शनिवार, जुलाई 24, 2010

आमिर खान के शिखर पर पँहुचने का मतलब्


आमिर के शिखर पर पहुँचने का मतलब भी समझो
वीरेन्द्र जैन
अपनी फिल्मों को न केवल बाक्स आफिस पर सफलता दिलाने वाले अपितु फिल्म समीक्षकों से लेकर साहित्यकारों, राजनेताओं, और शिक्षाशास्त्रियों तक से प्रशंसा पाने वाले आमिर खान को फिल्म फेयर पावर लिस्ट ने टाप टेन में शीर्ष स्थान दिया है। वे इसी साल ही शीर्ष पर नहीं हैं अपितु लगातार शीर्ष पर बने रहने का उनका यह तीसरा साल है। यह स्थान उन्हें किन्हीं ज्यूरियों ने चुन कर नहीं दे दिया अपितु दुनिया भर के अखबारों, पत्रिकाओं, उनके हिसाब किताब और आयकर के आंकड़ों से लेकर फेसबुक और ट्वीटर पर उपस्तिथ उनके लाखों प्रशंसकों के आधार पर तय हुआ है। इस सूची में मोदी के गुजरात के ब्रांड एम्बेसडर अमिताभ और उनके लाड़ले बेटे अभिषेक तो कहीं हैं ही नहीं तथा शाहरुख खान भी दूसरे नम्बर पर हैं।
आमिर द्वारा बनायी गयी उसकी अपनी अबकी फिल्में बेतरतीब बेहूदा कहानियों में गुंथी लम्पट प्रेम कथाओं या किसी सरकार और कानून बिहीन देश की अविश्वसनीय माफिया जगत से जुड़ी ठाँय ठाँय नुमा फिल्में नहीं होतीं। उनमें एक विचार होता है, एक सन्देश होता है, हमारा देश होता है हमारा परिवेश होता है, जिसमें मेट्रोपोलिटन नगर की पश्चिमी दुनिया भी होती है तो बीस रुपये रोज पर गुजर करने वाले सत्तर करोड़ लोगों की जूझती हुयी देशी ज़िन्दगी भी होती हैं। प्रेम की सार्वभौमिक भावनाओं के साथ भूख और रोटी रोजगार का अपना अपना नंगा यथार्थ भी होता है। उनकी फिल्में लाई मुरमुरे की तरह हल्की नहीं होती किंतु गरिष्ठ और बेस्वाद भी नहीं होतीं। वे गाजर मूली ककड़ी के साथ तरबूज खरबूज, आम अनार जामुन अंगूर सेव, नाक, चीकू की तरह स्वादिष्ट, शक्तिवर्धक और सुपाच्य होती हैं। न उनसे हाजमा खराब होता है और ना ही मुँह का स्वाद ही खराब होता है। वे ये फिल्में उन दर्शकों के बीच सफल कर रहे हैं जिनके बारे में यह मान लिया गया था कि दर्शक की रुचि बिगड़ चुकी है, वह चटोरा हो गया है, उसे केवल सतही सम्वेदनाएं जगाने और हल्के फुल्के फूहड़ मनोरंजन वाली धाँय धाँय की फिल्में ही चाहिए। उसे फिल्मों में सामाजिक यथार्थ नहीं चाहिए अपितु एक कल्पनालोक की यात्रा का नशा चाहिए। आमिर की फिल्मों ने निहित स्वार्थों और कलाविहीन लोगों द्वारा फैलाये इस भ्रम को तोड़ा है। लगान, रंग दे बसंती, मंगल पांडे, तारे जमीं पर, थ्री ईडियट्स आदि ने सफलता के सारे रिकार्ड तोड़े हैं। इस दौर में आमिर की उपरोक्त फिल्मों की सफलता एक अलग तरह के आम चुनाव का चुनाव परिणाम भी हैं जो बताता है देश क्या सोच रहा है, जनता किस के समर्थन में है और उसे क्या पसन्द है। स्मरणीय है नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली गुजरात सरकार ने गुजरात में रंग दे बसंती को चलने नहीं दिया था किंतु पूरे देश ने जिस तरह उस फिल्म को प्यार दिया था और युवाओं ने उसके सन्देश को ग्रहण किया था तो नरेन्द्र मोदी का कलंक धोने के लिए लाल कृष्ण आडवाणी ने तारे जमीं पर देखने और देख कर अपने आँसू पौँछने के समाचार छपवाये थे। जब पूरा देश ही नहीं अपितु दुनिया में जहाँ जहाँ हिन्दी फिल्में देखी जाती हैं, वहाँ वहाँ थ्री ईडियट्स की भरपूर प्रशंसा हो रही थी तब भाजपा के लोग मुम्बई में अपना झंडा साथ में लेकर इस फिल्म के पोस्टर उतार रहे थे और जला रहे थे। आमिर की फिल्मों की सफलता साम्प्रदायिक विचार के कट्टरतावादियों की हार भी है। भाजपा जो मुख्यतयः समाज के खाते पीते मध्यम वर्ग की ही पार्टी है और वे मध्यमवर्गीय ही फिल्मों को सफल असफल करते हैं। देखा जा रहा है कि उनमें आमिर की फिल्में पसन्द की जा रही हैं, उनकी फिल्मों में गुँथे विचार को पसन्द किया जा रहा है। यह समाज का एक राजनीतिक रुझान प्रकट करता है।
आज जब इस देश में सत्तर करोड़ से अधिक लोग बीस रुपये रोज से कम पर जीवन यापन कर रहे हैं, 42 करोड़ परिवार गरीबी रेखा से नीचे हैं और इसमें भी एक बड़ी संख्या ऐसी है जिसकी आय प्रति दिन नौ रुपये रोज से अधिक नहीं है उन्हें फिल्में देखने, या देखने के लिए चुनाव करने का अवसर ही नहीं है। यही हाल उनका वोट देने के मामले में भी है। वे य तो जाति धर्म क्षेत्र आदि के प्रभाव में वोट देते हैं या वोट बेच देते हैं। पर विचार के बाद मतदान करने वालों का मत अन्ध साम्प्रदायिकों के मत से नही मिलता। अपनी फिल्मों के कारण आमिर खान के शिखर पर होने का ये मतलब भी निकल रहा है। जो लोग इस मतलब को नहीं समझेंगे वे यह भी नहीं समझ पायेंगे कि हमारे देश के प्रधान मंत्री जिसे सबसे बड़ा खतरा मान रहे हैं और बार बार जिसका बखान कर रहे हैं वह खतरा दिनों दिन ज्यादा से ज्यादा जिलों में क्यों फैलता जा रहा है। देश जिन साठ शहरों में फलता फूलता नजर आ रहा है उनमें भी अगर चेतना और विवेक जागने लगे तथा अच्छे बुरे की पहचान होने लगे तो समाज में परिवर्तन की सम्भावनाओं को पढा जाना चाहिए।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629

1 टिप्पणी:

  1. ताऊ अपनी गीके ठीक करो -- वो फिल्म जो गुजरात में बन्द हुई थी वो "फना" थी न की "रंग दे बसंती"..

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