अरुन्धति, और सटोरिया देशभक्ति
वीरेन्द्र जैन
कश्मीर समस्या पर अरुन्धति के बेबाक बयान ने देश में तहलका मचा दिया है। उन्होंने वह कह दिया है जिसे रेत में गरदन छुपाये हुए कोई शुतुरमुर्ग सुनना नहीं चाहता। ‘नब्रूयात सत्यम अप्रियम” को मानने वाले वर्ग को अप्रिय सत्य सुनने को मजबूर कर दिया गया है। “ए बुल इन द चाइना शाप” की तरह अरुन्धति के अप्रिय वचन भ्रष्टाचार के क्षीरसागर में डूबे हुए लोगों को खतरे की घंटी की तरह लग रहे हैं। उन्होंने जो कहना चाहा उसे निर्भयता से कहा। कहने के बाद यह नहीं कहा कि उनके बयानों को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया है या उनका आशय यह नहीं था। उन्होंने जो कहा वह स्वयं कहा किसी छद्म नाम से नहीं कहा या अपने किसी मित्र, परिचित, रिश्तेदार के नाम से नहीं कहा। किसी साध्वी का भेष बना बम विस्फोट कराने के बाद उससे इंकार करने की तरह नहीं कहा। अगर उनका कथन गैरकानूनी है तो उसके लिए वे कानून द्वारा निर्धारित सजा को भोगने के लिए तैयार हैं। कहीं न कहीं सत्ता और व्यवस्था से जुड़े लोगों को उनका बयान बेचैन कर गया है पर वे उसका जबाब नहीं दे पा रहे अपितु अरुन्धति पर मुकदमा चलाने, फाँसी देने, देश निकाला देने आदि के फतवे जारी कर रहे हैं। सत्तारूढ कांग्रेस ने प्रारम्भ में बयान का अध्य्यन करने, मुकदमा चलाने, के बाद कहा है कि सरकार अरुन्धति पर मुकदमा चला कर उन्हें अनावश्यक प्रचार नहीं देना चाहती इससे अलगाववादियों को ही मौका मिलेगा। अर्थात उनके कहे को अनकहा मान लिया जाये। असल में कश्मीर की मूल समस्या यही है कि देश के कर्णधार कश्मीर पर चर्चा से बचना चाहते हैं। इस बात पर बिना विचार किये हुये कि अरुन्धति ने सही कहा या गलत कहा, उन्हें किस जगह, किन लोगों के साथ क्या कहना चाहिए था या क्या नहीं कहना चाहिए था, उनको इस बात के लिए साधुवाद दिया जाना चाहिए कि उन्होंने गत साठ सालों से लगातार दरी के नीचे दबा कर रख दिये जाने वाले मुद्दे को बीच आंगन में लाकर खड़ा कर दिया है। भीष्म साहनी की सुप्रसिद्ध कहानी चीफ की दावत में जब एक कर्मचारी के यहाँ बड़े साहब को खाना खाने के लिए आमंत्रित किया जाता है तो चापलूसी में उनके सामने घर की सारी सुन्दर और अच्छी चीजें ही सामने लाने की कोशिश की जाती है और इस कोशिश में बूढी, कमजोर और बीमार माँ को एक कोठरी में कैद कर दिया जाता है ताकि चीफ के सामने कुछ भी असुन्दर न आये। आज अरुन्धति ने उस माँ को कोठरी से निकाल कर ड्राइंग रूम में ठीक उस समय खड़ा कर दिया है जब देश की सरकार के सबसे खास मेहमान आने वाले थे।
यह मुसीबत केवल सरकार के सामने ही नहीं है अपितु देश के प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के सामने उस से भी बड़ी समस्या खड़ी हो गयी है। उसका अस्तित्व तो देशभक्ति के नकाब में ढका छुपा रहकर ही सुरक्षित रहता है। उसकी देशभक्ति तो उन सटोरियों के धन्धे वाली देशभक्ति है, जिसके आधार पर वे देश की टीम को जिताने का माहौल बनवाकर सट्टा लगवा देते हैं पर जब सट्टे में अच्छी बुकिंग हो जाती है तो उसे हरवाने के लिए खिलाड़ियों को फिक्स कर लिया जाता है। अधिकतम लाभ इसी में निहित होता है। भाजपा देश की कीमत पर भी सत्ता की राजनीति करती रहती है। देशभक्ति की राजनीति से चुनाव जीतकर वे क्या करते हैं यह अब किसी से छुपा नहीं है। वे जानते हैं कि इस विषय में सच क्या है, किंतु संवाद को दबाना और केन्द्र सरकार को समस्या के लिए गरियाना उनकी चुनावी रणनीति है। ये वही लोग हैं जो इमरजैंसी में छुपते फिरे थे और जो पकड़े गये थे वे बाद में माफी माँग कर जेल से बाहर आये थे। इतना ही नहीं जब उनकी सरकार आयी तो उस जेल यात्रा के लिए उन्होंने जिन्दगी भर के लिए पेंशन की व्यवस्था कर ली। पर अब वे स्वतंत्र और निर्भीक आवाज के साथ संवाद न करके उसे दबाना चाहते हैं।
डा. हरिवंश राय बच्चन ने एक साक्षात्कार में कहा था कि मैं आजाद को भी इतनी आजादी देना चाहूंगा कि वो अगर चाहे तो गुलामी स्वीकार कर सके। लोकतंत्र और स्वतंत्रता इस सीमा तक होनी चाहिए। किंतु भाजपा का चरित्र अपने आप में फासिस्ट है और उसी के अनुसार उसकी भाषा और आचरण भी फासिस्ट हैं। इनके अनुषांगिक संगठन विचारों से असहमत होने पर पुस्तकें जलाते हैं, कलाकृतियां जलाते हैं, फिल्में नहीं बनने देते बन जाएं तो चलने नहीं देते, प्रेम को प्रतिबन्धित करना चाहते हैं और वेलंटाइन डे पर हिंसक हमले करते हैं। वे समाज में ड्रेस कोड लागू करवाने की कोशिश करते हैं। ये ही किसी साम्राज्यवादी की तरह किसी भी आजादी के विचार पर फासिस्ट भाषा में विषवमन करने लगते हैं।
कश्मीर की आजादी का सवाल एक विवेकहीन भावुक विचार है जो सैन्य संगठनों के कठोर नियंत्रण में लम्बे समय तक रहने के कारण मजबूत हुआ है। अपने भौगोलिक, राजनीतिक और अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के पेंच में कश्मीर स्वतंत्र राज्य नहीं रह सकता। उसे हिन्दुस्तान या पाकिस्तान में से किसी एक के साथ रहना ही होगा। कश्मीर का कुल क्षेत्रफल कुल जम्मू-कश्मीर राज्य का 15% है और भारत के नियंत्रण वाले भाग का कुल 7% है। आजादी की माँग करने वाला यह हिस्सा कुल 4500 वर्गकिलोमीटर होगी अर्थात भूटान के दसवें हिस्से के बराबर। इसकी सीमा किसी समुद्र किनारे से नहीं लगती और वेटिकन सिटी व लक्समवर्ग व एकाध अन्य को छोड़ कर दूसरा कोई ऐसा स्वतंत्र राष्ट्र अस्तित्व नहीं बनाये रख सका। तय है कि इसे पाकिस्तान हड़पने की कोशिश करेगा जिसे या तो उन्हें स्वीकारना पड़ेगा या और कठिन संघर्ष करना पड़ेगा। आजाद होने की दशा में यह तीन तरफ से पाकिस्तान, चीन और भारत से घिरा होगा। पाकिस्तान के हालात देखते हुए कश्मीर का पाकिस्तान के साथ होना हिन्दुस्तान के साथ होने से किसी भी स्तर पर बेहतर नहीं कहा जा सकता। भारत में पाकिस्तान समेत दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा मुसलमान हैं और अपने मजहबी मामलों में अपेक्षाकृत अधिक स्वतंत्र हैं। भारत की अर्थव्यवस्था पाकिस्तान की तुलना में अधिक मजबूत और आत्मनिर्भर है तथा भारत में एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक शासन प्रणाली है। किसी विदेशी हमले या विद्रोह की स्तिथि में, उसका मुकाबला करने में सक्षम सैन्यशक्ति उसके पास है। पाकिस्तान के नियंत्रण वाले आजाद कश्मीर की तुलना में हिन्दुस्तान के साथ वाला कश्मीर अधिक स्वतंत्र है। आवश्यकता है कि कश्मीर में विदेशी घुसपैठियों को रोका जाये, अलगाववादियों पर कठोर कार्यवाही की जाये और सही प्रतिनिधित्व को राज्य की सत्ता सौंपी जाये। इसके लिए संवाद कायम किया जाना और उसे निरंतर बनाये रखना बेहद जरूरी है। यह चाहे जैसे भी हो। अरुन्धति वह पहली गैर कश्मीरी भारतीय महिला हैं जिन्होंने उनकी आवाज के साथ आवाज मिलायी है। जिनकी आवाज को पर मनन करने के लिए असहमति के बाद भी सुना जाना चाहिए और उन्हें आगे सम्वाद के लिए माध्यम बनाना चाहिए। सत्ता के सटोरियों द्वारा पैदा की गयी अंध राष्ट्रभक्ति अरुन्धति को फाँसी देने की माँग कर रही है वह वैसी ही भावुक और बचकानी है, जैसी कि कश्मीर की आजादी की हवाई माँग है।
संवाद के साथ साथ उन बाधाओं को दूर किया जाना चाहिए जिन के कारण अपना भला बुरा सोचने की कश्मीरी दृष्टि धुंधलाई हुयी है। अरुन्धति ने देश और कश्मीर दोनों ही जगह संवाद की सम्भावनाएं पैदा की हैं।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629
अच्छा विषय है .
जवाब देंहटाएंआप कश्मीर समस्या का समाधान अगर कश्मीरी पंडितो को ध्यान में रख कर करने की बत करते तो तभी वो कोसिस ईमानदारी की कहलाती . आप वर्त्तमान स्थिति कश्मीर की तो देख रहे है पर उसी कश्मीर का अभिन्न हिस्स रहे कश्मीरी पंडित जो अपने ही देश में पिस्थापित है उन की गलती क्या है ????????
यही की वो भारतीयता से समर्थक थे और हिन्दू थे ????
आज कश्मीर कल आसाम और फिर कोई और राज्य ,
सविधान में भारत की परिभाषा राज्यों के संघ से रूप में दी गयी है अगर एक भी विभाजन स्वीकार हुआ ही निश्चित ही भारत इतने टुकडो में हो जायेगा की उस को वापस जोड़ना असंभव होगा .
मेरा प्रश्न है की कश्मीर में स्वतंत्रता की मांग क्यों है ?
हिन्दू घटा देश बटा
देश के जिस भी हिस्से में हिन्दू कम हो जाते है वहा से ही अलगाववादी मांगे उठती है .आप ये मत सोचे की मैं हिन्दू मुस्लिम क्यों कर रहा हू पर मुस्लिम और सरियात को आधार बना कर पहले पाकिस्तान और अब कश्मीर से हिन्दुको को निकालना . इन को नजरंदाज नही किया जा सकता है .
जब तक ये अल्पसंख्यक है तब तक सेकुलर और जैसे ही बहुसंख्यक हुए सरियत के हिसाब से
कश्मीर समस्या विशुद्ध इस्लामिक समस्या है और यही सत्य है
अरुंधती जी ने तो कश्मीर की स्वतंत्रता की मांग की है और भारत को भूखा नंगा कहा है .चलिए अरुंधती की बात मान लेते है की भारत भूका नंगा है पर पाकिस्तान भिखारी है अन्य देशो के सामने नंगा खड़ा है मदद का कटोरा लिए .
जवाब देंहटाएंअलगाव वादी कश्मीर को पाकिस्तान से मिलाने की मांग करते है और घाटी में पाकिस्तानी झंडा फहरा देते है .भिखारी और बद से बत्तर देश पाकिस्तान उन को प्यारा है क्यों की वह मुस्लिम रास्ट्र है .
कश्मीर की आजादी की मांग का आधार वहा के वर्त्तमान निवासियों का मुस्लिम होना है . फिर भी ये अत्याचारी जिन्हों ने वहा पर आतंकवादियों की भरपूर मदद की और बड़े बड़े नरसंघारो में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष भूमिका निभाई केंद्र सर्कार के अरबो रुपयों के पैकज पर मौज काट रहे है . लाल चौक पर २ वश से तिरंगा नही फहरा है पर वहा पर पाकिस्तानी झंडा जरुर फहरा दिया जाता है.
अरुंघती ने देशद्रोह की बात की है और आप उसे किसी भी तरह सही नही कह सकते .
वाजिब सवाल उठाया आपने।
जवाब देंहटाएंकाश्मीर के महाराजा हरीसिंह की स्वतंत्र राज्य की लालसा और पैसो के हवस का तात्कालिन हिन्दू महासभा के महानुभव और हिंदुवादी जोर-शोर से वकालात करते हुवे कहते थे कि ''एक हिन्दु राज्य, जम्मू और काश्मीर, अपने अस्तित्व को एक धर्म निरपेक्ष राज्य में नहीं खो सकता।'' राजा को भगवान का अवतार मानने वाले संघ के इन राजनीतिक अवतारों ने राजा नवाबो की अय्याशी की खातिर धन मुहैया करवाने वाले प्रिविपर्स कानून की अंत तक जोरदार वकालात की। यही है सटोरिया देशभक्ति का नमूना!
राजा हरीसिंह ने भारत-पाक दोनो को 12 अगस्त, 1947 को 'जस का तस' समझौता प्रस्ताव दिया, भारत ने प्रस्ताव ठुकरा दिया, पर पाकिस्तान ने स्वीकार लिया। समझौते के अनुसार राज्य के केंद्रीय विभाग, जो लाहौर वृत्त में थे, पाकिस्तान के अधिकार क्षेत्र में आने थे। समझौते के अनुसार पाक के ध्वज हिन्दू राज्य काश्मीर के डाकतार विभाग के दफ्तरों में लहराने लगे। लेकिन इतने सावन बितने के बाद लगता है कि कांग्रेस और भाजपा दोनो ही मामले को जस-का-तस बनाये रखना चाहते है।
सचाई को स्वीकार करने का साहस इन सटोरियों में कहा? अरुंधती ने जो सवाल उठाये उसपर तार्किक बहस करने के स्थान पर सटोरिये देशद्रोह-देशद्रोह का हंगामा बरपाते फिर रहे है, या हिन्द-कुश हिन्द-कुश का। ओर स्थिती यहा तक आन पहुची की हमारे परिवार का एक सदस्य घर छोडने को मजबुर हो गया।