सोमवार, फ़रवरी 17, 2014

डर्टी ट्रिक्स डिपार्टमेंट का हैडक्वार्टर

डर्टी ट्रिक्स डिपार्टमेंट का हैडक्वार्टर
वीरेन्द्र जैन
       आतंकी बम विस्फोटों के लिए गिरफ्तार असीमानन्द के कैरवान में प्रकाशित साक्षात्कार के बारे में भाजपा नेताओं ने इसे कांग्रेस के डर्टी ट्रिक्स डिपार्टमेंट का कारनामा बताया है। यह आरोप उस जगह से लगाया जा रहा है जहाँ इस डिपार्टमेंट का स्थापना स्थल और हैड क्वार्टर है। भाजपा के फूले से दिखते गुब्बारे में सारी हवा इसी डिपार्टमेंट के पम्प से भरी गयी है और यह काम आज से नहीं अपितु जनसंघ के समय से किया जा रहा है। आर एस एस को वर्षों से रियूमर स्पोंसरिंग संघ [अफवाह फैलाऊ संघ] के नाम से भी जाना जाता रहा है। पहले ये लोग मौखिक प्रचार के द्वारा अफवाहें फैलाते थे और बाद में कल्पित आईडी से सोशल मीडिया पर अफवाहें फैलाने और गाली गलौज का काम करने लगे। अपनी पहचान को छुपा कर रखना ही इनके अपराधबोध का प्रमाण है।
       पर सबसे पहले इस विषयगत साक्षात्कार को लिया जाये। कैरवान दिल्ली प्रैस प्रकाशन ग्रुप की पत्रिका है। इस ग्रुप की प्रमुख हिन्दी पत्रिका सरिता समेत इसमें प्रकाशित सम्पादकीय टिप्पणियों को देखा जाये तो हम पाते हैं कि यह ग्रुप कभी भी कांग्रेस का पक्षधर नहीं रहा है अपितु अधिकतर घटनाओं में इसकी सहमति भाजपा के साथ बनती रही है। इसके संस्थापक विश्वनाथ तो मुक्त कण्ठ से अटलजी के प्रशंसक रहे हैं और बामपंथ की ओर प्रतीत होते झुकाव के आरोप वाले दिनों में इन्दिरा गान्धी की रीतिनीति से गहरी असहमतियां प्रकट करते रहे हैं। अब जब कैरवान की किसी पत्रकार द्वारा गत दो वर्षों के दौरान लिये गये कथित साक्षात्कार से संघ परिवार को असुविधा हो रही है तब उसके लिए कांग्रेस को जिम्मेवार ठहराना और उसके पास गलत हथकण्डे वाला एक विभाग होने का मनगढंत आरोप लगाना बिल्कुल ही दूसरी बात है। स्मरणीय है कि पिछले दिनों जब भी कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने संघ परिवार के बारे में कुछ कहा है तो भाजपा ने उनके बयान का उत्तर देने की जगह उनके पास डर्टी ट्रिक्स डिपार्टमेंट का होना बताया था व छद्म पहचान वाले लोगों से सोशल मीडिया पर गाली गलौज करवाना शुरू करते रहे हैं। रोचक यह है कि जब पत्रकारों ने उनसे उक्त घटना के बारे में जाँच करने की मांग के बारे में सवाल किये तो उनके प्रवक्ताओं ने जाँच की मांग के प्रति कोई रुचि नहीं दर्शायी। स्मरणीय यह भी है कि आज से कुछ साल पहले तक संघ परिवार के लिए आतंकवाद सबसे बड़ा खतरा होता था किंतु जैसे ही असीमानन्द, दयानन्द पांडे, प्रज्ञा सिंह आदि की गिरफ्तारियों के माध्यम से आतंकी घटनाओं के नेपथ्य के दृष्य सामने आये तब से इन्होंने आतंकवाद को खतरा बताना बन्द कर दिया। राजनीति में हिंसा का सहारा लेना एक विचार हो सकता है और जो लोग इस विचार में विश्वास रखते हैं वे इसका खतरा उठाने के लिए भी तैयार रहते हैं किंतु अपने किये हुये काम से मुकरना और उसकी जिम्मेवारियां दूसरों पर डालना एक अपराध है जो डर्टी ट्रिक्स में आता है। मालेगाँव के गैर मुस्लिम आरोपियों के यहाँ मुसलमानों जैसी पोषाकें और नकली दाढियां भी बरामद की गयी थीं व मडगाँव में आरोपी किसी हिन्दू समारोह में साइकिल पर बाँध कर बम विस्फोट करके हिन्दुओं को उत्तेजित कर साम्प्रदायिक दंगे करवाना चाहते थे किंतु दुर्भाग्य से वह विस्फोट समयपूर्व ही हो गया और रहस्य खुल गया था। अगर ये डर्टी ट्रिक्स नहीं थीं तो आतंकवाद को देश की प्रमुख समस्या बताने वाले दिनों में उन्होंने इसकी निन्दा तक करने की जरूरत क्यों नहीं समझी? 
       ज़िस गुजरात का ये बार बार गुणगान करते हैं उसके तीन हजार लोगों की मौत के अगर ये जिम्मेवार नहीं थे तो इन्होंने इन हत्याओं के अपराधियों को पकड़ने के लिए अपने प्रचारित प्रशासनिक कौशल का उपयोग क्यों नहीं किया और बाद में जिन लोगों को अदालत ने दोषी माना व सजायें दीं उन्हें टिकिट देने ही नहीं अपितु मंत्री बनाने तक में संकोच नहीं किया। क्या उनकी जानकारियां इतनी कम थीं कि जिस सत्य को सारी दुनिया जान गयी हो उसे वहाँ की सरकार नहीं जानती थी।
       डर्टी ट्रिक्स का यह खेल भाजपा के जनसंघ काल से ही जारी है। इसी अफवाह फैलाऊ संघ के दुष्प्रचार का परिणाम ही महात्मा गान्धी की हत्या थी और आज़ादी के बाद जब देश में पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से विकास की नींव रक्खी गयी तब इन्होंने न केवल खाद के उपयोग के खिलाफ वातावरण बनाया था अपितु पनबिजली योजनाओं के खिलाफ किसानों के बीच यह प्रचार भी किया कि ये सरकार पानी में से बिजली निकाल लेती है जिससे वह सिंचाई के लिए अनुपयुक्त हो जाता है। जब कांग्रेस का चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ी या गाय बछड़ा हुआ करता था और मतपत्रों पर क्रास का निशान लगाकर मतदान होता था तब ये अफवाहें फैलाते थे कि किसी पशु को जब बध के लिए ले जाया जाता है तब उस पर क्रास का निशान बनाया जाता है और कांग्रेस को वोट देने का मतलब गौवंश की हत्या के पाप का भागीदार होना है। कम्युनिष्टों के खिलाफ ये प्रचार करते थे कि वे देश और धर्म द्रोही होते हैं और कम्युनिष्ट देशों में किसानों से जमीन छीन ली जाती है व वहाँ वृद्धों को गोली मार दी जाती है। हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान का नारा लगाने वाले ये संग़ठन न केवल गैर हिन्दुओं के खिलाफ भेद करने में लगे थे अपितु गैर हिन्दी भाषी विशेष रूप से दक्षिण भारतीय लोगों के खिलाफ वातावरण बनाने में योगदान दे रहे थे। एक समय तो तामिल भाषियों का हिन्दी थोपने का विरोध इतना उग्र हो गया था कि देश विभाजन का खतरा उत्पन्न हो गया था। विभाजन की विभीषिका से आहत देश के लोगों को मुस्लिमों के खिलाफ भड़काने में ये कभी कोई कसर नहीं छोड़ते रहे हैं और मैचों के समय मुसलमानों को पाकिस्तान का पक्षधर प्रचारित कर युवाओं में नफरत के बीज बोते रहे हैं। रामजन्म भूमि मन्दिर के नाम पर इन्होंने जो कुछ किया वह अभी बहुत पुराना नहीं हुआ है। रथयात्रा, ईंटपूजा से लेकर अस्थिकलश यात्रा तक और बाद में गोधरा गुजरात तक सब इनके अफवाह फैलाऊ अभियान का परिणाम या प्रतिक्रियाओं की उपज रहे हैं। चुनाव में सबसे अधिक धन खर्च करके मतदाताओं के एक हिस्से को चारित्रिक पतन के लिए तैयार करने से लेकर हार जाने के बाद रूस से आयात स्याही और ईवीएम मशीनों की खराबी बताने तक सब इनके डर्टी ट्रिक्स का हिस्सा हैं। सोनिया गान्धी के प्रधानमंत्री बनने की सम्भावनाओं के सामने आते ही उन्हें विदेशी मूल के बताने फिर सुषमा स्वराज और उमा भारती द्वारा वैसी दशा में सिर मुढाने, जमीन पर सोने और चने खाकर रहने की घोषणाएं करवाना भी उन्हीं ट्रिकों में आता है। यही वह काल था जब ईसाइयों पर अचानक ही ‘धर्म परिवर्तन’ का आरोप लगने लगा था और चर्चों पर हमले होने लगे थे। ये हमले सोनिया गान्धी द्वारा प्रधानमंत्री बनने से इंकार कर देने के बाद बन्द हो गये थे।
       एक समय था जब कसाव और अफज़ल गुरू की फाँसी इनका मुख्य फंडा बन गया था और उसमें देरी को वे न्यायिक प्रक्रिया के दोषों में न देख कर वे इसे तुष्टीकरण की राजनीति बता कर साम्प्रदायिकता पैदा कर रहे थे। तुष्टीकरण की राजनीति के आरोप के बहाने वे यह दर्शाना चाह रहे थे कि सारे मुसलमान कसाव के साथ हैं और उसे फाँसी में होने वाली देरी से वे खुश होते हैं। जबकि सच यह था कि मुम्बई के किसी भी कब्रिस्तान ने पाकिस्तान से आये हुये आतंकियों के शवों को दफनाने से मना कर दिया था।
       सच तो यह है कि डर्टी ट्रिक्स के मामले में भाजपा को प्रवीणता प्राप्त है। दूसरे दल अच्छे या बुरे हो सकते हैं किंतु संघ परिवार से अधिक बनावटी और दुहरे चरित्र का नहीं हो सकता।
वीरेन्द्र जैन
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