पर भाजश के अनाथों की देखभाल कौन करेगा !
वीरेन्द्र जैन
भारतीय जनशक्ति की संस्थापक और सुप्रीमो रहने के बाद उसे छोड़ देने वाली उमा भारती ने अपने ताज़ा बयान में कहा है कि एक राजनीतिज्ञ और साध्वी का जीवन व्यतीत करते हुये उन्हें काफी समय हो गया है लेकिन पारिवारिक ज़िम्मेवारी क्या होती है इसका अहसास पहली बार हो रहा है। उन्होंने कहा कि वे अब पारवारिक दायित्वों का निर्वहन करना चाहती हैं और फिलहाल एक साल राजनीति से दूर रहेंगीं। इस अवधि में वे बड़े भाई स्वामी लोधी के बच्चों नीलू और नीतूकांता की देखभाल करेंगीं। [ श्री स्वामी लोधी की पत्नी ने पिछले साल ही भोपाल में अज्ञात कारणों से अपने निवास में आत्महत्या कर ली थी, तथा सुश्री भारती उनके बच्चों को अपने बच्चों के समान ही प्यार दुलार देती रही हैं]। इस अवसर पर उन्होंने भाजपा में वापिसी के सवाल और उसमें पुनर्प्रवेश से सम्बन्धित अवरोधों से जुड़े किसी भी सवाल का उत्तर नहीं दिया।
मध्य प्रदेश के गत विधानसभा चुनाव में उन्होंने प्रदेश की सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे जिसमें से पाँच उम्मीदवारों ने जीत दर्ज़ की थी और गैर मान्यता प्राप्त उनकी भारतीय जनशक्ति पार्टी को बारह लाख वोट मिले थे जो इस बात का प्रमाण है कि बहुत सारे लोगों ने अपने भविष्य को उनके साथ नत्थी किया था। भाजपा में पुनर्वापिसी की सम्भावना दिखते ही वे प्रदेश के इन बारह लाख लोगों के भविष्य को अधर में छोड़ते हुये लाल कृष्ण आडवाणी और संघ मुख्यालय के चक्कर लगाने लगीं थीं, किंतु भाजपा के प्रादेशिक नेताओं ने जब उनकी वापिसी का तीव्र विरोध किया तो पार्टी नेतृत्व को उनको दिया आश्वासन छोड़ देना पड़ा। अपने वादे से मुकर जाना इस पार्टी के लिए कोई नई बात नहीं है उनके वरिष्ठ उपाध्यक्ष रहे कल्याण सिंह तो राष्ट्रीय एकता परिषद को बाबरी मस्ज़िद की सुरक्षा के सम्बन्ध में दिये आश्वासन से मुकर गये थे जिसे पूरे देश ने इसे अपने साथ हुआ धोखा माना था।
जब उमा भारती ने भारतीय जनशक्ति के सुप्रीमो पद से त्यागपत्र दिया था तब पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष पद पर विराजे श्री संघ प्रिय गौतम ने कहा था कि न तो उमा भारती भाजपा में जा रही हैं और ना ही मैं जा रहा हूं वे बीमार हैं और उन्हें पैरों में गम्भीर बीमारी है वे इसलिए पद त्याग रही हैं।
भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को बेहद अशालीन भाषा में याद करने वाली और मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान पर बड़ा मल्हरा चुनाव के दौरान अपनी हत्या करवाने तक का आरोप लगाने वाली सुश्री भारती अपने अस्थिर निर्णयों के लिए भी जानी जाती हैं। गत उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने हिन्दू एकता के नाम पर अपने उम्मीदवार वापिस ले लिये थे [किंतु उनके निर्देश को नकारते हुये कुछ उम्मीदवार तो फिर भी मैदान में रह गये थे जिनमें से एक तो जीत भी गया था।] पर फिर भी हिन्दू एकता की दशा यह रही थी कि पार्टी चौथे नम्बर पर रही थी। इसी तरह गुजरात विधान सभा चुनाव के दौरान उन्होंने गुरूजी की आज्ञा के नाम पर गुजरात चुनाव से अचानक अपने उम्मीदवारों को अपने नाम वापिस ले लेने के निर्देश दिये थे जिस कारण कुछ जगहों पर उन्हें अपमानित भी होना पड़ा था। उनके समर्थकों में अधिकांश भाजपा से असंतुष्ट लोग ही हैं और भाजपा नेताओं के साथ उनके विरोध इतने व्यक्तिगत स्तर के हैं कि ना तो वे लौटकर भाजपा में जा सकते हैं और ना ही भाजपा अब उन लोगों की वरिष्ठता और सक्रियता के अनुरूप कोई पद देने की स्तिथि में है। सवाल उठता है कि ऐसे में उमाजी की पार्टी के पाँच विधायक और हज़ारों छुटभइए नेताओं की दिशा क्या होगी ? वे किधर जायेंगे ? उनके भी परिवारिक दयित्व हैं, जिनके रहते हुए भी वे राजनीति में रुचि लेते रहे हैं, वे अब किनके बच्चों को खिला कर अपना समय बिताएंगे।
उमा भारती बाबरी मस्ज़िद विध्वंस में सह अभियुक्त हैं और उनकी सच्ची गवाही भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं को खतरा पैदा कर सकती है, इसलिए ही उन्हें साधा गया था व भाजपा में वापिसी का लालच दिया गया था किंतु प्रदेश के भाजपा नेतृत्व के द्वारा हुये विरोध ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा। उनकी उम्मीद अभी टूटी नहीं है और यही कारण है कि वे अपने स्वभाव के विपरीत, अभी तक, भाजपा नेताओं के खिलाफ बोलने से बच रहीं हैं। भाजपा को उन्हें प्रवेश देना ही पड़ेगा। साल भर से पहले अगर उन्हें मौका मिलता है तो वे हिन्दू एकता, राम मन्दिर या गुरू के आदेश के नाम पर अपने पारिवारिक दायित्वों को भी छोड़ने की घोषणा कर सकती हैं।
दूसरा सवाल यह है कि क्या सन्यास से वापिसी या मध्याविधि अवकाश सम्भव है? ऐसा होने पर उसका सन्यास रूप एक धोखा माना जाता है। क्या अवकाश के बाद पुनः उसी रूप में लौटना हो सकता है ? मान लें कि हो भी जाये तो क्या लोगों के मन में वही श्रद्धा बनी रहेगी जिसके नाम पर कोई सन्यासी राजनीतिक लाभ उठाता रहा हो ? यदि ऐसा नहीं होता है तो फिर राजनीतिज्ञ के रूप में उनकी और क्या पहचान है ! तय है कि उमा भारती के समर्थकों को अब अपना रास्ता अलग तलाशना प्रारम्भ कर देना चाहिए।
वीरेन्द्र जैन
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बहुत बड़ा लेख लिख दिया है श्री वीरेन्द्र जैन आपने,
जवाब देंहटाएंइसे तो नहीं पढ़ा लेकिन आपके लेख का शीर्षक बहुत अच्छा है।
अभी कलकत्ता के सारे के सारे वाममार्गी अनाथ हो चले है, ममता दीदी इन्हें राइटर बिल्डिग से बेदखल करके इतिहास के कूडेदान में फैंक रहीं है, जरा इन बेचारों की भी सुधि लीजिये ना,
माना कि वामपंथी इस लायक नहीं है कि इन पर बात की जाये लेकिन इनसे एसी भी क्या बेरुखी, कभू कभार तो इन अनाथों पर भी बात कर लो ना।
Aapki tippni khari-khari evam kafi satik hai..
जवाब देंहटाएंsanyas, dridsankalp,Hindusinskriti,bhagwa vastr,shastr aadi se is Mahila ka kuchh lena dena nhi hai.. kintu Rajniti me rahkar ukt Mahila ne bhartiy sanskritik vyavastha ka swarthvas bhari durupyog kiya hai.nihsandeh yah prakriti ka shrap hai..jo uma dar-dar ki thokre kha rhi hai..( mai bhi kafi fen tha uma ka aakhe khuli tab samaz me aaya)
माननीय,
जवाब देंहटाएंआपको भाजपा और संघ परिवार की जितनी चिन्ता है, उसे देखकर तो यदि गोलवलकर गुरुजी जीवित होते तो उनके भी आँसू छलक उठते… :) :)