नाटा सा छा गया था। उनके समर्थकों को ही नहीं विधायकों तक को महीनों विधानसभा में भाजपा विधायक दल की सदस्यता नहीं मिल पायी थी। उनमें से किसी के नाम पर भी किसी सम्मानित पद के लिए कभी विचार नहीं किया गया था। इस अनुभव को ध्यान में रखते हुए इस बार उमा भारती ने मध्य प्रदेश में धूम धड़ाके के साथ प्रवेश करने की योजना बनायी। अपना स्वागत कराने के लिए उन्होंने अपने व्यक्तिगत समर्थकों के नाम पर सभी स्थानीय समाचार पत्रों में पूरे पूरे पृष्ठों के विज्ञापन प्रकाशित कराये और पार्टी कार्यालय में प्रायोजित स्वागत समारोह आयोजित करवाया। संयोग से कभी उनके विरोधी रहे प्रभात झा प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाये जाने के बाद मुख्यमंत्री के विरोधी हो गये थे सो उनको भी स्वागत समारोह में बुलाना पड़ा क्योंकि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। मजबूरन मुख्यमंत्री को भी इस स्वागत समारोह में आना पड़ा और नकली हँसी हँसना पड़ी। उल्लेखनीय है कि इसी दौरान मुख्यमंत्री के प्रचार विभाग ने पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के उस साक्षात्कार को प्रकाशित करवाया जिसमें उन्होंने कहा कि 2003 के चुनावों में भाजपा की जीत में उमा भारती की कोई भूमिका नहीं थी अपितु एंटी इंकम्बेंसी के कारण भाजपा का जीतना स्वाभाविक था। उमा भारती के एकल विज्ञापनों को देख कर प्रभात झा समर्थकों ने भी प्रमुख स्थानों पर उनके होर्डिंग्स लगवा दिये जिनमें उमा भारती का अता पता दूर दूर तक नहीं था।
       भले ही उमा भारती ने अपने बयान में कहा हो कि वे कांग्रेस का पिण्डदान करने के लिए आयी हैं किंतु सब लोग जान समझ रहे हैं कि असल में वे किसका पिण्डदान करेंगीं। वह दिन दूर नहीं जब मध्य प्रदेश के अन्दर भाजपा में महाभारत शुरू हो जायेगा। संघ के इशारों पर चलने वाले दल में सह सरकार्यवाहक सुरेश सोनी ने शिवराज को सताने के लिए न केवल उमा भारती, प्रभात झा को ही केन्द्रीय संगठन में स्थान दिलवा दिया है अपितु थावर चन्द गहलौत से लेकर कैलाश विजयवर्गीय, सुधा मलैया तक को शिवराज से ऊंची या बराबर की जगह पर प्रतिष्ठित करवा दिया है। वैसे भी उनका भ्रष्टाचार में आकण्ठ डूबे अपने मंत्रिमण्डल के सदस्यों पर कोई नियंत्रण नहीं है, उच्च अधिकारी वैसे भी भाव नहीं देते थे और अब तो आचार संहिता लगने में कुछ ही महीने शेष रह गये हैं। पुनः भाजपा के सत्ता में आने के कोई संकेत नहीं हैं तथा उमा टिकिट वितरण में बड़ा हिस्सा माँगेंगीं। उनके जिन लोगों को भी टिकिट नहीं मिलेंगे वे स्वतंत्र रूप से उमाभारती के आशीर्वाद का दावा करते हुए चुनाव लड़ेंगे ही। भाजश के बिखर गये पुराने लोग फिर से एक जगह एकत्रित हो गये हैं। नई कार्यकारिणी के गठन के बाद उमाभारती का मध्यप्रदेश में प्रवेश खुल जाने से शिवराज के चेहरे की रौनक चली गयी है और उनकी खोखली हँसी उनके अन्दर पल रहे द्वन्द का साफ संकेत दे रही है। अँग्रेजी में एक कहावत है कि हँसने में जिसका पेट नहीं हिलता उस व्यक्ति से सावधान रहो। उनके दिल नहीं मिले केवल हाथ मिले हैं। रहीम ने कहा था-
रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय
जोड़े से फिर न जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाय 
       इस जोड़ की गाँठें साफ नजर आ रही हैं
वीरेन्द्र जैन
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