बुधवार, फ़रवरी 26, 2014

ऐसे गठजोड़ हताशा की निशानी हैं

ऐसे गठजोड़ हताशा की निशानी हैं
वीरेन्द्र जैन

       ताज़ा राजनीतिक घटनाक्रम में उदितराज ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली है, और अपनी पार्टी इंडियन जस्टिस पार्टी का भाजपा में विलय कर दिया है। नेताओं का अचानक दल या गठबन्धन का विपरीत ध्रुवीय परिवर्तन न केवल आश्चर्यचकित करता है अपितु लोकतंत्र से जनता की आस्थाओं को कमजोर भी करता है। यह परिवर्तन अपने मतदाताओं को बँधुआ मानने के गलत विश्वास से ही सम्भव होता है।
       उदितराज दलितवर्ग में जन्म लेने वाले एक शिक्षित युवानेता हैं जो भारतीय राजस्व सेवा को छोड़ कर राजनीति में आये हैं। पिछले दो दशकों के दौरान आरक्षण के पक्ष में अपने स्पष्ट विचारों व तर्कों के साथ अनेक टीवी बहसों में सक्रिय भागीदारी करके बुद्धिजीवी दर्शकों को प्रभावित करने वाले उदितराज अपना अलग दल गठित करके चुनावों में भागीदारी भी कर चुके हैं और विचार आधारित राजनीति की विडम्बनाओं का सामना भी कर चुके हैं। सवर्ण जातिवादियों के खिलाफ वे बाबा साहब अम्बेडकर के पद चिन्हों पर चल हजारों दलितों का धर्म परिवर्तन कराके कट्टर हिन्दुत्व और उस पर आधारित राजनीतिक सामाजिक दलों व संगठनों को चुनौती भी दे चुके हैं। चुनावी राजनीति में पिछड़ने की हताशा में उनका किसी मुख्यधारा के दल में सम्मलित हो जाना तो एक मानवीय कमजोरी मानी जा सकती थी किंतु इसके लिए उस दल में सम्मलित होना विडम्बनापूर्ण है जो अब तक उन लोगों के समर्थन से चल रहा हो जिनके खिलाफ वे अब तक लड़ते रहे हैं। स्मरणीय है कि आरक्षण की व्यवस्था भले ही संविधान के लागू होते ही प्रारम्भ हो गयी थी किंतु आरक्षित वर्ग को शिक्षित होकर उसका लाभ लेने में समय लगा जिसके बाद ही आरक्षण व्यवस्था प्रभावी हुयी थी। जब से  सभी आरक्षित पदों पर अनुसूचित जातियों जनजातियों के लोग उपलब्ध होने लगे हैं तब से ही सवर्ण वर्गों द्वारा आरक्षण का विरोध भी शुरू हो गया है। इस विरोध को सत्ता के लिए सर्वाधिक लालायित पार्टी भाजपा ने परोक्ष रूप से हवा देती रही है। मनुवाद को देश का संविधान बनाने का इरादा रखने वाली यह पार्टी आरक्षण विरोधियों को सबसे अधिक सुहाती रही थी व उनका समर्थन इसी पार्टी को मिलता रहा है। दूसरी ओर उदितराज की पहचान आरक्षण के मुखर पक्षधर के रूप में बनी है इसलिए उनका विचारों से बेमेल भाजपा में सम्मलित होना चकित करता है और चुनावी राजनेताओं की सैद्धांतिकी पर सन्देह पैदा करता है।
       उत्तर भारत में दलित समाज का सर्वाधिक जातीय समर्थन बहुजन समाज पार्टी को मिलता रहा है जिसका नेतृत्व कभी कांशीराम ने किया था और अब मायावती कर रही हैं। उदितराज ने मायावती का बहुत विरोध किया किंतु वे अपनी बेहतर बौद्धिक प्रतिभा के बाद भी उनको मिलने वाले समर्थन को अपने साथ नहीं ले सके। यही कारण रहा कि वे चुनाव परिणामों में अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज़ नहीं करा सके। उनका अपना वोट बैंक बहुत मामूली है, जो भाजपा जैसे मनुवादी दल के पक्ष में नहीं ले जाया जा सकता। उनकी पार्टी में उनके अलावा कोई दूसरा समतुल्य नेतृत्व भी नहीं है इसलिए भाजपा उनको उस आरक्षित सीट का टिकिट देगी जहाँ से जीत की सम्भावनाएं सबसे कम होंगीं। इससे उसके दोनों ही हाथों में लड्डू रहेंगे।            
       सोनिया गाँधी के सक्रिय राजनीति में आने के बाद भाजपा ने ईसाई मिशनरियों पर धर्म परिवर्तन का आरोप लगाने के बहाने परोक्ष में सोनिया गाँधी पर निशाना साधना प्रारम्भ कर दिया था और उसी श्रंखला में गिरिजाघरों पर हमले और मिशनरियों की हत्याएं होने लगी थीं और आरोपियों में संघ परिवार से जुड़े लोग पहचाने गये थे। इसी दौरान उदितराज ने अटलबिहारी वाजपेयी के शासन काल में पच्चीस हजार दलितों को दिल्ली में धर्म परिवर्तन कराके बौद्ध बनाया था। भले ही सामूहिक धर्म परिवर्तन की परम्परा अम्बेडकर ने नागपुर में पाँचलाख दलितों को एक साथ बौद्ध बनाकर डाली हो पर उदितराज ने इसे आगे बढा कर बहुजन समाज पार्टी से बाजी मार ली थी क्योंकि मायावती ने लम्बे समय तक उत्तर प्रदेश में शासन करने के बाद भी ऐसा कोई प्रयास नहीं किया। उल्लेखनीय है कि उस समय उदितराज का विरोध करने वालों में विभिन्न नामों से चलने वाले संघ के संगठन ही प्रमुख थे। अब स्थिति की विडम्बना यह है कि यदि उदितराज अपने उन तेवरों को वैसे ही दबा देते हैं जैसे कि भाजपा ने एनडीए सरकार चलाते समय अपने तीनों प्रमुख मुद्दे दबा दिये थे, तो वोटबैंक विहीन उदितराज की पहचान खो जायेगी, और यदि वे अपनी पहचान बनाये रखते हैं तो भाजपा के लोगों के बीच खप नहीं सकते। पार्टी का विलय होने के कारण उसकी चल अचल सम्पत्ति पर भाजपा का अधिकार हो जाना स्वाभाविक है, किंतु बाहर निकलने का अवसर आने पर उन्हें खाली हाथ ही बाहर होना पड़ेगा।
       भले ही संवैधानिक व्यवस्थाओं के अनुसार 18% सीटें अनुसूचित जातियों व जनजातियों के लिए आरक्षित हैं जिस कारण से भाजपा को भी समुचित संख्या में उम्मीदवार चाहिये होते हैं किंतु इतिहास गवाह है कि इस मनुवादी पार्टी ने कभी भी दलित नेताओं को मन से नहीं अपनाया। संघ प्रिय गौतम से लेकर मायावती के साथ बनी सरकारों तक का अनुभव सबको मालूम है। देखना होगा कि जरूरत पर काका बना लेने वाली इस पार्टी में उदितराज कितने दिन तक टिक पायेंगे ?
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा सिनेमा के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मोबाइल 9425674629
    

           

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें