सोमवार, जून 07, 2021

संस्मरण / श्रद्धांजलि प्रभु जोशी

 

संस्मरण / श्रद्धांजलि



प्रभु जोशी लेखक, चिंतक, कथाकार, चित्रकार ही नहीं व्यंग्यकार भी थे।

वीरेन्द्र जैन

अंजनी चौहान, ज्ञान चतुर्वेदी और प्रभु जोशी की मित्रता जग जाहिर है, और बहुत कुछ बातें ज्ञान चतुर्वेदी द्वारा अंजनी चौहान पर लिखे संस्मरणों में आ चुकी हैं। ये लोग तीन जिस्म और एक जान की तरह थे। अंजनी तो निशिदिन व्यंग्य में ही जीते रहे भले  ही एक अर्से बाद उन्होंने कागज पर व्यंग्य लेख लिखना और छपवाना छोड़ दिया हो किंतु उनकी बातचीत में वह हमेशा ही बना रहता है।

प्रभु जोशी ने अपने लेखों में अंग्रेजी शब्दों के स्तेमाल के बिना समकालीन विषयो, राजनीति, अर्थनीति आदि पर जो लेख लिखे, वे हिन्दी के शिखरतम पत्रकारों के लिए चुनौती बन कर सामने आये कि हिन्दी शब्दावली में भी अंतर्राष्ट्रीय विषयों पर लिखने की शब्द सामर्थ्य मौजूद है।

इस विषय पर फिर कभी बाद में यहाँ में याद कर रहा था कि प्रभु की आपस की बातचीत में भी व्यंग्य का वही तेवर मौजूद रहता था जो अंजनी और ज्ञान में है। नमूने के लिए मैं 23 जुलाई 1975 मुझे लिखा वह पहला पत्र प्रस्तुत कर रहा हूं जिससे उनकी व्यंग्यमयी दृष्टि और अभिव्यक्ति का पता चलता है। उल्लेखनीय है तब मैं उ.प्र. के हरदोई जिले के बेनीगंज में पदस्थ था।
====================================

                                               5, महाकवि कालिदास मार्ग

                                                       देवास45501

प्रिय भाई,

आपका पत्र मिला। आपसे अपरिचित नहीं हूं। कविताएं व लतीफे पढे हैं।खूब पसन्द आये हैं। बम्बई गया था। पता चला था। वीरेन्द्र कुमार जैन भारती जी से शिकायत कर रहे थे। आप इस नाम को रोको या बदलवाओ। उसी दिन पता चला कि यह वीरेन्द्र कुमार जैन बूढा नहीं, जवान आदमी है।
खत पाकर खुशी ही हुई है। तिस पर म.प्र. के आदमी हो। यह जांनकर और इजाफा हो गया।

मैं देवास जिले के ही एक दूरस्थ गाँव का गंवई हूं। बचपन से इधर ही पढाई हूं। और सम्प्रति धार में सरकार ने हैड मास्टर बना दिया है। जहाँ कुल जमा आठ दिन नौकरी की। बाकी लम्बी छुट्टी लेकर लेखन करता हूं। शिक्षा के नाम पर B.Sc. की डिग्री है।

माँ बाप तीन भाई एक बहन का कुनबा है। जो यहीं किराये के मकान में पल रहा है। एक भाई बड़े, दो छोटे हैं। पिता रिटायर्ड मास्टर हैं।

इस कुनबे में बढोत्तरी में भाभी उनके दो बच्चे और छोटे की बीबी भी शामिल है। स्मरण रहे मैं कुँवारा हूं और कुंवारा बने रहना चाहता हूं। वैसे हुस्न गड़बड़ नहीं है अपना। बाकी फिर कभी। विस्तृत ब्योरा गंगा के पण्डों के पोथों में मिलेगा।

और कुछ?

अपने विषय में लिखना।

आपका

प्रभु जोशी

23 जुलाई 75

वीरेन्द्र कुमार जैन [जवान]

हिन्दुस्तान कमर्सियल बैंक

बेनीगंज

जिला हरदोई - उ.प्र.]

======================================================================

 वैसे तो हम लोग पहले पत्रों में और पत्र व्यवहार प्रथा का अंत होने के बाद आयोजनों में ही लम्बे अंतराल के बाद मिलते रहे, किंतु जब भी मिलते वे उसी ऊष्मा के साथ मिलते थे। कोरोना काल में मेरे ही नहीं सबके सम्बल टूटते जा रहे हैं। प्रभु जी के निधन के बाद निःसहायता और गहरी हो गई है।

श्रद्धांजलि के अलावा देने के लिए कुछ भी नहीं बाकी बचा। 

वीरेन्द्र जैन

2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड

अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023

मो. 9425674629


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें