पुस्तक समीक्षा
रमेश यादव के गीतों का नया संकलन- पीला वासंतिया चाँद
वीरेन्द्र जैन
हिन्दी
के बहुत सारे कवि अपनी ढेर सारी रचनाओं के कारण लोकप्रिय हुए हैं किंतु उनकी कोई
एक रचना इतनी लोकप्रिय हो जाती है कि वह उसके उपनाम की तरह उसके साथ जुड़ जाती है।
उदाहरण के रूप में कह सकते हैं कि बच्चन जी को ‘मधुशाला’ से, नीरज जी को ‘कारवां
गुजर गया गुबार देखते रहे’ से सोम ठाकुर को ‘मेरे भारत की माटी है चन्दन और अबीर’
से मुकुट बिहारी सरोज को को ‘इन्हें प्रणाम करो, ये बड़े महान हैं’ से बुद्धिनाथ
मिश्र को ‘एक बार और जाल फेंक मछेरे’ आदि से पहचाना जाता है तथा प्रत्येक कवि
सम्मेलन में ये प्रतिनिधि रचनाएं उन्हें सुनाना ही पड़ती थीं। ठीक इसी तरह भोपाल के
समर्थ गीतकार रमेश यादव को को उनकी लम्बी कविता ‘पीला वासंतिया चाँद’ से देश भर
में पहचाना जाता है। इसे ऎतिहासिक घटना ही कहेंगे कि इस गीत को कभी धर्मवीर भारती
ने धर्मयुग के पूरे पृष्ठ पर छापा था। अब उनका तीसरा काव्य संग्रह इसी नाम से
प्रकाशित हुआ है जिसमें उनके 21 गीत संकलित हैं और सन्दर्भित गीत प्रमुख रूप से
पुस्तक के 66 पृष्ठों को शीतल प्रकाश दे रहा है।
रमेश
यादव गीत लेखन में अपनी वरिष्ठता, लोकप्रियता, और गीतों में सम्प्रेषणीयता की
कुशलता के बाद अति लेखन के शिकार नहीं हुये। उन्होंने मुकुट बिहारी सरोज की तरह
यद्यपि मात्रा में अपेक्षाकृत कम लिखा है पर जो भी लिखा है वह चुनिन्दा की श्रेणी
में आता है। उनके गीतों की विषयवस्तु में ही नहीं अपितु उनके कहन व उपमाओं में अनूठापन
और ताजगी महसूस होती है। जिन लोगों ने उन्हें अपने सधे गले से गीत पढते हुए
देखा-सुना है वे इन गीतों को और भी गहराइयों से महसूस कर सकते हैं। यह सच्चाई है
कि जब प्रेम पनपता है तो वह कोई नाम चाहता है और हमारे यहाँ ये नाम नाते रिश्तों
के रूप में सामने आता है। मनमोहक चाँद के प्रति सदियों से धरतीवालों का जो प्रेम रहा है उसकी शुरुआत बचपन
से ही हो जाती है और वह बच्चों के मामा की संज्ञा ग्रहण कर लेता है। हुआ यह है कि
यह उपमा ही प्रेम का प्रतीक बन गयी है और हर तरह के प्रेम प्रतीक के रूप में इसका
प्रयोग होता रहा है।
मां कहती है- बेटा चन्दा
बहिना कहती- भैया चन्दा
सजनी साजन को चाँद कहे
भौजी कहती- दिवरा चन्दा
कितने प्यारे नाते बन कर
हम तुम में घूमा किया चाँद
यह पीला वासंतिया चाँद
कितने प्यारे नाते बन कर
हम तुम में घूमा किया चाँद
यह पीला वासंतिया चाँद
रमेशजी ने मानव जीवन
ही नहीं अपितु प्रक्रति, परम्परा और पुराणों के प्रतीकों में चाँद की प्रेममयी
उपस्थिति को खोज कर मन में गुदगुदी पैदा करने वाली गीत कविता रची है।
गंगा का साथ मिला इसको
शंकर की दीर्घ जटाओं में
पर आजादी का दीवाना
पर आजादी का दीवाना
कब रह पाया बाधाओं में
जिद कर बैठा, प्रलयंकर ने
नभ के माथ मढ दिया चाँद
जिद कर बैठा, प्रलयंकर ने
नभ के माथ मढ दिया चाँद
यह पीला वासंतिया चाँद
या
इस धरती का हर अंग आज
हिंसा की माला जपता है
उत्थान नहीं है यह तो बस
हिंसा की माला जपता है
उत्थान नहीं है यह तो बस
धरती का रोग पनपता है
कितनी बदसूरत है धरती
इसने कैसे वर लिया चाँद
इसने कैसे वर लिया चाँद
अपने
कटु समय से साक्षात्कार करते हुए भी रमेश यादव की भाषा नीरज जी की तरह गीतात्मक
बनी रहती है-
आदमी के लहू का जिसे स्वाद है
वो ही नीयत रथों में बिठायी गयी
जंगली आचरण संहिता के लिए
वो ही नीयत रथों में बिठायी गयी
जंगली आचरण संहिता के लिए
आदमीयत मसीहा बनायी गयी
हंस की मुस्कराहट तलक में यहाँ
भेड़ियों का असर है, सम्हल कर चलो
सच्चे कलमकार दारुण दशाओं में भी अपना स्वाभिमान नहीं बेचते। वे लिखते हैं-
कलम बेच देते तो राजधानियों की
मदभरी ग़ज़ल होते हम भी
हंस की मुस्कराहट तलक में यहाँ
भेड़ियों का असर है, सम्हल कर चलो
सच्चे कलमकार दारुण दशाओं में भी अपना स्वाभिमान नहीं बेचते। वे लिखते हैं-
कलम बेच देते तो राजधानियों की
मदभरी ग़ज़ल होते हम भी
व्यक्ति नहीं दल होते हम भी
पोखर को कर लिया प्रणाम अगर होता
पोखर को कर लिया प्रणाम अगर होता
आजकल कमल होते हम भी
आज के आदमी का दोहरापन महसूस कर वे व्यंजना में
लिखते हैं-
संचय की क्षमता न रही तो त्यागी हो गये
नंगा किया समय ने तो वैरागी हो गये
या
या
हूं व्यवस्था का विरोधी और ऊहापोह भी है
संत रहना भी जरूरी और सुविधा मोह भी है
संत रहना भी जरूरी और सुविधा मोह भी है
किसी दल विशेष का झंडा उठाये बिना भी जब कवि अपनी
बात कहता है तो उसकी पक्षधरता छुप नहीं सकती। सर्वहारा की चिंताएं उसकी कविता में
उसकी राजनीति के संकेत दे देती हैं।
बिटिया हुयी जवान पिता की निर्धनता की छाँव में
ज्यों कोई फुलझड़ी लिए हो घासफूस के ठांव में
ज्यों कोई फुलझड़ी लिए हो घासफूस के ठांव में
वेणु गोपाल कहते थे कि प्रेम और युद्ध की कविता
आपस में विरोधी नहीं होती है, हम युद्ध इसीलिए तो करते हैं ताकि प्रेम सुरक्षित
रहे। संकलन में कई मनमोहक गीतों के साथ साथ वे समाज को शुभकामनाएं देते हैं तो
कहते हैं कि-
जिसके पास घुटन हो, उसको हवा मिले
जिसके पास घुटन हो, उसको हवा मिले
दुख के बीमारों को सुख की दवा मिले
नया वर्ष ऐसा देना मेरे भगवन
जिसके पास एक हो उसको सवा मिले
नया वर्ष ऐसा देना मेरे भगवन
जिसके पास एक हो उसको सवा मिले
ऐसी पंक्तियां मुक्तिबोध की उन पंक्तियों की याद
दिलाती हैं जो कहती हैं कि – जो है उससे और बेहतर चाहिए ।
जब प्रकाशकों ने गीतों की पुस्तकें छापना बन्द कर
दिया हो और गीतकार कहलाने पर साहित्य से बाहर का आदमी प्रचारित कर दिया गया हो,
ऐसी दशा में गीतों का संकलन लाने के लिए रमेश यादव के गीतों जैसे गीतों का संकलन
ही पूरे साहस के साथ आकर कह सकते हैं कि गीत अभी जिन्दा हैं और रहेंगे।
चर्चित पुस्तक- पीला वासंतिया चाँद
गीतकार - रमेश यादव
पृष्ठ - 88
मूल्य रु.200/- सिर्फ
प्रकाशक – चन्द्रमा प्रकाशन
कावेरी-64 महेन्द्र टाउनशिप-1
गीतकार - रमेश यादव
पृष्ठ - 88
मूल्य रु.200/- सिर्फ
प्रकाशक – चन्द्रमा प्रकाशन
कावेरी-64 महेन्द्र टाउनशिप-1
ई-8 एक्स्टेंशन, गुलमोहर भोपाल 462039
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा सिनेमा के पास भोपाल [म.प्र.]
462023
मोबाइल 9425674629
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