बुधवार, जून 23, 2010

अकेले होने पर भी यात्राएं स्थगित नहीं होतीं


अकेले होने पर भी यात्राएँ स्थगित नही होतीं
वीरेन्द्र जैन

नेता बेईमान हैं, अफसर नाकारा और भ्रष्ट हैं, कर्मचारी बिना रिश्वत लिये कोई काम करने को तैयार नही हैं, पत्रकार दलाल हो गये, न्यायाधीश मुँह देखे का न्याय करते हैं, प्रकरण ल्रंबित रहते हैं, जॉचें असंतोष को टालने का बहाना हैं आदि- आदि आरोप पूरे देश के नागरिक उछालते रहते हैं और साथ साथ सब कुछ सहते रहते हैं।
लोकतंत्र में यथा प्रजा तथा राजा का सिद्वांत लागू होता है, किंतु हम अपने दोषों को देखने की कोशिश नहीं करते हैं और न ही किसी गलत बात के प्रति सक्रिय अंसतोष ही व्यक्त करते हैं। ऐसे सुझावों पर एक सधा हुआ- सा उत्तर हमारे पास होता है कि ' हम अकेले क्या कर सकते हैं ' या 'हमारे किये क्या होता है?' असल में इस तरह की बातें एक बहाना भर होती हैं, जबकि थोड़े से श्रम और थोड़े से त्याग के द्वारा हम अपना विरोध दर्ज करा कर एक बड़ा समूह पैदा कर सकते हैं उदाहरण के लिए हम इतना तो कर ही सकते है कि किसी बेईमान नेता नाकारा अफसर व भ्रष्ट कर्मचारी को सम्मान न दें। उसका अभिवादन न करें व उसके अभिवादन का उत्तर न दें। प्रत्येक भ्रष्ट व बेईमान व्यक्ति अतिरिक्त रूप से अर्जित धन को कहीं न कहीं निवेश करता है। हम ऐसे संस्थानों का निषेध कर सकते हैं। हमें चाहिए कि हम भ्रष्ट नेता द्वारा संचालित स्कूलों में अपने बच्चों को प्रवेश न दिलाएँ, उनकी दुकानों और शोरूमों से सामान न खरीदें। उनके पेट्रोल- पंपों, गैस एजेंसियों से संभव होने पर भी खरीदी न करे। उनके द्वारा संचालित सरकारी ठेकों की जानकारीयॉ रखें और गुणवत्ता पर ध्यान रखें व किसी भी विचलन की जानकारी होने पर संबधित अधिकारियों को सूचित करें भले ही अपना नाम गुप्त रखें। विकल्प होने पर उनके मकानों, भवनों को किराये से न लें और लें तो अधिक किराया न दें। नियम से उनके विचलन की जानकारी उनके विरोधियों तक पहुँचावें। इस कार्य के लिए कुछ गुमनाम पोस्टकार्ड भेजकर भी काम चलाया जा सकता है। बाद में सूचना के विस्तार की तलाश तो उनके विरोधी भी कर सकते है।
प्रसिद्व फिल्मीसितारों, गायकों, संगीतकारों, क्रिकेट खिलाड़ियों को हम उनके संबधित गुणों के कारण सम्मान देते है, पर उनके द्वारा प्रचारित खाद्य सामग्री, पेय पदार्थो या दूसरे गृह- उपयोगी उपकरण खरीद कर हम लुटते भी हैं कोशिश करें कि इससे बच सकें क्योकि अपने प्रशंसकों को उक्त सामग्री खरीदनें की प्रेरणा देने के बदले में ये करोड़ों रूपये लेकर आपको मूर्ख समझकर आपकी भावनाओं को परोक्ष रूप से भुनाते हैं। इनको दिया गया धन व मीडिया के विज्ञापनों में व्यय किया गया अरबों रूपया हमारी ही जेब से जाता है। यदि हम उपभोक्ता सामग्री के प्रयोगों से संबधित जानकारी का परस्पर आदान-प्रदान करते रहें तो कम व्यय में समतुल्य सामग्री से भी वांछित परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। एक समूह के लोग उपभोक्ता सामग्री को थोक में खरीदकर कर और आपस में बांटकर फुटकर दुकानदार का मुनाफा बचा सकते हैं।
अपना विरोध व असहमतियों को व्यक्त करने के लिए हम समाचार पत्रों के संपादक के नाम पत्र स्तंभ का समुचित उपयोग कर सकते हैं। जिस विभाग, अधिकारी या नेता से हम अंसतुष्ट हैं, उसके दरवाजे से निकलते समय अपने वाहन का हॉर्न तेज स्वर में बजाते हुए गुजर कर भी अपना विरोध दर्शा सकते हैं। भ्रष्ट और बेईमान अफसर के विदाई समारोहों का बहिष्कार करके भी उसे एक सन्देश दे सकते हैं।
एक बहुत बड़ा भ्रम यह छाया हुआ है कि हम चुनाव में जो वोट देते हैं वह किसी को जिताने के लिए देते हैं। इस भ्रम में पड़ कर हम अपनी पंसद के उस उम्मीदवार और दल की उपेक्षा कर जाते हैं, जिसके जीतने की संभावनाएं कम बतायी जा रही हों। इस बात की कहीं कोई गांरटी नही होती कि जिसको आप वोट दे रहे हैं वही जीतेगा और जीतेगा तो आपका उपकार मानकर आपका साथ देगा। आमतौर पर हमारे क्षेत्र में जीते हुए उम्मीद्वार किसी देवी- देवता या संत- मंहत के प्रति कृतज्ञ होते हुए देखे जाते हैं। प्रत्येक वोट का अपना महत्व होता है तथा विजयी दल और उम्मीद्वार सदैव ही यह दृष्टि में रखते हैं कि किसी विरोध पक्ष और उम्मीद्वार को कितने वोट मिलते हैं। इस तरह वे हवा का रूख पहचान कर अपने कार्य की दिशा तय करते हैं। वोट गुप्त होता है तथा यदि आप किसी दल या उम्मीद्वार के मुखर समर्थक नही होते हैं तो किसी को पता नही रहता कि आपने किसे वोट दिया है। इसलिए आपकी ईमानदारी का तक़ाजा यह है कि अपने सिद्वांतों के अनुकूल व्यक्ति और दल को वोट देकर एक स्पष्ट संदेश दें।
सामानों से भरे बाजार में हम अतिक्रमणकारी दुकानदारों से सामान नहीं खरीदकर उन्हें एक संदेश दे सकते हैं। थोड़ा सा कष्ट उठाकर हम उस दुकान तक जा सकते है, जो अपनी दुकान की सीमा तक ही सामान रखता है, जिसके यहॉ पार्किग की उचित सुविधा है, जो दरें सही व सुनिशचित रखता है तथा बिल बनाकर सही सामान देता है। बाजार की प्रतियोगिता का लाभ हम सामाजिक नियमों के पालन कराने की दिशा में उठा सकते है। सांप्रदायिक और जातिवादी शक्तियों को सहायता पहुँचाने वाली दुकानों का भी बहिष्कार किया जा सकता है।
आमतौर पर हम बहुमत के नाम पर नियमों- नीतियों के विचलनों को स्वीकार करने लगते है और परोक्ष रूप में उनमें शमिल हो जाते है, जबकि हम अकेले होते हुए भी अपने स्तर पर अपना विरोध व्यक्त कर सकते हैं, यदि आप अपने हिस्से की ईमानदारी लागू करते रहते हैं, तो वह निरर्थक नहीं जाती भले ही तात्कालिक रूप से बहुत स्पष्ट परिणाम नज़र नही आ रहे हों। इसमें कम से कम इतना तो होता ही है कि उसमें शमिल नहीं होने लगते और उसके विरोध में चिंतन की एक धारा सतत प्रवाहमान रहती है।
अकेला चना भाड़ भले ही न फोड़ पाए पर भडभूंजे की ऑख फूटने के बाद भाड़ के फूटने में ज्यादा देर नही लगती है। हमें देखना होगा कि कि हम अपना विरोध कैसे व्यक्त करने की स्थिति में हैं।बिना किसी भय और दुस्साहस के भी बहुत कुछ किया जा सकता है।
-- वीरेन्द्र जैन
2\1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629

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