बुधवार, मई 07, 2014

रामदेव का बचाव पक्ष



रामदेव का बचाव पक्ष

वीरेन्द्र जैन
       भाजपा और कांग्रेस में एक बड़ा फर्क यह भी है कि भाजपा अपने नेताओं, व सहयोगियों पर किसी भी तरह की अनैतिकता, अपराध, अशालीनता और अनियमतता के आरोप लगने पर उसके बचाव में उतर आती है जिससे पूरी पार्टी ही दोषी हो जाती है जबकि कांग्रेस अपने बड़े से बड़े सदस्य के ऊपर लगे आरोप से दल की दूरी बना लेती है और उसकी गलतियों की सफाई व दण्ड उसे खुद ही वहन करना होता है। जब भी कोई किसी ऐसी बात की पक्षधरता करता है जो न केवल सार्वजनिक रूप से ही गलत हो अपितु वह खुद भी उसे गलत मान रहा हो तो उसे अपनी बात को जोर के शोर से ठेलना पड़ता है, असंगत कुतर्क करने पड़ते हैं, और विषय को भटकाना पड़ता है। 2014 के आम चुनावों के दौरान विभिन्न टीवी चैनलों पर चली बहसों में इस प्रवृत्ति को साफ साफ देखा और पहचाना गया है। पिछले दिनों राजनीतिक बहसों में न्यूनतम रुचि रखने वाले मेरे एक मेहमान ने ऐसी बहस देखते हुए बहुत सरलता से पूछ लिया था कि सबसे अधिक चीखने वाला यह नेता क्या मोदी की पार्टी का है? इस प्रवृत्ति से एक बात प्रकट होती है कि भाजपा किसी दल की जगह गिरोह की तरह काम करती है। उनकी एकजुटता प्रशंसनीय हो सकती है किंतु उस एकजुटता के घोषित लक्ष्य और वास्तविक आचरण में बहुत अंतर है। वे अपनी भूल को कभी स्वीकार नहीं करते और उसका किसी भी तरह बचाव करने में जुट जाते हैं। यही कारण है कि उनके नेतृत्व में वकीलों को सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है और प्रसिद्ध वकीलों को राज्यसभा की सदस्यता का दरवाजा सदैव खुला रखते हैं। उनका लक्ष्य किसी भी तरह से मुकदमा जीतने का रहता है जिसके लिए सत्य, असत्य, अर्धसत्य, सत्याभास, किसी भी विधि का सहारा क्यों न लेना पड़े।
       आतंकवाद के नाम पर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण को सर्वाधिक हवा देने वाले इन्हीं के परिवार के सदस्य उन लोगों से सम्बन्धित रहे हैं जिन पर हिन्दू आतंकवाद फैलाने का आरोप लगा था। स्वयं तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह जो फिर से उसी पद पर पहुँचा दिये गये हैं, प्रज्ञासिंह ठाकुर आदि से मिलने मुम्बई जेल गये थे और उमा भारती व आसाराम भी प्रज्ञा सिंह से मिलने गये थे। स्पष्ट संकेतों और पूछ्ताछ के बाद गिरफ्तार किये गये इन लोगों की गिरफ्तारी के खिलाफ संघ परिवार के लोगों ने एक स्वर से सीबीआई और दूसरी जाँच एजेंसियों के खिलाफ ऐसी बयानबाजी की बाढ ला दी थी कि इन महत्वपूर्ण संस्थाओं पर से सामान्यजन का विश्वास घट सकता था जिसका सीधा सीधा लाभ अपराधी तत्वों को मिल सकता था। वैसे भूल किसी भी संस्था के पदाधिकारियों से सम्भव है और तथ्यों के आधार पर ध्यान आकर्षित करना राजनीतिकों का कर्तव्य है किन्तु किसी संस्था के गठन और गलत आधार पर उसकी सम्पूर्ण विश्वसनीयता को ही कटघरे में खड़ा कर देना एक समाज विरोधी काम है। अकालियों के साथ सत्ता में बने रहने के लिए ये विधानसभा में आतंकियों के महिमा मंडन में उनका साथ देते हैं और चर्चित हत्यारों की फाँसी की सजा माफ करने के उनके प्रस्तावों का मुखर विरोध नहीं करते।
       काँची कामकोठि के शंकराचार्य पर लगे गम्भीरतम आरोपों के विरोध में अटलबिहारी वाजपेयी समेत भाजपा के सभी नेता दिल्ली में धरने पर बैठ जाते हैं और समर्थक न जुटने पर आसाराम से मदद लेते हैं। आसाराम द्वारा इतने अधिक स्थानों पर अतिक्रमण करने और आश्रम के नाम पर ज़मीनों पर कब्जा करने के पीछे भी भाजपा और संघ परिवार का परोक्ष बल रहा है जिसने बदले में इन्हें एक बड़ा वोट बैंक देने का सौदा किया हुआ था। आसाराम और उसके सपूत की हाल की गिरफ्तारी के समय भी भाजपा के लोग एक साथ उसके पक्ष में ढेर सारे कुतर्कों के साथ कूद पड़े थे किंतु सम्भावित पीएम पद प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी के साथ उनके कुछ मतभेदों के कारण उक्त समर्थन सफल नहीं हो सका। किंतु संघ परिवार खेमे से कभी भी न तो उस पर लगे अनैतिक आचरणों के मामले में गिरफ्तारी और न ही जमीनों, मकानों पर किये गये अतिक्रमणों के बारे में कोई स्वर मुखर हुआ। इसके विपरीत  अपने राजनीतिक विरोधियों पर इन्हीं अपराधों से सम्बन्धित किसी भी आरोप पर पूरा संघ परिवार एक स्वर से शोर करने लगता है। यह ज्वलंत सत्य है कि धर्म की ओट में किये जाने वाले सर्वाधिक अतिक्रमणों के संरक्षण में धर्म के आधार पर राजनीति करने वाले दल रहते हैं। ऐसे ज़मीन चोर अतिक्रमणकारी धर्म, समाज, और राजनीति सब को भटकाते हैं।
       ताज़ा घटनाक्रम में इस समय के सर्वाधिक विवादास्पद योगप्रशिक्षक और आयुर्वेदिक दवाओं का उद्योग चलाने वाले राम किशन यादव उर्फ बाबा रामदेव की पक्षधरता का विवाद है। रामदेव एक कम शिक्षित और विराट महात्वाकांक्षा पालने वाले योग प्रशिक्षक हैं। रंगीन टीवी के सैकड़ों चैनल प्रारम्भ होने और उनके सातों दिन चौबीसों घंटे प्रसारण के दौर में रामदेव ने अपनी उपस्थिति दर्ज़ करायी। जब केवल दूरदर्शन के चैनल ही चलते थे तब भी धीरेन्द्र ब्रम्हचारी द्वारा प्रस्तुत किया जाने वाला योग प्रशिक्षण बहुत लोकप्रिय कार्यक्रम हुआ करता था पर भाजपा परिवार उनका और उनके राजनीतिक सम्बन्धों का सबसे बड़ा आलोचक हुआ करता था क्योंकि उनका जुड़ाव तत्कालीन सत्तारूढ कांग्रेस के नेताओं से था। बाद में जनता पार्टी के कार्यकाल में उन पर कार्यवाही भी हुयी थी। संयोग से रामदेव को राजीव दीक्षित जैसे विवेकवान और समाजसेवी का साथ मिल गया जिन्होंने स्वयं को पीछे रखते हुए रामदेव को एक ब्रांड नेम देने और उनके अभियान को विस्तारित करने में असीम योगदान दिया। पिछले वर्षों में रामदेव के योग गुरु गायब हो गये और राजीव दीक्षित का अचानक असामयिक निधन हो गया। रामदेव के योगगुरु के गायब होने की जाँच तो सीबीआई कर रही है। इसी दौरान रामदेव को राजनीति में पदार्पण करने की जरूरत महसूस हुयी और उन्होंने विदेशों में जमा काले धन, बड़े नोटों को बन्द करने, राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी बनाने, भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना के आन्दोलन से भगा दिये जाने के बाद अपना आन्दोलन करने, और असफल होने पर भाजपा के शरणागत होकर नरेन्द्र मोदी का प्रचार करने के नाम पर अपने लोगों को टिकिट दिलवाने आदि तरह तरह के काम किये। कुछ ही दिनों में ग्यारह सौ करोड़ से अधिक की सम्पत्ति अर्जित कर लेने वाले रामदेव के खिलाफ व्यापार उद्योग में की गयी आर्थिक अनियमतताओं के कई प्रकरण दर्ज हैं। इस सम्पत्ति और व्यापार के कारण उन्हें राजनीतिक संरक्षण की जरूरत है। पिछले चुनावों में उनके उद्योग द्वारा भाजपा को दी गयी बड़ी चुनावी राशि की चेक समाचारों में आयी थी।
       रामदेव के अशिष्ट भाषा और प्रतीकों के द्वारा दलित विरोधी बयान की गलत व्याख्या और रक्षा में पूरी भाजपा और संघ परिवार उतर आया है, यहाँ तक कि स्वयं को दलितों का मसीहा बताने वाले हाल ही में भाजपा में सम्मलित होकर चुनाव लड़ने वाले उदित राज को भी उनका बचाव करने हेतु उतारा गया है, जबकि देश भर से विरोध के स्वर फूट रहे हैं। जिस दिन उक्त बयान सामने आया था उसी दिन एक न्यूज चैनल पर रामदेव ने साक्षात्कार भी दिया था जिससे उनकी जानकारी और समझदारी की सारी कलई खुल गयी थी। उस साक्षात्कार के दौरान उत्तर देने में असमर्थ होने पर वे एक वकील से बोले थे कि कुश्ती लड़ ले। उन्होंने यह भी कहा था कि अन्ना हजारे और भाजपा ने स्वयं ही उनसे सहयोग मांगा था। ऐसे व्यक्ति का सहयोग लेना और उसकी गलत पक्षधरता में उतरने से देश के सबसे बड़े विपक्षी दल और उसके प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी पर प्रश्न चिन्ह लगता है। जिस देश में इस तरह के लोग प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी के साथ हों उस देश की छवि दुनिया के सामने क्या बनेगी!
वीरेन्द्र जैन
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