राष्ट्रीय
कार्यकारिणी के गठन के संकेत
बेशर्मी पर उतर आयी है भाजपा
वीरेन्द्र जैन
किसी
भी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के गठन में यह कोशिश की जाती है कि पार्टी के
संगठन का गठन ऐसा हो जिससे वह पहले की तुलना में और भी अच्छी तरह काम करे व
लोकप्रियता हासिल करे, किंतु राजनाथ सिंह को मजबूरन भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष
बनाये जाने के बाद घोषित की गयी राष्ट्रीय कार्यकारिणी लोकतंत्र की दिशा में जाती
हुयी दिखाई नहीं देती। देश भर के निष्पक्ष प्रिंट और विजुअल मीडिया ने भाजपा के इस
कदम की एक स्वर से निन्दा की है व भाजपा का पेड मीडिया भी इसकी प्रशंसा नहीं कर
सका अपितु उसने मौन रहना ही ठीक समझा।
बंगारुओं,
येदुरप्पाओं, गडकरियों, व जाँचों के दरवाजे पर लटके सैकड़ों दूसरों की यह पार्टी
दिशा भ्रम की शिकार हो गयी है और उसे पता ही नहीं चल रहा कि उसकी दिशा कौन सी है।
उल्लेखनीय है कि नब्बे के दशक में बाबरी मस्ज़िद तोड़ने का माहौल बनाने हेतु जो
रथयात्रा निकाली गयी थी वह अपने पीछे खून की लकीर छोड़ती हुयी गयी थी, और उस
राजनीतिक षड़यंत्र जिसे वे अभियान का नाम देकर भी जिम्मेवारी से बचने की कोशिश करते
हैं, द्वारा पूरे उत्तर भारत में साम्प्रदायिक उत्तेजना पैदा कर दी गयी थी। 1993
से 1999 के बीच उन्होंने इस उत्तेजना का भरपूर विदोहन किया किंतु उत्तेजनाओं की
उम्र लम्बी नहीं चलती व शीघ्र ही ठोस यथार्थ द्वार खटखटाने लगता है। उस क्लाईमेक्स
के बाद अब तक इन्होंने क्रमशः उतार ही देखा है। संघ पर अंध श्रद्धा रखने वालों को
भी भी गडकरी को अध्यक्ष के पद पर थोपना पसन्द नहीं आया था पर उनके खिलाफ हुए
खुलासों के बाद भी जब उन्हें दूसरी बार थोपा जाने लगा तो चीख पुकार मच गयी क्योंकि
पार्टी उस दौर में सत्तापक्ष पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को ही मुख्य मुद्दा
बनाये हुए थी। स्मरणीय है कि जनसंघ के पहले अध्यक्ष मौल्लिचन्द्र शर्मा को संघ के
हस्तक्षेप से दुखी होकर ही स्तीफा देना पड़ा था पर तब से संघ का आदेश ही अंतिम माना
जाता था। यह पहली बार हुआ था कि संघ की चाहत के बाद भी गडकरी को दोबारा अध्यक्ष
नहीं बनाया जा सका था। पहली बार संघ परिवार ने अध्यक्ष पद के लिए अकाल महसूस किया
था और थक हार कर दूसरे सर्वाधिक अनुशासित व आज्ञाकारी व्यक्ति के कन्धे पर बन्दूक
रख दी गयी थी। नई कार्यकारिणी से यह संकेत मिलता है कि वह अब अपने सारे मुखौटे
नोंच कर अपने असली स्वरूप में सामने आ जाना चाह्ती है।
कार्यकारिणी
में मुख्यमंत्री होते हुए भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बदनाम नरेन्द्र मोदी को
संसदीय बोर्ड में ले लिया गया है व 74 सदस्यीय टीम में अधिकांश मोदी समर्थक हैं।
स्मरणीय है कि इन्हीं राजनाथ के अध्यक्ष रहते हुए पिछले कार्यकाल में नरेन्द्र
मोदी को संसदीय बोर्ड में न लेने का कारण उनका मुख्यमंत्री होना ही बतलाया गया था।
सबसे ज्यादा शर्मनाक तो गुजरात के फर्जी एनकाउंटर के आरोपी अमित शाह को राष्ट्रीय
महासचिव बनाया जाना है जिन पर हत्या और साजिश रचने समेत कई आरोप हैं और उन्हें
तड़ीपार रहना पड़ा था। अपने उत्तेजक बयानों और बचकाने बोलों के लिए बदनाम हो चुके
वरुण गाँधी को महासचिव जैसा महत्वपूर्ण पद देने के पीछे नेहरू-गाँधी परिवार को बदनाम करने के अलावा और
क्या हो सकता है, क्योंकि वरुण गाँधी ने अभीतक किसी भी तरह की सांगठनिक प्रतिभा का
परिचय नहीं दिया है। किसी समय भाजपा और विहिप- बजरंगदल के चर्चित नेता रहे विनय
कटियार को तुरंत प्रतिक्रिया देनी पड़ी कि अगर मेरे नाम के पीछे भी गाँधी शब्द लगा
होता तो मुझे भी महासचिव का पद मिल गया होता।
उमाभारती
को यद्यपि उपाध्यक्ष जैसा नखदंत विहीन पद दिया गया है, जो हेमामालिनियों के ही
लायक पद है किंतु पिछले दिनों उन्होंने पार्टी को जो चकरघिन्नी का नाच नचाया था
उसे देखते हुए उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित किया जाना चौंकाता है। स्मरणीय
है कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें पार्टी में सम्मलित
करने पर स्तीफा देने की धमकी दी थी और इसी कारण उनका प्रवेश वर्षों तक लम्बित रहा
था। बाद में संघ के दबाव में उन्हें मध्यप्रदेश में सक्रिय न होने की शर्त पर
प्रवेश दिया गया था और उन्हें उत्तर प्रदेश में विधायक चुनवाने के लिए पार्टी ने
पूरी ताकत झौंक दी थी। यही कारण रहा कि उमा भारती शपथ लेने के अलावा कभी भी उत्तर
प्रदेश विधानसभा नहीं गयीं।
कभी
उमा भारती ने शिवराज सिंह चौहान पर उनकी हत्या करवाने का आरोप भी लगाया था पर अब
उन्होंने शिवराज सिंह की राजनीतिक हत्या करवा दी है। इस कार्यकारिणी के गठन में
अगर सबसे ज्यादा अपमानित किसी को होना पड़ा है तो वे शिवराज सिंह चौहान ही हैं। संघ
के सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी ही संघ में भाजपा का कार्य देखते हैं और उन्होंने
अपने कट्टर अनुयायी प्रभात झा को पुनः मध्यप्रदेश का अध्यक्ष बनवाना चाहा था किंतु
शिवराज सिंह चौहान ने चुपचाप ऐसी चाल चली कि प्रभात झा को मध्यप्रदेश छोड़ना पड़ा और
उनके प्रिय नरेन्द्र तोमर अध्यक्ष बन गये। यह सीधा सीधा सुरेश सोनी पर निशाना था
और उनकी क्षमताओं को चुनौती थी जिसका परिणाम यह हुआ कि वे स्वयं तो संसदीय बोर्ड
के सदस्य चुने ही नहीं गये पर उनके प्रतिद्वन्दी प्रभात झा और उमाभारती को
उपाध्यक्ष तथा थावरचन्द गहलौत और मुरलीधर राव को महासचिव बना दिया गया। इतना ही
नहीं उनके मंत्रिमण्डल में रह कर भी सदैव उन्हें संकट में डालने वाले कैलाश
विजयवर्गीय को उनके बराबर ही आमंत्रित सदस्य बना कर उन्हें अपमानित किया व
विजयवर्गीय की विरोधी सुमित्रा महाजन को बाहर कर दिया। चौहान विरोधी टीम के सांसद
राकेश सिंह अनूप मिश्रा, प्रह्लाद पटेल, और विक्रम वर्मा को ही विशेष आमंत्रितों
में सम्मलित नहीं किया अपितु फग्गन सिंह कुलस्ते को फिर से अनुसूचित जाति जनजाति
मोर्चे के अध्यक्ष पद पर प्रतिष्ठित कर दिया जो संसद में नोट कांड के एक पात्र रहे
थे। शिवराज मंत्रिमण्डल के एक सदस्य जयंत मलैया की पत्नी सुधा मलैया को राष्ट्रीय
सचिव बना कर शिवराज और उनके समर्थकों को हर तरह से नीचा दिखाने का काम किया। इस
जले पर नमक छिड़कने सुरेश सोनी 3 अप्रैल को भोपाल पहुँचे और संघ कार्यालय जाने से
पहले शिवराज सिंह चौहान के बंगले पहुँचे व बाद में उनके मंत्रिमण्डल के सदस्य
पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर के घर गये।
यह
नाराजी भाजपा शासित राज्यों में गुजरात के बाद सबसे महत्वपूर्ण राज्य मध्यप्रदेश
में ही देखने को नहीं मिल रही अपितु पूरी भाजपा में चारों ओर पैदा हुयी है। समाचार
है कि सहसंगठन मंत्री सौदान सिंह और राजनाथ में तीखी नौक-झौंक हुयी है और उसके बाद
वे अज्ञातवास पर चले गये हैं। इसी तरह वी सतीश भी बेहद नाराज हैं और बैठ को बीच
में ही छोड़ कर चले गये थे। प्रवक्ता पद से हटाये जाने पर रविशंकर प्रसाद आहत हैं
तो मुख्य प्रवक्ता नहीं बनाये जाने से प्रकाश जावेडकर नाराज हैं। शांता कुमार जैसे
वरिष्ठ नेता ही नहीं अपितु कलराज मिश्र, विनय कटियार, भगत सिंह कोश्यारी, करुणा
शुक्ला, नज़मा हेपतुल्ला, रमेश पोखरियाल निशंक, संतोष गंगवार, नवजोत सिंह सिद्धू
किरीट सोमैया, रामनाथ कोविद, तरुण विजय,
आदि की छुट्टी कर दी गयी है।
भाजपा
की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के गठन से पूर्व नरेन्द्र मोदी ने एक घंटे तक लाल कृष्ण
अडवाणी से गुप्तवार्ता भी की थी जिससे लगता है कि इस कार्यकारिणी के चयन में उनकी
सहमति है। लोकतंत्र में जब कोई लोकप्रियता की उपेक्षा करके संगठन में मनमाने बदलाव
करता है तो ऐसा लगता है कि उसकी निगाह चुनाव पर न होकर
कहीं और है। स्मरणीय है कि
भाजपा के बहुत सारे नेता बाबरी मस्ज़िद ध्वंस, साम्प्रदायिक दंगों, भगवा आवरण में
आतंक फैलाने, गुजरात के नरसंहार, करवंचन, आर्थिक अनियमियताओं आदि के घेरे में हैं।
कार्यकाल पूरा होते होते यूपीए सरकार अपराधियों को दण्ड दिलाने के प्रति तेजी ला
सकती है। अन्ना हजारे और आमआदमी पार्टी समेत अनेक संगठनों ने जिस तरह से
भ्रष्टाचार को प्रमुख मुद्दा बना दिया है इस कारण भाजपा को सत्ताविरोधी लाभ मिलने
की सम्भावना नहीं दिख रही जिसके बारे में अडवाणी भी कई बार बयान दे चुके हैं।
भाजपा का इतिहास चालाकी पूर्वक राजनीति करने व अफवाहें फैलाने का रहा है। नई
कार्यकारिणी में उन्होंने जो चयन किया है उससे ये संकेत भी मिलते हैं कि यह पार्टी
अपनी अस्तित्व रक्षा में कानून के घेरे में आने पर दुष्प्रचार में तेजी ला
साम्प्रदायिक वातावरण बनाने का काम कर सकती है, क्योंकि उसके पास लाठी की ताकत और
कम विवेक वालों की फौज दूसरे किसी भी दल से अधिक है। पिछले नौ वर्षों में उन्होंने
संसद को ठीक तरह से नहीं चलने दी है। गुजरात में लोकायुक्त को निर्मूल कर दिया है।
मोदी के नेतृत्व में इस नई कार्यकारिणी को देखते हुए यह जरूरी हो जाता है कि
धर्मनिरपेक्ष ताकते उनके मंसूबों को कामयाब न होने देने के लिए कमर कस लें क्योंकि
उन्होंने तो तैयारी कर ली है।
वीरेन्द्र जैन
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