मुख्य भूमिका में कामेडियन हो जैसे
वीरेन्द्र जैन
एक समय था जब हिन्दी फिल्मों में नायक नायिका अलग होते थे और कमेडियन अलग होते थे। इन कामेडियंस के लिए अलग से कहानी में जगह निकाली जाती थी और नायक नायिका की प्रेम कहानी के समांतर उनकी भी कहानी चलती रहती थी। धीरे धीरे वह जमाना आया कि नायक और कामेडियन का भेद मिट गया तथा अक्षय कुमार, परेश रावल ही नहीं, ओम पुरी, शाहरुख खान और आमिर खान तक कामेडियन-नायक की भूमिका निभाने लगे। हमारे देश की राजनीति भी कुछ ऐसे ही दौर से गुजर रही है।
किसी समय राजनीति में शीर्षस्थ नेता अध्ययंशील,शालीन, सुसभ्य और गुरु गम्भीर बने रहते थे किंतु कुछ राजनेता समानान्तर ढंग से अपनी बात कहने के लिए मनोरंजक और चुटीला और ग्राम्य, तरीका अपनाते रहते थे जिससे उनकी बात जनता तक पहुँच भी जाती थी और उन्हें याद भी बनी रहती थी। इनमें अनेक स्थानीय नेताओं के अलावा राष्ट्रीय स्तर पर समाजवादी नेता राज नारायण सबसे अधिक चर्चित रहे थे। बाद में लालू प्रसाद यादव ने भी यही ढंग अपनाया और इसी की दम पर जनता दल से अलग होकर अपना अलग दल बनाया व उसके सर्वे सर्वा बन गये। समाजवादी पार्टी में रहने तक अमर सिंह भी इसी तरीके का स्तेमाल करते रहे हैं।
संघ के आदेश पर नियुक्त भाजपा के नये अध्यक्ष नितिन गडकरी और कुछ अन्य नेता भी इसी दौर के हैं जो अधिकतर हास्यास्पद बयान ही देते हैं किंतु उनके ये बयान राज नारायण और लालू प्रसाद की तरह सोचे समझे ढंग से दिये गये बयान नहीं हैं अपितु अपनी अनुभवहीनता और गलत प्रतीकों के प्रयोग के कारण व्यंगात्मक न होकर हास्यास्पद हो जाते हैं। वे इन बयानों के द्वारा विषय वस्तु की गम्भीरता को नष्ट कर देते हैं। मँहगाई के सवाल पर नितिन गडकरी ने कहा कि सरकार गेंहूँ इसलिए सड़ा रही है ताकि उसे शराब बनाने वालों को बेच सके। यह बयान एक राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष की गरिमा के अनुकूल नहीं है, जबकि बढती मँहगाई और उचित संरक्षण के अभाव में सरकारी निगमों में गेंहूँ का सड़ना एक गम्भीर चिन्ता का विषय है जिस पर उनसे पूर्व सुप्रीम कोर्ट भी टिप्पणी कर चुका है।
गत दिनों भाजपा के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा ने कहा कि सोहराबुद्दीन हत्याकण्ड के आरोपी अमित शाह को कांग्रेस इसलिए परेशान कर रही है ताकि बढती मँहगाई से ध्यान हटाया जा सके। ये बयान बेहद बचकाना और झुग्गी झोपड़ी में रहने वाली औरतों की लड़ाई के दौरान दिये गये कुतर्कों की तरह है। सोहराबुद्दीन, उसके साथी तुलसी प्रजापति और उसकी पत्नी कौसर बी की हत्या हुयी है जिसे न केवल वरिष्ठ पुलिस अधिकारी स्वीकार कर चुके हैं अपितु उन आरोपियों में से एक सरकारी गवाह बनने को तैयार भी हो गया है। इतना ही नहीं स्तिथि का पूर्वाभास होने के कारण भाजपा ने उन राम जेठमलानी को राज्य सभा में भेजना मंजूर कर लिया जो भाजपा के शिखर पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ चुनाव में खड़े हुये थे और जिन्होंने इस पार्टी के प्रमुख मुद्दे “अफजल को फाँसी” के विपरीत अफजल की वकालत करना स्वीकार किया था। उनको वकील् बनाने के बाद भी भाजपा नेता का उक्त बयान कि मँहगाई के मुद्दे से ध्यान बँटाने के लिए अमित शाह को परेशान किया जा रहा है, बेहद हास्यास्पद है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि आगामी दिनों में जब अयोध्या में बाबरी मस्जिद तोड़ने वालों या गुजरात में निर्दोष मुसलमानों की हत्याएं करने वालों पर शिकंजा कसेगा तब भी वे ऐसे ही बयान देंगे। भाजपा नेताओं के इन बयानों से उनके पक्ष में तो कोई वातावरण नहीं ही बनता, मँहगाई जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर भी होने वाली विपक्षी राजनीतिक लड़ाई कमजोर होती है। उनके ये बयान उमा भारती, ऋतम्भरा, आचार्य धर्मेन्द्र, अशोक सिंघल, आदि के बयानों की तरह लगते हैं जो गैर जिम्मेवारी से बिना किसी सोच के दिये जाते हैं, जैसे कि हरियाना में गौ हत्या के सन्देह में हिदू तत्ववादियों ने जब चार हरिजनों की हत्या कर दी थी तो अशोक सिंघल ने कहा था कि चार हरिजनों की जान की तुलना में एक गाय की जान ज्यादा महत्वपूर्ण है।
लोकतत्र में एक जिम्मेवार विपक्ष का होना बहुत जरूरी होता है, जो सतारूढ दल पर अंकुश बनाये रखता है और उसे मनमानी करने से रोकने का काम करता है। यह गलत नहीं होगा अगर यह कहा जाये कि विपक्ष को सत्ता पक्ष की तुलना में अधिक चेतन, सक्षम, और सक्रिय होना नितांत जरूरी है किंतु जब विपक्ष के प्रमुख नेता ही तरह तरह के अपराध कर्मों में आरोपी बन रहे हों और ऊल जलूल बयान देते हों तब सत्ता पक्ष की मनमानी पर अंकुश कौन रखेगा। खेद है कि आज देश के दो प्रमुख दलों को अपने अपने आरोपों में प्रतियोगी होकर यह बताने में अपनी ऊर्जा नष्ट करना पड़ रही है कि कौन बड़ा अपराधी है। दूसरे के अपराध को बड़ा बताने के रक्षात्मक उपायों द्वारा राजनीति करना बेहद बिडम्बनापूर्ण हैं, यह मुद्दों की लड़ाई को भटकाती है। यह लापरवाही पूर्ण राजनीति तब हो रही है जब देश के सामने आतंकवाद, अलगाववाद, और दिनों दिन फैलते जा रहे माओवाद का खतरा सामने है।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें