गुरुवार, अक्तूबर 24, 2013

म.प्र. में निर्वाचन आयोग के निर्देशों को नकारती भाजपा

म.प्र. में निर्वाचन आयोग के निर्देशों को नकारती भाजपा
वीरेन्द्र जैन

      किसी भी लोकतंत्र में ईमानदार निर्वाचन के लिए एक स्वतंत्र, सक्षम और समर्थ निर्वाचन आयोग जरूरी होता है जिसकी उपस्थिति ही हमारे देश में लोकतंत्र को बनाये हुये है जबकि हमारे अनेक पड़ोसी देशों में उसकी कमी साफ नजर आती है। खेद की बात है कि येन केन प्रकारेण सत्ता हस्तगत करने को उतावली रहने वाली भाजपा, जिसकी मातृपितृ संस्था पर हिटलर की नीतियों का पूर्ण प्रभाव है और जो उसके निर्देश पर काम करती है, द्वारा निर्वाचन आयोग के नीति निर्देशों को खुली चुनौती दी जा रही है। ऐसी स्थिति में पाँच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में भाजपा शासित राज्यों में स्वतंत्र चुनाव कठिन दिखायी देने लगे हैं।       
      किसी भी चुनाव में जन समर्थन के आधार पर जीत हार होती है जिसे स्वीकारना ही लोकतांत्रिक होना है, पर इतिहास गवाह है कि भाजपा अपनी हार को लोकतांत्रिक तरीके से स्वीकारने में सदैव ही हिचकती रही है और निर्वाचन से जुड़ी व्यवस्था को ही निशाना बनाती रही है। जब 1971 के लोकसभा चुनावों में श्रीमती इन्दिरा गान्धी द्वारा उठाये गये बैंकों के राष्ट्रीयकरण और पूर्व राजाओं के प्रिवीपर्स की समाप्ति जैसे कदमों के कारण उनकी पार्टी को व्यापक समर्थन मिला था, तब भाजपा[जनसंघ] के पूर्व अध्यक्ष बलराज मधोक ने रूस से आयात स्याही द्वारा मतपत्रों में पैदा बदलाव के नाम पर उन परिणामों को नकारा था। यह आरोप हमारे निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता और विश्वसनीयता पर सीधा हमला था जिसे सिर्फ भाजपा[जनसंघ] ने लगाया था। बाद में उस हास्यास्पद आरोप की विश्वव्यापी निन्दा के कारण अटल बिहारी वाजपेयी ने लीपा पोती करने की कोशिश की थी। पिछले लोकसभा चुनावों में भी अपनी पराजय के वाद उन्होंने ईवीएम मशीनों की विश्वसनीयता पर सन्देह प्रकट किया था जबकि इन्हीं मशीनों के आधार पर लगभग आठ विधानसभा चुनावों में उनके दल या गठबन्धन को मिले समर्थन पर उन्हें इन से कोई शिकायत नहीं रही। 2002 में सरकारी संरक्षण में गुजरात में मुसलमानों का नरसंहार हुआ था व उससे जनित ध्रुवीकरण के चलते सचाई सामने आने से पहले नरेन्द्र मोदी शीघ्र से शीघ्र चुनाव करा लेना चाहते थे, पर जब तत्कालीन चुनाव आयुक्त लिंग्दोह ने राज्य के अधिकारियों से मिली रिपोर्ट के आधार पर चुनाव की तिथियां आगे बढायीं तब इन्हीं मोदी ने, जो आज भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी घोषित हैं, उस ईमानदार और निष्पक्ष चुनाव आयुक्त के खिलाफ जैसी भाषा का स्तेमाल किया था वैसी भाषा का प्रयोग देश के किसी अन्य प्रमुख राजनीतिक दल के नेताओं ने कभी नहीं किया।
      गत दिनों मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार के उद्योगमंत्री ने निर्वाचन आयोग को धमकियां देने की नीति का श्रीगणेश कर दिया है। उन्होंने सार्वजनिक मंच से दशहरा के अवसर पर राजपूत समाज के शस्त्र पूजन समारोह में न केवल भाग लिया अपितु कहा कि आचार संहिता की चिंता मैं नहीं करता जो कहती है कि युवतियों को भेंट मत दो, सामाजिक सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रमों का हिस्सा मत बनो, ऐसी आचार संहिता को मैं ठोकर मारता हूं। चुनाव आयोग को मैंने कहा कि अपनी बात मत थोपो, व्यवहारिक बात करो। इससे पहले दिन भी उन्होंने शहर के चौराहे पर उद्योग विभाग का एक बड़ा भवन बनाने और सेंट्रल इंडिया का पावर हाउस बनाने की घोषणा की थी, जिसे सामाजिक सांस्क्रतिक धार्मिक ओट देना सम्भव नहीं है। [दैनिक भास्कर भोपाल 15/10/2013]         
      जहाँ सरकार के उद्योग मंत्री धर्म संस्कृति के नाम पर निर्वाचन आयोग के निर्देशों का उपहास कर रहे हैं तो दूसरी ओर राम किशन यादव उर्फ बाबा रामदेव योग प्रशिक्षण के नाम पर भाजपा के विरोधियों को राक्षस घोषित करके उन्हें ईवीएम मशीन की मदद से नष्ट करने का आवाहन कर रहे हैं। यह संयोग नहीं है कि योग के प्रचार का बुखार उन्हें आगामी आम चुनावों वाले राज्यों में ही लगातार घुमा रहा है। उल्लेखनीय है कि उनकी छत्तीसगढ यात्रा के दौरान उनके वचनों का संज्ञान लेते हुए निर्वाचन आयोग ने उनका राज्य अतिथि का दर्ज़ा खत्म करा दिया था और उनका सारा खर्च भाजपा के चुनाव खर्च में जोड़ने के निर्देश दिये थे, पर इसके बाद भी उन्होंने खजुराहो में स्वयं को निर्वाचन आयोग का ब्रांड एम्बेसडर बताते हुए व्यंजनापूर्ण भाषण दिया।
      मध्यप्रदेश के डबरा कस्बे में ही जब निर्वाचन आयोग के निर्देशों के परिपालन में प्रशासन ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पथ संचालन की वीडियोग्राफी कराना चाही तो स्वयं सेवकों ने वीडियोग्राफर से कैमरा छीन कर उसे क्षतिग्रस्त कर दिया और तहसीलदार को डबरा पुलिस थाने में जिला संघ चालक सहित तीन स्वयं सेवकों के खिलाफ मामला दर्ज़ कराना पड़ा। इसी दिन राजधानी भोपाल में पुलिस ने तलवारें छुरियों के एक ज़खीरे को बरामद किया जिसमें उसे 603 तलवारें और 45 छुरियां मिलीं। इस निर्माण स्थल पर उसे ग्राइन्डर, कटर, छेनी, हथौड़े की मदद से तलवारें छुरियां बनाते छह लोग मौके पर ही मिले। समाचार पत्रों में आरोपियों के नाम धरम विश्वकर्मा,, राम सिंह, तिलक सिंह, बदन सिंह, राजा विश्वकर्मा और जितेन्द्र दांगी बताये हैं, पर सावधानीवश इतने बड़े आर्डर को देने वाले का नाम अभी नहीं बताया गया है। चुनावों के दौरान जब खंडवा जेल से फरार सिमी के खूंखार आतंकियों का अभी तक कोई पता नहीं चल पाया है, ऐसे में हथियारों का यह ज़खीरा पकड़ा जाना स्वतंत्र निर्वाचन में आने वाली बाधाओं के संकेत दे रहा है।
      सरकारी दल, उसके नेता, उसके घोषित-अघोषित प्रचारकों के कारनामे इस बात के संकेत हैं कि भाजपा किसी भी तरह से यह चुनाव जीतना चाहती है जिसके बारे में उसके राष्ट्रीय और प्रादेशिक नेता लगातार एक वर्ष से कहते आ रहे हैं कि पार्टी की जीत सरल नहीं है और प्रदेश के नेता 2004 जैसी गलतफहमी के शिकार हैं। ऐसी ही परिस्तिथियों में ये विचार परवान चढते हैं कि राज्यों के चुनाव राष्ट्रपति शासन के दौरान ही स्वतंत्र और निष्पक्ष हो सकते हैं और ऐसे विचारों के लिए भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की सोच व कार्यप्रणाली जिम्मेवार है।
वीरेन्द्र जैन
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