शनिवार, जनवरी 24, 2015

फिल्म समीक्षा ‘डौली की डोली’ विवाह संस्था पर सवाल उठाता मनोरंजन



फिल्म समीक्षा         
‘डौली की डोली’ विवाह संस्था पर सवाल उठाता मनोरंजन

वीरेन्द्र जैन
       यह संयोग है कि जिस दिन देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हरियाणा में ‘बेटी बचाओ बेटी पढाओ’ का आवाहन दुहराया उसी के दो दिन बाद फिल्म ‘डौली की डोली’ रिलीज हुयी जो अप्रत्यक्ष रूप से खरीदी हुयी बहुओं से जनित समस्या की ओर भी इंगित करती है। उल्लेखनीय है कि हरियाणा और पंजाब में लिंगानुपात की स्थिति बहुत खराब है और वहाँ उड़ीसा या बंगला देश से खरीद कर लायी हुयी लड़कियों से विवाह किया जाने लगा है। समाचार हैं कि कई बार अपराधी तत्व लुटेरी दुल्हनों के सहारे घरों के सारे माल की सफाई करवा देते हैं, और अपराधबोध से ग्रस्त परिवार पुलिस रिपोर्ट भी नहीं कर पाते। यद्यपि फिल्म में लिंगानुपात की जगह सुन्दर बहू को घर लाने की लोलुपता को कहानी का आधार बनाया गया है, किंतु दोनों ही मामलों में मूल समस्या तो यही रहती है। इस फिल्म में जो पहला शिकार बताया गया है वह भी हरियाणा का सम्पन्न किसान परिवार ही है, जिसके पास पैसा है पर बहू चाहिए।
विवाह संस्था समाज की बहुत महत्वपूर्ण संस्था है और लोकप्रिय फिल्मों, नाटकों या साहित्य की बहुत सारी समस्याएं इसी संस्था में आ गयी बुराइयों के आसपास घूमती रहती हैं। देखने में आ रहा है कि सर्वाधिक सात्विक चुटकले परिवार के परम्परागत ढाँचे के चरमराने पर ही बनाये जा रहे हैं। महानगरों में बहुत सारे युवा अविवाहित रहना पसन्द कर रहे हैं और लिव इन रिलेशन्स को कानूनी मान्यता के बाद सामाजिक मान्यता भी मिलती जा रही है। विषयगत फिल्म का मूल भाव भले ही विवाह संस्था से मनोरंजन निकालना हो किंतु विषय में प्रवेश करने पर उसकी समस्याओं से अछूता रहना तो सम्भव नहीं है। इसी फिल्म के एक व्यंगात्मक डायलाग में कहा गया है कि शादी चाहे परम्परागत होती या लुटेरी दुल्हिन के साथ हुयी हो पति तो दोनों ही स्थितियों में लुटता है, जेब तो उसी की खाली होती है।
       राजकुमार राव एक अच्छे अभिनेता है और इस फिल्म में उन्होंने अपनी बनी हुयी गम्भीर छवि से अलग हट कर हास्य भूमिका की है व उसमें भी सफल रहे हैं। इसी फिल्म में दादी की भूमिका निभा रही पात्र का बार बार और पुलिस पूछ्ताछ तक में भी एक ही वाक्य का बोलना कि ‘बेटी दी सब कुछ दिया’ भी अच्छा हास्य पैदा करता है। प्रसिद्ध व्यंगकार शरद जोशी भी किसी के कमजोर तकिया कलाम या गलत भाषा प्रयोग का दुहराव कर कर के हास्य पैदा करते थे। फिल्म में सोनम कपूर, पुलकित सम्राट और वरुण शर्मा भी हैं जिन्होंने भूमिका के अनुरूप ठीक अभिनय किया है।
       यह एक छोटी और कम बज़ट की फिल्म है जिसमें एक से अधिक आइटम सौंग हैं और अतिथि कलाकार की तरह प्रसिद्ध कलाकार भी आते हैं। सलमान खान के भाई और मलाइका अरोरा के पति अरबाज खान की इस हास्य प्रधान फिल्म का निर्देशन अभिषेक डोगरा ने किया है व तमाम मनोरंजक मसालों से सजाया है, पर इसका दुर्भाग्य यह है कि दर्शक अभी हाल ही में ‘पीके’ जैसी फिल्म देख चुके हैं जिसमें भरपूर मनोरंजन के साथ सामाजिक सन्देश भी था। ‘पीके’ का हैंग ओवर अभी बाकी है। यह फिल्म भारतीय दर्शकों की आदतों के विपरीत एक बहुत छोटी फिल्म है, जो सिनेमा हाल तक गये दर्शकों में एक अतृप्ति सी छोड़ती है।
       जब कलाएं कोई उपदेश या सन्देश न देकर अपने दर्शकों और पाठकों से सन्देश निकालने की स्वतंत्रता की नीति के अनुरूप रची जाती हैं तो वे कलाप्रेमियों को भी कला रचना में शामिल कर लेती हैं। कला प्रेमी अपनी समझ और सोच के अनुरूप सन्देश निकालता है। यह फिल्म जिस तरह के दर्शकों के पास तक अपनी पहुँच बना सकेगी वैसा ही सन्देश भी दे सकेगी।   
वीरेन्द्र जैन                                                                           
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