गुरुवार, मई 08, 2014

स्मृतिशेष भाजपा और मोदी सेना के गठन की पृष्ठभूमि



स्मृतिशेष भाजपा और मोदी सेना के गठन की पृष्ठभूमि 
वीरेन्द्र जैन
       2014 के आमचुनावों में मोदी मोदी के नाम का इतना प्रायोजित जयकारा लगाया गया कि विवेक की आवाज दब कर रह गयी। अपने अप्रिय चरित्र को छुपाने के लिए गुजरात के विकास और सुशासन का ऐसा नक्कारा बजाया गया कि कुपोषित बच्चों की करुण पुकार को अनसुनी कर दी गयी। यह बिडम्बना ही रही कि सैकड़ों वर्ष पुराने जड़ हो चुके मूल्यों के आधार पर गठित पार्टी ने चुनाव जीतने के लिए आधुनिकतम संसाधन और कार्पोरेट प्रबन्धन की तकनीक का प्रयोग कर युवाओं को बहकाने लगी, वहीं आधुनिक और प्रगतिशील मूल्यों में भरोसा रखने वाली पार्टियों ने अपने पुराने घिसे पिटे तौर तरीकों से ही चुनाव लड़ा व उम्मीद बाँधे रही कि बोध कथा वाला कछुआ ही खरगोश से दौड़ जीत लेगा। 
       ऋग वेद में कहा गया था कि आ नो भद्रा क्रतवो यंतु विश्वत अर्थात अच्छे विचार पूरे विश्व से आने दो। इसी तरह रामकथा के अनुसार जब राम के तीर से धाराशायी होकर रावण गिर पड़ा और मृत्यु की ओर बढने लगा तब राम ने लक्षमण को यह कहते हुए उसके पास भेजा कि रावण कई विद्याओं का ज्ञाता था इसलिए उसकी मृत्यु से पहले उससे कुछ ज्ञान प्राप्त कर लो। यह कथा सन्देश देती है कि हमें किसी से भी सीखने में संकोच नहीं करना चाहिए। अपने से असहमत व्यक्तियों द्वारा अपनाये गये अनैतिक तरीके भी इसलिए जान लेना चाहिए ताकि भविष्य में इनसे सावधान रह सकें और समय पूर्व उनसे बचने के उपाय कर सकें। आइए मोदी के आक्रामक चुनाव प्रबन्धन पर एक विश्लेषणात्मक निगाह डालें।
       स्मरणीय है कि मोदी ने भाजपा की कार्यसमिति की उपेक्षा करते हुए उसको नियंत्रित करने वाले संघ प्रमुख को अपनी हैसियत समझायी और उन्हें कार्यांवयन के लिए मजबूर किया जिसका परिणाम यह हुआ कि इस अलोकतांत्रिक ढंग से काम करने वाले संगठन में अडवाणी जैसे प्रमुख नेता समेत दूसरे सारे प्रमुख नेताओं का भिन्न स्वर तूती की आवाज़ में बदल कर रह गया। संघ प्रमुख के फैसले के आगे अडवाणी का रूठना, स्तीफा देना, और सुषमा स्वराज के साथ मुम्बई के अधिवेशन से बिना आमसभा को सम्बोधित किये हुए वापिस लौटना भी बे असर रहा। जो अरुण जैटली दो दिन पहले तक यह कह रहे थे कि पार्टी में अकेले मोदी ही नहीं अपितु दस से अधिक नेता प्रधानमन्त्री पद के प्रत्याशी बनने योग्य हैं, वही मोदी की वकालत करते हुए कहने लगे कि उन्हें तुरंत ही पीएम प्रत्याशी घोषित नहीं किया गया तो भाजपा हिट विकेट हो सकती है। मोदी ने भी इसी समय संशय में पड़ी पार्टी को चेतावनी दी कि उन्हें 2017 तक गुजरात की सेवा करने का जनादेश मिला हुआ है, अर्थात वह तो पूर्व से ही एक पद पर पदारूढ हैं किंतु यदि पार्टी ने फैसला नहीं लिया तो हो सकता है वह अवसर खो दे। सत्ता के लिए बुरी तरह लालायित इस दल ने जिसका पूरा इतिहास ही सत्ता के लिए सभी तरह के सिद्धांतविहीन समझौतों से भरा पड़ा है, मोदी को उम्मीदवार घोषित कर दिया। उल्लेखनीय है कि ऐसा होते ही मोदी ने चुनाव में जीत की रणनीति तय करने के नाम पर पूरा नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया और कुछ प्रतीकात्मक ऐसे फैसले करवाये जिससे संघ और पार्टी दोनों ही जगह यह सन्देश गया कि सबको मोदी की शरण में ही जाना होगा, अन्यथा वे कहीं के नहीं रहेंगे। सबसे पहले तो उन्होंने संघ के प्रिय और समर्पित पदाधिकारी संजय जोशी को परिदृश्य से बाहर करवा कर पूरे संघ के पदाधिकारियों को सन्देश दिया कि सत्ता के लिए संघ प्रमुख किसी की भी सेवायें नकार सकते हैं। इसके बाद उन्होंने संघ के द्वारा नामित अध्यक्ष पद पर नितिन गडकरी के नाम के प्रस्ताव को रद्द कराया जिससे पूरी पार्टी में मोदी के नाम का डंका पिट गया। अपने कारनामों के लिए जेल में रह चुके और अदालत के आदेश के अनुसार गुजरात से प्रदेश निकाला प्राप्त पूर्वमंत्री अमित शाह को उन्होंने उत्तरप्रदेश के प्रभारी के रूप में थोप दिया और बड़े बड़े अनुभवी नेताओं से भरे इस प्रदेश में कोई चूं भी नहीं कर सका। इतना ही नहीं उन्होंने भोपाल से प्रत्याशी बनने को उत्सुक अडवाणी को गान्धीनगर, मुरली मनोहर जोशी को बनारस से कानपुर, राजनाथ सिंह को गाज़ियाबाद से लखनऊ और स्वयं बनारस से दूसरा प्रत्याशी बनकर संकेत दिया कि सब उनके मोहरे बन कर रहें और अपने सोचने की क्षमता व समझ को बन्द करके रखें।
       गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अपने पिछले दस सालों के कार्यकाल में उन्होंने पूरे गुजरात को सबसे अधिक कर्ज़ में डुबोते हुए उद्योगपतियों को इतनी सुविधाएं और कौड़ियों के मोल ज़मीनें दीं कि सब उनके मुरीद हो गये। अम्बानी और टाटा जैसे उद्योगपतियों ने तो सार्वजनिक मंच से बयान भी दे दिया था कि श्री मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में देख कर उन्हें खुशी होगी। मुफ्त मिलने वाली सुविधाओं के भण्डार से मुदित होकर मुकेश अम्बानी ने तो एक मंच से कहा था कि कौन सा उद्योगपति होगा जो गुजरात में उद्योग स्थापित न करना चाहेगा! इन उद्योगपतियों का यही प्रमाणपत्र उनके काम में आया जो आमचुनाव में उनके लिए पैसे के प्रवाह को देख कर महसूस किया जा सकता है।         
       स्टेशनों पर बिकने वाले मोटे मोटे उपन्यासों के बारे में किसी ने बताया था कि इनके लेखक केवल एक ब्रांड नाम भर हैं और विभिन्न नौसिखिया लेखकों से लुगदी साहित्य लिखा कर उक्त लोकप्रिय नामों से छपा कर बेच लिया जाता है। मोदी ने भाजपा के नाम को नेपथ्य में डालते हुए अपने नाम को ब्रांड नेम बना कर आगे कर दिया और पूरे चुनाव में अपने नाम पर वोट माँगते हुए मतदाताओं से अपील की आपके द्वारा कमल का बटन दबाने पर आपका वोट सीधा मुझे मिलेगा। इसका असर यह हुआ कि भाजपा की दूसरी नाकारा और भ्रष्ट सरकारों से कोई तुलना नहीं रह गयी अपितु गुजरात और मोदी के श्रंगारित बनावटी चेहरे से तुलना होने लगी। देश भर में अकले मोदी के नाम से आमसभाएं आहूत की गयीं, और दूसरे केवल सहयोगी कलाकार के रूप में सम्मलित रहे। ट्विटर और फेसबुक के लाखों नकली प्रशंसकों और बेनामी खातों से युवाओं में मोदी के प्रति युवाओं के झुकाव का नकली भ्रम फैलाया गया, तथा कार्पोरेट घराने के मीडिया द्वारा ऐसी तुरही बजवायी गयी जिससे ऐसा लगने लगे कि जैसे मोदी प्रधानमंत्री बन ही चुके हों और केवल शपथ ग्रहण भर शेष रह गयी है। दूसरे दलों के नेताओं और प्रमुख सेलिब्रिटीज को पार्टी में लाने के लिए हर सम्भव सौदा किया जिससे यह लगे कि उनके विपक्षियों का जहाज डूब रहा है और लोग उसे छोड छोड़ कर भाग रहे हैं। 
       आधुनिकतम तकनीक से विश्लेषित टिकिटार्थियों की सूची को अंतिम रूप भी मोदी ने ही दिया, और 543 सदस्यों के सदन के लिए चारसौ सोलह स्थानों पर अपने उम्मीदवार खड़े किये। इसमें उन्होंने उनके साथ प्रतियोगिता कर सकने वाले पुराने खूसटों को सबसे कठिन संघर्ष में उलझा दिया। दलबदलुओं को उनकी सुरक्षितसीटें देने के लिए उन्होंने अपने दल के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की। सवर्णों की पार्टी के रूप में मशहूर रही इस पार्टी ने उदित राज, भागीरथ प्रसाद जैसे दलित अधिकारी रहे राजनेताओं पर विशेष ध्यान दिया। पूर्व सेना प्रमुख, पुलिस के पूर्व डेजीपी, और दूसरे सेवानिवृत्त अधिकारियों को टिकिट देकर एक साथ कई निशाने साधे। परेश रावल, किरण खेर, शत्रुघ्न सिन्हा, हेमा मालिनी, विनोद खन्ना, बप्पी लहरी, ज़ाय बनर्जी, मनोज तिवारी आदि की लोकप्रियता को भुनाने के लिए भी उचित सौदा किया जबकि अभिनेत्री से नेत्री बनी स्मृति ईरानी तो पहले ही भाजपा की राजनीति में सक्रिय हैं, पर राज्यसभा सदस्य होते हुए भी उन्हें भी अरुण जैटली की तरह प्रतीकात्मक चुनाव लड़वाया गया। साधु वेषधारियों को भी मैदान में उतारा गया जिनमें सुमेधानन्द, चाँदनाथ, साक्षीमहाराज, योगी आदित्यनाथ, उमाभारती, निरंजन ज्योति आदि तो चुनाव लड़ ही रहे हैं, दूसरी ओर मोदी ने अयोध्या में अपने मंच के पीछे राम का विशाल चित्र लगा कर अंतिम दौर में सन्देश दे दिया कि वे राम मन्दिर को केवल छुपाये हुये हैं।
       मोदी द्वारा चयनित 416 प्रत्याशियों में से 126 ऐसे हैं जिन पर आपराधिक प्रकरण दर्ज़ हैं और जिनमें से 78 के खिलाफ तो गम्भीर प्रकृति के प्रकरण दर्ज हैं। इन उम्मीदवारों में ला ग्रेजुएट्स की समुचित संख्या होना स्वाभाविक है। इन सब लोगों को जानसमझ कर टिकिट दिया गया है। मोदी के प्रत्याशियों में 74प्रतिशत करोड़पति हैं और उनकी औसत सम्पत्ति ग्यारह करोड़ है।        
वीरेन्द्र जैन
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