शनिवार, अक्तूबर 03, 2009

सार्वजनिक स्थलों से पूजा घर कब तक हटेंगे ?

सार्वजनिक स्थलपर पूजा घर
इस विलंबित महत्वपूर्ण फैसले पर अमल की तैयारियां क्या हैं?
वीरेन्द्र जैन
गत दिनांक 20 अक्टूबर 2009 को सुप्रीम कोर्ट की एक बैंच के जस्टिस दलवीर भंडारी और मुकुंदकम शर्मा ने अपने एक फैसले में कहा है कि सार्वजनिक जगहों पर पूजा स्थलों के निर्माण न होने देने को राज्य सरकारें सुनिश्चित करें। यह फैसला इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह लोकतंत्र के हित में है। जहाँ जहाँ आधुनिक सोच और वैज्ञानिक विचारधारा का प्रभाव कम होता है वहाँ वहाँ लोकतंत्र को भटकाने के लिए लोगों की भावनाओं का दुरूपयोग धर्मस्थलों के द्वारा ही किया जाता है। आज हमारे देश में स्कूलों अस्पतालों और दूसरे बेहद जरूरी स्थलों से कहीं बहुत ज्यादा पूजाघर बने हैं और वे सभी धार्मिक कार्यों को सम्पन्न करने के उद्देशय से नहीं बने हैं। किसी भी धार्मिक स्थल के निर्माण के पूर्व किसी भी तरह के सर्वेक्षण कराने की बाध्यता नहीं होती कि
प्रस्तावित धार्मिकस्थल कितने लोगों की आवश्यकता है,
वहाँ पूर्व में स्थापित धार्मिक स्थल क्या उस आवश्यकता की पूर्ति कर पा रहे हैं या नहीं,
उसकी स्थापना के लिए धन संग्रह की व्यवस्था क्या है व उसके नियमित संचालन के लिए निरंतर प्राप्त होने वाली आय के बारे में क्या योजना है,
उक्त धर्मस्थल में धार्मिक कार्य सम्पन्न कराने के लिए सुपात्र व्यक्ति की उपलब्धता की क्या स्थिति है,
धार्मिक स्थल की सुरक्षा की क्या व्यवस्था है, और
उक्त धार्मिक स्थल की स्थापना से कहीं दूसरे की स्वतंत्रता और शांति में अनुचित हस्तक्षेप तो नहीं हो रहा
क्या सम्बंधित विभागों से निर्माण की अनुमति है, आदि।
हमारी भाषा में आंख मूंद कर धर्म के मुखौटों के पीछे भटक जाने वालों के लिए एक शब्द आता है 'धर्मान्ध'। यह शब्द अपने आप में इतना स्पष्ट है कि सब कुछ बोल जाता है। यह शब्द धर्म के प्रति पूरी श्रद्धा रखते हुये भी विवेक के महत्व को न भूलने का संदेश देता है जिससे धार्मिक भावनाओं के आधार पर कोई धोखा नहीं दे सके। उत्तर भारत के हिन्दी भाषी क्षेत्रों में सर्वाधिक प्रचलित राम कथा में दर्शाया गया है कि सीता हरण के लिए रावण साधु का भेष धारण करके आता है अर्थात धार्मिक विश्वासों का दुरूपयोग करके उन्हें धोखा देता है। यह कथा धर्म के मामले में भी विवेक को न भूलने की सलाह देती है जबकि धर्म के नाम पर धोखा देने वाले आम तौर पर यह कहते पाये जाते हैं कि धर्म के बारे में बहस नहीं करना चाहिये और ना ही धार्मिक भेषभूषा वाले व्यक्ति के कथनों पर संदेह करना चाहिये। इसके उलट उत्तर भारत में वैष्णव हिंदुओं के बीच सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रन्थ रामचरित मानस के रचियता गोस्वामी तुलसी दास बार बार 'विवेक' पर जोर देते हैं-
भनति मोर सब गुन रहित विश्व विदित गुन एक
सो विचार समझें सुमति, जिनकें विमल विवेक
हमारे यहाँ प्रचलित एक कहावत में कहा गया है-
पानी पीजे छान कर, गुरू कीजे जान कर
अर्थात बिना विवेक का स्तेमाल किये किसी को भी गुरू नहीं बना लेना चाहिये और उसका अन्धानुकरण नहीं करना चाहिये। दुर्भाग्य से हमारे देश में धर्म के बारे में चर्चा विर्मश और बहसें तो कम से कम होती जा रही हैं व उत्सवधर्मी धार्मिक कर्मकांड बढते जा रहे हैं जिससे धार्मिकों की जगह धर्मान्ध पैदा हो रहे हैं। दूसरी ओर इन्हीं धर्मान्धों की भावनाओं से लाभ उठाने वालों ने धर्म के प्रतीकों का दुरूपयोग करना तेज कर दिया है। सार्वजनिक स्थल पर पूजा स्थल बनाने का काम भी ऐसा ही हैं। आज प्रत्येक कचहरी, पुलिस लाइन, रेलवे स्टेशन, सैनिक स्थल, रेलवे स्टेशन, अस्पतालों आदि स्थानों पर सभी धर्मों के पूजा स्थलों की भरमार हो गयी है व पुराने पुराने ऐतिहासिक पूजा स्थल बीमार होते जा रहे हैं व उनमें पशु विश्राम करते हैं व कुत्ते पेशाब करते हैं।
गाजर घास की तरह जगह जगह उग आये ये पूजा स्थल न केवल असमंजस व निराशा में घिरे व्यक्तियों का भावनात्मक विदोहन करने के लिए कचहरी व अस्पतालों जैसी जगहों पर बनाये जाते हैं अपितु सुरक्षा में सेंध लगाने के लिए सैनिक स्थलों पर या रिश्वतखोरी व दलाली आदि के लिए पुलिस थानों और पुलिस लाइनों आदि सरकारी स्थानों में बनाये जाते हैं। एक पुलिस अधिकारी ने तो थाने में इसलिए मंदिर बनवाया था ताकि उसे रिश्वत के पैसे को हाथ लगाने का खतरा न लेना पड़े। वह पैसे को उस मंदिर में चढा देने को कहता था तथा पुजारी शाम को वह राशि उसके घर पर पहुँचा देता था।
अतिक्रमण करने का साधन भी ऐसे ही पूजा घर बनते हैं तथा घरों के बाहर अतिक्रमण करके बने चबूतरों पर या लॉन में इसलिए बना दिये जाते हैं ताकि अतिक्रमण तोड़ने वालों को धर्म के नाम से डराया जा सके अथवा उनका विरोध करने के लिए एक भीड़ आसानी से जुटायी जा सके। बाजारों में दुकान के बाहर सामान सजाने वाले दुकानदार भी कोने पर पूजा स्थल बनवा देते हैं ताकि वहाँ से वाहन किनारा करते हुये निकलें व अतिक्रमण विरोधी दश्ता विरोध की संभावना को देखते हुये कार्यवाही में संकोच करे। घने बाजारों में जहाँ जगह ज्यादा कीमती होती है वहाँ थोड़ी सी भी खाली जगह पर लोग पेशाब करने लगते हैं जिससे बाजार पर असर पड़ता है। इसे रोकने के लिए उन स्थानों पर पूजा घर बनवा दिये जाते हैं। बनारस और कानपुर में जहाँ पान और जर्दा खूब खाये जाते हैं वहाँ कार्यालयों की सीढियों के कोने में लोग पान थूकने लगते हैं जिसे रोकने के लिए उन कोनों में कई जगह छोटी छोटी मूर्तियां स्थापित कर दी गयी हैं ताकि लोग गन्दगी न करें।
आाम तौर पर देखा गया है कि साम्प्रदायिक राजनीति करने वाले दूसरे सम्प्रदाय के बहुमत वाले मुहल्ले के किनारों पर अपने पूजा स्थल स्थापित करके अपने लोगों को एकत्रित करने का स्थान बना देते हैं। उनका प्रयास रहता है कि इससे कम संख्या में रहने वाले हमारे भाई बन्धु एक जुट हो सकेंगे। पर यही स्थल कभी बड़े विवाद को आमंत्रित कर के साम्प्रदायिक दंगे करवा देते हैं। यही साम्प्रदायिकता एक किस्म की राजनीति को लाभ पहुँचाती है जिससे वह राजनीति ऐसे सम्वेदनशील स्थानों के निर्माण को प्रोत्साहन देती है ताकि आवश्यकता पड़ने पर उसका स्तेमाल कर सके। दूसरी ओर इसी सम्वेदनशीलता के कारण वोटों की राजनीति करने वाले इनकी स्थापना का कभी विरोध नहीं करते।
आम तौर पर सवर्ण व सम्पन्न हिंदू अपने घर के अन्दर मंदिर बनवाया करते थे या जाति समाजों के अलग अलग मंदिर होते थे। उनके यहाँ पूजा आरती भी सुबह और शाम होती है। सड़कों और सार्वजनिक स्थलों पर मंदिर निर्माण उनकी परंपरा का हिस्सा नहीं हैं। इसी तरह छोटे छोटे मजार और मस्जिदें भी किन्हीं इतर कारणों से सड़कों के किनारों पर या बीच में आयी हैं। उक्त पूजा स्थल किन्हीं निहित स्वार्थों के कारण ही अस्तितव में आये हें और इनको हटाये जाने का वे विरोध भी करेंगे तथा धर्मांध लोगों को बरगलाकर भीड़ भी जुटाने की कोशिश करेंगे। वोटों की राजनीति करने वाले भी या तो ऐसे ही गलत लोगों का साथ देंगे या चुप लगा जायेंगे। ऐसी दशा में सुप्रीम कोर्ट का आदेश अपनी मूल भावना में कैसे अमल में आयेगा! ऐसे स्थलों के विरोध में कार्यवाही करने के लिए सर्वदलीय बैठक बुलवाना चाहिये और पहचाने गये ऐसे स्थलों पर की जाने वाली कार्यवाही पर सहमति प्राप्त करना चाहिये।
वीरेन्द्र जैन
21 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425श74श29 4

8 टिप्‍पणियां:

  1. Virendra Ji Aadab,
    Hindustan me seedhi soch aur common sense virley hi miltey hain. Lekh tarkik hai, aur tark me sabhi ka bhala....phir bhi...jaisa khud aapne kaha ki.....!
    Sheeba

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  2. हालत को देखते हुए तो काजल कुमार ही सही लगते हैं पर फिर भी उम्मीद का दमन क्यों छोडा जाए

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  3. पूजा स्थलों से आपका तात्पर्य मस्जिद और गिरजों से भी है या सिर्फ मंदिर ही निशाने पर हैं??

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  4. निशाचर जी
    आपका प्रोफाइल दिन और रात दोनों में ही आपका परिचय नहीं दे सका व जो खुद गोपनीय हो वह सवाल पूछने का हकदार नहीं हो जाता .वैसे तो अपने आप में स्पष्ट है की इस तरह के सवाल कहाँ से उठते हैं जो अच्छी खासी बात को साम्प्रदायिक दृष्टि से देखना और दिखाना शुरू कर देते हैं . जिन बिन्दुओं के आधार पर धार्मिक अतिक्रमण का विरोध किया गया है उसमें मंदिर मस्जिद गिरजाघर का भेद कहाँ से टपकता है?

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  5. विचार तो अच्छा है, और कोर्ट का निर्णय भी… नरेन्द्र मोदी ने अभी गुजरात में सड़क बनवाने के लिये कई मन्दिरों को ढहा दिया जिसकी वजह से विहिप की आलोचना के पात्र भी बने… हालांकि फ़िर भी सेकुलरों ने उनकी "झूठी ही सही" लेकिन तारीफ़ नहीं की। खैर, जाने दीजिये… दिल्ली की जामा मस्जिद के बाहर वर्षों से अतिक्रमण हुआ है, जिसे सुप्रीम कोर्ट अवैध ठहरा चुका है, लेकिन याद नहीं पड़ता कि "साम्प्रदायिक"(?) लोगों के अलावा किसी ने उसके खिलाफ़ आवाज़ उठाई हो…। ऐसे में बैलेंस कैसे बनाईयेगा वीरेन्द्र जी?

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  6. क्या आप उन शीबा असलम फहमी को जानते हैं जिन्होंने आपसे पहले इसी पोस्ट पर टिप्पणी की है तो पता लग जाएगा की किस किस ने आवाज़ उठाई और जिन्हें ब्रेकिट लगाकर साम्प्रदायिक बता रहे हैं दरअसल उसे बिना ब्रेकिट के लिखिए क्योंकि उन्होंने इसी कारण से उठाई है और उसे में आवाज़ नहीं मानता वह एक षडयंत्र होता है

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