शुक्रवार, अक्तूबर 22, 2010

फैसला नहीं जनहित में एक समाधान

फैसला नहीं किंतु जनहित में एक समाधान वीरेन्द्र जैन
एक सम्पन्न सेठ एक बार यात्रा पर जाने के लिए प्रातः जब घर से निकले तो उनके रात्रि कालीन चौकीदार ने हाथ जोड़ कर निवेदन किया कि वे जिस हवाई जहाज से यात्रा करने वाले हैं उससे न जायें क्योंकि उसने रात्रि में सपने में देखा कि उस हवाई जहाज का एक्सीडेंट हो गया है। वैसे तो सेठजी इन बातों को दकियानूसी मानते थे पर कुछ सोच कर उन्होंने अपनी यात्रा स्थगित कर दी। संयोग से उस दिन वह् जहाज सचमुच दुर्घटनाग्रस्त हो गया और उसमें सवार सभी यात्री मारे गये। उसके कुछ दिन बाद वे जब एक ट्रेन से जाने वाले थे तो उसी रात्रि कालीन चौकीदार ने एक बार फिर हाथ जोड़ते हुये बताया कि उसने सपने में देखा कि उस ट्रेन का एक्सीडेंट हो गया है इसलिए कृपया उस ट्रेन से न जायें। सेठजी ने यात्रा स्थगित कर दी और एक बार फिर ऐसा संयोग हुआ कि उस ट्रेन का एक्सीडेंट हो गया और एक बार फिर सेठजी की जान बच गयी। सेठजी ने उस चौकीदार को बुलाया और उसे पाँच लाख रुपयों की राशि इनाम में देते हुए बोले कि तुमने हमारी जान बचायी है इसके लिए यह मामूली सी राशि दे रहा हूं और इसी के साथ तुम्हें नौकरी से निकाल रहा हूं। खुशी और दुख एक साथ झेलते हुए जब उसने सेठजी से कारण जानना चाहा तो वे बोले कि तुमने हमारी जान बचायी उसके लिए यह चेक है, किंतु हमने तुम्हें रात की चौकीदारी के लिए रखा है न कि सोने और सपने देखने के लिए। तुमने हमारी जान बचाने के लिए जो कुछ किया वह पुरस्कार के योग्य है किंतु अपनी ड़्यूटी ठीक तरह नहीं निभाने के कारण तुम्हें नौकरी से मुक्ति देना भी जरूरी है।
ठीक इसी तरह रामजन्म भूमि मन्दिर और बाबरी मस्जिद भवन भूमि विवाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा दिये गये फैसले ने हमारी जान बचा दी है भले ही उसे मुकदमे के इतिहास और उसकी संवेदनशीलता को देखते हुए जनहित में न्याय की जगह समाधान माना जा रहा हो।
इस फैसले ने देश को एक नये मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। विवादित भूमि- भवन का यह बँटवारा यदि समाज में शांति बनाये रखने व हिंसक साम्प्रदायिकों से लोगों की जान माल की रक्षा के पवित्र लक्ष्य को ध्यान में रख कर किया गया है, जैसा कि विभिन्न न्यायविदों द्वारा समझा जा रहा है, तो ये हमारी व्यवस्था पर गम्भीरतापूर्वक विचार का विषय है। इस फैसले का स्पष्ट संकेत है कि न्यायपालिका हमारे समाज और शासन-प्रशासन को इतना सक्षम नहीं मानती जो संवैधानिक न्याय का शांतिपूर्वक परिपालन करा सके। इसलिए उसने अपनी ओर से सरकारों की क्षमता के अनुरूप ऐसा फैसला देने का प्रयास किया है जो सीधे सीधे किसी को भी आहत न महसूस होने दे और अपने स्वार्थ में साम्प्रदायिक शक्तियां इसका अनुचित लाभ न उठा सकें। उन्हें आभास रहा होगा कि इतने लम्बे चले विवाद में राजनीतिज्ञों के पड़ जाने से वे किसी भी पक्ष को न तो फैसला स्वीकार करने देंगे और न ही समझौता करने देंगे। अंततः इसका अंतिम फैसला सुप्रीम कोर्ट से होना होगा तथा समाज में शांति चाहने वाले लोग यही चाहेंगे कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में भी तब तक चले, जब तक कि समाज इतना परिपक्व न हो जाये कि न्यायपालिका के अंतिम फैसले को विनम्रतापूर्वक स्वीकार कर ले।
कानून और व्यवस्था राज्य सरकारों की जिम्मेवारी होती है और भिन्न भिन्न राज्यों में भिन्न भिन्न राजनीतिक दलों या गठबन्धनों की सरकारें हैं। इनमें से कुछ राजनीतिक दल ऐसे भी हैं जो अपनी सांगठनिक क्षमता की दम पर साम्प्रदायिक हिंसा से लाभ उठाते रहे हैं व गैर राजनीतिक आधार पर अपना विस्तार करते रहे हैं। इस सण्भवना से इंकार नहीं किया जा सकता कि ऐसे राजनीतिक दल और संगठन उसे एक चुनावी लाभ के अवसर की तरह लें। ऐसा सोच इसलिए भी सम्भव है कि पिछले कुछ वर्षों में कुछ राज्य सरकारों ने अपने चुनावी लाभ के लिए राजधर्म का पालन नहीं किया था। इसी विवादित स्थल को अदालत के फैसले के पूर्व ही ढोल धमाकों के साथ ध्वस्त कर दिया था और राष्ट्रीय एकता परिषद में उसकी रक्षा का वादा करने के बाद भी तत्कालीन सत्तारूढ मुख्यमंत्री आज अपने उस कृत्य पर गर्व करते घूम रहे हैं। इस घटना के लिए षड़यंत्र रचने वालों की जाँच को ही सम्भवतः देश में शांति बनाये रखने के लिए अठारह साल तक खींचा गया था और आज तक उसकी अंतिम रिपोर्ट अपनी परिणति की प्रतीक्षा कर रही है। गुजरात में साबरमती एक्सप्रैस की बोगी नम्बर 6 में लगी आग के बाद पूरे प्रदेश में सरकारी इशारे पर निर्दोष और कमजोर मुसलमानों का नर संहार किया गया था व उसके अपराधियों को आठ साल बाद कोई सजा नहीं मिल सकी है, सारे अपराधी सोचे समझे कमजोर अभियोजन और गवाहों पर पड़े दबावों के कारण छूट गये हैं। बाबरी मस्जिद ध्वंस के बाद आहत मुस्लिम संगठनों ने पूरे मुम्बई में जगह जगह बम विस्फोट करके सैकड़ों निर्दोष नागरिकों को मौत के मुँह में धकेल दिया था जिन में से कई को फाँसी की सजा घोषित हुयी है, किंतु जिस जिस घटना की प्रतिक्रिया में बम विस्फोट हुये उसके अपराधी अभी भी बड़े बड़े संवैधानिक पदों को भोगते हुये आराम से हैं व और बड़े सपने देख रहे हैं। जब तक सुप्रीम कोर्ट का फैसला आये तब तक का समय यह अवसर देता है कि इस बीच समाज एक ऐसा सशक्त धर्मनिरपेक्ष संगठन तैयार कर ले जो अदालत के फैसले को लागू करवाने लायक व्यवस्था बना सकने में प्रशासन का सहयोगी हो और इतना सक्षम हो कि साम्प्रदायिक सद्भाव को तोड़ने वाली किसी भी रंग की शक्तियों से मुकाबले के लिए तैयार हो।

साम्प्रदायिक ताकतों का दुस्साहस धर्मनिरपेक्ष शक्तियों के अभाव में ही उफान लेता है और अपने पक्ष की सरकार में ही हिंसा फैलाता है। जहाँ जहाँ धर्मनिरपेक्ष शक्तियाँ सक्रिय होती हैं वहाँ साम्प्रदायिकता कोने में दुबक जाती है। यह चिन्ता का विषय है कि उत्तर पश्चिम भारत में अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए समाज को तोड़ने वाली शक्तियाँ अधिक संगठित और साधन सम्पन्न हैं जिसका दुष्प्रभाव न्यायिक फैसलों तक पहुँचता है। इस फैसले का एक खतरा यह भी हो सकता है कि साम्प्रदायिक शक्तियों की विध्वंसक क्षमता अपने अनुसार फैसला करवाने के लिए अपनी हिंसक मनोवृत्ति को और अधिक धार देने लगे। विनय कटियार और महंत अवैद्यनाथ जैसे लोगों ने संकेत देने शुरू कर दिये हैं।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023 मो. 9425674629

1 टिप्पणी:

  1. वीरेंदर जैन जी, गंभीर चिंतन और बेहतरीन सुझाव हैं आपके... बहुत खूब!

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