शुक्रवार, मार्च 18, 2016

जावेद अख्तर का विदाई भाषण ; एक दूसरा पाठ

जावेद अख्तर का विदाई भाषण ; एक दूसरा पाठ
वीरेन्द्र जैन

सुप्रसिद्ध शायर जावेद अख्तर ने राज्य सभा में अपना कार्यकाल पूरा होने पर जो विदाई भाषण दिया उसकी बहुत सारी प्रशंसा की गयी व यू ट्यूब आदि के माध्यम से उसे बार बार सुना गया। जावेद बहुत अच्छे शायर, कथाकार, स्क्रिप्ट राइटर, और एंकर ही नहीं अपितु बहुत अच्छे वक्ता भी हैं। एक बार भारत भवन में उनका भाषण डा.नामवर सिंह के साथ था तब अपनी वरिष्ठता के बाबजूद उन्होंने जावेद जी से पहले बोलने की विनम्रता दिखायी थी व अपने भाषण को संक्षिप्त करते हुए कहा था कि उन्हें जावेद का भाषण सुनना हमेशा से अच्छा लगता रहा है। उस दिन सचमुच जावेद अख्तर ने यह प्रमाणित भी कर दिया था। राज्यसभा का उक्त भाषण भी उनकी वक्तव्यकला का अच्छा उदाहरण था, किंतु उस भाषण की चर्चा जिन जुमलों के कारण जिन क्षेत्रों में हो रही है उसका केन्द्रीय भाव उस चर्चासे भिन्न था। वसीम बरेलवी का एक शे’र है-
कौन सी बात कहाँ कैसे कही जाती है
ये सलीका हो तो हर-इक बात सुनी जाती है
      जावेद की राजनीतिक सोच और धर्मनिरपेक्षता के प्रति प्रतिबद्धता से जो लोग भी परिचित हैं वे जानते हैं कि अभी पिछले दिनों जयपुर लिटरेरी फेस्टीवल के दौरान भी उन्होंने गर्व के साथ खुद को नास्तिक बतलाया था। किसी भी नास्तिक का बौद्धिक और सेक्युलर होना स्वाभाविक है। पेरियार ने कहा है कि ‘आस्तिक तो कोई मूर्ख भी हो सकता है किंतु नास्तिक होने के लिए विवेकवान होना जरूरी है’। आदमी को पैदा होने के कुछ ही घण्टों में नाम दे दिया जाता है और उसकी राष्ट्रीयता, धर्म व जाति तय कर दी जाती है। वह जिस परिवार में पैदा हुआ है उस परिवार का धर्म उस पर लाद दिया जाता है पर इन सब से मुक्त होने में बहुत संघर्ष करना पड़ता है।
      चर्चित भाषण सांसद ओवैसी के हाल ही में दिये उस विवादित बयान के विरोध में देखा गया है जिसमें उन्होंने कहा था कि कोई मेरी गरदन पर छुरी भी रख दे तो मैं ‘ भारत माता की जय’ नहीं कहूंगा क्योंकि ये मेरी संवैधानिक बाध्यता नहीं है। विवाद वाले समाचारों के भूखे चैनलों ने इस पर बहस भी करा दी जिस पर देशभक्ति के ठेकेदार लोगों ने भी खूब अपशब्द उगले व राष्ट्रव्यापी ध्रुवीकरण का माहौल बना। कुछ धार्मिक वेषधारियों को ना तो भाषा की तमीज है और न ही उनका वाणी पर संयम है। यही कारण था कि मुद्दा गरम था जो किसी अच्छे तर्कशील के लिए बहुत ही अनुकूल स्थिति होती है। जावेद ने अपने भाषण में उक्त विवादित बयान देने वाले नेता का कद कम किया, उसे एक राज्य के एक शहर के एक मुहल्ले का नेता बतलाया, और उस छोटे कद के मुँह से निकलने वाली बड़ी बात की विसंगति दर्शाते हुए खुद जोर जोर से भारतमाता की जय के नारे लगा कर देशव्यापी तालियां बटोर लीं। उनके इस काम से संघ संगठनों द्वारा  सभी मुसलमानों के विरुद्ध फैलायी जा रही नफरत की धार मौथरी हुयी। संघ परिवार के प्रचारक सीधे सरल लोगों को देश धर्म के नाम पर भरमाने का काम करते हैं किंतु जब उसी तकनीक से काम करने वाला कोई दूसरा आ जाता है तो उनका काम कठिन हो जाता है। इसी क्रम में उन्होंने कहा कि कुछ् लोगों को यह नारा लगाये जाने से भी रोकने की जरूरत है कि मुसलमान के दो स्थान, पाकिस्तान या कब्रिस्तान।
      उक्त भाषण में जावेद ने देश की महानता और सहिष्णुता की परम्परा का गुणगान करते हुए दूसरे अनेक देशों में फैल रहे कट्टरवाद की आलोचना करते हुए पूछा कि हम किस रास्ते जाना चाहते हैं? क्या हमारे मानक वे देश हैं, जहाँ धर्म के विरोध में कुछ भी बोल देने पर ज़ुबान काट ली जाती है, या फाँसी पर चढा दिया जाता है। कुछ लोग उसी रास्ते पर देश को ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। जाहिर है कि उनका इशारा संघ परिवार के उन लोगों की तरफ था जो ऊल जलूल साम्प्रदायिक बयान देकर कट्टरवाद को बढावा देने का काम करते हैं। उन्होंने साफ शब्दों में चतुराई से कहा कि मोदी सरकार में कुछ योग्य लोग ‘भी’ हैं किंतु उनके ही कुछ विधायक, सांसद, राज्य मंत्री और मंत्री तक हैं जो उच्छंखृल हैं व माहौल को खराब करते हैं। मोदी सरकार को ऐसे तत्वों से दूरी बनाने की जरूरत है। अगले चुनाव में जीत हार की चिंता से मुक्त होकर ही कुछ साहसिक किया जा सकता है।
      उन्होंने कहा कि हमने लोकतंत्र का रास्ता चुना है व हमारे यहाँ जो लोकतंत्र है वैसा लोकतंत्र दूर दूर तक नहीं मिलता। लोकतंत्र ही वह रास्ता है जिसमें विपक्ष की भी सुनी जाती है। किंतु लोकतंत्र धर्मनिरपेक्षता के बिना नहीं चल सकता। जहाँ धर्मनिरपेक्षता नहीं है वहाँ लोकतंत्र भी नहीं है। परोक्ष में उन्होंने धर्म निरपेक्षता पर खतरों की ओर भी इशारा किया जिसका निशाना सीधा सीधा सत्तारूढ दल के एक हिस्से की ओर जाता था। विकास को स्वीकारते हुए उन्होंने कहा कि जहाँ कभी सुई भी नहीं बनती थी वहाँ से आज सेटेलाइट छोड़े जा रहे हैं। हमारा सौभाग्य है दुनिया की सबसे युवा आबादी भारत में है जहाँ पचास प्रतिशत से ज्यादा युवा 25 साल से कम के हैं। हमें इस आबादी को सम्हालना है क्योंकि सबसे ज्यादा बेरोजगार भी हमारे यहाँ हैं, सबसे ज्यादा टीवी मरीज हमारे यहाँ हैं, हर पांचवां बच्चा पाँच साल से कम उम्र में ही मर जाता है, हर साल पचास हजार महिलाएं प्रसव के दौरान मर जाती हैं। हमें अपने विकास को जीडीपी से नहीं अपितु मानव विकास से नापना होगा। 
      जो लोग जावेद अख्तर के भाषण को केवल भारत माता की जय बोलने तक ही सीमित रख रहे हैं उन्हें यह भाषण यू ट्यूब पर पुनः सुनना चाहिए।
वीरेन्द्र जैन
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